नई दिल्ली। 14 जून को श्रीनगर में ‘राइजिंग कश्मीर’ के प्रधान संपादक शुजात बुखारी की उनके कार्यालय के बाहर गोली मारकर हत्या कर दी गई थी. बुखारी की हत्या के एक हफ्ते बाद ‘राइजिंग कश्मीर’ में 10वीं क्लास में पढ़ रहे उनके बेटे तहमीद शुजात बुखारी का लेख छपा है. लेख का शीर्षक है- “पापा सिद्धान्तों वाले इंसान थे”
अपने पिता को याद करते हुए तहमीद ने क्या लिखा है आप भी पढ़िए…
14 जून मेरे और मेरे परिवार के लिए एक भयानक दिन था. इस दिन मैंने अपने पिता के असमय मौत की क्षुब्ध करने वाली खबर सुनी. पीसीआर में बैठकर जब मैं श्रीनगर हॉस्पिटल पहुंचा तब मैंने किसी को कहते हुए सुना, “अब वह नहीं रहे.” जिस वक्त मैंने यह सुना मेरे पांव कांपने लगे लेकिन मैं अब भी सबकुछ सही होने की उम्मीद कर रहा था.
मेरे दिमाग में एक साथ हजारों विचार चल रहे थे. क्या पता वो अब भी ऑपरेशन थिएटर में हो? क्या पता वो भागते हुए मेरे पास आएंगे और मुझे गले लगा लेंगे. हालांकि उनका भाग्य घटित हो चुका था, उनकी आत्मा ने उनका साथ छोड़ दिया था. मुझे अबतक भी समझ नहीं आ रहा कि मेरे पिता जैसे सच्चे आदमी के साथ किसी ने ऐसा क्यों किया. उस वक्त हजारों लोगों ने पीसीआर के अंदर इक्ट्ठा होना शुरू कर दिया. दोस्तों, शुभचिंतकों और परिवारवालों के चेहरे पर उदासी छाई हुई थी. मैं तब भी उदासी में था और अपना दर्द छिपाने का प्रयास कर रहा था जब हम अपने पैतृक गांव से अपने पिता के शव के साथ निकले.
जिस वक्त मैं एबुलेंस के अंदर रो रहा था मैं उस वक्त भी उम्मीद कर रहा था कि वे उठ खड़े होंगे और मुझे गले लगा लेंगे. पापा सिद्धान्तों वाले आदमी थे. यह बात मैं अच्छी तरह जानता हूं. मेरे पिता हजारों नफरत करने वाले लोगों से घिरे रहते थे, लेकिन उन्होंने कभी कटुता का एक शब्द उनके खिलाफ नहीं कहा.
वह एक विचारक थे लेकिन उनमें अहंकार का एक भी कण नहीं था.
वह ज्ञान, उदारता, महिमा एवं अन्य हजारों महान गुणों के प्रतीक थे. पापा अपने ऑफिस के लोगों से कर्मचारियों की तरह नहीं बल्कि अपने परिवार की तरह व्यवहार करते थे. उन्होंने अपने कर्मचारियों को बेहतरीन बनने के लिए प्रेरित किया. वह परोपकारी थे. 2014 में जब कश्मीर में बाढ़ आई तब उन्होंने घर पर वक्त बिताने के बजाए बाढ़ में फंसे हजारों असहाय लोगों की मदद की. पापा ने हमें कभी नहीं बताया कि उन्होंने कई परिवारों की सहायता की. वह एक ऐसे बेटे थे जिन्होंने अपने माता-पिता को अच्छे कर्म करके और सच्चाई के मार्ग पर ढृढ़ रहकर गर्व महसूस कराया.
