अंतरराष्ट्रीय स्तर के दलित विद्वान आनंद तेलतुंबडे और गौतम नवलखा को गिरफ्तारी से बचाने के लिए भारत सहित दुनिया भर के विद्वान सामने आए हैं। इन लोगों ने हस्ताक्षर अभियान चलाकर इन दोनों की गिरफ्तारी नहीं करने की अपील की है। इस अभियान में अंतरराष्ट्रीय स्तर के विद्वान से लेकर एक्टिविस्ट और राजनीतिज्ञ तक शामिल हैं। जिन प्रमुख लोगों ने इस ऑनलाइन पिटिशन में हस्ताक्षर किया है, उनमें नोम चोमस्की, गायत्री स्पिवक, सुखदेव थोराट, कॉर्नेल वेस्ट, एंजेला डेविस, क्षम सावंत, रामचंद्र गुहा, प्रकाश अंबेडकर, अरुंधति रॉय, आनंद पटवर्धन, रॉबिन डी.जी. केली आदि शामिल हैं। इस ऑनलाइन अभियान में अब तक पांच हजार से ज्यादा लोगों ने हस्ताक्षर किया है।
विगत 16 मार्च को भीमा कोरेगांव मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट के न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा और न्यायमूर्ति एमआर शाह की पीठ ने नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं गौतम नवलखा और आनंद तेल्तुम्बडे की अग्रिम जमानत याचिका खारिज कर दी थी। अदालत ने उन्हें सरेंडर करने के लिए तीन हफ्ते का वक्त दिया था, जो 6 अप्रैल को पूरा हो रहा है। कोर्ट ने उन्हें अपने पासपोर्ट भी सरेंडर करने को कहा है।
बता दें कि पुणे की पुलिस ने कोरेगांव भीमा गांव में एक जनवरी, 2018 को हुई हिंसा की घटना के बाद गौतम नवलखा, आनंद तेलतुंबडे और कई अन्य कार्यकर्ताओं के खिलाफ माओवादियों से कथित संपर्क रखने के आरोप में मामला दर्ज किया था। हालांकि दोनों ने पुलिस के इन आरोपों से इंकार किया था और अदालत में अपील की थी।
पुणे की सत्र अदालत से राहत नहीं मिलने पर गौतम नवलखा और आनंद तेल्तुम्बडे ने गिरफ्तारी से बचने के लिए पिछले साल नवंबर में बंबई उच्च न्यायालय में याचिका दायर की थी। वहां से भी राहत नहीं मिलने पर उच्च न्यायालय के आदेश के खिलाफ इन दोनों ने शीर्ष अदालत में अपील दायर की थी। लेकिन सर्वोच्च अदालत ने भी उन्हें राहत देने से इंकार करते हुए सरेंडर करने को कहा है। इस मामले में आनंद तेलतुंबडे के वकील कपील सिब्बल हैं। ऐसे में अब सिविल सोसाइटी के लोगों ने ऑनलाइन हस्ताक्षर अभियान चलाकर सरकार और कोर्ट पर दबाव बनाने की रणनीति पर काम कर रही है। उनकी गिरफ्तारी का विरोध करते हुए जो तर्क दिया गया है, वह देखिए।
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हम नीचे हस्ताक्षरित व्यक्ति और संगठन प्रोफ़ेसर आनंद तेलतुंबडे और गौतम नवलखा की आसन्न गिरफ़्तारी और उनकी छवि को धूमिल करने के प्रयासों की निंदा करते हैं। इन दोनों की गिनती भारत के सबसे प्रमुख नागरिक अधिकार कार्यकर्ताओं और बुद्धिजीवियों में होती है। 26 मार्च, 2020 को भारत के सुप्रीम कोर्ट ने डॉ. तेलतुंबडे और श्री नवलखा की अग्रिम ज़मानत याचिका ख़ारिज कर दी। अब उनके पास 6 अप्रैल, 2020 तक पुलिस के सामने ‘समर्पण’ का समय है। हम पूरी शिद्दत के साथ मुख्य न्यायाधीश और सुप्रीम कोर्ट के बेंच से कोविड- 19 महामारी के ख़तरे और उससे डॉ. तेलतुंबडे और श्री नवलखा के जीवन को होने वाले नुक़सान का संज्ञान लेने का अनुरोध करते हैं। दोनों वरिष्ठ नागरिक हैं और उन्हें पहले से ही कुछ बीमारियाँ हैं जो उनके जेल जाने पर संक्रमण के सर्वाधिक ख़तरे को पैदा कर देंगी। इस समय उनका बंदी बनाया जाना उनके स्वास्थ्य और जीवन दोनों के लिए ख़तरनाक होगा। हम न्यायिक पदाधिकारियों से अपील करते हैं कि वे कम से कम गिरफ़्तारी के अपने आदेश को इस तरह से बदल दें कि वह इस वैश्विक स्वास्थ्य संकट के पूरी तरह ख़त्म हो जाने के बाद लागू हो, जिससे उनके स्वास्थ्य और जीवन को कोई ख़तरा न रहे।
आप भी नीचे दिये लिंक पर जाकर पिटिशन साइन कर सकते हैं।
https://indiacivilwatch.org/statement-hindi/

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।