भारत के बहुजनों ने लिए आरक्षण से जुड़े सवाल पर एक नई बात उठी है। शुक्रवार 19 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने सवाल उठाया है कि नौकरियों और शिक्षा में आरक्षण कितनी और पीढ़ियों तक चाहिए? यह सवाल असल में महाराष्ट्र में मराठा समुदाय के लिए उठी आरक्षण की मांग को लेकर किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने कुछ सप्ताह पहले भारत के सभी राज्यों से जवाब मांगा था कि क्या 50 फ़ीसदी से ज़्यादा आरक्षण दिया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने साथ ही इस बात पर चिंता जताई है कि अगर आरक्षण 50 फ़ीसदी से ज़्यादा हुआ तो इसकी वजह से समाज में असमानता बढ़ सकती है।
गौरतलब है कि आरक्षण से जुड़े एक ऐतिहासिक मामले ‘इंदिरा साहनी केस’ में हुए फ़ैसले के मुताबिक़ आरक्षण की सीमा 50 फ़ीसदी से ज़्यादा नहीं हो सकती। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में सवाल उठाया था कि क्या इंदिरा साहनी केस पर पुनर्विचार किया जाना चाहिए? कोर्ट ने यह भी पूछा था कि क्या इस मामले को और बड़ी बेंच के पास भेज दिया जाना चाहिए?
माराठा आरक्षण मामले में सुनवाई के दौरान महाराष्ट्र सरकार के वकील मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट में पांच जजों की संवैधानिक बेंच के सामने अपनी बात रखी। राहतगी ने कहा है कि आरक्षण को बदले हुए हालात में फिर से विचार किया जा सकता है। साथ ही उन्होंने सुप्रीम कोर्ट से यह भी कहा है कि आरक्षण को तय करने का मामला राज्यों पर छोड़ देना चाहिए। आगे उन्होंने यह भी दलील दी कि मंडल मामले में अदालत का जो फ़ैसला था, वह 1931 की जनगणना के आधार पर था। लेकिन तब से आज तक सामाजिक आर्थिक परिस्थितीयां काफी बदल चुकी हैं इसलिए आरक्षण पर पुनर्विचार की आवश्यकता है।

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