सवर्णों के अत्याचारों का ऐसे हो सकता है खात्मा, समझें दलित-बहुजन

देश में आए दिन दलितों पर जुल्मी सवर्ण जातियों द्वारा हर क्षेत्र में तरह तरह के अन्यान्य अत्याचार हो रहे हैं. ऐसी घटनाओं के समय दलित समाज में आक्रोश फूटता है, आंदोलित भी होता है, लेकिन आर्थिक कमजोरी के कारण यह समाज मुकाबला नहीं कर पाता है.और मजबूरी में जुल्म करने वालों की शरण जाना पड़ता है. 

समाज अपने हक व स्वाभिमान को भूल जाता है इसलिए वंचित समाज को यह समझना होगा कि आखिर सवर्ण अत्याचारी जातियों की शक्ति के स्त्रोत क्या है और इनको मजबूत करने में वंचित समाज का कितना बड़ा योगदान है? 

ये है– आर्थिक, धार्मिक और राजनीतिक. इन्हें कमजोर करके ही दलित समाज जुल्म की जड़ों को सूखा सकता है. पत्तों को झाड़ने की बजाय जड़ों को खाद-पानी देना बंद करना जरूरी है.

सवर्णों का करें आर्थिक बहिष्कार

इन जातियों के छोटे बड़े व्यापार के आर्थिक संसाधनों, प्रतिष्ठानों से सामान खरीदना बंद करें, अनावश्यक खरीद न करें, इन पर निर्भरता कम करें. और विकल्प में दलित बहुजन समाज खुद दैनिक जीवन के उपयोग की चीजों का छोटा मार्केट तैयार करें. हम तो मेहनतकश हुनरमंद कौम है. लघु उद्योग, प्रोडक्शन, सप्लाई आदि बिजनेस में कूदें ताकि हमारे धन से मजबूत होने वाली जातियां कमजोर पड़े और हमारा धन हमारे बीच में ही रहें. हमारा आर्थिक आधार मजबूत हो सकें. धन की कमी से सारे आंदोलन व मिशन धराशायी हो जाते है. समाज के विकास और जाति व जुल्म के मुकाबले के लिए धन बड़ा हथियार है.

द्विजवादी कर्मकांड छोड़, अपने मूल धर्म का करें पालन

दलित बहुजन आदिवासी समाज में संतों, महापुरुषों के विचारों का अथाह भंडार है. इसलिए दूसरे अंधविश्वास के मार्ग ओर नहीं भटकें. विडम्बना यह है कि दलित समाज उन अत्याचारी जातियों द्वारा थोपे गए काल्पनिक पात्रों की मूर्तियों की पूजा, पूजा स्थलों की तीर्थ यात्राएं करता है, मेलों की भीड़ बनता है. मेहनतकश दलित आदिवासी अपनी गाढ़ी कमाई के धन, समय व ऊर्जा को जीवन भर उनके धार्मिक कर्मकांडो में बर्बाद करता रहता है. इससे अत्याचारी जातियां हर तरह से मजबूत होती हैं, जुल्म के हाथ मजबूत होते हैं और शोषित समाज कमजोर होता है.

दलित बहुजन आदिवासी को चाहिए कि वह अपने गौरवशाली इतिहास को पहचाने. बहुत भटके, अब तो अपने घर की ओर लौटे. अपने समाज में संतो महापुरुषों, देवी देवताओं, साहित्य का अथाह सागर है. शिकारियों के झूठे इतिहास, काल्पनिक पात्रों का गुणगान बंद करें. खुद के गौरवशाली इतिहास को संजोए, संतों की वाणी को गाएं. इसी में हमारी खुशहाली हैं समृद्धि है. और इससे जुल्मी शोषक कमजोर होगा.

राजनीतिक पार्टियों ने बहुजनों की एकता को पहुंचाया है भारी नुकसान

दलित बहुजन समाज ने सांस्कृतिक व आर्थिक समृद्धि की बजाए राजनीतिक ताकत को ही सब कुछ समझ लिया.इसे समाज में भारी फूट पड़ गई है और विरोधी भी यही चाहता है .फिर इसमें भी दलित समाज स्वयं ताकतवर बनने के बजाय सवर्ण जुल्मी जातियों को सह देने वाली पार्टियों, जातिवादी राजनेताओं का गुलाम बन जाता है और रात दिन उसी के लिए भागदौड़ करता है. 

इन राजनीतिक पार्टियों व राजनेताओं ने बहुजन समाज की एकता का भारी नुक़सान किया है.   राजनीतिक महत्वाकांक्षा के अंधे स्वार्थ के खातिर बहुजन समाज के लोग गांव से लेकर शहर तक जुल्मी जातियों के हर पार्टी के नेताओं का समर्थन करते नजर आते हैं. इन्हें नहीं पता कि वे दलित समाज को कितना बड़ा धोखा दे रहे हैं, अहित कर रहे हैं. अंततः ऐसे लोगों को निराशा ही हासिल होती हैं. लेकिन तब तक वे स्वयं व समाज का भारी नुकसान कर चुके होते हैं जिसकी भरपाई कतई संभव नहीं होती है.

दलितों और आदिवासियों के वोट से इन जातियों के नेता ताकतवर बनते है और पर्दे के पीछे से स्वयं की जातियों का हर तरह से भला और वंचितों शोषितों का हर तरह से नुकसान करते हैं. माना कि हर जुल्मी जाति में कुछ ठीक लोग होते हैं लेकिन समय आने पर वे भी अपनी जाति के अपराधी के साथ खड़े नजर आते हैं या अपनी जाति को ही आगे बढ़ाने की बात करते हैं.

अंत: वंचितों को चाहिए कि वे जुल्मी जातियों के आर्थिक, धार्मिक व राजनीतिक शक्ति के स्रोतों को पहचाने और चिंतन मनन करें कि इनको मजबूत कर वंचित समाज खुद के वर्तमान और आने वाली पीढ़ियों का कितना नुक़सान कर रहे है? 

यदि वंचित समाज तय कर लें तो शोषण,अत्याचार व अन्याय की जड़ों को सूखा सकता हैं. इसके लिए सामाजिक, धार्मिक कुरीतियों व अंधविश्वासों को छोड़कर स्वयं को सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, सांस्कृतिक और वैचारिक रूप से मजबूत करना होगा.

यही बुद्ध, कबीर, रैदास, फुले व बाबासाहेब का मार्ग है. यही हमारी खुशहाली का मार्ग है.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.