सर्जिकल स्ट्राइक : मोदी का इलेक्शन मिशन

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अपको नहीं लगता कि पीओके में हुए कथित सर्जिकल स्ट्राइक के बाद देश की वर्तमान स्थिति आम भारतीय को आतंकित करने वाली है. वैसे तो ऐसा कोई भी समय नहीं रहा जब आम भारतीय आतंकित न रहा हो. आम जनता कल भी भूखी थी, आज भी भूखी है. कल अंग्रेजों से यानी कि गैरों से आतंकित थी तो आज अपनों से. कल विदेशियों की कपट का शिकार थी तो आज अपनों की अनदेखी का. आम आदमी की सोच कल भी सार्थक नहीं मानी जाती थी और आज भी. क्यों? इस पर विचार करने की जरूरत है.
वर्तमान में हुए सर्जिकल स्ट्राइक के आलोक में याद आ रहा है जब-जब भी भारत या पाकिस्तान में बड़े विधान सभाई अथवा लोकसभाई चुनाव होने वाले होते हैं… तो भारत पाकिस्तान सीमा पर अक्सर युद्ध जैसे हालात बन जाते हैं. भारत और पाकिस्तान एक दूसरे को पानी पी-पीकर कोसते हैं. क्या इसे नूरा कुश्ती की संज्ञा नहीं दी जा सकती? और तो और दोनों देशों के टीवी चैनल अपनी टीआरपी बढ़ाने के लिए युद्धोन्माद को भड़काने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ता. ऐसे सर्जीकल स्ट्राइक/आपरेशन तो पहले भी होते रहे हैं किंतु कभी भी कोई शोर और ना ही कोई इस प्रकार का प्रचार और प्रसार नहीं किया गया. किंतु भाजपा सरकार ने सर्जीकल स्ट्राइक/आपरेशन का खुलासा करके राजनीतिक हित साधने का पूरा काम किया है. जिससे विपक्ष को मुंह खोलने को मजबूर कर दिया. अगले साल कई बड़े राज्यों में चुनावों के मद्देनजर भाजपा अपनी कमर खुजलाने का काम कर रही है, चुनाव से पहले ही उत्तरप्रदेश के कई शहरों में सर्जिकल स्ट्राइक के पोस्टर लगाकर अपनी पीठ थपथपा रही है… क्या यह भाजपा के मुखिया के उस बयान का विरोध नहीं है, जिसमें उन्होंने अन्य राजनीतिक दलों से इस घटना से राजनीतिक लाभ न लेने की बात की थी.
भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व केन्द्रीय मंत्री रह चुके अरुण शौरी का a Parody Accouont होने का दावा करने वाले एक ट्विटर उपभोक्ता Arun Shourei@MirrerShourie ने  भारत द्वारा किए गए सर्जिक्ल स्ट्राइक पर दावा किया है कि पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन ने पाक के कब्जे वाले कशमीर में कम से कम छह बार सर्जिकल स्ट्राइक किए थे, लेकिन किसी को भी भनक तक नहीं पड़ी और न ही उन्होंने इन सर्जिकल स्ट्राइक्स का उपयोग कभी राजनीतिक लाभ के लिए किया. शौरी के नाम का प्रयोग कर रहे इस टिवटर-उपभोक्ता ने आरोप लगाया कि भाजपा सरकार पंजाब, उत्तर प्रदेश और अन्य राज्यों में होने वाले आगामी चुनावों में राजनीतिक लाभ लेने के लिए भारतीय सेना का उपयोग कर रही है.
अब राजनीतिक दलों को याद रखना चाहिए कि आज का वोटर पहले जैसा नादान नहीं रहा है. राजनेताओं को भी याद रखना चाहिए कि काठ की हांडी एक बार ही चूल्हे पर चढ़ पाती है. अफसोस की बात तो ये है हमने हमारी रक्षा के लिए सतर्क सैना कर्मियों की बहादुरी को भी सियासत के दायरे में ले लिया है. प्रचार का भी इतना घटिया स्तर कि भाजपा के कार्यकर्ताओं ने अपने ईष्ट भगवान “राम” की बराबरी मोदी से कर डाली और नवाज शरीफ की बराबरी “रावण” से.
