नरेन्द्र मोदी और अमित शाह 2019 के चुनाव को जीतना आसान समझ रहे थे, वह उतना आसान होता नहीं दिख रहा है. देश में 120 सीटे ऐसी हैं जहां भाजपा के खिलाफ बिसात बिछने लगी है. इसमें बिहार की 40 और उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटे हैं. यूपी में जहां मायावती और अखिलेश यादव ने साथ आने की घोषणा कर दी है तो वहीं बिहार में नीतीश कुमार, एक जमाने में उनके सहयोगी उपेन्द्र कुशवाहा और लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामविलास पासवान की तिकड़ी के बीच खुसफुसाहट तेज हो गई है.
इस बीच अम्बेडकर दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में नीतीश, रामविलास पासवान और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के नेता उपेंद्र कुशवाहा के एक मंच पर दिखने की खबरें बिहार की राजनीति में तेजी से गूंज रही है. यह सारी संभावनाएं यूं ही नहीं है, बल्कि यह तीनों नेताओं के लिए जरूरी भी है. असल में लोकसभा में भाजपा खुद अपने बूते बहुमत में है. ऐसे में वह सहयोगी दलों को बहुत ज्यादा भाव नहीं दे रही है. भाजपा की उपेक्षा के शिकार रामविलास पासवान से लेकर नीतीश और कुशवाहा महसूस कर रहे हैं. तो यूपी में ओमप्रकाश राजभर और महाराष्ट्र में शिवसेना भी इस बारे में अपनी नाराजगी जता चुकी है. ऐसी स्थिति में एनडीए में शामिल सहयोगी दल अब भाजपा को कमजोर करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं.
देश की राजनीति के केंद्र लुटियन जोन की चर्चाओं की माने तो बिहार के ये तीनों नेता अगला लोकसभा चुनाव और फिर बिहार का आगामी विधानसभा साथ मिलकर लड़ सकते हैं. ये उनकी जरूरत भी है. नीतीश कुमार को जहां सत्ता में रहने की आदत लग चुकी है तो वहीं रामविलास पासवान अपने बेटे चिराग पासवान को राजनीति में ठीक से स्थापित नहीं कर पाए हैं. उपेन्द्र कुशवाहा की स्थिति भी ढुलमुल बनी हुई है. इन्हें यह भी अहसास है कि बिहार में आगामी चुनाव राजद बनाम भाजपा हो सकती है. ऐसे में अगर भाजपा की सीटें ज्यादा रहीं तो वो गठबंधन सरकार में अपना मुख्यमंत्री चाहेगी. नीतीश को मुख्यमंत्री प्रत्याशी बनाने के लिए पासवान औऱ कुशवाहा आराम से राजी हो सकते हैं. तो वहीं अगर ये साथ नहीं आएं तो इनकी स्थिति काफी कमजोर हो सकती है.
यह बात भी एकदम साफ है कि नीतीश कुमार बिहार में अपने दम पर सरकार नहीं चला सकते हैं. ऐसे में नीतीश पासवान और कुशवाहा के साथ मिलकर एक अलग समीकरण बना सकते हैं. बिहार में गैर-यादव ओबीसी और महादलितों को मिलाकर 38 प्रतिशत का वोटबैंक बनता है. यह आंकड़ा भी इस तीकड़ी साथ आने की संभावना को बल देता है. फिलहाल तीनों नेता ऐसी किसी चर्चा से इंकार कर रहे हैं लेकिन राजनीति में कब क्या हो जाए, कोई नहीं जानता. लेकिन अगर ऐसा हो गया तो 2019 में भाजपा भले ही केंद्र में आ जाए, उसके लिए अपने अकेले बूते सरकार बनाना मुश्किल होगा. और फिलहाल हर क्षेत्रिय दल यही चाहता है.

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।