कहानीः परिवर्तन की बात

7140

अरे किसना ओ किसना

सुबह-सुबह रघु ठाकुर  आवाज लगाता किसना के घर आ धमका। किसना हड़बड़ा कर चारपाई से उठा और आंखें मलते हुए घर से बाहर निकला। उसने समाने रघु ठाकुर को खड़े पाया। किसना कुछ कहे कि ठाकुर  स्वयं बोला-

“किसना भैया, कल रात हमारी गैया मर गई।”

“कैसे मर गई ठाकुर?” किसना ने आश्चर्य से पूछा।

“कुछ पता न चल सका, कल संध्या में तो दूहा था उसे। लगता है रात की ठण्ड उसे खा बैठी।” ठाकुर ने किसना से कहा।

“तो मैं क्या करूं?” उसे उठा कर फेंक आ और जो खाल-वाल उतारनी है सो उतार ला।”

किसना ने एर बार ठाकुर की ओर देखा और बिना कुछ कहे मुड़ कर अपने घर की ओर चल दिया। ठाकुर ने किसना से ऊंची आवाज में कहा कि वह जल्दी से अपना काम निपटा आ।

उधर ठाकुरों के मुहल्ले में गाय मर जाने के पर तरह-तरह की बातें हो रही थीं। ठाकुर हरप्रसाद ने रघु के प्रति सहानुभूति प्रकट करते हुए कहा।

“रघु तुम्हारी गाय मर गई, मुझे बहुत दुख हुआ है लेकिन एक तरह से अच्छा ही हुआ। चारा खाती थी पंसेरी और दूध बस छटांक भर।”

“कह तो ठीक रहे हो, मेरा दिमाग खराब था कि रामू की मां के कहने पर खरीद ली, वरना गाय इस युग में किस काम की?”

“यह पशु तो फालतू का बन कर रह गया है। इसकी उपयोगिता अब रही कहां? इसके बछड़े बड़े होकर बैल बनते थे। अब नई-नई तकनीक के आने से खेती के कामों में बैलों का महत्व भी नहीं रहा।” ठाकुर हरप्रसाद ने कहा।

“फिर भी भैया गाय है तो गऊ-माता।” रघु ठाकुर ने मरी गाय की ओर देखते हुए कहा।

“अरे कैसी गऊ-माता? भैंस माता कहो अब तो।” हरप्रसाद ने अपनी बात आगे बढ़ाते हुए फिर कहा-

“भैंस अधिक दूध देती है, भला गाय कहां ठहरती हैं भैंस के आगे।”

गाय ने ठाकुरों के कुएं के पास ही दम तोड़ दिया था। ठाकुरों का पूरा मौहल्ला पानी भरने के लिए तरस रहा था। ठकुराइनें रह-रह कर मरी गाय कोस रही थीं। उनमें से एक ने मरी गाय की ओर थूकते और अपनी साड़ी के पल्लू से नाक ढंकते हुए कहा-

“नासपीटी ने यहीं मरना था, कहीं दूर जाकर मरती।”

रातभर गाय का शरीर फूल कर दोगुना हो गया था। लोगों ने अपने मुंह और नाक कपड़ों से ढंके हुए थे। समय निकला जा रहा था। रघु ठाकुर को अब बैचेनी होने लगी थी। उसके चेहरे पर कई भाव आ रहे थे।

“साले चमरा के घर मैं खुद चल कर गया। फिर इतनी देर लगा रहा है आने में।” ठाकुर मन ही मन बड़बड़ा रहा था।

“आजकल इन साले चमारों के नखरें ज्यादा ही हो गए हैं।” हरप्रसाद ने रघु की ओर देखते हुए कहा।

“इसलिए तो मैं खउद चलक र उस ढेड़ से कह कर आया था, लेकिन उस साले की यह मजाल।” ठाकुर ने दांत पीसते हुए कहा।

सभी की नजरें उधर ही लगी हुई थी, जिधर से किसना को आना था। उधर से आहट होती, तो सभी शुतरमुर्ग की तरह ऊंची गर्दन करके देखते और सोचते-

“शायद किसना ऐ रहा है”

सूरज सिर पर चढ़ आया था, लेकिन किसना का दूर-दूर तक पता नहीं था। रघु ठाकुर ने बड़े बेटे रामेसर को दो बार किसना के घर उसे अपना काम याद दिलाने के लिए भेजा।  रामेसर दोनों बार अपना-मुंह लेकर लौट आया। ठाकुर के चेहरे का रंग उड़ा  हुआ था। सर्दी के दिनों में उसके चेहरे पर पसीने की बूंदें साफ नज़र आ रही थी।

