Wednesday, July 16, 2025
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भारतीय समाजशास्त्र को दलित दृष्टिकोण देने वाले जेएनयू के पहले दलित प्रोफेसर नंदू राम का निधन

प्रो. नंदू राम महज एक विद्वान नहीं थे, वे विचारों के योद्धा थे। उन्होंने दलित अनुभव को अकादमिक विमर्श का विषय बनाया, जिससे समाजशास्त्र की परंपरागत धारा में एक आवश्यक विचलन आया। भारतीय समाजशास्त्रीय अध्ययन को उन्होंने वंचितों की नज़र से देखने की दृष्टि दी।

प्रो. नंदू राम के साथ अशोक दास, जून 2016 की तस्वीर, जब अशोक दास ने प्रो. नंदू राम का इंटरव्यू लिया थानई दिल्ली। देश के प्रख्यात समाजशास्त्री, शिक्षाविद् और दलित चिंतक प्रोफेसर नंदू राम का शनिवार 13 जुलाई की सुबह निधन हो गया। वे 76 वर्ष के थे। प्रो. नंदू राम जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) के सामाजिक विज्ञान विभाग में पहले दलित प्रोफेसर और डीन रहे। वे डॉ. अंबेडकर चेयर इन सोशियोलॉजी के संस्थापक प्रोफेसरों में शामिल थे। उनके निधन से भारत ने एक ऐसा बौद्धिक योद्धा खो दिया है, जिसने समाजशास्त्र को सिर्फ अध्ययन नहीं, सामाजिक परिवर्तन का माध्यम बनाया।

प्रो. नंदू राम का जाना दलित समाज के लिए ही नहीं, बल्कि पूरे अकादमिक जगत के लिए एक बड़ी क्षति है। वे उन विरले विद्वानों में थे, जिन्होंने जाति, असमानता और वंचना जैसे विषयों पर समाजशास्त्र को वंचितों के नजरिये से देखना शुरू किया। साथ ही Sociology from below की धारणा को जन्म दिया और उसे एक सशक्त बौद्धिक आधार भी दिया।

दलित समाजशास्त्र के पथ प्रदर्शक

प्रो. नंदू राम ने अपना पूरा जीवन जातीय अन्याय, सामाजिक बहिष्कार और बहुजन चेतना के प्रसार के लिए समर्पित किया। वे JNU जैसे प्रतिष्ठित विश्वविद्यालय में उस समय प्रोफेसर और डीन बने, जब वहां दलित समुदाय का प्रतिनिधित्व नगण्य था। उन्होंने डॉ. आंबेडकर के विचारों को शिक्षा और शोध के केंद्र में स्थापित किया।

अपने जीवनकाल में उन्होंने कई पुस्तकें भी लिखी। उनकी प्रमुख पुस्तकों में-

  • The Mobile Scheduled Castes: Rise of a New Middle Class
  • Beyond Ambedkar: Essays on Dalits in India
  • Ambedkar, Dalits and Buddhism
  • Dalits in Contemporary India
  • Caste System and Untouchability in South India
  • Encyclopedia of Scheduled Castes in India (5 वॉल्यूम्स)

इन रचनाओं में उन्होंने दलित समाज की जटिलताओं, उभरते मध्यवर्ग और सामाजिक परिवर्तन को बेहद गंभीरता और स्पष्टता के साथ विश्लेषित किया।

वर्ष 2016 में अशोक दास द्वारा लिया गया प्रो. नंदू राम का इंटरव्यू

एक विचारधारा, एक आंदोलन

प्रो. नंदू राम महज एक विद्वान नहीं थे, वे विचारों के योद्धा थे। उन्होंने दलित अनुभव को अकादमिक विमर्श का विषय बनाया, जिससे समाजशास्त्र की परंपरागत धारा में एक आवश्यक विचलन आया। भारतीय समाजशास्त्रीय अध्ययन को उन्होंने वंचितों की नज़र से देखने की दृष्टि दी।

विद्वान प्रोफेसर के निधन पर समाजशास्त्र ने शोक जताया है। भारतीय समाजशास्त्रीय समाज (Indian Sociological Society) ने शोक जताते हुए प्रो. नंदू राम को याद करते हुए कहा- “प्रो. नंदू राम एक ऐसे विरले विद्वान थे, जिन्होंने समाजशास्त्र को केवल सिलेबस तक नहीं, जमीनी हकीकत से जोड़ा। उन्होंने एक नई पीढ़ी को तैयार किया जो उनके विचारों को आगे ले जाएगी। हम उनके निधन पर गहरा शोक व्यक्त करते हैं।”

सोशल मीडिया पर श्रद्धांजलि की लहर

उनके निधन की खबर के बाद सोशल मीडिया पर छात्रों, शिक्षकों, शोधार्थियों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने उन्हेंप्रो. नंदू राम के साथ उनके शिष्य और वर्तमान में जेएनयू के प्रोफेसर और सोशल साइंस विभाग के डीन प्रोफेसर विवेक कुमार भावभीनी श्रद्धांजलि दी। कई दलित बुद्धिजीवियों ने लिखा कि “नंदू राम जैसे प्रोफेसर नहीं बनते, वो आंदोलन होते हैं।” प्रो. नंदू राम के छात्र रह चुके उनके करीबी जेएनयू के सोशल साइंस डिपार्टमेंट के वर्तमान डीन प्रो. विवेक कुमार ने उन्हें याद करते हुए लिखा है-  You are with us via your knowledge you have imparted to us an millions. We promise you to take it ahead. Long Live Sir (Prof Nandu Ram 1946-2025).

प्रो. नंदू राम चले गए, लेकिन उन्होंने जिस वैचारिक आंदोलन की नींव रखी, वह आने वाली पीढ़ियों को रास्ता दिखाता रहेगा। उनकी लेखनी, शोध और जीवन संघर्ष आने वाले समय में दलित विमर्श को दिशा देता रहेगा। वे न सिर्फ एक शिक्षक थे, बल्कि एक समाजद्रष्टा थे।

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