भारत का किसान आंदोलन अब पूरी दुनिया के लिए चर्चा का मुद्दा बन गया है। अमेरिकी पॉप स्टार सहित तमाम राजनीतिक हस्तियों एवं सामाजिक राजनीतिक कार्यकर्ता एवं संगठनों ने किसानों के प्रति समर्थन की घोषणा की है। इसी सिलसिले में अमेरिका से प्रकाशित होने वाले और दुनिया के बड़े मीडिया ग्रुप में शुमार अखबार ‘न्यूयॉर्क टाइम्स’ में किसानों के पक्ष में पूरे एक पेज का विज्ञापन प्रकाशित हुआ है। इस विज्ञापन को ‘जस्टिस फॉर माइग्रेन्ट वूमन’ नामक संगठन ने प्रकाशित करवाया है। यह संगठन अमेरिका में अन्य स्थानों से पलायन करके आई महिलाओं के कानूनी अधिकार एवं मानवाधिकार पर जागरूकता निर्माण करने के साथ उनके अधिकारों की रक्षा का काम करता है।
इस संगठन द्वारा न्यूयॉर्क टाइम्स में दिए गए इस विज्ञापन में दुनिया भर के मानवाधिकार कार्यकर्ताओं से एक अपील भी की गयी है। दलित दस्तक इस अपील को हिन्दी में सबके सामने ला रहा है ताकि अधिकाधिक भारतीय नागरिक इसे पढ़ एवं समझ सकें।
“करीबन दस लाख किसान शांतिपूर्वक ढंग से प्रदर्शन कर रहे हैं लेकिन इसके जवाब में भारत सरकार ने राज्य द्वारा अनुमत हिंसा, आंसू गैस, पानी की धार और बड़े पैमाने पर गिरफ्तारियों के जरिए किसानों को जवाब दिया है। मानवाधिकार का इस प्रकार का हनन अब समाप्त होना चाहिए।
भारत के किसान अपने जीवन की गरिमा और आजीविका को बचाने के लिए आंदोलन कर रहे हैं। यह किसान उन तीन कानूनों का विरोध कर रहे हैं जो कि हड़बड़ी में बगैर किसी विचार–विमर्श के पास कर दिए गए हैं, ये तीनों कानून भारत में कृषि को खुले मार्केट के लिए खोल देंगे। कई लोगों के लिए यह उनके जीवन और मरण का प्रश्न है। ये कानून बड़े–बड़े उद्योगपतियों को फायदा पहुंचाते हैं और किसानों की सारी सुरक्षा छीन लेते हैं। भारत की लगभग आधी कामकाजी आबादी खेती से और वह भी मुख्य रूप से छोटी जोत वाली खेती सेजुड़ी हुई है। भारत के दसियों लाख परिवार अपनी आजीविका खो जाने की आशंका से डरे हुए हैं। खेती के बढ़ते व्यावसायिकरण से हमारे भोजन और हमारे पर्यावरण के भविष्य पर बुरा असर पड़ सकता है।
भारत के किसान पूरे देश से इकट्ठे होकर शांतिपूर्ण ढंग से कई महीनों से प्रदर्शन कर रहे हैं। इसके बावजूद उनके खिलाफ हिंसा, गिरफ्तारियां और सरकार के द्वारा कानूनी कार्रवाई की जा रही है। किसानों के प्रदर्शन स्थलों पर बार–बार पानी बिजली और अन्य सुविधाएं बंद की जा रही है। किसानों के प्रतिरोध की आवाज को दबाने के लिए इंटरनेट सुविधा भी सोची–समझी रणनीति के तहत निलंबित की जा रही है। मीडिया को भी सेंसर किया जा रहा है और धमकाया जा रहा है। आंदोलनकारियों, कार्यकर्ताओं और पत्रकारों को गिरफ्तार किया जा रहा है, उनपर हमले किए जा रहे हैं और अनिश्चित काल के लिए जेल में ठूँसा जा रहा है।
भारत यह जो कुछ भी कर रहा है वह उन पवित्र लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है जिनके जरिए मानव अधिकार के प्रति नागरिक एवं राजनीतिक भागीदारी की सुरक्षा सुनिश्चित होती है। हम एक खतरनाक समय में जी रहे हैं, आज पूरी दुनिया के नागरिकों को इकट्ठा करने की आवश्यकता आन पड़ी है ताकि लोकतंत्र के आदर्शों की रक्षा की जा सके।
भारतीय किसानों के लिए संदेश: आप लोगों ने मानवता के इतिहास के सबसे बड़े आंदोलन को जन्म दिया है।पंजाब के खेतों से, केरल के गांव से, नई दिल्ली की सड़कों से, आपकी आवाज पूरी दुनिया में गूंज रही है। अब हम भी आपकी आवाज में आवाज मिला रहे हैं।
हम अमेरिका और दुनिया भर के सभी मानव अधिकार कार्यकर्ताओं का आह्वान करते हैं, कि वे हमारे साथ आएं और भारत के किसानों और आंदोलनकारियों के खिलाफ हो रहे दुर्व्यवहार की निंदा करें। आप से गुजारिश है कि आप अपनी आवाज का इस्तेमाल करते हुए भारत को बताएं कि वह लोगों के शांतिपूर्ण प्रदर्शन के अधिकार, उत्तरदायित्व सुनिश्चित करने की मांग करने का अधिकार, पूरी दुनिया के लिए सुरक्षित स्वस्थ और अधिक न्यायपूर्ण भविष्य को साकार करने की दिशा में लोकतंत्र के मूलभूत सिद्धांतों का सम्मान करें।”
https://www.siasat.com/ney-york-times-carries-full-page-ad-in-support-of-indian-farmers-2091999/
विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।