उन्होंने अपनी पूरी जिंदगी शांति के लिए काम किया और इसी के लिए अपनी जान भी दे दी. उन्हें आशा थी कि एक दिन कश्मीर में मासूम लोगों को अपनी जान नहीं गवानी पड़ेगी. वे कश्मीरी भाषा के बारे में भावकु थे. उन्हें अपनी मातृ-भाषा से प्रेम था. कश्मीर के स्कूलों में 10वीं तक के बच्चों को कश्मीरी पढ़ाई जाए उनका ये बुहप्रतिक्षित सपना जून 2017 में पूरा हुआ. वह परोपकारी थे और भौतिकवादी वस्तुओं की उनमें कोई इच्छा नहीं थी. कश्मीर में शांति लाने के लिए उन्होंने कई संगठनों के साथ दुनिया के हर महाद्वीप में हजारों सम्मेलनों में भाग लिया.
1990 में सेना और आतंकवादियों की क्रॉसफायरिंग में उनके दो चचेरे भाईयों की मौत हो गई थी और अब कश्मीर की उथल-पुथल में हमारे परिवार का तीसरा सदस्या मारा गया है. उनकी असंख्य विरासत हैं. मुझे नहीं पता कि मैं कैसे उनकी उम्मीदों पर खरा उतर पाऊंगा. वो हमेशा चाहते थे कि मैं उनके पिता सैय्यद रफिउद्दीन बुखारी की तरह बनू, पवित्र एवं उदार.
कश्मीर की अंग्रेजी पत्रकारिता ने कई महान रिपोर्टर, संपादक और कुछ हीरो दिए, लेकिन शहीद कभी नहीं. अब इसने ये भी कर दिखाया है. मेरे पिता हमेशा निष्पक्ष रहे, यहां तक कि उन्होंने अपने भाई का भी पक्ष नहीं लिया जो कि राजनीति में हैं. हर चीज से उनका एक भावनात्मक रिश्ता था, शायद यहीं वजह है कि लोग उन्हें इतना प्यार करते थे. यह सरप्राइज करने वाली बात नहीं होनी चाहिए कि मात्र 10 सालों में ही ‘राइजिंग कश्मीर’ जम्मू-कश्मीर का सबसे प्रख्यात और प्यार किया जाने वाले अखबार बन गया.
अगर ईश्वर चाहता तो उनका निधन दो साल पहले हो जाता, जब उन्हें एक आघात लगा था, लेकिन उसने उनकी विदाई के लिए ईद जैसा पवित्र दिन चुना. इस क्रूर दुनिया में वह फिट नहीं थे. उनके जैसे पवित्र इंसान को ईश्वर अपने साथ चाहता है. ईश्वर उन्हें जन्नत में सर्वोच्च स्थान दे. उन्हें ईश्वर का सर्वोच्च आशीर्वाद मिले.
इसे भी पढ़ें-तीन साल में बीजेपी ने कश्मीर को किया बर्बाद, सरकार की और गलतियां पढें
- दलित-बहुजन मीडिया को मजबूत करने के लिए और हमें आर्थिक सहयोग करने के लिये दिए गए लिंक पर क्लिक करें https://yt.orcsnet.com/#dalit-dastak

दलित दस्तक (Dalit Dastak) साल 2012 से लगातार दलित-आदिवासी (Marginalized) समाज की आवाज उठा रहा है। मासिक पत्रिका के तौर पर शुरू हुआ दलित दस्तक आज वेबसाइट, यू-ट्यूब और प्रकाशन संस्थान (दास पब्लिकेशन) के तौर पर काम कर रहा है। इसके संपादक अशोक कुमार (अशोक दास) 2006 से पत्रकारिता में हैं और तमाम मीडिया संस्थानों में काम कर चुके हैं। Bahujanbooks.com नाम से हमारी वेबसाइट भी है, जहां से बहुजन साहित्य को ऑनलाइन बुक किया जा सकता है। दलित-बहुजन समाज की खबरों के लिए दलित दस्तक को सोशल मीडिया पर लाइक और फॉलो करिए। हम तक खबर पहुंचाने के लिए हमें dalitdastak@gmail.com पर ई-मेल करें या 9013942612 पर व्हाट्सएप करें।