“अब क्या होगा?” किसना समय रहते नहीं आया, तो गाय की देह से बू आने लगेगी। ठाकुर सोच कर परेशान हो उठा था। गली के कुत्ते भी अवसर की तलाश में बैठे थे। भला कौन करे इतनी देर कर देखभाल। बस सड़ांध  बिखरने ही वाली थी।

रघु ठाकुर अपने बेटे रामेसर व हरप्रसाद को लेकर किसना के चल दिया। लाठी उसकी मजबूत मुट्ठी में थी। उसने किसना को चारपाई पर बैठे देखा। किसना के तन-बदन में आग लग गई। उसने लाल-लाल आंखें दिखाते हुए किसना से कहा-

“मैं खुद तुझे गैया के मर जाने की सूचना देकर गया। दो बार रामेसर ने भी आकर तुझे याद दिलाई, लेकिन तेरे कानों पर जूं तक न रेंगी।” ठाकुर ने अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए फिर कहा-

“चल जल्दी कर ,देख दिन गरमाने लगा है। कहीं ऐसा न हो कि गाय के शरीर से सड़ांध उठने लगे।”

किसना निडर होकर ठाकुर की बातें सुने जा रहा था। उसने ठाकुर की ओर देखा ओर गला खंखारते हुए बोला-

“ठाकुर, मैंने मरे जानवर उठाना बंद कर दिया है।”

ठाकुर किसना के मुंह से ये शब्द सुन कर हैरान था। उसने किसना की बात अनसुनी करते हुए कहा- “भैया हम और हमारे बच्चे पानी पने को भी तरस गए। गाय कुएं के पास मरी पड़ी हैं। चल जल्दी कर।”

“ठाकुर, मैंने और मेरे मुहल्ले के सभी लोगों ने मरे जानवर उठाना बंद कर दिया।” इस बार किसना के स्वर में तेजी थी।

ठाकुर की भौंहें तन गई थी। उसका गुस्सा सातवें आसमान पर था। उसने इधर-उधर देखा। किसना के मुहल्ले के सभी लोग एकत्र हो चुके थे। ठाकुर ने अपने गुस्से पर काबू पाते हुए

किसना से कहा-

“किसना तुझे क्या हुआ है? किस नालायक ने भड़काया है तुझे?”

“किसी ने नहीं।”

“तो फिर  क्यों नहीं उठाएगा मरी गाय? रही मेहनत -मजदूरी की बात, सो तू जो मांगेगा, हम दे देंगें। चल जल्दी कर।”

“नहीं।”

“साले, मारे लठिया के घुटने तोड़ दूंगा।” रघु ठाकुर  ने किसना को धमकाते हुए कहा।

किसना के मुहल्ले वालों ने भी स्पष्ट शब्दों में ठाकुर की मरी गाय उठाने से मना कर दिया। सभी का स्वर किसना के स्वर में मिला हुआ था।

“ठाकुर साहब, अब समय बदल रहा है। क्या आप नहीं चाहते की समय के साथ हम भी बदलें।”

“तुम्हीं तो मरे जानवर उठाने का काम करते आए हो। तुम नहीं करोगें, तो कौन करेगा इस काम को?” ठाकुर हरप्रसाद बीच में बोला।

“कोई भी करें, अब हम नहीं करेंगे।” किसना ने उत्तर दिया।”

“देख रे किसना, बात को लम्बी न बढ़ा। हमसे दुश्मनी लेकर अच्छा न होगा। पानी में रह कर मगरमच्छ से बैर।” रामेसर ने किसना को लट्ठ दिखात हुए कहा।

ठाकुर हरप्रसाद ने कुर्ते की बाजू चढ़ाते हुए कहा- “हमें समय बदलने की बात मत समझा। समय का रूख बदलना हम अच्छी तरह से जानते हैं। यदि अपना और अपने परिवार का भला चाहता है, तो जल्दी से चल कर अपना काम निपटा आ।”

किसना और उसके मुहल्ले के लोग आज तय करके बैठे थे, उन्होंने मन में ठान ली थी जीना है तो शान से, वरना मौत ही भली। किसना ने सीधे-सीधे शब्दों में उनसे फिर कहा-

“तुम्हारे मरे जानवर हम नहीं उठाएँगें, जो करना है सो करो।”

