रायपुर। (रिपोर्टर- जयदास मानिकपुरी) छत्तीसगढ़ की हसदेव अरण्य क्षेत्र में पेड़ों की कटाई को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। अनुसूचित जनजाति आयोग ने इस मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट जारी की है, जिसमें खुलासा किया गया है कि इस कटाई के लिए दी गई अनुमति फर्जी ग्राम सभाओं के आधार पर ली गई थी। आयोग ने स्वीकार किया है कि जिन ग्राम सभाओं का उल्लेख किया गया था, वे वास्तविक नहीं थीं और नियमों का उल्लंघन करते हुए अनुमति दी गई थी। यह रिपोर्ट हसदेव अरण्य के वन क्षेत्र और वहां के आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है।
हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खनन के विरोध में लंबे समय से हसदेव बचाव संघर्ष समिति आंदोलनरत है, जिसका नेतृत्व आलोक शुक्ला जैसे पर्यावरण कार्यकर्ता कर रहे हैं। आलोक शुक्ला और समिति ने कई मुद्दों पर सवाल उठाए हैं, उन्होंने कहा हसदेव अरण्य एक समृद्ध जैव विविधता वाला क्षेत्र है, जहां कई वन्य जीव-जंतु और वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। खनन से इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। इस क्षेत्र में आदिवासी समुदाय रहते हैं, जिनकी आजीविका जंगलों पर निर्भर है। खनन के लिए इन समुदायों की ज़मीनें छीनी जा रही हैं और उनके वन अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। आलोक शुक्ला कहना है कि खनन परियोजनाओं को मंजूरी देने में वन अधिकार अधिनियम का पालन नहीं किया गया।
इस मुद्दे को लेकर संघर्ष करने वाले एक्टिविस्ट का कहना है कि राज्य के हसदेव अरण्य में बिना स्थानीय समुदायों की सहमति के खनन की अनुमति दी जा रही है। हसदेव अरण्य क्षेत्र में कई जल स्रोत हैं, जो आसपास के क्षेत्रों को पानी उपलब्ध कराते हैं। खनन से इन जल स्रोतों पर भी खतरा मंडरा रहा है, जिससे जल संकट उत्पन्न हो सकता है। आलोक शुक्ला और उनकी समिति का कहना है कि सरकार को आर्थिक लाभ के बजाय पर्यावरण और स्थानीय समुदायों के हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए।
आदिवासी समुदाय और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह क्षेत्र न केवल उनके जीवन और आजीविका से जुड़ा है, बल्कि इस वन क्षेत्र का पर्यावरणीय महत्व भी है। ग्राम सभा का कहना है कि फर्जी तरीके से सारा काम हुआ है। इस पुष्टि के बाद राज्य सरकार और प्रशासन पर नए सवाल खड़े हो गए हैं। अब देखना यह होगा कि इस मुद्दे पर सरकार क्या कदम उठाती है और आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा कैसे सुनिश्चित की जाती है।

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