नई दिल्ली। बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद को चारा घोटाले से जुड़े एक अन्य मामले में 5 साल की सजा सुनाई गई है. चारा घोटाला के देवघर कोषाघार से जुड़े केस के बाद अब लालू को चाईबासा से जुड़े एक दूसरे केस में दोषी पाया गया है. ऐसे में अब सवाल उठने लगा हैं कि क्या लालू यादव राजनीतिक रूप से सक्रिय रहने की अवस्था में कभी जेल से बाहर आ सकेंगे?
चारा घोटाला से जुड़े देवघर कोषाघार केस में लालू यादव को 23 दिसंबर को रांची की विशेष सीबीआई अदालत ने दोषी माना, जिसके बाद उन्हें जेल भेज दिया गया. इसके बाद 6 जनवरी 2018 को कोर्ट ने उन्हें साढ़े तीन साल की सजा सुनाई और 5 लाख का जुर्माना लगाया. अब तक चारा घोटाला से जुड़े दो केस में लालू को साढ़े 8 साल जेल की सजा सुनाई जा चुकी है.
24 जनवरी को तीसरे केस में एक बार फिर 5 साल की सजा मिलने के बाद लालू यादव की पूरी सजा बढ़कर साढ़े 13 साल की हो गई है. इसमें से अब तक करीब 1 साल दो महीने लालू जेल में गुजार चुके हैं. यानी तीन केस में ही लालू को रांची विशेष सीबीआई अदालत के फैसले के तहत अभी 12 साल से ज्यादा और जेल में रहना पड़ेगा. बड़ा संकट ये है कि कुल 900 करोड़ के चारा घोटाले में लालू के खिलाफ अभी तीन और मामले लंबित हैं.
अगर, लालू को उच्च अदालत से राहत नहीं मिलती है, तो लालू प्रसाद यादव 2019 तो दूर 2024 के लोकसभा चुनाव में भी शायद ही जनता के बीच जा सकें. इन तमाम मामले में लालू यादव को बेल मिलना भी मुश्किल माना जा रहा है. खासतौर पर भाजपा के शासन में रहते तो ऐसा होता नहीं दिखता.
फिलहाल लालू यादव उम्र के उस पड़ाव में हैं जो राजनीतिक सक्रियता के लिहाज से रिटायरमेंट की तरफ बढ़ रहा है. ऐसे में 69 साल के हो चुके लालू की सक्रियता अब 2019 के लोकसभा चुनाव, 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव और उसके बाद 2024 के लोकसभा चुनाव में देखने को मिलेगी, इसकी संभावना कम ही है. ऐसे में संभव है कि लालू यादव की पिछले बिहार चुनाव के दौरान जनता के बीच में उपस्थिति उनके राजनैतिक जीवन की आखिरी याद बनकर रह जाए.

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