रामेसर का खून खौल गया किसना की बातें सुन कर। उसने किसना के ऊपर लाठी उठाते हुए कहा-

“साले, चमारों का लीडर बनने चला है।”

ठाकुर हरप्रसाद ने रामेसर की लाठी पकड़ते हुए कहा कि चल कर पुलिस थाने में किसना के विरूद्ध रिपोर्ट दर्ज करवाएँ. रघु ने सोचा कि खून-खराबा करने से अच्छा है कानूनी कार्रवाई की जाए। वे तीनों मजा चखाने की धमकी देते हुए पास के थाने में उसके विरूद्ध रपट दर्ज कराने चले गए।

लगभग दो घण्टों बाद एक पुलिस जीप किसना के घर आकर रूकी। जीप से उतरते हुए थानेदार ने हाथ में डण्डा घुमाते हुए किसना से पूछा-

“क्यों रे, तू गाय क्यों नहीं उठा रहा? क्या इन्होंने तुझे मजदूरी देने से मना किया?”

“नहीं साहब, मजदूरी की बात नहीं है।”

“तो फिर क्या परेशानी है तुझे?”

“थानेदार साहब, हमने फैसला किया है की मरा जानवर उठाने का काम नहीं करेंगे।” किसना ने थानेदार के सामने निर्भीकता से अपने विचार रखे।

किसना की निर्भीकता पर थानेदार हैरान था। उसे विश्वास नहीं हो रहा था कि एक चमार उसके सामने इस तरह से बात करेगा। किसना की बातें सुन कर थानेदार के माथे पर सलवटें  उभर आई थीं। उसने खींच कर डण्डा किसना के दोनों हाथों पर दे मारा। किसना दर्द के मारे कराह उठा। थानेदार ने आंखों दिखाते हुए उससे कहा-

“सालों, तुम लोग गांव की व्यवस्था बिगाड़ना चाहते हो!”

थानेदार ने गांव की व्यवस्था बिगाड़ने के जुर्म में उसे थाने में बंद करने की धमकी दी। रघु ठाकुर ने थाने की तर्ज पर अपनी बात कही-

“साले चमरा के तू नहीं उठाएगा मरे जानवर तो क्या हम उठाएंगें?”

थानेदार ने तिरछी नजर से ठाकुर को देखा और उसे शांत रहने को कहा। थानेदार किसना से कुछ कहे कि उससे पहले किसनी ही बोला-“क्या आप यही चाहते हैं कि हम जीवन भर गांव के मरे जानवर ही उठाते रहें। अब समय बदल रहा है, लोग अपना  पुश्तैनी धन्धा छोड़ कर दूसरे कार्य करने लगे हैं। हम दूसरा अन्य कोई भी काम कर अपना पेट भर लेंगे, लेकिन मरा जानवर हम नहीं उठाएंगें।”

“किसना, तेरी अकल क्या चारा… इतने वर्षों से तुम.. भला कौन…”

“साहब क्या आप नहीं चाहते कि हम अपना यह धन्धा छोड़ कर कोई और धन्धा करें… क्या हम सम्मानपूर्वक जीवन व्यतीत नहीं कर सकते।”

वार्तालाप थाने और किसना के बीच चल रहा था, लेकिन बातों का असर रघु ठाकुर पर हो रहा था। ठाकुर की समझ में बातें कुछ-कुछ बैठ रही थी। उसने तुरन्त पैंतरा बदलते हुए किसना से कहा-

“किसना भैया, मरी गाय उठाना तो पुण्य का काम है। मरा कुत्ता या बिल्ली होती, तो और बात थी। फिर गाय तो गऊ-माता कहलाती है।”

“वही मैं सोच रहा हूं कि गाय को गऊ-माता कहते है, परन्तु माता की यह कैसी दुर्गति? वाह! यह कैसी मात है तु्म्हारी?” किसना ने ठाकुर की चाल को समझते हुए कहा।

