बौद्ध सभ्यता के ऐतिहासिक धरोहर को समेटे सिरपुर में तीन दिवसीय (13-14-15 मार्च) अंतरराष्ट्रीय बौद्ध महोत्सव का आयोजन हो रहा है। इसमें देश के तमाम हिस्सों से बौद्ध बुद्धिजीवियों का जमावड़ा लग रहा है। इन तीन दिनों के आयोजन में सिरपुर की ऐतिहासिकता और इसके महत्व पर चर्चा होगी।
सिरपुर (Sirpur) भारत के छत्तीसगढ़ राज्य के महासमुन्द ज़िले की महासमुन्द तहसील में स्थित एक गाँव है। यह महानदी के किनारे बसा हुआ एक ऐतिहासिक व धार्मिक स्थल है। राजधानी रायपुर से 85 किलोमीटर दूर दक्षिण कोसल की प्राचीन राजधानी माना जाने वाला पुरातात्विक स्थल सिरपुर भारत में अब तक ज्ञात सबसे बड़ा बौद्ध स्थल है। यह स्थल नालंदा के बौद्ध स्थल से भी बड़ा है। यहां अब तक 10 बौद्ध विहार और 10,000 बौद्ध भिक्षुकों को पढ़ाने के पुख्ता प्रमाण के अलावा बौद्ध स्तूप और बौद्ध विद्वान नागार्जुन के सिरपुर आने के प्रमाण मिले हैं।
नालंदा में चार बौद्ध विहार मिले हैं, जबकि सिरपुर में दस बौद्ध विहार पाए गए। इनमें छह-छह फिट की बुद्ध की मूर्तियां मिली हैं। सिरपुर के बौद्ध विहार दो मंजिलें हैं जबकि नालंदा के विहार एक मंजिला ही हैं। सिरपुर के बौद्ध विहारों में जातक कथाओं का अंकन है और पंचतंत्र की चित्रकथाएं भी अंकित हैं। इसमें से कुछ चित्र तो बुद्ध की किस कथा से संबंधित हैं, इसकी भी जानकारी नहीं मिल पा रही है। सिरपुर में भगवान तथागत बुद्ध के आने के प्रमाण मिले हैं। भगवान तथागत ने यहां चौमासा बिताया है। उनके सिरपुर आगमन की याद को चिरस्थाई बनाने के लिए यहां ईसा पूर्व तीसरी शताब्दी में सम्राट अशोक के द्वारा बौद्ध स्तूप का निर्माण करवाया गया था। उस स्तूप के अधिष्ठान को बाद में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी में बड़ा किया गया है।
इस अधिष्ठान के पत्थरों में ईसा पूर्व दूसरी शताब्दी के अक्षरों में बौद्ध भिक्षुकों के नाम तक खुदे प्राप्त हुए हैं। भगवान बुद्ध के समय गया से लाया गया वटवृक्ष अभी भी अपनी कायांतरित शाखा के साथ बाजार क्षेत्र में विद्यमान है। सिरपुर में उत्खनन में विश्व का सबसे बड़ा सुव्यवस्थित बाजार भी मिला है, जहां से अष्टधातु की मूर्तियां बनाने के कारखाने के प्रमाण मिले हैं। इस कारखाने में धातुओं को गलाने की घरिया और मूर्तियों को बनाने में प्रयुक्त होने वाली धातुओं की ईंटें प्राप्त हुई हैं।
दरअसल सिरपुर का सबसे पहले जिक्र चीनी यात्री व्हेनसांग ने किया था। ईसा पश्चात छठवीं शताब्दी के चीनी यात्री व्हेनसांग ने दक्षिण कोसल की राजधानी का जिक्र करते हुए लिखा है कि वहां सौ संघाराम थे जहां भगवान तथागत बुद्ध के आने की बात कही जाती है और वहां का राजा हिन्दू है वहां सभी धर्मों का समादर होता है। इसी स्थान पर बौद्ध विद्वान नागार्जुन ने एक गुफा में निवास किया था। सिरपुर में महानदी ईशान कोण में मुड़ती है और प्राचीन वास्तुविद मयामत (रावण के ससुर मयदानव) के अनुसार जहां नदी ईशान कोण में मुड़ती है वहां ईश्वर का वास होता है।
