सिनेमा जगत में भी दलित-बहुजन से जुड़े विषयों को प्रमुखता से दिखाया जाने लगा है। रजनीकांत की फिल्म ‘काला’ और सुपरहिट रही फिल्म ‘जय भीम’ के बाद एक और फिल्म ने सफलता के सारे रिकार्ड तोड़ दिए हैं। आदिवासी नायकों को जबरदस्त तरीके से प्रदर्शित करनेवाली इस फिल्म का नाम है ‘आरआरआर’ और इसके निर्देशक हैं एस एस राजमौली।
इस फिल्म ने कश्मीरी ब्राह्मणों के प्रोपगेंडा पर आधारित विवेक अग्निहोत्री की फिल्म ‘कश्मीर फाइल्स’ को भी पीछे छोड़ दिया है। इसकी सफलता का अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि ‘आरआरआर’ ने दो दिनों में ही साढ़े तीन सौ करोड़ रुपए का कारोबार किया है। यह 2डी, 3डी; दोनों रूपों में उपलब्ध है।
फिल्म के बारे में युवा सामाजिक कार्यकर्ता राजन कुमार लिखते हैं कि “इस फिल्म में जल जंगल जमीन और मावा नाटे मावा राज (हमारी जमीन पर हमारी सरकार) का नारा देने वाले और आदिवासियों को एकजुट कर अंग्रेजों तथा हैदराबाद निजाम के विरुद्ध आंदोलन छेड़ने वाले क्रांतिकारी आदिवासी योद्धा कुमराम भीम और मनयम में आदिवासियों को एकजुट कर बगावत का बिगुल फूंकने वाले मनयम के नायक अल्लूरी सीताराम राजू के दोस्ती की कहानी गढ़कर अंग्रेजी शासन से जबरदस्त संग्राम को दिखाया गया है।”
राजन के मुताबिक, “हालांकि वास्तविक रूप से दोनों दोस्त नहीं थे, लेकिन दोनों समकालीन थे, और दोनों ने आदिवासियों को एकजुट कर अंग्रेजों और हैदराबाद निजाम के विरुद्ध संग्राम किया। फिल्म की कहानी वास्तविक कहानी से पूर्णतः अलग है, लेकिन आदिवासियों के बीच जिस तरह कुमराम भीम और अल्लूरी सीताराम राजू समझे और पूजे जाते हैं, उसको ध्यान में रखकर ईश्वरीय रूप देने के लिहाज से फिल्म बनाने की कोशिश की गई है।
इस फिल्म में जबरदस्त एक्शन है, यह दर्शकों को बांधे रखती है, फिल्म की कहानी भी जबरदस्त है, हालांकि अंत में अल्लूरी सीताराम राजू को राम के रूप में लड़ते हुए दिखाया गया है, जो थोड़ा अजीब सा लगता है। एक तरह से आदिवासियों को राम से जोड़ने का प्रयास भी किया गया है।
यह फिल्म भारत में अंग्रेजी हुकूमत के सर्वोच्च अधिकारी द्वारा एक गोंड आदिवासी छोटी बच्ची को जबरन उठा लेने, उसे कैदी की तरह रखकर अपनी सेवा करवाने उसके उत्पीड़न से शुरू होती है, जो फिल्म के नायक कुमराम भीम से परिचय कराती है, जो उस छोटी बच्ची को वापस लाने के लिए अंग्रेजी हुकूमत से टकराता है। एक दूसरी कहानी अल्लूरी सीताराम राजू के गांव से जुड़ी है, जहां उसका पूरा परिवार मारा जाता है, और बदले की आग में जलता हुआ वह अपने गांव के लोगों के लिए अधिक से अधिक हथियार जुटाने की फिराक में अंग्रेजी सेना के सर्वोच्च रैंक तक पहुंचता है।
फिर कुमराम भीम और अल्लूरी सीताराम राजू के बीच दोस्ती और संघर्ष भी होता है, और अंत में दोनों के बीच फिर से दोस्ती और अपने लोगों के लिए मिलकर संघर्ष। जिसके बाद अंग्रेजी सत्ता को जबरदस्त मात मिलती है।
निस्संदेह यह ऐसी पहली फिल्म है जो किसी आदिवासी महानायक को इतने गौरवपूर्ण ढंग से पर्दे पर दिखाया है।”

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