रघु ठाकुर किसना की बातें सुन कर बौखला गया। वह आपे से बाहर हो गया था। उसने आनन-फानन में लाठी किसना पर चली दी। किसना चौकन्ना था। वह लाठी ता वार बचा गया। थानेदार ने बीच में आकर ठाकुर को रोका। ठाकुर की इस हरकत पर किसना भी गुस्सा गया। उसने भी ठाकुर के ऊपर लाठी तान दी। उसके दूसरे साथी भी भाग कर अपने घरों से लाठी और बल्लम ले आए। थानेदार ने सभी को धमकाते हुए कहा कि यदि आपस में झगड़ा किया, तो दोनों पक्षों को थाने में बन्द कर दिया जाएगा। थानेदार ने डरा-धमका कर दोनों पक्षों को शान्त कराया। ठाकुर, किसना से मरी गाय उठाने की जिद किए जा रहा था। किसना ने देखा कि ठाकुर जिद पर अड़ा हुआ है, मह मानेगा नहीं, तो उसने ठाकुर से झल्ला कर कहा- “ठाकुर, हम तुम्हारी गाय उठाने को हैं। बस एक शर्त है, बोलो मानोगो?” थानेदार भी सोचने लगा कि चलो किसी तररह से गुत्थी सुलढ जाए।

“अरे, हम तो तेरी हरेक शर्त मानने को तैयार हैं। तू अपना मुंह तो खोल …क्या कहना चाहता है?” ठाकुर  हर प्रसाद ने किसना से कहा।

“गाय गऊ-माता… और पूजनीय…”

“हां गऊ-माता… और पूजनीय…”

“हां भैया किसना, हम सभी गाय को गऊ-माता कहते हैं और उसकी पूजा भी करते हैं। हमारे धर्म में तो जो स्थान अपनी मां का होता है, वही स्थान गाय का है। गाय गऊ-माता है भैया गऊ-माता।” रघु ने गऊ-माता शब्द को जोर देते हुए कहा।

“अच्छा!”

“हाँ भैया, गाय और अपनी माता में कोई फर्क नहीं होता।”

“तो तुम इसका माँ की तरह दाह-संस्कार क्यों नहीं करते?” हाँ फिर तुम चाहो, तो हम सब उसे कन्धा देंगें।” किसना ने ठाकुर से कहा।

“तेरी तो बहन की,… साले खाल खींचा, यदि एक भी शब्द और आगे कहा तो पूरी लाठिया मुंह में घुसेड़ दूंगा। तुम हमारी माँ को कन्धा दोगे? रघु ठाकुर ने लाठिया हवा में घुमाते हुए कहा।

थाने अवाक और असहाय किसना के मुंह की ओर देखे जा रहा था। रघु ठाकुर, हर प्रसाद व रामेसर पैर पटकते और समय कैसे बदलता है, हम देख लेंगे की धमकी देते हुए अपने-अपने घर चले गए। थानेदार की पुलिस जीप भी धूल उड़ाती हुई किसना के घर से दूर जा चुकी थी।

किसना और उसके मुहल्ले के लोगों में एक अजीब तरह की दहशत फैल गई थी। वे सभी सोच रहे थे-

“न जाने गांव के ठाकुर मिल कर हमारे साथ क्या कर बैठें?” किसना तो उस रात ठीक से सो भी न सका। उसके मन में रह-रह कर सवाल उठ रहे थे। वह सोचने लगा-

“ठाकुरों से झगड़ा मोल लेकर अच्छा नहीं किया। यदि मरी गाय फेंक भी आता तो क्या जाता।” दूसरे पल सोचता-

“मैंने ठीक ही कदम उठाया है, मटनपुर गांव के हमारे लोगों ने भी को इसी तरह का कदम उठाया था। तभी तो उस गांव के चमार इस काम से छुटकारा पा सके।”

यह सोचते-सोचते न जाने कब उसकी आंख लग गई।

सुबह जब उसकी आंख खुली तो उसने देखा की मुहल्ले के सभी लोग भीड़ लगा कर हताश और निराश उसके घर के सामने खड़े हैं। कोई कुछ बोल नहीं रहा था। मानो सांप सूंघ गया हो। किसना किसी से कुछ पूछे कि उससे पहले ही उसकी नजर कांटेदार तारों की बाड़ पर पड़ी। वह देख कर दंग रह गया। उसके और उसके मुहल्ले के अन्य परिवार के घरों के चारों ओर कांटेदार तारों की मजबूत बाड़ खींची हुई थी। इसन सभी का आने-जाने का रास्ता ठाकुरों की जमीन से होकर गुजरता था। रघु ठाकुर हाथ में लट्ठ लिए दूर खड़ा-खड़ा कुटिल मुस्कान के साथ कह रहा था-

“सालो चमारों, समय परिवर्तन की बात करते हो। हम भी देखते हैं तुम्हारा समय कैसे बदलता है। अब घरो में हगो और मूतो।”

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.