Tuesday, February 11, 2025
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अखिलेश कृष्ण मोहन: बहुजन पत्रकारिता के विरल रत्न

कल सुबह एक खास लेख लिखने में व्यस्त था। उसका अंतिम वाक्य लिखना शुरू ही किया था कि मोबाइल बज उठा। वह डॉ. कौलेश्वर प्रियदर्शी का कॉल था। अंतिम वाक्य पूरा करना इतना जरुरी लगा कि कॉल रिजेक्ट कर दिया। ज्यों ही लेख पूरा हुआ, मेरे दामाद राजीव रंजन का फोन आ गया। उन्होंने बिना कोई भूमिका बांधे बताया,’ पत्रकार अखिलेश कृष्ण मोहन नहीं रहे! सुनकर स्तब्ध रह गया। मैंने उन्हें कहा कि थोड़ी देर पहले डॉ. प्रियदर्शी का फोन आया था, शायद वह भी यही सूचना देना चाहते थे। इतना कहकर मैं फोन काट दिया। फोन काटने के बाद मैंने रुधे गले से अपने मिसेज को सूचना दी। सुनकर उन्हें भी भारी आघात लगा और ऑंखें भर आयीं। बहू खाना बनाने जा रही थी। मैंने अपने हिस्से का खाना बनाने के लिए मना कर दिया। उसके बाद अखिलेश के बेहद खास डॉ. प्रियदर्शी को फोन लगाया। प्रायः 5 मिनट बात हुई। डॉ. कौलेश्वर ने रुधे गले से कहा कि हमने सामाजिक न्याय की दुनिया का एक बड़ा नायक खो दिया। अखिलेश के नहीं रहने पर ऐसा लगता है बहुजन समाज का कोई अंग ख़त्म हो गया। उनके नहीं रहने पर हमारा फर्ज बनता है कि अब उनके परिवार के विषय में सोचें।

 डॉ. कौलेश्वर से बात करने के बाद लखनऊ में अखिलेश के अभिभावक की भूमिका में दिखने वाले डॉ. लालजी निर्मल को फोन लगाया। उन्होंने जब मेरी कॉल उठाई, मेरे धैर्य का बाँध टूट गया और मैं जोर से रो पड़ा। उन्होंने भरे गले से बताया कि जो ही सुन रहा है, वही रो रहा है। अभी विद्या गौतम का फोन आया था, वह भी बेतहासा रोये जा रही थी। विद्या और अखिलेश ने शुरुआती दौर में साथ- साथ एक चैनल में काम किया था। जब मैंने उनसे आगे के प्रोग्राम के विषय में पूछा तो उन्होंने बताया कि पार्थिव शरीर गाँव जाएगा। वहीं उनका शेष कार्य किया जायेगा। अखिलेश का पार्थिव शरीर गाँव जाना इसलिए जरुरी था, क्योंकि उनकी मां को कल ही ऐसा कुछ होने आभाष हो गया था। अगर आखिरी वक्त में अखिलेश का शरीर गाँव नहीं गया तो घर वालों का दुःख और बढ़ जायेगा। आखिर में उन्होंने कहा कि हमने अपने जीवन के एक महत्वपूर्ण साथी को खो दिया। उनकी भरपाई होनी मुश्किल है। डॉ. निर्मल से बात करने के बाद जब मैंने फेसबुक खोला, देखा अखिलेश के प्रति श्रद्धांजलि की बाढ़ आई हुई है। सब कुछ देख कर दिमाग और सुन्न हो गया और मैंने छोटा सा यह पोस्ट लिखा, ‘अखिलेश कृष्ण मोहन का जाना मेरे लिए कोरोना के दूसरे वेभ की सबसे बड़ी घटनाओं में एक है। मुझे तो ऐसा लगता है मेरा एक अंग ही ख़त्म हो गया। मुश्किल है एक और अखिलेश कृष्ण मोहन का होना। उनके जाने से बहुजन पत्रकारिता की एक विराट संभावना का अंत हो गया।’

