नई दिल्ली- उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले बीजेपी दलित वोटरों को साधने के लिए नई-नई साजिशें रच रही है। बीजेपी न सिर्फ ग्राउंड लेवल पर जाकर बल्कि सोशल मीडिया के माध्यम से भी दलित वोटों के धुर्वीकरण के लिए नई नई चालें चल रही है। सोशल मीडिया के चर्चित प्लेटफार्म ट्विटर पर एक ऐसी ही चाल बीजेपी ने गुरुवार को चली जब ट्विटर पर #दलित_विरोधी_अखिलेश ट्रेंड करने लगा।
इस हैशटैग के साथ कई बीजेपी नेताओं, कार्यकर्ताओं और बीजेपी सपोर्टर्स ने ट्विट किए और अखिलेश यादव के शासनकाल को दलित विरोधी बताया। इतना ही नहीं इन ट्विटस में अखिलेश यादव द्वारा लिए गये फैसलों का उल्लेख करते हुए, अब और तब में कितना अंतर था, इसे भी बताया गया।
लेकिन क्या आपको लगता है बीजेपी ऐसा इसलिए कर रही है क्योंकि उसे यूपी के पूर्व सीएम अखिलेश यादव पर निशाना साधना है?
जी नहीं! दरअसल भाजपा का निगाहें कहीं और… और निशाना कहीं और है। असल में उत्तर प्रदेश में जो माहौल है, उसमें ऐसा होता दिख रहा है कि अगर किसी स्थिति में दलित समाज का कुछ हिस्सा बसपा को वोट नहीं करता है तो वह समाजवादी पार्टी को वोट कर सकता है। बस.. भाजपा यही नहीं चाहती, क्योंकि भाजपा को पता है कि अगर दलितों के वोटों का छोटा सा हिस्सा भी अगर समाजवादी पार्टी को जाता है, तो भाजपा की राह और मुश्किल हो सकती है। इसलिए भाजपा की यह कोशिश है कि दलित समाज के जो वोट बसपा को नहीं मिलते हैं, वो या तो भाजपा को मिले या फिर कांग्रेस में चले जाएं। ताकि न सपा जीत सके और न ही बसपा।
जहां तक प्रदेश में दलित समाज के वोटों का सवाल है तो यूपी में करीब 22 फीसदी दलित वोटर हैं जिसमें लगभग 14 फीसदी वोट जाटवों का है, जबकि गैर-जाटव वोटर 8 फीसदी है। इस वोट बैंक पर अब तक बसपा प्रमुख मायावती का एकक्षत्र राज रहा है।
पिछले दिनों राजनीतिक गलियारों में चंद्रशेखर और अखिलेश यादव के एक साथ आने की खबरें बनी रही जो कहीं न कहीं बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ने का संकेत देती हैं। चूंकि मायावती और चंदशेखर आजाद एक ही जाति से और पश्चिमी यूपी से आते हैं तो यदि अखिलेश और आजाद मिल जाते हैं तो दलितों का एक तबका सपा का समर्थन कर सकता है। भाजपा इसी अंदेशें को लेकर परेशान है। इसलिए भाजपा अखिलेश यादव को दलित विरोधी बता कर दलित वोटरों को भरमाने में लगी हुई है।
हालांकि भाजपा की कथनी और करनी में अंतर कई बार सामने आ चुका है। प्रयागराज में हाल ही में हुए दलित परिवार की हत्या का मामला हो, सहारनपुर की बेटी का मामला, बीते सालों में दलितों पर हुए अत्याचार के खिलाफ योगी सरकार का लचर रवैया देख कर यूपी के दलित पहले ही सावधानी बरत रहे हैं।

दलित दस्तक (Dalit Dastak) एक मासिक पत्रिका, YouTube चैनल, वेबसाइट, न्यूज ऐप और प्रकाशन संस्थान (Das Publication) है। दलित दस्तक साल 2012 से लगातार संचार के तमाम माध्यमों के जरिए हाशिये पर खड़े लोगों की आवाज उठा रहा है। इसके संपादक और प्रकाशक अशोक दास (Editor & Publisher Ashok Das) हैं, जो अमरीका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में वक्ता के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दलित दस्तक पत्रिका इस लिंक से सब्सक्राइब कर सकते हैं। Bahujanbooks.com नाम की इस संस्था की अपनी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुकिंग कर घर मंगवाया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को ट्विटर पर फॉलो करिए फेसबुक पेज को लाइक करिए। आपके पास भी समाज की कोई खबर है तो हमें ईमेल (dalitdastak@gmail.com) करिए।