यहां सवाल यह उठता है कि 2013 में सर्जिकल स्ट्राइक (क्रॉस बॉर्डर ऑपरेश) करके भी चुप थे मनमोहन, फिर मोदी और उनके नेता इतना क्यों बोल रहे हैं. वरिष्ठ पत्रकार ओम थानवी की फेसबुक वाल से पता चलता है कि मनमोहन जी के समय में जब-जब भी ऐसे सर्जिकल स्ट्राइक हुए, तत्कालीन विपक्ष यानी भाजपा से यूपीए ने इस बाबत सारी की सारी जानकारी सांझा की थी, ऐसा होने के बाद भी भाजपा नेता मनमोहन सिंह को बराबर कायर तक कहा. कहना अतिशयोक्ति नहीं कि मनमोहन सिंह का दो टुक फैसला होता था कि देशहित में शांत रहना चाहिए. उनके सामने भी न तो कोई संचार व्यवस्था कम थी और न ही जनता से संपर्क करने के साधन कम थे. उनका मानना था कि देशभक्ति चिल्लाने, ललकारने और सफलता मिलने पर अपनी पीठ खुद ठोकने का नाम नहीं होती. देश की खातिर अक्सर चुपचाप कुर्बानी देनी पड़ती है और बहुत कुछ सहना पड़ता है. मनमोहन सिंह की समझ यह थी कि यूद्धोन्माद पैदा होने से देश के विकास पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है. यदि मनमोहन सिंह ने भी भाजपा सरकार की तरह युद्धोन्माद को तरजीह दी होती तो शायद विकास का मार्ग और दोनों देशों के आपसी रिश्तों में खटास को ही बढ़ावा मिलता.
भाजपा को यह बात ध्यान में रखनी होगी कि अपने पूज्य ‘शिव’ की तरह सृष्टि की रक्षा के लिए विष को अपने गले में उतारना ही होगा. भाजपा और पार्टी को यह समझना होगा कि यदि पाकिस्तान भारत के विकास में बाधक बनने में कामयाब हो जाता है तो यह पाकिस्तान की विजय ही मानी जाएगी. मजबूत राष्ट्र की यह पहचान होती है कि वो अपने खिलाफ प्रश्नों के जवाब और समस्याओं के हल शांति से देते/खोजते हैं… किसी प्रकार का ढिंडोरा नहीं पीटते, जैसा कि भाजपा के नेता कर रहे हैं. जहां तक पाकिस्तान की हरकतों की बात है, नजर-अंदाज करने लायक नहीं है, किंतु पाकिस्तान के भड़कावे में आकर युद्ध छेड़ दिया जाय. यह दोनों देशों के ही हक में नहीं. वह इसलिए कि भारत और पाकिस्तान में गरीबों की संख्या अन्य देशों के मुकाबले ज्यादा है.
इसमें कोई शंका नहीं कि यदि भाजपा इस सफलता का राजनीतिकरण न करती तो शायद दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता पी चिदंबरम ने सर्जिकल स्ट्राइक को लेकर सबूत की मांग न की होती. अब भाजपा राजनीतिक चक्रव्यूह में जैसे फंस गई है. 04.05.2016 दिन मंगलवार को केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सवाल उठाया कि केजरीवाल को सेना के पराक्रम पर भरोसा है या नहीं? केजरीवाल, पाकिस्तान में सुर्खियों में बने हुए हैं. बीजेपी नेता ने केजरीवाल से सवाल पूछा- “क्या दिल्ली के सीएम का भारतीय सेना पर भरोसा पाकिस्तान के दुष्प्रचार से प्रभावित हो रहा है?” उल्लेखनीय है कि यहां रविशंकर प्रसाद यह भूल गए कि केजरीवाल ने जो सवाल उठाया वो सरकार पर उठाया था न कि सेना के हौसले पर. सेना की तो उन्होंने तारीफ ही की थी. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की तारीफ करते हुए, सर्जिकल स्ट्राइक को नकार रहे पाकिस्तारन को अंतरराष्ट्रीय मंच पर बेनकाब करने की अपील की थी. वहीं कांग्रेस नेता संजय निरूपम ने इसे सर्जिकल स्ट्राइक को फर्जी बताया था, जो सैनिकों के सम्मान को ठेस पहुचाने वाला बयान है …वह इसलिए भी कि सर्जिकल स्ट्राइक की घोषणा सीधे सरकार ने नहीं अपितु सेना के प्रतिनिधियों द्वारा की गई थी. राहुल गांधी ने भी पहले सर्जिकल स्ट्राइक की सराहना करते हुए इसे मोदी द्वारा किया गया प्रधानमंत्री वाला पहला काम बताया गया था. किंतु भाजपा के सर्जिकल स्ट्राइक के तुरंत बाद फौजी कार्रवाई की चुनावी ब्रांडिंग और मार्केटिग की जाने लगी, तो राहुल भी कह उठे कि भाजपा हमारे जवानों शहादत के खून की दलाली न करें. सत्तारूढ़ राजनीतिक दल इस बयान को सैनिकों के अपमान के रूप में रोपित कर रहा है तो कांग्रेस इस बयान को सरकार विरोधी करार दे रहा है. वोटों की राजनीति के चलते किसी भी सही अथवा गलत मत पर सभी राजनीतिक दलों का एकमत होना स्वाभाविक भी नहीं.
