यूपी में 2007 का करिश्मा दोहरा सकती है बसपा, बशर्ते…

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क्या उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के लिए एक बार फिर जमीन तैयार हो रही है। क्या आने वाले उत्तर प्रदेश चुनाव में बसपा को एक बार फिर से ब्राह्मण समाज का साथ मिल सकता है। यह सवाल उत्तर प्रदेश की हालिया घटनाओं के कारण उठ रहा है। विकास दूबे मामले में एक नाबालिक युवक का एनकाउंटर और अब गाजियाबाद में पत्रकार विक्रम जोशी की हत्या के बाद लोगों का गुस्सा और भड़क गया है।

कानपुर में आठ पुलिसकर्मियों की हत्या के आरोपी विकास दुबे के बहाने जब पूरे ब्राह्मण समाज को कठघरे में खड़ा किया जा रहा था, बसपा प्रमुख मायावती ने पूरे ब्राह्मण समाज पर निशाना साधने वालों की आलोचना की थी। इन दोनों घटनाओं से उत्तर प्रदेश के ब्राह्मण समाज में योगी सरकार को लेकर काफी गुस्सा है। जहां तक पत्रकार हत्याकांड की बात है तो पुलिस से शिकायत के बावजूद पुलिस ने अपराधियों पर कोई कार्रवाई नहीं की, इससे उत्साहित गुंडों ने पत्रकार की गोली मारकर हत्या कर दी। इसको लेकर योगी सरकार की काफी आलोचना हो रही है। लखनऊ में तो पत्रकारों ने मीडियाकर्मियों पर बढ़ती हिंसा के मामले में कड़ा विरोध दर्ज कराया था। तो दूसरी ओर विकास दूबे के मामले में 14 साल के एक नाबालिग युवक के इनकाउंटर को भी ब्राह्मण समाज अन्याय बता रहा है।

उत्तर प्रदेश में ब्राह्मण समुदाय के लोगों के बीच भी योगी सरकार को लेकर तेजी से गुस्सा फैलता जा रहा है। यूपी में मुख्यमंत्री योगी जिस तरह से ठाकुरवाद को बढ़ा रहे हैं, और ब्राह्मणों को दरकिनार कर रहे हैं, उससे ब्राह्मण समाज में रोष है। ऐसे में ब्राह्मण समाज उत्तर प्रदेश में भाजपा का विकल्प तलाशने में जुटा हुआ है।

अब जरा पीछे आते हैं तो वर्ष 2007 के विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने बिना गठबंधन चुनाव लड़ा था और अपने बलबूते सत्ता हासिल की थी। इसके पीछे अनुसूचित जातियों व जनजातियों के साथ सर्वसमाज को जोड़ने का प्रयोग माना जाता रहा है। हालिया घटनाक्रम के बाद प्रदेश में एक बार फिर से 2007 जैसी स्थिति बनने की पूरी संभवना है। हालांकि यहां एक बात साफ है कि ब्राह्मण वोटर योगी सरकार से नाराज हैं, न कि भाजपा से। लेकिन लोकतंत्र में हर राज्य का चुनावी गणित अलग होता है। और यूपी के चुनावी गणित में योगी ब्राह्मण समाज के निशाने पर हैं।

ऐसे में सवाल यह है कि योगी से नाराज वोटर किस ओर जाएंगे। क्या वह बिना कोशिश के ही खुद बसपा के पीछे खड़े हो जाएंगे? जाहिर है नहीं। क्योंकि जमीनी हकीकत से समाजवादी पार्टी भी वाकिफ है और अखिलेश यादव लगातार ब्राह्मण अत्याचार का मुद्दा उठा रहे हैं। यही नहीं सपा के कई अन्य नेता भी सोशल मीडिया पर ब्राह्मण अत्याचार की बात को जोर-शोर से उठा रहे हैं। बहुजन समाज पार्टी नाराज ब्राह्मणों को अपने पाले में लाने की कितनी गंभीर कोशिश करती है, यह अभी साफ नहीं हो पाया है। लेकिन इसकी संभावना जताई जा रही है कि अगर बसपा ने ईमानदारी से कोशिश की और ब्राह्मणों को जोड़ने की रणनीति पर गंभीरता से काम किया तो प्रदेश में एक बार फिर से 2007 की स्थिति दोहराई जा सकती है। लेकिन सवाल यही है कि बसपा को कोशिश करनी होगी, और कोशिश में ईमानदारी होनी चाहिए।

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