बिहार चुनाव के दूसरे चरण में सबकी निगाहें दलित और मुसलमान मतदाताओं पर है। दूसरे चरण में जिन 122 विधानसभा सीटों पर मतदान हो रहा है, उसमें लगभग 100 सीटें ऐसी है, जिस पर जीत-हार का फैसला दलित मतदाता करेंगे। यह समाज जिधर जाएगा, सत्ता उधर ही जाएगी। ऐसा इसलिए कि दूसरे चरण के मतदान में जिन सीटों पर वोटिंग हो रही है, वहां दलित समाज की आबादी 18 फीसदी है।
वहीं दूसरी ओर मुसलमान वोटरों पर भी सबकी निगाहे हैं। क्योंकि इसी चरण में सीमांचल समेत तीन दर्जन सीटों पर हार-जीत का फैसला मुस्लिम समाज करेगा। माना जा रहा है कि मुस्लिम वोट गठबंधन को मिलेगा, लेकिन मुस्लिम वोटरों को रिझाने के लिए ओवैसी की पार्टी AIMIM और प्रशांत किशोर की पार्टी जनसुराज भी मैदान में है।
2020 चुनाव की बात करें तो एनडीए को अंग प्रदेश, तिरहुत और मिथिलांचल में जबकि राजद और महागठबंधन को मगध क्षेत्र में अच्छी बढ़त हासिल हुई थी। सीमांचल में कांटे के मुकाबले और AIMIM की मौजूदगी के कारण एनडीए को मामूली बढ़त हासिल हुई थी।
इस चरण में सबसे अहम दलित समाज है। इन क्षेत्रों में कुल 18 फीसदी की हिस्सेदारी रखने वाले दलित समाज में 2.5 फीसदी मुसहर समाज और पांच फीसदी पासवान यानी दुसाध समाज के वोटर शामिल हैं। करीब सौ सीटें ऐसी हैं, जहां दलित मतदाताओं की आबादी 30 से 40 हजार के बीच है।
दलित वोटों की बात करें तो बहुजन समाज पार्टी भी एक बड़ा फैक्टर है। बसपा ने शुरुआत में सभी 243 सीटों के लिए उम्मीदवारों की घोषणा की थी, लेकिन कुछ नामांकन रद्द होने के बाद अब केवल 190 उम्मीदवार ही मैदान में हैं। रविदास समाज के बीच पार्टी को जन समर्थन हासिल है। पिछले विधानसभा चुनावों में, बसपा ने 78 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे और उसे 2.37% हासिल किया था। तब बसपा ने चैनपुर सीट जीती थी, जिसके विधायक बाद में जदयू में शामिल हो गए।
हालांकि इस बार गठबंधन का गणित 2020 के मुकाबले अलग है। 2020 के चुनाव में VIP पार्टी एनडीए के साथ थी, तो चिराग पासवान ने अकेले चुनाव लड़ा था। चिराग पासवान यानी लोकजनशक्ति पार्टी रामविलास के अकेले चुनाव मैदान में होने से जनता दल यूनाइटेड को सीधे 22 सीटों का नुकसान हुआ था। इस बार चिराग एनडीए के साथ हैं तो VIP महागठबंधन के साथ, ऐसे में चुनावी नतीजे कितने प्रभावित होंगे, यह तो चुनावी नतीजों से पता चलेगा। लेकिन आंकड़ों की बात करें तो महागठबंधन ने 2020 के चुनाव में इन सीटों पर 66 में 50 सीटें जीती थीं, जबकि BJP ने 42 सीटें और JDU ने 20 सीटें जीती थीं। कुल मिलाकर इस चरण में सबकी निगाहें दलित और मुस्लिम मतदाताओं पर टिकी है। नतीजे बताएंगे कि उनका भरोसा जीतने में कौन सा राजनीतिक दल कितना कामयाब हुआ है।

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।

