18 मार्च से दिल्ली के लाल किला के बाहर राष्ट्र रक्षा महायज्ञ शुरू हो चुका है. इस कथित यज्ञ में 2100 ब्राह्म्ण पुरोहित भारत की रक्षा के लिए हवन कर रहे हैं. स्वयं केंद्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इस यज्ञ में अपनी सहभागिता प्रदर्शित की है. वहीं दूसरी ओर दिल्ली से बमुश्किल सत्तर किलोमीटर दूर मेरठ के भैंसाली मैदान में नौ दिवसीय कथित महायज्ञ जारी है, जहां वैदिक मंत्रोच्चारों के बीच वहां बने 108 हवन कुंडों में आहुति देने की रस्म 350 ब्राह्मण अदा कर रहे हैं. इस दौरान 500 क्विंटल आम की लकड़ी का हवन किया जा रहा है. इसके अलावा इस आयोजन में घी के कितने कनस्तर खाली होंगे, इसका अनुमान फिलहाल लगाया भी नहीं जा सकता.
मेरठ में होने वाले यज्ञ के बारे में ऐलान किया गया है कि इसका मकसद प्रदूषण को कम करना है. इसके लिए वेदों और अन्य धर्मशास्त्रों का हवाला दिया जा रहा है. कोई पूछ सकता है कि इन दिनों स्कूली किताबों में ‘पर्यावरण अध्ययन’भी यही बताया जाता है कि किस तरह लकड़ी का जलाना प्रदूषण को बढ़ावा देता है. केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की गाइडलाइन्स भी यही कहती है. आप स्वयं भी महसूस कर सकते हैं कि ऐसी जगहों पर हम दम घुटता महसूस करते हैं, आंखें आंसू से भर जाती हैं.
राजधानी दिल्ली में आयोजित राष्ट्र रक्षा महायज्ञ यज्ञ अधिक विशाल, अधिक संसाधनों से संचालित है जहां केंद्र में सत्तासीन मोदी सरकार की अगले चुनावों में वापसी पर फोकस रहेगा. इसमें राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री तथा सत्ताधारी पार्टी से जुड़े वरिष्ठ नेता भी हाजिरी लगाएंगे. मुताबिक देश के अलग-अलग हिस्सों से 2,100 पुरोहित जो सभी ब्राह्मण जाति के होंगे और 51,000 सहयोगी इसमें शामिल होंगे. इसका आगाज तो 14 फरवरी को ही हो गया था जब गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने जल मिट्टी रथ यात्रा को दिल्ली में हरी झंडी दिखाई दी, जिसका मकसद था जगन्नाथ पुरी पहुंचकर वहां का पानी तथा गीली मिट्टी लाना, जिसका इस्तेमाल राष्ट रक्षा महायज्ञ के कुंडों के निर्माण के लिए होनेवाला था. महायज्ञ का सेट बॉलीवुड के एक मशहूर सेट डिजाइनर ने तैयार किया है.
हम देख सकते हैं कि भारत जैसे देश में, जहां अंधश्रद्धा का जबर्दस्त बोलबाला है और तर्कशीलों को गोलियां खानी पड़ रही हैं क्योंकि ये तर्कशील लोग लोगों को वैज्ञानिक चिंतन के रास्ते पर (जो संविधान की आत्मा है) चलने की सलाह दे रहे हैं. यह मेगा इवेंट जिसमे छद्म विज्ञान परोसा जाएगा, वह तर्कशीलता, कौतुहल के विकास को बाधित करेगा.
हम अपने रोजमर्रा की जिंदगी से ऐसे सैकड़ों ंउदाहरण गिना सकते हैं जो इस बात की आवश्यकता स्पष्ट करते हैं कि भारत में वैज्ञानिक चिंतन को बढ़ावा देने की कितनी आवश्यकता है. दुर्भाग्य की बात तो यह है कि यहां आस्था के नाम पर विज्ञान के शिक्षक-प्राध्यापक भी इन बातों के आगे नतमस्तक ही नहीं हो जाते अपितु बढ़ावा देते पाए जाते हैं.
हकीकत यही है कि जब आस्था आप के चिंतन पर हावी होने लगती है तो आप आसानी से संदेह (जिसे ज्ञान की पहली सीढ़ी कहा गया है) को त्याग कर धर्मग्रंथों की वरीयता के सामने नतमस्तक होते जाते हैं, आप किसी भी बात पर यकीन करने लगते हैं.
अगर राष्ट्ररक्षा यज्ञ से देश की रक्षा और पर्यावरण रक्षा होने लगे तो फिर क्या कहने? फिर सीमा पर हमारे जवानों को शहीद होने की आवश्यकता ही नहीं. प्रदूषण नियंत्रण भी इसी उपाय से किया जा सकता है.
एस सी भाऊरजार, सिवनी (मध्य प्रदेश)

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