जय भीम बनाम अम्बेडकरवाद

जब से ‘जय भीम’ पिक्चर आयी है भावना में बहे लोग अपनी भावुकता के कारण अपनी एक गल्ती को छुपाने के ‘जय भीम’ के अर्थ को सालरिकृत कर समझने में लगे है।  अतः यह प्रश्न उठता है की जय भीम के असली मायने क्या है।  और उसे किस सन्दर्भ में देखना चाहिए ?

जय भीम आंबेडकरवादियों के अभिवादन का प्रतिक है। यह अम्बेडकरी विचारधारा के प्रभाव में कितना बड़ी जनसँख्या खड़ी है इसको भी इंगित करता है।  यह अम्बेडकरवादियों में भाईचारा फैलाने का भी कार्यक्रम है।  इस लिए यह भावनात्मकता से जुड़ा हुआ है।

जय भीम आंबेडकरवादियों की संस्कृति का केवल एक प्रतिक है। उनकी संस्कृति में बाबासाहब के साथ-साथ बहुत सारे आयाम है -नमो बुद्धाय, गुरु रविदास, कबीर , चोखा मेला, जोतिबा फूले- माता सावित्री बाई फूले, बिरसा मुंडा, पेरियार, साहू जी , झलकारीबाई कोरी , मातादीन भंगी , उददेवी पासी, ललईसिंह आदि -आदि।

इसी लिए कुछ  लोग अपने स्वार्थ के लिए ‘जय भीम’ का प्रयोग कर के समाज को धोका देते है. और आंबेडकरवाद से जुड़े अन्य मूल्यों एवं प्रतीकों से बचते है या उसकी जानबूझ कर अनदेखी करते है।

परन्तु ‘अम्बेडकरवाद’ एक वृहद दर्शन है। इस दर्शन का आधार है -समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, एवं सामाजिक न्याय। बाबासाहब ने इन सभी तथ्यों को अलग-अलग से परिभाषित भी किया है।  और उन्होंने बताया भी की उन्होंने ये मूल्य – समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व बुद्ध से ग्रहण किये।

इन मूल्यों में बाबासाहब ने  बंधुत्व (भाईचारा) को प्रथम वरीयता दी या उसे सबसे ऊपर बताया। क्योकि उनका मानना था की आप स्वतंत्रता एवं समता के लिए कानून बना सकते है पर बंधुत्व के लिए कोई कानून नहीं बना सकते।  बाबासाहब का मानना था की बंधुत्व जनतांत्रिक व्यवस्था में आत्म- क्रांति से आएगा।

और साथ ही साथ बाबासाहब का मत था की बंधुत्व नहीं है तो समता और स्वतंत्रता नहीं आएगी। इस लिए बाबासाहब बंधुत्व को वरीयता देते थे।

बाबासाहब ने आत्म- क्रांति का मार्ग भी बताया- पांचशील, आष्टांगिक मार्ग एवं दस परिमिताए।

इसी लिए बाबासाहब ने धम्म और धर्म में अंतर् भी बताया। धम्म  सर्वसमाज के उत्थान के लिए है और धर्म के व्यक्ति के उत्थान कई लिए।

बाबासाहब ने सामाजिक नियंत्रण के लिए धम्म  को अतयंत आवश्यक बताया ।

बाबासाहब का मानना था की संविधान आपको संस्थाएं -जैसे न्यायालय, कार्यपालिका, अभिशासन, अधिकार आदि तो दे सकता है परन्तु उसको चलाने वाले लोग तो समाज से ही आएंगे।  इस लिए उनके आचरण को धम्म ही नियंत्रित कर सकता है। बात बड़ी हो जायेगी इस लिए आंबेडकर दर्शन पर अभी इतना काफी है।

संक्षेप में हम कह सकते  है की ‘अम्बेडकरवाद ‘ एक वृहद दर्शन है जिसे हम विचारधारा भी कह सकते है -जिसमें  राजनीत, सामजिक न्याय , सामाजिक व्यवस्था, मानव सधिकार, राष्ट्रीय निर्माण के मूल्यों एवं मार्गों के साथ वैश्विक व्यवस्था के निर्माण के तत्व निहिन्त है।

इस लिए मैं अपने भाइयों से अनुरोध करूँगा की ‘जय भीम’ और ‘अम्बेडकरवाद ‘ में अंतरकर इसे समझने का प्रयास करें।

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