
24 फरवरी 2014 को मैं भाजपा के दफ्तर में मौजूद था, जब उदित राज भाजपा ज्वाइन करने वाले थे. बतौर पत्रकार मैं भाजपा कवर कर रहा था. मैं भी हैरान था कि उदित राज को ऐसा क्या सूझा कि उन्होंने भाजपा ज्वाइन करने का मन बना लिया. खैर, उदित राज मंच पर आएं, वही अफसरों वाला रुवाब था उनका… जिसे कई अम्बेडकरवादियों ने उनसे मिलने के वक्त महसूस किया होगा. राजनाथ सिंह के सामने उन्होंने भाजपा की सदस्यता ली. केजरीवाल से लेकर मायावती तक को रोकने की बात कही. वहां मंच के बाईं ओर एक कोने में उदित राज के समर्थकों ने जगह घेर रखी थी, जहां से वो ‘जय भीम’ और ‘उदित राज जिन्दाबाद’ के नारे लगा रहे थे. उदित राज के हाव भाव को देख कर लग रहा था कि वो भाजपा में अपनी शर्तों के साथ आ रहे हैं. लेकिन 2019 आते-आते स्थिति बदल गई.
भाजपा ने उत्तर पश्चिम दिल्ली से अपने वर्तमान सांसद उदित राज का टिकट काट दिया है. भाजपा ने उनकी जगह गायक हंस राज ‘हंस’ को टिकट दिया है. उदित राज का टिकट कटने की संभावना तभी से जताई जा रही थी, जब से भाजपा ने उनकी सीट को छोड़कर बाकी के छह लोकसभा क्षेत्रों से अपने उम्मीदवार तय कर दिए थे. उदित राज ने 2014 लोकसभा चुनाव के पहले 24 फरवरी 2014 को भाजपा ज्वाइन किया था.
उदित राज को भी इसका अंदेशा हो गया था. यही वजह थी कि वह सोमवार को एक के बाद एक ट्विट करते रहे और भाजपा नेताओं से तकरीबन सार्वजनिक गुहार लगाते दिखे. उन्होंने यह कह कर भी भाजपा को डराने की कोशिश किया कि उनके पास कांग्रेस और आम आदमी पार्टी से ऑफर है, लेकिन वह अपनी पार्टी के फैसले का इंतजार कर रहे हैं. उदित राज के इस बयान ने टिकट मिलने और संसद में दुबारा पहुंचने की उनकी बेचैनी को भी दिखाया. वह काफी असहाय से दिख रहे थे. उदित राज को जानने वालों के लिए यह एक झटका था. एक दौर में जिस उदित राज के आमंत्रण पर दर्जनों सांसद पहुंच जाया करते थे, उसका महज एक सांसद बनने को लेकर छटपटाना निराश करने वाला था.
अपने आखिरी दांव को चलते हुए उदित राज ने आज 23 अप्रैल को यह अल्टिमेटम भी दे दिया कि टिकट नहीं मिलने पर वह भाजपा छोड़ देंगे, लेकिन इसके बावजूद भाजपा के नेताओं ने न तो उदित राज से बात करनी जरूरी समझी और न ही उन्हें मनाने की कोशिश की. और जिस तरह से अचानक उनका टिकट कटने की खबर आई उससे साफ है कि भाजपा को उनके पार्टी में रहने या नहीं रहने से कोई फर्क नहीं पड़ता है.
उदित राज के लिए मुश्किल यह है कि उन्होंने भाजपा के साथ समझौता नहीं किया था, बल्कि अपनी पार्टी इंडियन जस्टिस पार्टी का विलय ही भाजपा में कर दिया था. इसलिए उनके पास अब घरवापसी का भी कोई रास्ता नहीं है. एक बड़ी सोच वाले व्यक्ति का यूं एक छोटे से पद के लिए इतने बड़े समझौते कर लेना भी निराश करता है. उदित राज की आगे की राह क्या होगी, यह देखना होगा. लेकिन महज एक सांसदी के लिए उनका छटपटाना काफी खल गया.

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।