बैंगलूरु की निडर पत्रकार गौरी लंकेश की ह्त्या कर दी गयी है. उन्हें अपने ही घर के बाहर गोलियों से भून दिया गया. उन्हें हिंदुत्ववादी संगठनों की ओर से ह्त्या की धमकियां पहले से ही मिल रही थीं. इस निर्मम ह्त्या की भर्त्सना कीजिये.
एक श्रद्धांजलि
‘वे डर रहे हैं’
वे डर रहे हैं
अन्दर ही अन्दर
अपने ही मन में डरते हुए
कुछ भी नहीं है उनके पास
छद्म आक्रामकता के अलावा.
विचार नहीं हैं उनके पास
विचार से मुकाबले के लिए
न ही शब्द हैं
विचार के वाहक शब्द.
उनके पास नहीं हैं
विवेकपूर्ण संकेत
जिन्हें फेंक सकें हवा में
या उकेर सकें किसी कागज पर,
किसी दीवार पर,
या किसी शिला पर.
रंग भी नहीं हैं उनके पास
जिन्हें भरकर सजा सकें
अपने आसपास की धरती को.
अपनी पसन्द के
किसी एक ही रंग से
नहीं मुखरित हो सकती
इन्द्रधनुषी आभा
अत: प्रयत्नरत हैं
रंगों को मिटाने
रंग हीन करने ,या
स्याही पोतने में
चमकते आकर्षक रंगों पर
जो उनकी सोच के रंग से
नहीं हो पाते हैं मेल.
अपनी डरी हुई कोशिशों की
असफलता से पस्त होकर
वे मिटाने लग जाते हैं
विचारकों,
शब्दकारों,
चित्रकारों ,या
उत्कीर्ण करने वाले वास्तुकारों को
‘न रहेगा बांस न बजेगी बांसुरी’ की
तर्ज पर.
अपनी पुरातनता के
दम्भ के बोझ से दबे
आत्ममुग्धता में कैद
उनके मस्तिष्क
भयाक्रान्त हैं
अस्तित्व के संकट से.
नहीं सीखना चाहते
इतिहास बोध से
विचार नहीं मरता ,न ही
विचार का वाहक शब्द
और न ही शब्द के
संकेत की मौन भाषा
इनकी अनुगूंज
सुनाई पडती रहती है
युगान्तर तक.
नहीं मिट सकती
बामियान में बुद्ध-प्रतिमा को
खंडित कर देने से
बुद्ध-वाणी की अनुगूंज.
नहीं मिट सकती
किसी शार्लि एब्दो पर
घातक प्रहारों से
या किसी पाश को
पानसरे को,
दाभोलकर,
कलबुर्गी या
गौरी लंकेश को
मिटाने से.
जैसे नहीं मिटी
एकलव्य का अंगूठा लेने ,या
शम्बूक-वध के बावजूद
न्याय के लिए संघर्ष की आवाज.
– जगदीश पंकज

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