नई दिल्ली। बीजेपी को 2014 में देश की सियासत का सिरमौर बनाने में दिल खोलकर साथ देने वाले दलितों का 2019 में भी पार्टी ऐसा की जुड़ाव चाहती है. वेस्ट यूपी के शब्बीरपुर और दो अप्रैल की हिंसा के बाद बीजेपी से दलितों में दिख रही दूरी को पाटने के लिए बीजेपी की तरफ से छेड़ी हुई ‘दलित जोड़ो’ मुहिम को रविवार को मन की बात में पीएम ने भी धार दी. उन्होंने खुद की सरकार की तरफ से एससी-एसटी के अधिकारों को सुरक्षित करने का हवाला देकर हमदर्द साबित करने की कोशिश की. इसके साथ रक्षाबंधन पर बीजेपी की महिला वर्करों ने दलित बस्तियों में जाकर राखी बांधी और भाइयों से तोहफे के तौर पर 2019 में कमल का साथ मांगा.
बीजेपी की दलितों की नाराजगी की भनक लगने के बाद 2017 से ही उनको साधने में जुटी है. 2014 के लोकसभा चुनाव में दलितों ने खुलकर बीजेपी के पक्ष में वोट दिया था. जिसका असर यह हुआ था कि दलितों की पार्टी कही जाने वाली बीएसपी अर्श से फर्श पर आ गई थी.
अपनो (दलितों) के मुंह मोड़ लेने से तीन बार यूपी की सीएम रहने वाली मायावती की पार्टी को एक भी लोकसभा सीट नहीं मिली थी. 2017 में भी वेस्ट के दलितों के दिल में बीजेपी को लेकर झुकाव दिखा. यूपी में बीजेपी के सत्ता में आने की एक वजह दलितों का बड़ा हिस्से का कमल के पक्ष में खड़ा होना माना गया था, लेकिन यूपी में बीजेपी की सरकार बनते ही जून 2017 में सहारनपुर में जातीय हिंसा हुई.
शब्बीरपुर में मकान जलाए गए. दलित समाज के युवकों की हत्या कर दी गई. उसको लेकर शब्बीरपुर देश और दुनिया में सुर्खी बना था. भीम आर्मी के चंद्रशेखर को जेल भेजने और मायावती ने हमदर्दी दिखाकर राज्यसभा की सदस्यता छोड़ने के साथ ही शब्बीरपुर पहुंचने के बाद दलित बीजेपी के खुलेआम विरोध में खड़े हो गए थे. उसके बाद वेस्ट यूपी में दो अप्रैल 2018 की हिंसा में जगह जगह मुकदमे, गिरफ्तारी की कार्रवाई होने से बीजेपी के खिलाफ दलित वेस्ट यूपी में खुलकर सामने आ गया.
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