Friday, October 17, 2025
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प्राइवेट यूनिवर्सिटी में आरक्षण पर बड़ा खुलासा

क्या आपको पता है कि देश की प्राइवेट यूनिवर्सिटी में भी रिजर्वेशन मिलना चाहिए?? नहीं पता? हाल ही में दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता में शिक्षा पर 31-सदस्यीय संसदीय समिति, जिसमें तमाम दलों के प्रतिनिधि शामिल थे, ने इस मुद्दे पर एक रिपोर्ट दी है। इस रिपोर्ट में कई ऐसे चौंकाने वाले खुलासे हुए हैं, जिसने तमाम निजी संस्थानों की मनमानी को सामने ला दिया है। साथ ही एससी, एसटी और ओबीसी को लेकर इन संस्थानों में बनी आरक्षण की नीति को तमाम निजी संस्थान किस तरह रौंद रहे हैं, यह भी सामने आ गया है।

समिति की रिपोर्ट के मुताबिक देश के सबसे प्रतिष्ठित माने जाने वाले कुछ निजी विश्वविद्यालयों में एससी समुदाय को 0.89 प्रतिशत, एसटी समुदाय को 0.53 प्रतिशत और ओबीसी समुदाय को 11.16 प्रतिशत का ही प्रतिनिधित्व मिल सका है। जबकि यह एससी के लिए 15 प्रतिशत, एसटी के लिए 7.5 प्रतिशत और ओबीसी को 27 प्रतिशत मिलना चाहिए था। यानी निजी संस्थान सरकार से लाभ तो ले रहे हैं लेकिन नियमों के तहत देश के वंचित समाज को लाभ दे नहीं रहे हैं।

दरअसल, संविधान का अनुच्छेद 15(5), जिसे डॉ. मनमोहन सिंह की सरकार ने 2006 में 93वें संविधान संशोधन के माध्यम से जोड़ा था, सरकार को निजी शैक्षणिक संस्थानों में SC, ST, और OBC छात्रों के लिए आरक्षण को कंपलसरी यानी अनिवार्य करने का अधिकार देता है। मई 2014 में, प्रमति एजुकेशनल एंड कल्चरल ट्रस्ट बनाम भारत संघ मामले में, भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने निजी क्षेत्र में आरक्षण की मान्यता को बरकरार रखा था।

लेकिन इस ऐतिहासिक फैसले के ग्यारह साल बाद भी संसद ने ऐसा कोई कानून पारित नहीं किया है, जो अनुच्छेद 15(5) को लागू करे। जिसकी वजह से निजी संस्थान दलितों, आदिवासियों और पिछड़ों को ठेंगा दिखा रहे हैं।

पिछले दिनों शिक्षण संस्थानों में दलित, आदिवासी और पिछड़े समाज की आरक्षण की स्थिति को जांचने और संविधान के अनुच्छेद 15(5) के मुताबिक इन वर्गों को प्राइवेट इंस्टीट्यूशन में आरक्षण की सुविधा मिल रही है या नहीं यह देखने के लिए 26 सितंबर 2024 को एक समिति गठित हुई थी। मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता में गठित इस समिति ने 20 अगस्त 2025 को अपनी रिपोर्ट संसद के दोनों सदनों लोकसभा और राज्यसभा के पटल पर रख दी है।

समिति की रिपोर्ट के मुताबिक- बिट्स में, वर्ष 2024-25 के दौरान, कुल 5,137 छात्रों में से लगभग 514 ओबीसी, 29 एससी और 4 एसटी हैं, जो ओबीसी के मामले में लगभग 10 प्रतिशत, एससी के मामले में 0.5 प्रतिशत और एसटी के मामले में लगभग 0.08 प्रतिशत है। इसी तरह,- ओपी जिंदल ग्लोबल यूनिवर्सिटी में कुल 3,181 छात्रों में से 28 एससी और 29 एसटी हैं, जो 1 प्रतिशत से भी कम है। इसके अलावा, शिव नाडर विश्वविद्यालय में कुल 3,359 छात्रों में से एससी वर्ग से 48 और एसटी वर्ग के 29 छात्र हैं, जो क्रमशः 1.5 प्रतिशत और लगभग 0.5 प्रतिशत हैं।

यह तो बस झांकी भर है और महज कुछ निजी विश्वविद्यालयों के बारे में है। देश में तमाम ऐसी प्राइवेट यूनिवर्सिटी हैं जहां के आंकड़े सामने नहीं आए हैं। यूजीसी के मुताबिक वर्तमान में देश में 517 निजी विश्वविद्यालय हैं। अखिल भारतीय उच्चतर शिक्षा सर्वेक्षण यानी AISHI की साल 2021-22 की रिपोर्ट के अनुसार, डिग्री कॉलेजों में भारत के 45,473 कॉलेजों में से केवल 21.5 प्रतिशत सरकारी संस्थान हैं। जबकि 13.2 प्रतिशत निजी सहायता प्राप्त संस्थान हैं और 65.3 प्रतिशत निजी गैर-सहायता प्राप्त संस्थान हैं। साफ है कि जब चुनिंदा और नामी यूनिवर्सिटी रिजर्वेशन के नियमों की अनदेखी कर रही हैं तो बाकी के प्राइवेट यूनिवर्सिटी में क्या आलम होगा, यह समझा जा सकता है।

 दिग्विजय सिंह की अध्यक्षता में शिक्षा पर 31-सदस्यीय संसदीय समिति, जिसमें तमाम दलों के प्रतिनिधि शामिल थे, ने इस मुद्दे का अध्ययन करने के बाद सर्वसम्मति से सिफारिश की है कि मोदी सरकार संसद में एक कानून लाए, जिसके तहत निजी उच्च शिक्षण संस्थानों में OBC के लिए 27%, SC के लिए 15% और ST के लिए 7.5% आरक्षण लागू किया जा सके।

  हालांकि तमाम बहसों के बीच यहां दो सवाल हैं। पहला यह कि आखिर जब तात्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने साल 2006 में निजी संस्थानों में एससी, एसटी और ओबीसी को रिजर्वेशन दिलाने के लिए अनुच्छेद 15(5) जोड़ा था तो आखिर उसे कानून के रूप में संसद में पास क्यों नहीं करवा सके? और दूसरा, अगर वर्तमान सरकार और उसके मुखिया प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सबका साथ और सबका विकास का ढिंढ़ोरा पीटते हैं तो फिर अपने अब तक के 11 सालों के कार्यकाल में अनुच्छेद 15(5) की ओर से आंखें क्यों मूंदे हैं, जो भारत की बहुसंख्यक एससी, एसटी और ओबीसी को निजी उच्च शिक्षा संस्थानों में आरक्षण दिलवाता है?

क्या यहां यह सवाल नहीं उठता कि वंचितों के मामले में हर सरकार का रवैया एक ही रहता है और उन्हें आगे कर सब सिर्फ अपनी राजनीति चमकाना चाहते हैं?

इस लिंक पर जाकर आप भी वह रिपोर्ट पढ़ सके हैं।

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