द्रौपदी मुर्मू को लेकर आदिवासी बुद्धिजीवियों और बहनजी ने दिया बड़ा बयान

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आदिवासी समाज से आने वाली द्रौपदी मुर्मू देश की पंद्रहवीं राष्ट्रपति निर्वाचित हो गई हैं। चुनाव आयोग ने उन्हें जीत का सर्टिफिकेट जारी कर दिया है। इसके साथ उन्हें चारों ओर से बधाई मिलने लगी है। उत्तर प्रदेश की पहली दलित महिला मुख्यमंत्री रह चुकी बसपा प्रमुख मायावती ने द्रौपदी मुर्मू को बधाई दी है। बहनजी ने ट्विट कर लिखा- 

“शोषित व अति-पिछड़े आदिवासी समाज की महिला द्रौपदी मुर्मू को देश के राष्ट्रपति पद के लिए हुए चुनाव में भारी मतों से आज निर्वाचित होने पर उन्हें हार्दिक बधाई एवं ढेरों शुभकामनाएं। वे एक कुशल व सफल राष्ट्रपति साबित होंगी, ऐसी देश को उम्मीद। देश में एसटी वर्ग की पहली महिला राष्ट्रपति उम्मीदवार होने के नाते बीएसपी ने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर उनको अपना समर्थन व वोट दिया। अब सरकार संविधान की सही मंशा के हिसाब से उनके उत्तरदायित्वों को निभाने में उन्हें सहयोग करे ताकि जन अपेक्षा पूरी हो व देश का मान-सम्मान भरपूर बढ़े।

आदिवासी समाज से ताल्लुक रखने वाले सोशल एक्टिविस्ट हंसराज मीणा ने इसे संविधान का चमत्कार बताया। उन्होंने  मनुस्मृति और संविधान की तुलना का भी जिक्र किया। हंसराज मीणा ने लिखा-

केवल ब्राह्मण ही मंदिर का पुजारी बन सकता है यह “मनुस्मृति” की देन है, लेकिन दलित, आदिवासी भी भारत का राष्ट्रपति बन सकता है, यह डॉ. बाबा साहब अम्बेडकर के “संविधान” की देन है। भारत गणराज्य की प्रथम आदिवासी महिला राष्ट्रपति बनने पर श्रीमती द्रौपदी मुर्मू जी, को बधाई। जोहार। जय भीम।

आदिवासी समाज के एक अन्य बुद्धिजीवी और सोशल एक्टिविस्ट सुनील कुमार सुमन ने उन विरोधियों को करारा जवाब दिया है, जिसमें कई लोग सोशल मीडिया पर तंज कसते हुए यह सवाल उठा रहे थे कि द्रौपदी मुर्मू भी आदिवासियों के लिए उतनी ही लाभकारी होंगी जितने दलितो के लिए पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद हुए थे। सुमन ने पहले विरोधियों की लाइन लिखी है, फिर उसका जवाब दिया है।
”आदिवासी राष्ट्रपति बनने से आदिवासियों के जीवन में कोई अंतर नहीं आएगा !”
-तो क्या गैर-आदिवासी राष्ट्रपति बनने से आदिवासियों के जीवन में उजाला आ जाएगा?

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