रांची। झारखंड से आदिवासी शिक्षा को लेकर एक बड़ी और अहम खबर है। झारखंड सरकार ने राज्य के 1080 सरकारी स्कूलों में बहुभाषी शिक्षा कार्यक्रम शुरू किया है। इसके तहत अब आदिवासी बच्चे मुंडारी, संथाली, हो, खड़िया और कुरुख जैसी अपनी मातृभाषाओं में पढ़ाई कर सकेंगे। सरकार का कहना है कि मातृभाषा में शिक्षा मिलने से बच्चों की समझने की क्षमता बढ़ेगी, स्कूल छोड़ने की दर कम होगी और बच्चे अपनी संस्कृति से जुड़े रहते हुए बेहतर शिक्षा हासिल कर पाएंगे।
इस कार्यक्रम को UNICEF और Language and Learning Foundation का सहयोग मिला है। इन संस्थाओं की मदद से शिक्षकों को विशेष प्रशिक्षण दिया जा रहा है और स्थानीय भाषा में पढ़ाई के लिए पाठ्य सामग्री भी तैयार की गई है। शिक्षा विशेषज्ञों के मुताबिक, अब तक कई आदिवासी बच्चे सिर्फ इसलिए पढ़ाई छोड़ देते थे क्योंकि शुरुआती कक्षाओं में पढ़ाई की भाषा उनके लिए समझना मुश्किल होती थी। झारखंड सरकार का कहना है कि यह योजना खास तौर पर प्राथमिक कक्षाओं में लागू की गई है और अगर यह सफल रहती है तो आगे इसे और स्कूलों तक बढ़ाया जाएगा।
शिक्षा विभाग के अनुसार, यह कार्यक्रम विशेष रूप से प्राथमिक और प्रारंभिक कक्षाओं में लागू किया जा रहा है, ताकि बच्चे अपनी जानी-पहचानी भाषा में गणित, पर्यावरण अध्ययन और अन्य विषयों की बुनियादी समझ विकसित कर सकें। इसके साथ-साथ धीरे-धीरे हिंदी और अन्य भाषाओं से भी उन्हें जोड़ा जाएगा, जिससे उनकी बहुभाषी क्षमता मजबूत हो सके। सरकार का मानना है कि मातृभाषा में शिक्षा मिलने से आदिवासी बच्चों की समझने की क्षमता, आत्मविश्वास और स्कूल में बने रहने की दर में उल्लेखनीय सुधार होगा।
विशेषज्ञों का कहना है कि यह कदम केवल शैक्षणिक सुधार तक सीमित नहीं है, बल्कि यह आदिवासी संस्कृति, पहचान और भाषाई अधिकारों को मान्यता देने की दिशा में भी एक बड़ा प्रयास है। लंबे समय से यह मांग उठती रही है कि आदिवासी भाषाओं को केवल बोलचाल तक सीमित न रखकर शिक्षा प्रणाली का हिस्सा बनाया जाए। झारखंड सरकार का कहना है कि यदि यह प्रयोग सफल रहता है, तो आने वाले समय में इसे और अधिक स्कूलों तक विस्तारित किया जाएगा। यह पहल न केवल स्कूल ड्रॉपआउट दर को कम करने में मददगार साबित हो सकती है, बल्कि आदिवासी बच्चों को शिक्षा के माध्यम से समाज की मुख्यधारा से सम्मानजनक तरीके से जोड़ने का मार्ग भी प्रशस्त करेगी।

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