पटना। बिहार सरकार ने राज्य की दलित बस्तियों के लिए एक महत्त्वाकांक्षी योजना की शुरुआत की है, जिसका उद्देश्य दलित समुदाय को सरकार की कल्याणकारी योजनाओं से सीधे जोड़ना है। डॉ. भीमराव अंबेडकर समग्र सेवा अभियान के तहत अब तक पूरे राज्य से 85.45 लाख से अधिक आवेदन प्राप्त हो चुके हैं, जिनमें सबसे ज़्यादा आवेदन स्वास्थ्य, आजीविका और सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के लिए आए हैं।
यह अभियान राज्य की लगभग 60,000 दलित बस्तियों को कवर कर रहा है। इन बस्तियों में वर्षों से मूलभूत सेवाओं और सरकारी योजनाओं की पहुँच नहीं थी। पहली बार ऐसा हो रहा है कि सरकार स्वयं दलित समुदाय के दरवाज़े तक पहुंचकर योजनाओं का लाभ दिलाने के लिए शिविर आयोजित कर रही है।
स्वास्थ्य, मनरेगा और सामाजिक सुरक्षा पर ज़ोर
इस अभियान के तहत अब तक सबसे अधिक लगभग 3.19 लाख आवेदन स्वास्थ्य सेवाओं के लिए आए हैं। इनमें आयुष्मान भारत योजना, स्वास्थ्य कार्ड और स्वास्थ्य शिविर से संबंधित आवेदन शामिल हैं। वहीं 4.54 लाख से अधिक आवेदन मनरेगा जॉब कार्ड के लिए प्राप्त हुए, जिनमें से लगभग 3.70 लाख का निस्तारण भी किया जा चुका है।
राज्य सरकार ने स्पष्ट किया है कि पात्र आवेदकों को 15 जुलाई 2025 तक लाभ पहुंचा दिया जाएगा। यह अभियान केवल फॉर्म भरवाने तक सीमित नहीं, बल्कि योजनाओं के ज़मीनी क्रियान्वयन तक की निगरानी कर रहा है।
मुख्य सचिव की अध्यक्षता में हुई समीक्षा
मुख्य सचिव अमृत लाल मीना की अध्यक्षता में हुई उच्चस्तरीय बैठक में अभियान की समीक्षा की गई। उन्होंने ज़िलाधिकारियों को निर्देश दिया कि किसी भी दलित बस्ती को योजना से वंचित नहीं रहने दिया जाए। प्रत्येक आवेदन का समयबद्ध निस्तारण सुनिश्चित किया जाए और जरूरत हो तो बस्तियों में डोर-टू-डोर विज़िट कर योजनाएं पहुंचाई जाएं। समीक्षा बैठक में यह भी तय किया गया कि अगर किसी आवेदक को दस्तावेज़ नहीं मिल पा रहा है या अन्य दिक्कतें हैं, तो उसके लिए विशेष सहायता डेस्क भी बनाए जाएं।
क्या है ‘डॉ. अंबेडकर समग्र सेवा अभियान’?
यह विशेष अभियान 2024 के अंत में शुरू किया गया था, जिसका उद्देश्य दलित, महादलित और वंचित समुदाय की बस्तियों को सरकारी योजनाओं से जोड़ना है। इसका लक्ष्य केवल योजनाओं का लाभ देना नहीं है, बल्कि दलित समाज की सामाजिक-आर्थिक स्थिति को सुधारना और उन्हें आत्मनिर्भर बनाना भी है।
इसमें स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, महिला सुरक्षा, स्वरोजगार, वृद्धावस्था पेंशन, विकलांग पेंशन, श्रमिक कार्ड, उज्ज्वला योजना, किसान सम्मान योजना, प्रधानमंत्री आवास योजना सहित लगभग दो दर्जन से अधिक योजनाएं शामिल हैं।
क्या कहता है सामाजिक तंत्र?
दलित संगठनों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इस अभियान का स्वागत करते हुए कहा है कि यदि यह अभियान ईमानदारी और पारदर्शिता से लागू किया गया, तो यह बिहार की दलित बस्तियों के लिए बदलाव की सबसे बड़ी शुरुआत साबित हो सकता है। हालांकि, कुछ आलोचकों का कहना है कि पहले भी ऐसे कई अभियान शुरू हुए लेकिन बिचौलियों और स्थानीय भ्रष्टाचार के चलते ज़मीनी स्तर तक योजनाओं का लाभ नहीं पहुंच पाया। इसलिए जरूरी है कि इस अभियान में निगरानी, शिकायत समाधान और जवाबदेही की सशक्त व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।
कुल मिलाकर बिहार सरकार का यह अभियान निश्चित तौर पर एक बड़ा और साहसिक कदम है, लेकिन इसकी सफलता इसी में निहित है कि हर अंतिम व्यक्ति तक इसका लाभ पहुंचे। यदि 60 हजार बस्तियों में रहने वाले लाखों दलित परिवारों को वास्तव में योजना का लाभ मिला, तो यह न सिर्फ एक प्रशासनिक मॉडल बनेगा, बल्कि सामाजिक न्याय की दिशा में एक नया अध्याय भी होगा।

मानवाधिकार और एंटी कॉस्ट आंदोलन से जुड़े गुड्डू कश्यप साल 2023 से ‘दलित दस्तक’ के साथ सक्रिय हैं। बिहार और झारखंड की सामाजिक और राजनीतिक गतिविधियों पर नजर रखते हैं।