लबोलुबाव यह निष्कर्ष निकलकर सामने आता है कि तमाम के तमाम के राजनीतिक दल प्रत्यक्ष में तो इस सर्जिकल स्ट्राइख के मामले में सरकार के साथ खड़े होने का दावा कर रहे हैं किंतु सबके पेट में कुछ काला छुपा हुआ है. इंटनेशनल स्तर पर एकता का संदेश जाए, इसके लिए तो सबकी प्रसंशा की जा सकती है किंतु भाजपा द्वारा किला जीतने की मुनादी करने के साथ ही राजनीतिक हित साधने की प्रक्रिया ने अपने विरोधियों को भी राजनीतिक अखाड़े में उतरने को मजबूर कर दिया है. कहा जाता है कि ऐसे सर्जिकल आपरेशन सीक्रेट मिशन का हिस्सा होते हैं, किंतु हालिया सर्जिकल आपरेशन मोदी जी का “इलेक्शन मिशन” बनकर रह गया है.  29.09.2016 से पहले जनता मोदी जी के विदेशों में जमा कालेधन की वापसी के वादे पर सवाल उठाती थी, अच्छे दिनों के आने की याद दिलाती थी, विकास के आंकड़े मांगती थी, और न जाने कितनी योजनाओं के किर्यांवयन की बात उठाती थी किंतु सर्जिकल स्ट्राइक के तुरंत बाद ये सवाल जैसे जनता की आवाज न होकर पाकिस्तान के खिलाफ युद्धोन्माद में बदल गए.
किंतु हालिया सर्जिकल स्ट्राइक को केन्द्र में रखकर भाजपा की ताजपोशी की कोशिश ने इन सवालों को फिर जिन्दा कर दिया है. अब यह भी सवाल उठने लगा है कि 2017 में होने वाले राज्य विधानसभाओं के चुनावों से ठीक पहले जनता का मूल मुद्दों से ध्यान भटकाने के लिए वर्तमान केन्द्रीय सरकार ऐसे सर्जिकल आपरेशन फिर करा सकती है जो नवभारत टाइम्स दिनांक 07.10.2016 के हवाले से भारतीय रक्षामंत्री पर्रिकर के इस बयान “जरूरी हुआ तो और करेंगे सर्जिकल स्ट्राइक” से साफ झलकता है. अब सर्जिकल स्ट्राइक की जरूरत देश के हितों को केन्द्र में रखकर आंकी जाएगी या चुनावों में सफलता हासिल करने के लिए, यह एक जीवंत सवाल है. युद्ध की प्रक्रिया शायद 2019 के लिए टाल दी जाय ताकि लोकसभा के चुनावों को आगे खिसकाया जा सके. कभी-कभी तो लगता है कि सर्जिकल इस्ट्राइक न हुआ, मानो आगामी चुनावों के लिए राजनीतिक दलों का घोषणा-पत्र का मुख्य भाग हो गया. सर्जिकल स्ट्राइक को केन्द्र में रखकर सारे-सारे दलों ने “आओ सरकार सरकार खेलें” का खेल खेलना शुरु कर दिया है. लेकिन जरूरत तो इस बात है कि सभी राजनीतिक दल राजनीति से उठकर शांति की बहाली के लिए काम करें क्योंकि जिस प्रकार इस प्रकरण को सियासी मुद्दा बनाने की कोशिश की जा रही है, उसका अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गलत संदेश जा सकता है. पर राजनीतिक दलों को इस बात की चिंता कहां… उन्हें तो केवल और केवल सत्ता हासिल करने की चिंता सता रही है.
– लेखक  लेखन की तमाम विधाओं में माहिर हैं. स्टेट बैंक से सेवानिवृत्त होकर इन दिनों अधिकार दर्पण नामक त्रैमासिक के संपादन के साथ स्वतंत्र लेखन में रत हैं. संपर्क- 9911414511

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