छत्तीसगढ़ के पुरातात्विक सलाहकार अरुण कुमार शर्मा ने व्हेनसांग के यात्राा वृतांत के आधार पर खुदाई करते हुए यात्राा वृतांत में उल्लिखित सभी विशेषताएं सिरपुर के उत्खनन में पाई थी। उनका दावा है कि छठी शताब्दी के चीनी यात्री व्हेनसांग ने अपने यात्रा वृतांत में जिस राजधानी का जिक्र किया है वह सिरपुर ही है। व्हेनसांग ने जिस गुफा का उल्लेख अपने यात्रा वृतांत में किया था वह सिरपुर के नजदीक स्थित सिंहवाधुर्वा के पहाड़ की गुफा है, जहां वर्तमान में जनजातियों द्वारा शिवलिंग स्थापित किया गया है और उस स्थान में मेला भी लगता है।
शर्मा ने कहा कि छठी-सातवीं शताब्दी में सिरपुर एक अति विकसित राजधानी थी जहां देश विदेश से व्यापार होता था। इस प्राचीन राजधानी में धातु गलाने के उपकरण, सोने के गहने बनाने की डाई से लेकर अंडर ग्राउंड अन्नागार तक मिले हैं। सिरपुर में विदेश के बंदरगाह की बंदर-ए-मुबारक नाम की सील भी मिली है जिससे पता चलता है कि सिरपुर से विदेशों में महानदी के माध्यम से व्यापार होता था। सिरपुर के पास ही महानदी पर नदी बंदरगाह आज भी विद्यमान है। पहले महानदी में पानी की मात्रा ज्यादा होती थी और उसमें जहाज आया जाया करते थे।
सिरपुर में ढाई हजार लोगों के लिए एक साथ भोजन पकाने की सौ कढ़ाई राजा द्वारा दान किए जाने के उल्लेख वाले शिलालेख भी मिले हैं। सिरपुर में बौद्ध विहारों के अलावा बड़ी संख्या में शिव मंदिर भी मिले हैं। इन शिव मंदिरों की विशेषता यह है कि इनको राजाओं के अलावा विभिन्न समाजों के द्वारा स्थापित किए गए है। विभिन्न समाजों द्वारा बनाए गए इन शिव मंदिरों में समाज के प्रतीक चिन्ह, मंदिरों की सीढिम्यों पर खुदे हुए हैं।
इसके अलावा आयुर्वेदिक दस बिस्तरों वाला अस्पताल, शल्य क्रिया के औजार और हड्डी में धातु की छड़ लगी प्राप्त हुई है। पिछले दस वर्षों से सिरपुर का उत्खनन करने वाले शर्मा ने बताया कि सिरपुर का पतन वहां आए भूकंप और बाढ़ के कारण हुआ था। सातवीं शताब्दी के पश्चात इस क्षेत्र में जबरदस्त भूकंप आया था जिसके कारण पूरा सिरपुर डोलने लगा था इसके साथ ही महानदी का पानी महीनों तक नगर में भरा रहा। उन्होंने कहा कि यही भूकंप और बाढ़ सिरपुर के विनाश का कारण बना। यहां के पुरातात्विक उत्खनन में इस बाढ़ और भूकंप के प्रमाण के रूप में सुरंग टीले के मंदिरों में सीढ़ियों के टेढ़े होने और मंदिरों व भवनों की दीवालों पर पानी के रूकने के साथ बाढ़ के महीन रेत युक्त मिट्टी दीवारों के एक निश्चित दूरी पर जमने के निशान मिलते हैं। खुदाई में मिले अवशेषों से पता चलता है कि 2000 साल पहले सिरपुर सबसे बड़ा बौद्ध स्थल था, यहां महानदी, ओडिसा के रास्ते पानी के जहाज चला करते थे।

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।
बौद्ध विरासत की जानकारी देनेवाली बहोत ही महत्वपुर्ण स्टोरी दलीत दस्तक के माध्यम से पाने मीली ..
दलीत दस्तक टिम का बहोत बहोत धन्यवाद…