Saturday, August 2, 2025
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प्रो. नन्दू राम: भारतीय समाजशास्त्र को समग्रता प्रदान करने वाले समाजशास्त्री

भारतीय समाजशास्त्र में "पर्सपेक्टिव फ्रॉम बिलो" (निचले पायदान का संदर्श या दृष्टिकोण) का भी उदय नहीं होता। सत्यता में उपरोक्त दृष्टिकोण से भारतीय संरचना एवं प्रक्रियाओं को समझे बगैर भारतीय समाज को पूर्ण एवं गहराई से समझा ही नहीं जा सकता।

भारतीय समाजशास्त्र में प्रो. नन्दू राम अगर अपनी लेखनी से भारत की एक-चौथाई जनता का समाजशास्त्रीय सच प्रकाशित एवं स्थापित नहीं करते तो भारतीय समाजशास्त्र कुछ वर्णों का ही समाजशास्त्र बनकर रह जाता।

अपने अदम्य सहस एवं ज्ञान की गहराई  के आधार पर उन्होंने आई. आई. टी. (Indian Institute of Technology, Kanpur) एवं जेएनयू (Jawaharlal Nehru University, New Delhi) के विद्यार्थियों का सामना किया। कल्पना कीजिये, 1970 के दशक में जाति-अश्पृश्यता,अम्बेडकर आदि पर विश्वविद्यालयों की कक्षाओं में एक विशिष्ट अस्मिता वाले शिक्षक का व्यख्यान कितना कठिन होता होगा। हालांकि आज भी यह आसान नहीं है, परन्तु प्रो नन्दू राम ने अत्यंत सौम्यता एवं दृढ़ता से उन सबका सामना किया।

 इसीलिए उनकी कालजयी पुस्तक ‘मोबाइल शेड्यूल कास्ट’ की प्रस्तावना लिखते हुए प्रो. एस सी दुबे, नन्दू राम से पूछते है कि, “यद्यपि वे अनुसूचित जातियों के ऊपर होने वाले अत्याचारों और शोषण के खुद गवाह रहे है परन्तु उनके लेखन में कोई क्रोध नहीं है- यहां तक कि ज्यादा जुनून भी नहीं है। उनकी निष्पक्षता सराहनीय है। लेकिन मुझे आश्चर्य है कि उन्हें अपने विश्लेषण में नैतिक रूप से इतना तटस्थ रहने की क्या आवश्यकता थी।”

इतना ही नहीं, अगर प्रो. नन्दू राम अपने शोध से ज्ञान का उत्पादन नहीं करते तो भारतीय समाजशास्त्र में “पर्सपेक्टिव फ्रॉम बिलो” (निचले पायदान का संदर्श या दृष्टिकोण) का भी उदय नहीं होता। सत्यता में उपरोक्त दृष्टिकोण से भारतीय संरचना एवं प्रक्रियाओं को समझे बगैर भारतीय समाज को पूर्ण एवं गहराई से समझा ही नहीं जा सकता। उसका विवरण एवं विश्लेषण एकांगी लगेगा। इस लिए हम कह सकते है कि भारतीय समाजशास्त्र में प्रो. नन्दू राम अगर “निचले पायदान का संदर्श या दृष्टिकोण” का प्रतिपादन नहीं करते तो भारतीय समाजशास्त्र में स्व-प्रतिबिंबन का नितांत आभाव होता।

अतः इन दोनों तथ्यों (उनके ज्ञान के उत्पादन एवं उनके दृष्टिकोण) के आभाव में कल्पना कीजिये भारतीय समाजशास्त्र कितना अपूर्ण और वस्तुनिष्टता से परे लगता। धन्यवाद सर !! भारतीय समाजशास्त्र के अधूरेपन को पूरा करने एवं इसकी गुणवत्ता को और भी बढ़ाने के लिए। पुनः धन्यवाद सर, भारतीय समाजशास्त्र को समग्रता प्रदान करने के लिए। हम सभी समाजशास्त्री आपके सदैव ऋणी रहेंगे।

इसमें कोई संदेह नहीं कि आज आप हमें भौतिक रूप से छोड़कर चले गए हैं, लेकिन आपने हमें और लाखों लोगों को जो ज्ञान दिया है, उसके ज़रिए आप हमारे साथ सदैव जीवित रहेंगे । हम आपसे वादा करते हैं कि हम आप द्वारा स्थापित की गयी ज्ञान की परम्परा को आगे बढ़ाते हुए भारतीय समाजशास्त्र की सेवा करेंगे।


लेखक डॉ. विवेक कुमार जेएनयू के समाजशास्त्र विभाग में प्रोफेसर हैं। इसके साथ ही डॉ. विवेक कुमार प्रोफेसर नंदू राम के प्रिय छात्र रहे हैं। 

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