Sunday, August 24, 2025
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नाईयों ने पहली बार काटें दलितों के बाल, गुजरात के एक गांव की कहानी

बनासकांठा जिले का आलवाड़ा गांव लगभग 6,500 की आबादी वाला गांव है, जिसमें दलित समुदाय के करीब 250 लोग रहते हैं। गांव में नाई की पांच दुकानें हैं, लेकिन अब तक किसी भी नाई ने दलितों के बाल काटने की हिम्मत नहीं दिखाई। कहा जाता है कि उच्च जातियों को यह मंजूर नहीं था कि वही नाई उनके बाल भी काटें और दलितों के भी।

प्रतीकात्मक चित्रगुजरात/ बनासकांठा। दिल्ली के कनॉट प्लेस, मुंबई के मरीन ड्राइव या किसी पब में थिरक रहे लोगों से अगर जातिवाद पर चर्चा की जाए तो शायद वे कहेंगे कि अब जातिवाद कहां है। लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के गृहप्रदेश गुजरात में एक गांव ऐसा भी है, जहां आज़ादी के 69 साल बाद पहली बार दलित समाज के लोगों के बाल गांव के नाई ने काटे। इससे पहले दलितों को दूसरे गांव जाकर बाल कटवाने पड़ते थे, जहां उनकी जाति की पहचान कोई नहीं जानता था।

बनासकांठा जिले का आलवाड़ा गांव लगभग 6,500 की आबादी वाला गांव है, जिसमें दलित समुदाय के करीब 250 लोग रहते हैं। गांव में नाई की पांच दुकानें हैं, लेकिन अब तक किसी भी नाई ने दलितों के बाल काटने की हिम्मत नहीं दिखाई। यह भेदभाव कब शुरू हुआ, कोई ठीक-ठीक नहीं बता सकता, लेकिन कहा जाता है कि उच्च जातियों को यह मंजूर नहीं था कि वही नाई उनके बाल भी काटें और दलितों के भी। इसी सोच ने धीरे-धीरे इसे परंपरा का रूप दे दिया। नतीजा यह हुआ कि गांव के दलित लंबे समय तक आस-पास के गांवों में जाकर अपनी जाति छिपाकर बाल कटवाने को मजबूर रहे।

हाल के वर्षों में अपने अधिकारों को लेकर दलित समाज के युवाओं में जागरूकता आई और उन्होंने इस भेदभाव का विरोध करना शुरू किया। मामला पुलिस और प्रशासन तक पहुंचा तो सामाजिक दबाव और चर्चाओं के बाद आखिरकार बदलाव का रास्ता निकला। 7 अगस्त को यह ऐतिहासिक घटना घटी जब 24 वर्षीय खेतिहर मज़दूर कीर्ति चौहान ने गांव के ही नाई की दुकान पर बाल कटवाए। उनके बाल काटे 21 वर्षीय पिंटू नाई ने। इस तरह दशकों पुरानी कुप्रथा का अंत हुआ और पहली बार गांव के दलितों को अपनी जाति छुपाए बिना गांव में ही बाल कटवाने की आज़ादी मिली।

गांव के दलितों में इसे लेकर खुशी का माहौल है। हालांकि सवाल अब भी वही है कि 1947 से हर साल देश आज़ादी का जश्न मना रहा है, लेकिन दलितों और आदिवासियों को असली आज़ादी आखिर कब मिलेगी?

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