मुलायम सिंह यादव की बनाई समाजवादी पार्टी में बिखराव शुरू हो गया है. उनके छोटे भाई शिवपाल सिंह यादव ने सपा से नाता तोड़कर समाजवादी सेक्यूलर मोर्चा बनाने की घोषणा कर दी है. शिवपाल यादव ने यह घोषणा 29 अगस्त को की. उनका कहना था कि वे पिछले डेढ़ साल से इंतजार कर रहे थे कि मौजूदा पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव उन्हें उनके क़द के मुताबिक कोई ज़िम्मेदारी सौंपेंगे. लेकिन जब अखिलेश ने अपने चाचा की सुध लेने में कोई रुचि नहीं दिखाई तो शिवपाल सिंह ने सपा छोड़कर अपनी अलग पार्टी बना ली है.
शुरुआती तौर पर जो दिख रहा है, उसके मुताबिक शिवपाल का इरादा अखिलेश से नाराज़ सभी नेताओं को एक मंच पर लाना है. 2016 के अंत में अखिलेश यादव ने शिवपाल को न सिर्फ मंत्रिमंडल से हटा दिया बल्कि पार्टी से भी निष्कासित कर दिया था. लेकिन फिर मुलायम सिंह के दखल के बाद अखिलेश यादव ने उन्हें वापस पार्टी में तो ले लिया लेकिन उन्हें हाशिये पर रखा. इसके बाद से ही शिवपाल अखिलेश से नाराज चल रहे थे. जिसके बाद शिवपाल द्वारा नया मोर्चा बनाने की बात सामने आई है.
हालांकि शिवपाल सिंह यादव के सपा और संभावित महागठबंधन के सामने खड़े होने के पीछे भाजपा का हाथ माना जा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि पिछले कुछ महीनों में शिवपाल यादव उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से कई बार मिले हैं. तो वहीं सपा से निष्कासित राज्यसभा सांसद अमर सिंह ने मंगलवार को लखनऊ में मीडिया से शिवपाल और बीजेपी के वरिष्ठ नेता के बीच मीटिंग फिक्स करवाने की बात कही थी, हालांकि शिवपाल उस बैठक में नहीं पहुंचे थे. यानी शिवपाल के फैसले के पीछे जिन लोगों का हाथ है उनमें अमर सिंह और योगी आदित्यनाथ नाम होने से इंकार नहीं किया जा सकता.
दरअसल भाजपा के खिलाफ देश भर में जिस तरह का माहौल बन गया है, उससे साफ है कि भाजपा के खिलाफ एंटी इनकंबेंसी ज्यादा है. उत्तर प्रदेश में जिस तरह महागठबंधन बन गया है उससे भाजपा खासी परेशान है. लिहाजा अमित शाह और मोदी चुनौती वाले हर राज्य में चुनाव को त्रिकोणीय या बहुकोणीय बनाने के पक्षधर हैं, ताकि विपक्षी वोटों को बांटकर भाजपा के जीत को सुनिश्चित किया जा सके.
यही वह तरीक़ा है जिससे एंटी-इनकमबेंसी के चलते कम होने वाली सीटों की भरपाई हो सकती है. एनडीए के पास आज 333 सीटें हैं. यानी बहुमत से 60 सीटें ज्यादा. अगर 2019 के चुनाव में वह बहुमत से कुछ दूर रह जाती है तो उसे उम्मीद है कि उसे नए सहयोगी मिलने में दिक़्क़त नहीं होगी. यह भारतीय जनता पार्टी का ‘डिमॉलिशन स्क्वॉड’ है. फ़िलहाल इसने उत्तर प्रदेश में शिवपाल यादव के रूप में अपना काम करना शुरु कर दिया है.
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विगत 17 सालों से पत्रकारिता के क्षेत्र में सक्रिय अशोक दास अंबेडकरवादी पत्रकारिता का प्रमुख चेहरा हैं। उन्होंने साल 2012 में ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ की नींव रखी। वह दलित दस्तक के फाउंडर और संपादक हैं, जो कि मासिक पत्रिका, वेबसाइट और यू-ट्यूब के जरिये वंचितों की आवाज को मजबूती देती है। उनके काम को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई में सराहा जा चुका है। वंचित समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं, जिनमें DW (जर्मनी) सहित The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspapers (जापान), The Week (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत), फारवर्ड प्रेस (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं।
अशोक दास दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड युनिवर्सिटी में साल 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता (Investigative Journalism) के सबसे बड़े संगठन Global Investigative Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग में आयोजित कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है। वह साल 2023 में कनाडा में आयोजित इंटरनेशनल कांफ्रेंस में भी विशेष आमंत्रित अतिथि के तौर पर शामिल हो चुके हैं। दुबई के अंबेडकरवादी संगठन भी उन्हें दुबई में आमंत्रित कर चुके हैं। 14 अक्टूबर 2023 को अमेरिका के वाशिंगटन डीसी के पास मैरीलैंड में बाबासाहेब की आदमकद प्रतिमा का अनावरण अंबेडकर इंटरनेशनल सेंटर नाम के संगठन द्वारा किया गया, इस आयोजन में भारत से एकमात्र अशोक दास को ही इसकी कवरेज के लिए आमंत्रित किया गया था। इस तरह अशोक, दलित दस्तक के काम को दुनिया भर में ले जाने में कामयाब रहे हैं। ‘आउटलुक’ मैगजीन अशोक दास का नाम वंचितों के लिए काम करने वाले भारत के 50 दलितों की सूची में शामिल कर चुकी है।
उन्हें प्रभाष जोशी पत्रकारिता सम्मान से नवाजा जा चुका है। 31 जनवरी 2020 को डॉ. आंबेडकर द्वारा प्रकाशित पहले पत्र ‘मूकनायक’ के 100 वर्ष पूरा होने पर अशोक दास और दलित दस्तक ने दिल्ली में एक भव्य़ कार्यक्रम आयोजित कर जहां डॉ. आंबेडकर को एक पत्रकार के रूप में याद किया। इससे अंबेडकरवादी पत्रकारिता को नई धार मिली।
अशोक दास एक लेखक भी हैं। उन्होंने 50 बहुजन नायक सहित उन्होंने तीन पुस्तकें लिखी है और दो पुस्तकों का संपादक किया है। ‘दास पब्लिकेशन’ नाम से वह प्रकाशन संस्थान भी चलाते हैं।
साल 2006 में भारतीय जनसंचार संस्थान (IIMC), दिल्ली से पत्रकारिता में डिप्लोमा लेने के बाद और दलित दस्तक की स्थापना से पहले अशोक दास लोकमत, अमर-उजाला, देशोन्नति और भड़ास4मीडिया जैसे प्रिंट और डिजिटल संस्थानों में आठ सालों तक काम कर चुके हैं। इस दौरान वह भारत की राजनीति, राजनीतिक दल और भारतीय संसद की रिपोर्टिंग कर चुके हैं। अशोक दास का उद्देश वंचित समाज के लिए एक दैनिक समाचार पत्र और 24 घंटे का एक न्यूज चैनल स्थापित करने का है।