राहुल गांधी आज औपचारिक तौर पर कांग्रेस अध्यक्ष का पद संभाल लेंगे. राहुल गांधी को कांग्रेस की कमान ऐसे वक्त में मिल रही हैं, जब पार्टी अपने सबसे बुरे दौर से गुजर रही है. लोकसभा चुनाव में 50 सीटों के नीचे तो कांग्रेस 2014 में ही आ गई थी लेकिन उसके बाद एक-एक कर राज्यों से उसकी सत्ता भी चली गई जिससे पार्टी औऱ कमजोर हो गई है. आज जब राहुल गांधी ने कांग्रेस अध्यक्ष पद की कमान संभाल ली है, जाहिर सी बात है कि उनको पिता राजीव गांधी याद आते होंगे.
दोनों की जिंदगी में काफी समानताएं हैं. राजीव गांधी राजनीति में नहीं आना चाहते थे. अगर असमय संजय गांधी की मौत न हुई होती तो राजीव शायद एक फैमिली मैन बनकर एयर इंडिया के पायलट ही बने रहते इसी तरह राहुल गांधी भी काफी ऊहापोह के बाद राजनीति में आएं. राजीव गांधी ने अपनी मां इंदिरा को असमय खो दिया और जब राजीव गांधी की मौत हुई तो राहुल बच्चा कहे जाने की उम्र से थोड़े ही बड़े थे. राजीव गांधी को पिता का प्यार नहीं मिला. ऐसे ही राहुल गांधी को भी पिता राजीव का प्यार नहीं मिल पाया. परिवार में उनके साथ सिर्फ मां सोनिया और बहन प्रियंका ही थे. इन दोनों के अलावा राहुल गांधी के सामने हथियारबंद सुरक्षाकर्मी और अनजाने चेहरों वाले नेताओं की फौज थी.
राजीव गांधी ने राजनीति अपनी मां से सीखी, उसी तरह जब राहुल गांधी राजनीति में उतरें तब उनकी भी गुरू के रूप में मां सोनिया ही मौजूद थीं. राहुल गांधी जब राजनीति में आएं तो भले ही विपक्ष वाले उनपर हंसते हों, उन्हें कमतर दिखाने के लिए उन्हें विभिन्न नामों से संबोधित करते हों, लेकिन 2004 में राजनीति में आने के बाद बीते 13 सालों में उन्होंने खुद को साबित किया है, इसमें कोई शक नहीं है. राहुल चाहते तो कब का देश का प्रधानमंत्री बन गए होते लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया आप खुद से पूछिए, भारत में कितने ऐसे राजनेता हैं जो यह मौका गंवाने को तैयार होंगे.
आज जब राहुल गांधी कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए हैं तो जाहिर है कि उनके सामने ढेर सारी चुनौतियां हैं. लेकिन अध्यक्ष पद पर ताजपोशी की प्रक्रिया में सामने आए गुजरात के चुनाव में राहुल गांधी ने भाजपा और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को जिस तरह घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया है, उससे यह साफ है कि राहुल को हल्के में नहीं लिया जा सकता. जाहिर है 2019 में केंद्र की सत्ता के लिए होने वाला संघर्ष शानदार होगा. जब राहुल पहली बार लोगों के बीच आए थे तो अखबारों में एक हेडलाइन समान थी, “यह तो बिल्कुल अपने पापा की तरह दिखता है”. कांग्रेसी चाहेंगे कि राहुल अपने पिता की तरह ही पार्टी के अध्यक्ष और फिर देश के प्रधानमंत्री बनें.

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।