नई दिल्ली। मोदी सरकार में दलित भेदभाव के मुद्दे शिक्षा संस्थानो में तेजी से बढ़ते जा रहे हैं. ताजा मामला दिल्ली के खालसा कॉलेज का है. वाणिज्य वर्ग के स्नातकोत्तर एमकॉम में आरक्षित वर्ग के विद्यार्थियों का श्री गुरु तेग बहादुर खालसा कॉलेज ने दाखिला रोक दिया है. इस बारे में कॉलेज का कहना है कि राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षणिक संस्थान आयोग ने उसे अल्पसंख्यक कॉलेज का दर्जा दिया है. प्रिंसिपल ने डीयू की दाखिला समिति के चेयरमैन और कॉमर्स की विभागाध्यक्ष को पत्र लिखकर इसकी जानकारी दी है. पत्र में उन्होंने कहा है कि हाई कोर्ट के आदेश 20 जून 2016 ने राष्ट्रीय अल्पसंख्यक शैक्षिक संस्थान आयोग के निर्देशानुसार कॉलेज को अल्पसंख्यक स्टेटस के अनुसार छात्रों को प्रवेश देने की अनुमति प्रदान की है.
हाई कोर्ट के फैसले के अनुसार ही वह स्नातक स्तरीय दाखिला दे रहा है, जबकि स्नातकोत्तर के लिए प्रवेश प्रक्रिया डीयू की शर्तो और नियमों के अनुसार होगी. सिख समुदाय के छात्रों को अल्पसंख्यक मानते हुए पचास फीसदी सीटें उनके लिए हैं, जबकि शेष सीटें अनारक्षित हैं. बिजनेस और कॉमर्स की दाखिला समिति के सदस्य हंसराज सुमन ने भी इस संबंध में कुलपति को पत्र लिखा है.
सुमन ने बताया कि वह जल्द ही कॉमर्स डिपार्टमेंट के इस मुद्दे को लेकर कुलपति से मिलेंगे, क्योंकि उच्च शिक्षा में दलित, ओबीसी कोटे के छात्रों को आने से रोकने का षड्यंत्र रचा जा रहा है. छात्रों के अलावा इन कॉलेजों ने दलित शिक्षकों की नियुक्तियों पर भी अल्पसंख्यक के नाम पर रोक लगा दी है. जिसके बाद से दलित और पिछड़े छात्रों को बड़ी परेशानी और भेदभाव का सामना करना पड़ रहा है.

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