 उपरोक्त अंश लिखने के बाद मैं इस लेख को पूरा करने में जुट गया, पर दिमाग सुन्न हो गया था, जिससे कंसेन्ट्रेशन ही नहीं बन पा रहा था। दिन में कुछ खाया नहीं था। इसलिए शाम को जल्दी से खा कर यह सोच कर सो गया कि सुबह तरोताजा होकर लेख पूरा करूँगा। सुबह उठा भी, किन्तु जब फेसबुक पर नजर दौड़ाया मनस्थिति और ख़राब हो गयी। फेसबुक अखिलेश की माँ के निधन की खबरों से भरा पड़ा था। वह अपने प्यारे बेटे की मौत के सदमे को झेल नहीं पायीं और शाम होते ही अखिलेश के साथ अनंत यात्रा पर निकल पड़ीं। उनकी मां के जाने की खबर सुनकर एक बार फिर मैं आंसुओं में डूब गया। उसके बाद भी लेख को पूरा करने के लिए प्रयास किया, पर बिलकुल ही सफल नहीं हुआ। शब्द- शक्ति एकदम से ख़तम सी हो गयी। अंत में फेसबुक पर यह पोस्ट डालकर मैं सरेंडर कर गया– ‘महान पत्रकार अखिलेश कृष्ण मोहन पर आयेगी किताब!

दरअसल उनका व्यक्तित्व और कृतित्व इतना व्यापक है कि लेख के जरिये उनके साथ न्याय करने में खुद को अक्षम पा रहा हूँ। ऐसे में उनपर एक किताब लाने का निर्णय लिया हूँ। अगर कोरोना काल में बचा रहा और प्रेस इत्यादि खुले रहे तो आगामी 6 दिसम्बर बाबासाहेब डॉ आम्बेडकर के परिनिर्वाण दिवस पर वह किताब लोगों के हाथों में होगी!’

इसमें कोई शक नहीं कि अखिलेश कृष्ण मोहन जितने बड़े पत्रकार थे, उतने ही बड़े इन्सान भी थे। इसलिए उनके नहीं रहने पर लोगों ने उनके प्रति जो श्रद्धा उड़ेली, वह विरले ही किसी को नसीब होती है। योगेश योगेश्वर ने विस्मित होकर यूँ नहीं फेसबुक पर लिखा-‘ गज़ब हो गया! इस व्यक्ति के लिए फेसबुक पर इतना लिखा गया है। क्या कमाई की है। नमन श्रद्धांजलि!’ अब जबकि मेरी शब्द-शक्ति जवाब दे चुकी है, मैं फेसबुक पर सैकड़ों की संख्या में आये लोगों के उदगार के मध्य मैं कुछेक ऐसे लोगों की राय से अपने लेख की कमी को पूरा करना चाहता हूँ, जिन्होंने उन्हें ज्यादे करीब से देखा-सुना है।

 शुरुआत प्रख्यात बहुजन चिन्तक चन्द्रभूषण सिंह यादव से करता हूँ, जिन्होंने उनकी तुलना कोहिनूर हीरे से की है। उन्होंने लिखा है-‘ अब तो स्मृतियां ही शेष हैं। “फर्क इंडिया” के सम्पादक साथी अखिलेश कृष्णमोहन जी का न होना बहुजन पत्रकारिता की अपूरणीय क्षति।।……. मैं लिखूं क्या अपने इस पत्रकारिता जगत के कोहिनूर हीरे के बारे में, क्योंकि जब से यह खबर मिली है कि “फर्क इंडिया” के सम्पादक अखिलेश कृष्णमोहन जी हम सबके बीच नहीं रहे, मन उदास है, कुछ कह पाना मुश्किल है क्योंकि लखनऊ रहने पर मिलना, मुद्दों पर बहस करना, नई-नई चीजें बताना, मोटरसाइकिल पर बैठकर एक साथ भिन्न-भिन्न मिशनरी साथियो से मिलना आदि अब किसके साथ होगा?….

 मशहूर पत्रकार उर्मिलेश ने लिखा है,’ लखनऊ से फिर एक बहुत स्तब्धकारी सूचना! सोशल मीडिया से ही पता चला कि ‘फ़र्क इंडिया’ के संपादक अखिलेश कृष्ण मोहन नहीं रहे। लखनऊ स्थित एक बड़े शासकीय अस्पताल में उनका इलाज़ चल रहा था। बेहद सक्रिय इस उत्साही और जनपक्षधर युवा पत्रकार के असामयिक निधन की सूचना से आज मन बहुत खिन्न और उदास है…..

