अखबार ने बताया सफाईकर्मियों को लेकर केजरीवाल का बड़ा झूठ

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 दिल्ली के तीन मुंसिपल कॉर्पोरेशनों के मरने वाले 95 कर्मचारियों में 49 सफाई कर्मचारी हैं, इनमें सिर्फ एक या दो को केजरीवाल द्वारा घोषित 1 करोड़ की क्षतिपूर्ति राशि मिली, शेष इसके लिए दर-दर भटक रहे हैं। दिल्ली के अमीरों- मध्यवर्गीय लोगों के घरों के कूड़ा उठाने वाले और उनकी गलियां-सड़के साफ करने वाले सफाई कर्मचारियों के बारे में मैं सुनता रहा हूं कि देखो इन लोगों को कोरोना नहीं होता, इनका इम्युन सिस्टम इतना मजबूत है कि इनको कुछ नहीं होता।

तथ्य इसके उलट हैं, दी इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली के तीन मुंसिपल कार्पोरेशन (MCD) के मरने वाले कुल 94 कर्मचारियों में 49 सफाई कर्मचारी हैं। हो भी क्यों न, जब अमीर और मध्यमवर्गीय लोग अपने-अपने घरों में दुबके हुए किसी भी सूरत में अपनी जान बचाने में लगे हुए थे, दबा कर खा-पी रहे थे, उसके बाद जो कूड़ा निकाल रहे थे, उसे कोई उसे उठा रहा था और साफ कर रहा था, तो वे यही सफाई कर्मचारी थे- जिसमें स्त्री-पुरूष दोनों शामिल थे।

अमीरों-मध्यवर्ग को यह भी नहीं पता चलता कि उनकी गली में आने वाला या उनके सोसायटी को साफ करने वाला कौन सफाई कर्मचारी कब मर गया या गायब हो गया, क्योंकि अक्सर वे उनके चेहरों से नहीं, उसके झाडू और कचरे के ठेले से जानते और पहचानते हैं और एक के मरने के बाद कोई दूसरी झाडू वाली और कचरे का ठेला वाला तो आ ही जाता है। एक मर जाता है, उसकी जगह कोई दूसरा ले लेता है। अमीरों और मध्यवर्ग का काम तो नहीं रूकता न।

अखबार की रिपोर्ट से यह तथ्य भी सामने आया कि इन 49 कर्मचारियों में से सिर्फ एक या दो को केजरीवाल द्वारा घोषित 1 करोड़ की क्षतिपूर्ति की धनराशि मिली। केजरीवाल द्वारा एक सफाई कर्मचारी के परिवार को 1 करोड़ देते हुए फोटो देखकर लगा था कि सबको शायद 1 करोड़ मिल गया होगा। लेकिन तथ्य इसके बिल्कुल उलट है।

भारत में सफाई कमर्चारी अपने काम के स्वरूप (श्रम) और सामाजिक श्रेणी दोनों आधारों पर तलछट के लोग माने जाते रहे हैं और आज भी हैं, तथ्य इसे प्रमाणित कर रहे हैं। ब्राह्मणवाद उन्हें उनकी सामाजिक हैसियत के आधार पर और पूंजीवाद उन्हें उनके श्रम के स्वरूप के आधार पर अंतिम दर्जे का मानता है। तथ्य यही प्रमाणित कर रहे हैं।

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