फिल्म रिलीज ना होती या रिलीज हो जाती है तो भी इतिहास न बदल पाता, बदलता भी तो सिर्फ चित्रण , घटना नहीं .
यह घटना बताती है कि रजवाड़ों के दौर में औरतों की बहुत दुर्गति थी, वरना सैकड़ों औरतों का सामुहिक आत्मदाह कोई जुनून नहीं, एक लाचारी थी .
अलाउद्दीन खिलजी को कमीना कहने से मन को तसल्ली मिलती है, लेकिन #द्रोपदी_चीरहरण के पीछे कोई खिलजी नहीं था, उसके अपने ही थे, क्षत्रिय (राजपूत) ही थे. द्रोपदी को वस्तु की तरह दांव पर लगा दिया, फिर बेइज्जत किया .
सीता के साथ भी कोई अच्छा सलूक नहीं हुआ .परंतु हमारे देश की कुकुरमुत्ते की तरह जितनी भी सेनाएं हैं सिर्फ अतीत पर हंगामा करने के लिए हैं .
देश में प्रतिदिन औसतन 28 गैंगरेप हो रहे हैं, लेकिन फिक्र किसे है ? भला हो #अंग्रेजों का देश में आए,
हमें कानून दिया, पुलिस दी, अदालतें बनाई .
आज के दिन लक्ष्मण ने सरूपनखां का नाक काटा होता तो धारा 326 लग जाती, वो दौर रजवाड़ों के लिए ठीक रहा होगा, प्रजा के लिए नहीं .
विडंबना यही है कि हमारे पास सिर्फ इतिहास है उसी में जी रहे हैं . भविष्य के लिए कोई प्लानिंग नहीं है जबकि विश्व के तमाम विकसित देश 100 साल का एडवांस प्लान लेकर चल रहे हैं, हम सिर्फ तमाशबीन हैं .
इसलिए “टाइगर” सलमान पर्दे पर आतंकियों को मारकर 300 करोड़ कमा चुका है और इधर हमारे फौजियों की विधवाओं को पेंशन के लिए भी मुकदमे लड़ने पड़ते हैं……. .
रवीश कुमार

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