बस्तर में नरसंहार आखिर कब तक?

छत्तीसगढ़ के जनता ने 2018 में 15 साल (बीजेपी शासन) के वनवास के बाद 90/72 सीट से भूपेश बघेल कांग्रेस की सरकार बनाई। जनता को क्या पता की कांग्रेस बीजेपी भाई बहन है! बस्तर संभाग के 12/11सीट पर जनता ने कांग्रेस को बैठाया। दुर्दशा देखिए 17 मई 2021 को बस्तर (सिलगेर) में आदिवासियों पर हुई फायरिंग से 3 किसान की मौत हो गई, जबकि 6 लापता और 18 किसान घायल हो गए, जिसकी उच्च स्तरीय जांच की मांग एवं इस पर सरकार द्वारा नाटकबाजी के खिलाफ लगभग 40 गांव के किसान सड़कों पर प्रदर्शन कर रहे हैं। अपने जमीन से उनका CRPF कैंप (153वी बटालियन) के खिलाफ हल्ला बोल जारी है। सरकार का कहना है कि उस जमीन से चौड़ी रोड बनकर गुजरेगी, जबकि जनता का साफ कहना है कि हमें इतनी चौड़ी सड़क की जरूरत ही नहीं!

खेल कुछ ऐसा है कि कार्पोरेट के सेवक सरकारी तंत्र और मीडियातंत्र मिलकर दमनकारी बलों का प्रयोग कर उल्टे आदिवासियों को विभिन्न तरीके से बदनाम कर रहे हैं। नक्सल के नाम पर मौत की नींद सुला रहे हैं। बस्तर में औसतन हर माह 4 आदिवासी नक्सल के नाम पर मारे जा रहे हैं। रोजगार, सड़क-रेल-विकास का कागजी विकास दिखाने के नाम पर केन्द्र सरकार भी पीछे नहीं हैं। वास्तविक रूप से सड़क-रेल विकास लोगों के लिए नहीं बल्कि कार्पोरेट द्वारा बस्तर की बहुमूल्य जंगल-खनिज संपदा कीमती इमारती लकड़ी कोयला आदि को बिना अवरोध के ढोने, विरोधी जन-आक्रोश को कुचलने हथियारों को कम समय में पहुंचाने के लिए BJP कांग्रेस द्वारा यह खेल बहुत वर्षो से खेला जा रहा है। बीजेपी काल का “सलवा जुडूम” का नंगा-नाच सबको याद होगा। और अब बदली परिस्थितियों में विकसित नाम व काम दुनिया देख ही रही है।

ऐसा नहीं है कि बस्तर के आदिवासी अपना विकास, अच्छी शिक्षा, बेहतर स्वास्थ्य सुविधा, सड़क, रेल, उद्योग नहीं चाहते? वे भी विकास चाहते हैं पर वह संवैधानिक हो, दूसरी शर्त यह है कि आदिवासी का, बस्तर का विकास आदिवासी करेंगे। मतलब “अबुवा दिशुम अबूवा राज” इसी सुझबुझ की नीति से पूर्व में हमारे महान पुरखे छत्तीसगढ़ में शोषण के खिलाफ सोनाखान के शासक रामाराय व उनके पुत्र अमर शहीद वीर नारायण सिंह का आन्दोलन चलाने में महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इसी दृष्टिकोण में गुरू घासीदास और गुरु बालकदास ने भूस्वामित्व अधिकार आंदोलन (सतनाम आंदोलन) चलाया था, जिसमें एक उद्देश्य छुआछूत भेदभाव मिटाना भी शामिल था, इस सच्चे इतिहास को आदिवासी व सतनामी समाज बखूबी जानते हैं। तमाशा देखिए, कुछ आंदोलन जीवी को सिर्फ दिल्ली का किसान आंदोलन दिखता है, किंतु बस्तर के किसान आंदोलन, बोधघाट बहुद्देशीय परियोजना, राम वन पथ गमन योजना तथा हाल ही में किसानों की जमीन पर भूपेश बघेल सरकार की सरकारी बंदूक के नोक पर फोर्स कैंप लगाने का विरोध हो, नक्सल के नाम पर फोर्स की फायरिंग से 3 किसान की मृत्यु, 6 लापता, 18 से अधिक किसानों पर गोली लगने के मुद्दे दिखाई नहीं पड़ती? बस्तर में औसतन हर माह 4 बेकसूर आदिवासी नक्सल के नाम पर मारे जाते हैं।

जातिवादी मीडिया ऐक्टिविस्ट सवर्ण और आरक्षित MP-MLA मूकदर्शक बने हुए हैं। आज कहीं न कहीं मैदानी एकता से उलगुलान की जरूरत है जब जल जंगल जमीन की लड़ाई अकेला ST लड़ेगी, संविधान बचाने की लड़ाई अकेला SC लड़ेगा, किसान आंदोलन की लड़ाई को केवल OBC हवा देगी तो सफलता कैसे मिलेगी? अब समय आ गया है कि ST, SC, OBC और मायनोरिटी को एक होकर दमन कारी नीति को कुचलना होगा। गैर छत्तीसगढ़िया राज को खत्म कर बिरसा मुंडा वीर नारायण सिंह, गुरु घासीदास गुरु बालकदास के सपनों का छत्तीसगढ़ बनाना होगा तभी बस्तर ही नहीं बल्कि पूरे छत्तीसगढ़ में खुशियां चैन अमन लौट पाएंगे।


लेखक नरेन्द्र टंडन (RTI & SC ST Act activist) हैं। लोरमी, मुंगेली (छत्तीसगढ़) में रहते हैं।  संपर्क- 9425255802

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