जेट एयरवेज में लगभग 20 हजार कर्मचारी काम करते थे। आज से जेट एयरवेज बन्द हो गया। ये पूछ रहे है कि “who will give us jobs now? (अब इन्हें नौकरी कौन देगा)। यदि हर परिवार में औसतन 5 लोग हो तो इस फैसले से एक लाख लोगों की जिंदगी दांव पर लग गयी। जिसमें किसी कर्मचारी की माँ का कैंसर की बीमारी का इलाज चल रहा है तो कुछ लोग अन्य समस्याओं से जूझ रहे हैं।
कई सरकारी कंपनियाँ बंद हो गयी और कई बंद होने के कागार पर हैं। और ऐसा इसलिए है क्योंकि जब सरकार से सवाल करना था तब आप ‘आधी रोटी खाएंगे लेकिन मंदिर वही बनायेंगे’ का नारा दे रहे थे। गाय के नाम पे तो लड़ रहे थे लेकिन तमाम नौकरियों के खत्म होने से आपको कोई दिक्कत नहीं थी। जरा सोचिए, अब खुद क्या खाइएगा और अपनी ‘राजनीतिक गाय’ को क्या खिलायेगा? शिक्षा के निजीकरण और दिन पर दिन महंगी होती शिक्षा पर आप तालियां बजा रहे थे। अब अपने बच्चों की स्कूल फीस कैसे चुकायेंगे? आपका ताली बजाना सिर्फ आपकी नहीं आपके बच्चों के भविष्य को भी अंधेरे में डाल गया।

अपनी नौकरियां गंवाने और इस फैसले के विरोध में आज से ये सभी कर्मचारी दिल्ली में धरना देने जा रहे हैं। हम आपके दुःख और संघर्ष में साथ हैं, लेकिन काश! आप उनलोगों के साथ होते जब लाखों लोग अपनी नौकरियों के जाने, जमीन के छिने जाने, शिक्षा और शिक्षण संस्थाओं को बर्बाद करने के खिलाफ सड़कों पर थे। काश! आप मंदिर-मस्जिद, अली-बजरंगबली, औरंगजेब, गाय और शमशान आदि पर तालियां न बजा रहे होते। काश! आप यह समझते कि ये क्यों किया जा रहा है? आपके इन्ही मुद्दों को भटकाया जा रहा था। काश! जब किसान, नौजवान और छात्र अपनी समस्याओं को लेकर, महिलाएं अपनी समस्याओं को लेकर जब सड़क पर थी तब उनके दर्द को समझते हुए आप भी उनके समर्थन में सडकों पर आए होते। शायद आज ये समस्या आपतक नही पहुंचती।
ऐसा थोड़े न संभव है कि बस्ती में आग लगे और आपके घर तक न पहुंचे। आपको मालूम था कि बस्ती में आग लगी है लेकिन आप इसलिए तालियां बजा रहे थे कि घर किसी और का जल रहा था। तो लीजिये आग आपके घर तक पहुंच ही गयी। किसी भी देश में नागरिक अपनी जिम्मेदारियों को निभाना बन्द कर देगा तो उसका यही परिणाम होता रहा है। देश सिर्फ सरकार भरोसे नहीं चलती, नागरिकों को भी अपनी जिम्मेदारियों को निभाना पड़ता है। लोकतंत्र को पूंजीतंत्र से बचाइए। लोकतंत्र जब कुछ लोगों की मुट्ठी में कैद हो जाएगा तो यही परिणाम होगा। हम आपके इस दुख की घड़ी में साथ हैं, लेकिन याद रखें कि सबको मिलकर अपने नागरिक होने की जिम्मेवारी को निभाना पड़ेगा तभी सभी नागरिकों के अधिकारों को सुनिश्चित किया जा सकता है। लोकतंत्र लोगों के लिए तभी होगा जब लोग इसे पूंजीतंत्र के कैद से आजाद कराएंगे।
- राकेश रंजन के फेसबुक वॉल से

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