उत्तर प्रदेश के सियासी संग्राम में पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पूर्वांचल दो ऐसे क्षेत्र हैं, जिसपर सभी दलों की नजर है। खासतौर पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश की लड़ाई अहम हो गई है। अखिलेश यादव ने आरएलडी अध्यक्ष जयंत चौधरी को अपने साथ मिला कर जाट-मुस्लिम और दलित समुदाय का समीकरण तैयार किया है। इस पूरे समीकरण पर बसपा प्रमुख की भी नज़र है। ऐसे में बसपा सुप्रीमों मायावती ने अपना सियासी दांव चल दिया है। बसपा मुखिया ने लखनऊ में पिछड़ों, दलित, मुस्लिम और जाट समुदाय के नेताओं की बड़ी बैठक बुलाई। बैठक में मायावती ने अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित 86 विधानसभा सीटों पर मुस्लिम और जाट समुदाय को बड़ी संख्या में पार्टी से जोड़ने की बात कही है।
इस दौरान बसपा प्रमुख ने सत्ताधारी बीजेपी सरकार पर आरोप लगाते हुए कहा कि- “बीजेपी के राज में मुस्लिम सामुदाय के ऊपर सबसे ज़्यादा अन्याय हुआ है। इस समाज के प्रति देश मे नफ़रत को बढ़ावा बीजेपी के सह पर दिया जाता है। बीजेपी के राज में मुस्लिम समाज असुरक्षित और ठगा हुआ महसूस कर रहा है। हमारी बीएसपी की सरकार में इस समुदाय के साथ कभी ऐसा व्यवहार नही किया गया था।”
इसी तरह बसपा सुप्रीमों ने जाट वोटों को भी साधने की कोशिश की। दरअसल जब हम उत्तर प्रदेश की सियासत को देखते हैं तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश काफी अहम है। पश्चिमी यूपी में विधानसभा की 136 सीटे हैं, जिन पर जाट, मुस्लिम और दलित समाज के वोटरों का दबदबा है। यही वजह है कि चाहें समाजवादी पार्टी हो या बसपा या फिर भाजपा, सभी कि निगाहें इन वोटरों पर है। जहां तक बहुजन समाज पार्टी की बात है तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बसपा एक वक्त में काफी मजबूत रही है। लेकिन 2017 के चुनाव में भाजपा ने इस क्षेत्र की 136 में से 109 सीटें जीतकर बाजी पलट दी थी। यही वजह है कि साल 2022 चुनाव को देखते हुए बसपा सुप्रीमों मायावती ने फिर से अपना दांव खेल दिया है और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के अपने गढ़ को फिर से हासिल करने की कवायद में जुट गई हैं।

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