भारत के पड़ोसी देश पाकिस्तान में पूर्व प्रधानमंत्री के निधन की खब़र को मीडिया ने अच्छा-ख़ासी जगह दी है.
भारतीय जनता पार्टी के वरिष्ठ नेता और तीन बार भारत के प्रधानमंत्री रहे वाजपेयी को पाकिस्तान की मीडिया ने दोनों देशों के बीच रिश्ते सुधारने की कवायद का श्रेय दिया है. पाकिस्तान की मीडिया ने अपने देश के विदेश मंत्रालय और निर्वाचित प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के श्रद्धांजलि संदेश भी छापे हैं.
चीन की एक मीडिया आउटलेट ने इस बात को प्रमुखता से छापा कि कैसे वाजपेयी की नीति शुरूआत में चीन को एक ख़तरे के रूप में देखती थी लेकिन बाद में व्यावहारिक हो गई.
बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका की मीडिया ने भी उनके निधन पर रिपोर्ट लिखी है.
पाकिस्तान के प्रमुख उर्दू और अंग्रेज़ी अख़बारों ने अपनी वेबसाइट पर वाजपेयी के निधन की ख़बरों को प्रमुखता से छापा है.
द एक्सप्रेस ट्रिब्यून की रिपोर्ट की हैडलाइन है – “इमरान खान ने अपने श्रद्धांजलि संदेश में वाजपेयी की भारत-पाक रिश्तों की कोशिशों की सराहना की.”
साल 1999 में वाजपेयी अमृतसर से बस में पाकिस्तान के शहर लाहौर गए थे और तत्कालीन प्रधानमंत्री नवाज़ शरीफ़ को गले लगाया था. दोनों देशों के लिए ये ऐतिहासिक पल था.
साल 2001 में आगरा शहर में उन्होंने पाकिस्तान सेना प्रमुख जनरल परवेज़ मुशर्रफ़ के साथ शिखर वार्ता की थी. दोनों देश किसी ज्वाइंट स्टेटमेंट पर राज़ी नहीं हो पाए थे और सम्मेलन को असफल करार दिया गया था. लेकिन वाजपेयी की छवि और बेहतर हुई.
पाकिस्तान के विदेश मंत्रालय ने अपनी श्रद्धांजलि संदेश में कहा है कि वाजपेयी एक स्टेट्स्मैन थे जिन्होंने भारत-पाक संबंधों को सुधारने में योगदान दिया और हमेशा ‘सार्क’ के समर्थक रहे.
बहुत से उर्दू अख़बार जैसे जंग, जसारत, जिन्ना, डेली एक्सप्रेस और दुनिया ने भी उनके निधन की ख़बर को छापा है.
दुनिया अख़बार की सुर्ख़ी थी – “पाकिस्तान ने वाजपेयी के निधन पर जताया शोक.”
उर्दू टीवी चैनल डॉन न्यूज़ ने उनके 1999 में पाकिस्तान दौरे की तस्वीरें वॉइसओवर रिपोर्ट में पेश की. रिपोर्ट में बताया गया कि वाजपेयी दोनों देशों के रिश्तों में सुधार चाहते थे जिसके लिए उन्होंने कोशिशें भी की.
चीन की ज़्यादातर मीडिया ने शंघाई की ‘द पेपर’ वेबसाइट के श्रद्धांजलि लेख को शेयर किया है. राष्ट्रवादी अख़बार ग्लोबल टाइम्स ने भी इसी को जगह दी है.
पुरानी सरकारी मीडिया खबरों के हवाले से वेबसाइट के लेख में बताया गया है कि वाजपेयी की चीन को पहले ख़तरे की तरह देखते थे, अमरीका के साथ संबंधों को प्राथमिकता दी और 1998 में सत्ता में आने के बाद परमाणु बम बनाया.
लेकिन वेबसाइट के मुताबिक वाजपेयी ने बाद में व्यवहारिक राह अपना ली. उन्होंने तिब्बत को चीन का हिस्सा माना, दोनों देशों की सीमा के मुद्दे को बातचीत से सुलझाया और आपसी सहयोग को बढ़ावा दिया. जून 2003 में अपने चीन दौरे पर वाजपेयी ने ऐतिहासिक ज्वाइंट डेक्लेरेशन भी साइन की.
बाकी क्षेत्रों में ऐसी रही कवरेज
बांग्लादेश, नेपाल और श्रीलंका की प्रमुख मीडिया ने अपनी-अपनी वेबसाइट पर वाजपेयी के निधन की ख़बर को जगह दी.
हिमालयन टाइम्स ने छापा है कि नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने गुरूवार को भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को श्रद्धांजलि संदेश भेजा था और उनसे फ़ोन पर भी बात की थी.
ओली ने कहा कि भारत और दुनिया ने अपना बड़ा नेता खो दिया और नेपाल ने अपना सच्चा दोस्त और शुभचिंतक.
अफ़ग़ानिस्तान के नेताओं ने भी वाजपेयी के निधन पर दुख जताया. पूर्व राष्ट्रपति हामिद करज़ई और भारत में अफ़गानिस्तान की राजदूत शाइदा अब्दली ने उन्हें श्रद्धांजलि दी.
अफ़गानिस्तान के मुख्य कार्यकारी अब्दुल्लाह ने ट्वीट किया, “मेरे साथ सभी अफ़गानिस्तानी भारत और पूर्व भारतीय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के परिवार और मित्रों के दुख में शरीक है. उनका जाना एक बड़ी क्षति है. वो हम अफगानियों के बुरे वक्त में हमारे साथ खड़े रहे. उनकी आत्मा को शांति मिले.”
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