डीडी डेस्क- इंसानी मल को ढोने को लेकर भारत में पहली बार 1993 में प्रतिबंध लगाया गया था। इसके बाद मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत मैला ढोने को पूर्ण रूप से प्रतिबंधित कर दिया गया लेकिन इसके बाद भी बड़ी संख्या में लोग आज भी हाथ से मैला ढो रहे हैं।
इसकी पुष्टि केंद्र सरकार ने अपने संसद में दिए एक जवाब में की है। केंद्र सरकार के सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्यमंत्री रामदास आठवले ने संसद में आरजेडी के सांसद मनोज झा द्वारा पूछे गये एक सवाल का जवाब देते हुए कहा कि देश में अभी भी 58,098 लोग इंसानी मल ढोने का काम कर रहे हैं।
संसद में आरजेडी के सांसद मनोज झा ने मंत्रालय से पूछा था कि सिर पर मैला ढोने के काम में शामिल व्यक्तियों की जाति-आधारित अलग अलग संख्या क्या है, उन्हें आर्थिक प्रणाली में शामिल करने के लिए सरकार द्वारा क्या स्टेप लिए गए हैं और इस प्रथा पर पूरी तरह से बैन लगाने के लिए सरकार ने क्या प्रयास किए हैं।
सरकार ने अपने जवाब में बताया कि मैला ढोने की इस प्रथा पर 2013 में लाए गये कानून मैनुअल स्कैवेंजिंग एक्ट 2013 के तहत बैन लगा दिया गया था लेकिन इसके बावजूद मंत्रालय द्वारा कराए गए सर्वेक्षण में यह पाया गया कि देश में अभी भी 58,098 लोग इस काम को कर रहे हैं।
मंत्रालय ने यह भी बताया कि कानून के अनुसार, मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में पहचान के लिए जाति के संबंध में कोई प्रतिबंध नहीं होगा लेकिन फिर भी उनकी पहचान करने के लिए अधिनियम के प्रावधानों के तहत ही सर्वेक्षण कराए गए हैं। जिन 58,098 व्यक्तियों की मैनुअल स्कैवेंजर के रूप में पहचान हुई है, उनमें से सिर्फ 43,797 व्यक्तियों के जाति से संबंधित आंकड़े उपलब्ध हैं।
मंत्रालय ने लिखित जवाब देते हुए बताया है कि देश में इन 43,797 लोगों में से 42,594 अनुसूचित जातियों से हैं, जबकि 421 अनुसूचित जनजाति से हैं। कुल 431 लोग अन्य पिछड़े वर्ग से हैं, जबकि 351 अन्य श्रेणी से हैं। यानी 58,098 व्यक्तियों में 97 फीसदी लोग दलित हैं।

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