उनके गृह जनपद बस्ती के वीरेंद्र कुमार दहिया का उद्गार है,’कुछ लोगों का जाना सिर्फ एक व्यक्ति का जाना नहीं होता, उनके साथ साथ मिशन, नेकी, अच्छाई, न्याय की लड़ाई के साथ साथ और भी बहुत सी चीजों का जाना होता है….  एक्टिविस्ट पत्रकार सोबरन कबीर ने बहुत भावुक होकर लिखा है,’ भैया।।।। आप भी हम लोगों को छोड़कर चले गए।।।।। निशब्द हूं। कुछ भी कह पाने की स्थिति में नहीं हूं।’

जिस ‘दलित दस्तक’ के जरिये वह बहुजनवादी पत्रकारिता से जुड़े, उसके संपादक अशोक दास ने उन्हें यद्त करते हुए लिखा है,’  साल 2012 में जब “दलित दस्तक” की लॉन्चिंग हो रही थी, एक हमउम्र उत्साही युवा मेरे पास आया। युवक ने अपना परिचय अखिलेश कृष्ण मोहन के रूप में दिया। वो तब दिल्ली के किसी मीडिया संस्थान में काम कर रहे थे….. दिल्ली की मनुवादी मीडिया में जब भाई-भतीजावाद का बोलबाला बढ़ा और बहुजनों का काम करना मुश्किल हो गया तो अखिलेश जी लखनऊ शिफ्ट हो गए। लखनऊ जाने के बाद भी वो लंबे समय तक “दलित दस्तक” के लिए काम करते रहे। संघर्ष के दिनों में जब भी लखनऊ जाना हुआ, ठिकाना उन्ही का घर रहा। वो अपनी बाइक से मुझे हर जगह ले जाते। बाद में उन्होंने “फर्क इंडिया” के नाम से मैगज़ीन निकालनी शुरू की, फिर यूट्यूब भी चलाया। निरंतर सामाजिक न्याय की आवाज़ उठाते रहे। अखिलेश जी OBC (यादव) समाज के उन पत्रकारों में से रहे, जिन्होंने दलितों और पिछड़ों की एकता पर हमेशा विश्वास किया… मुझे “संपादक जी” कहने वाला शख्स आज हमेशा के लिए चला गया…. कल्पना में भी नहीं सोचा था कि कभी आपके बारे में ऐसे लिखना पड़ेगा। ये आपके साथ अच्छा नहीं हुआ। नमन।’

अशोक दास का पूरा संस्मरण यहां पढ़ सकते हैं- सामाजिक न्याय की पत्रकारिता करने वाला संघर्ष का साथी चला गया

अखिलेश कृष्ण मोहन जहाँ हास्पिटल में रहकर कोरोना के खिलाफ जंग लड़ रहे थे, वहीं हास्पिटल से बाहर उनकी ओर से लड़ाई कर रहे थे जुझारू पत्रकार नीरज भाई पटेल। अखिलेश के संघर्ष की विस्तृत जानकारी पटेल के जरिये ही मिली है। उनके पोस्ट को पढ़कर भावुक हुए बिना रहा नहीं जा सकता। उन्होंने लिखा है-‘ एक बार सोचिएगा जरूर इस शख्स के बारे में इतना क्यों लिखा जा रहा है। वजह सिर्फ इतनी है इस इंसान ने संपत्ति नहीं इंसान कमाए हैं। सुबह से सोशल मीडिया पर बहुत कुछ लिखा और कहा जा चुका है।।। अब ज्यादा कुछ कहने की स्थिति में नहीं हूं।।। बस ऐसा लग रहा है जैसे बीतों कुछ दिनों से लड़ी जा रही एक लड़ाई आज सुबह 5 बजकर 15 मिनट पर मैं हार गया। इतना कहूंगा कि मैंने अपना एक खुशमिजाज दोस्त, साथी, मित्र, सहयोगी, बड़ा भाई हमेशा के लिए खो दिया। सोचिए बस्ती जिले के छोटे से गांव परसांव से निकलकर लखनऊ में बिना प्रपंच जाने हुए घाघों के बीच सीमित संसाधनों में स्थापित होकर न सिर्फ जिंदगी भर दबे-कुचले, शोषित तबके की बात करना बल्कि पत्नी, दो बच्चों की जिम्मेदारी उठाकर आत्म सम्मान-स्वाभिमान के साथ जिंदगी जीना व ईमानदारी व बेबाकी से पत्रकारिता करना उनके लिए कितना मुश्किल रहा होगा। सोचा न था कि अखिलेश कृष्ण मोहन भाई ऐसे चले जाएंगे कि दिन में कई-कई बार फोन पर नीरज भाई नमस्ते अब कभी सुन ही नहीं पाउंगा….

