नई दिल्ली। भारतीय मीडिया ने देश को शर्मसार कर दिया है. पिछले चार सालो में देश में मीडिया की विश्वसनीयता सबसे खराब स्तर तक पहुंच गई है. यह बात प्रेस फ्रीडम इंडेक्स के सर्वे में सामने आई है. दुनिया के 180 देशों के लिए यह इंडेक्स जारी किया गया, जिसमें भारत की रैंकिंग 138 है, जबकि प्रेस की आजादी के बारे में नार्वे पहले नंबर पर है.
जारी की गई रैंकिंग फ्रांस के एक एनजीओ ‘रिपोर्टर्स विदआउट बॉर्डर्स’ ने जारी की है. संस्था पिछले 16 सालों से यह इंडेक्स जारी करती है. इस रिपोर्ट में भारतीय मीडिया के बारे में कहा गया है कि, ‘भारत में पिछले कुछ समय में नेशनल डिबेट को राष्ट्रविरोध की बातों की ओर मोड़ने का चलन बढ़ा है. मोदी का ये राष्ट्रवाद खतरा बनता जा रहा है.’ इस रिपोर्ट में पत्रकार गौरी लंकेश की हत्या और मार्च 2018 में 3 पत्रकारों की हत्या का भी जिक्र है. रिपोर्ट में इस बात को लेकर चिंता जताई गई है कि दुनिया के बड़े-बड़े देशों में जो नेता जनता के बीच में से चुनकर आ रहे हैं, वो भी मीडिया को पनपने नहीं देना चाहते.
दरअसल वर्तमान भारतीय मीडिया पर ज्यादातर पूंजीपतियों का कब्जा है. ये वो पूंजीपति हैं जो विशुद्ध रूप से लाभ और हानि का कारोबार करते हैं और उनका सामाजिक सरोकार से बहुत कुछ लेना नहीं है. उनको अपने व्यवसाय को आगे बढ़ाते रहने के लिए सरकार की मदद चाहिए और बदले में वो अपने तमाम संस्थाओं के जरिए सरकार को मदद करते हैं. मीडिया भी इनमें से एक है. तो दोनों के बीच एक समझौता है. इसके अलावे सरोकार वाले ज्यादातर पत्रकार राज्यसभा, पद्मश्री और सरकार से नजदीकी के मोह में हैं, इसलिए उनकी खबरों का झुकाव साफ देखा जा सकता है.
आलम यह है कि मीडिया के एक धड़े के लिए ‘गोदी मीडिया’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल होने लगा है. देश के विभिन्न हिस्सों में मारे जाते पत्रकारों पर भी सरकारी चुप्पी गौर करने लायक है. फिलहाल इस रिपोर्ट ने भारतीय मीडिया घरानों के सामने एक सवाल खड़ा कर दिया है.
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