इसमें कोई दो राय नही कि मिशन जनमत पत्रिका को शुरूआत कराने में अखिलेश भाई का सबसे बड़ा योगदान है। इसलिए संपादक होने के नाते भारी मन से ये घोषणा करता हूं कि अगले माह के अंक से जिंदगी भर अखिलेश कृष्ण मोहन जी का नाम मिशन जनमत पत्रिका की प्रिंट लाइन में संस्थापक सदस्य के बतौर लिखा जाएगा… 30 अप्रैल की रात SGPGI में एडमिट होने के बाद से लगातार डॉक्टरों से बात करना, अच्छे इलाज के लिए तमाम प्रोफेसर्स से निवेदन करना। हाल पता करके भाभी से बात करना समझाना, हिम्मत बंधाना, झूठा दिलासा देना जैसे दिनचर्या में शामिल हो गया था।।।

ऐसा लगने लगा था कि अखिलेश भाई का संघर्ष अब मेरा संघर्ष है वो जीतकर बाहर आएंगे तो उनके साथ भाभी-बच्चों को देखने में ही मेरी जीत है। अहसास तो 3-4 दिन से होने लगा था कि किसी भी दिन बुरी खबर आ सकती है लेकिन फिर भी झूठी उम्मीद का दिलासा देने के लिए भाभी और उनके छोटे भाई से माफी भी चाहता हूं। 2 मई तक अखिलेश भाई को BI-PAP पर रखा गया। 4-5 मई की देर रात को किसी तरह कोशिश के बाद ICU में शिफ्ट कर दिए गए। इसके बाद उनको वेंटिलेटर पर भेज दिया गया। धीरे-धीरे मल्टीआर्गन फेल्योर, सेप्टिक शॉक, सेपसिस की खबर सुनने को मिल रही थी। भाभी को क्या समझाता बस कह देता था स्थिति अच्छी नहीं है बस उम्मीद बनाए रखिए। दो दिन बाद ही स्थिति ये थी कि उनको कंपलीट वेंटिलेटर सपोर्ट देने के अलावा डायलिसिस भी करना पड़ा लंग्स 70 प्रतिशत तक इंफेक्टिड हो चुके थे लेकिन मन मानने को कतई तैयार नहीं था। डॉक्टर्स अपनी पूरी कोशिश में लगे थे।।। हालांकि 2-3 दिनों से वहां से भी अच्छी खबरें मिलना बंद हो गई थीं।

आखिरकार 13 मई को सुबह संघर्ष विराम की खबर आ गई।।। ईश्वर नाम के अदृश्य जीव से न पहले प्रार्थना की थी न अब करूंगा।।।।मेडिकल साइंस, अच्छे डॉक्टर्स, अच्छे मेडिकल संस्थान पर पहले भी भरोसा था आज भी है। हां इस पोस्ट को पढ़ने वाले मानवों से जरूर अपील करूंगा कि अखिलेश भाई के कामों को लेकर अगर वाकई चिंतित हो तो आगे उनके परिवार व बच्चों के लिए बुरे वक्त में काम आ जाना यही उस नेक दिल के इंसान के लिए सच्ची श्रद्धांजलि होगी।

उनकी पत्नी रीता कृष्ण मोहन का अकाउंट नंबर-

AC Name- Rita Krishna Mohan
AC No- 55148830004
State Bank of India
IFSC- SBIN0050826
BRANCH- ALIGANJ, LUCKNOW

इस बुरे वक्त में जो भी साथ खड़ा रहा सभी साथियों व भाईयों का शुक्रिया।।। आप बहुत याद आओगे अखिलेश भाई।।।’

नीरज भाई पटेल ने अखिलेश के परिवार के मदद की जो अपील की है, उसमें उनके चाहने वाले तमाम लोगों की भावना का प्रतिबिम्बन हुआ है। उनके परिवार को मदद मिले, यही उनके चाहने वालों की अंतिम इच्छा है, जिसे सही तरीके से शब्द दिया है चौधरी संदीप यादव ने। उन्होंने मुख्यमंत्री को अपील करते हुए लिखा है- ‘सीनियर पत्रकार जिंदादिल इंसान अखिलेश कृष्ण मोहन आज कोरोना से जंग हार गए! उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री से मेरी माँग है पीड़ित परिवार को 5 करोड़ की आर्थिक सहायता दी जाएं!’ यह भारी संतोष का विषय है कि अखिलेश कृष्ण मोहन के हजारों कद्रदानों की भांति प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने उनके शोक संतप्त परिजनों के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त की है।

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