दलितों के लिए आज ″काला दिवस″

पुडुचेरी। पुडुचेरी तथा कुड्डालोर महाधर्मप्रांत एवं अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए बने आयोग ने निश्चय किया है कि वे दलित ईसाई और दलित मुसलमानों को अनुसूचित जाति के दर्जा में अस्वीकार करने के विरोध में 10 अगस्त को ″काला दिवस″ के रूप में मनायेंगे.

पुडुचेरी में अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए बने आयोग के सचिव फा. ए. अर्पुथाराज ने सोमवार को पत्रकारों से कहा कि संविधान (अनूसूचित जाति) आदेश,1950 के अनुसार ‘कोई भी ऐसा व्यक्ति, जो हिन्दू (सिक्ख या बौद्ध) धर्म के अतिरिक्त किसी अन्य धर्म में आस्था रखता हो, को अनुसूचित जाति का सदस्य नहीं माना जायेगा. इस आदेश में संसद द्वारा 1956 में संशोधन कर दलित सिक्ख व दलित बौद्धों को भी इसमें शामिल कर दिया गया. यह साफ़ है कि इस आदेश के तहत अनुसूचित जातियों के लिए आरक्षण केवल हिन्दुओं (सिक्ख या बौद्ध दलितों सहित) को उपलब्ध है, ईसाई या मुसलमान दलितों या किसी अन्य धर्मं के दलितों को नहीं. इसका अर्थ यह है कि अनुसूचित जाति का हिन्दू केवल तब तक ही आरक्षण का लाभ ले सकता है, जब तक कि वह हिन्दू बना रहे. अगर वह अपना धर्म परिवर्तित कर लेता है, तो वह आरक्षण का पात्र नहीं रहेगा. स्पष्त:, हमारे संविधान में अनुसूचित जाति की परिभाषा केवल और केवल धर्म पर आधारित है. इसलिए इस्लाम ईसाई व अन्य धर्म मानने वाले इससे बाहर हैं. मामले को उच्च न्यायालय में भेजा गया था फिर भी इसका गठन नहीं किया गया है.

फादर ने कहा कि दलित ईसाई और दलित मुसलमान संवैधानिक अधिकार से पिछले 67 वर्षों से धर्म के आधार पर वंचित हैं. उन्होंने बतलाया कि भारतीय काथलिक धर्माध्यक्षीय सम्मेलन के अनुसूचित जाति विभाग के अध्यक्ष धर्माध्यक्ष निधिनाथन ने संबंधित क्षेत्रों, धर्मप्रांतों और संस्थानों में 10 अगस्त को ‘काला दिवस’ के रूप में मनाने का आह्वान किया है. अनुसूचित जाति और जनजाति के लिए बने आयोग के सचिव फा. ए. अर्पुथाराज ने जानकारी दी कि दलित ईसाईयों के साथ एकजुटता दिखाने के लिए बैठकें, रैलियों, प्रदर्शनों और मोमबत्ती जागरण आयोजित की जाएगी.

सेल कंपनियों की सूची में शामिल कंपनियों का गड़बड़ी से इनकार

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नई दिल्ली। सरकार की ओर से जांच के लिए सेबी के पास भेजी गयीं और कथित कर चोरी और अन्य धोखाधड़ी की जांच का सामना कर रही 331 संदिग्ध मुखौटा कंपनियों में पार्श्वनाथ डेवलपर्स, एसक्यूएस इंडिया, जे कुमार तथा प्रकाश इंडस्टरीज भी शामिल हैं. हालांकि, इन कंपनियों ने किसी प्रकार की गड़बड़ी से इनकार किया है. नियामक ने शेयर बाजारों से ऐसी 331 कंपनियों के शेयरों में कारोबार को प्रतिबंधित करने को कहा है. इनमें से कुछ में कई चर्चित घरेलू तथा विदेशी निवेशकों का पैसा लगा हैं. इस प्रकार की कुछ अन्य कंपनियों के खिलाफ कार्रवार्इ की आशंका से बाजार धारणा भी प्रभावित हुई.

नियामकीय और बाजार अधिकारियों के अनुसार, सूची में शामिल कंपनियों में से 162 के शेयरों में कारोबार पर पहले ही प्रतिबंध लगाया जा चुका है. इसके तहत इनमें महीने में एक बार कारोबार (माह के पहले सोमवार को) होगा. इसी प्रकार की कार्रवार्इ अन्य कंपनियों के खिलाफ जल्दी ही की जा सकती है. इन कंपनियों को पूंजी बाजार नियामक और शेयर बाजार के प्रतिबंध के अलावा दूसरी कार्रवार्इ का भी सामना करना पड़ सकता है, जो आयकर विभाग तथा गंभीर धोखाधड़ी जांच कार्यालय (एसएफआईओ) समेत अन्य एजेंसियों की जांच पर निर्भर करेगा.

ऋतिक रौशन ने साइन की 100 करोड़ की डील

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ऋतिक रौशन ने हाल ही में 100 करोड़ की डील साइन की है. ऋतिक अपने लाइफ स्टाइल और फिटनेस ब्रांड एचआरएक्स के जरिए इस स्टार्ट अप को प्रमोट करेंगे.

इस मौके पर पहुंचे ऋतिक ने इस पर बात करते हुए कहा,’मैं पूरी दृढ़ता के साथ स्वस्थ जीवन शैली में विश्वास रखता हूं, जो एचआरएक्स का अभिन्न अंग है. यह न सिर्फ फिट रहने के बारे में है, बल्कि यह आपकी जीवन शैली और मन व शरीर के बीच संबंध की समझ को पूरी तरफ बदल देने के बारे में है.

जिस कंपनी के साथ ऋतिक ने ये डील साइन की है उसका इरादा आने वाले 5 वर्षों में देश में 500 आउटलेट खोलने का है.

आपको बता दें कि ऋतिक ने इस ब्रांड को 2013 में शुरु किया था.

शिक्षामित्रों का मानदेय 17000 रुपये करने का फर्जी आदेश वायरल

समायोजित शिक्षामित्रों का मानदेय 17000 रुपये तय करने से संबंधित फर्जी आदेश व्हाट्सएप ग्रुप पर वायरल होने के बाद हड़कंप मच गया. मंगलवार दोपहर वायरल हुए इस आदेश में सचिव बेसिक शिक्षा परिषद संजय सिन्हा के फर्जी हस्ताक्षर हैं, जो कि समस्त बेसिक शिक्षा अधिकारी (बीएसए) को निर्देशित है. मामला सचिव तक भी पहुंचा, तब जाकर उनको इस फर्जी आदेश की जानकारी हुई. सचिव ने इस मामले में सिविल लाइंस थाने में एफआईआर दर्ज कराने के लिए तहरीर भेजी है. 25 जुलाई को सर्वोच्च अदालत के फैसले के बाद सरकार ने 1.37 लाख शिक्षा मित्रों को सहायक अध्यापक के पद से हटा दिया. इससे नाराज शिक्षामित्रों ने विद्यालयों में पठन-पाठन बंद करके प्रदेशव्यापी धरना-प्रदर्शन शुरू कर दिया था. पिछले सप्ताह शिक्षा मित्रों का प्रतिनिधिमंडल इस संबंध में लखनऊ में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से भी मिला था.

उस दौरान मुख्यमंत्री ने शिक्षा मित्रों से उनके हित में निर्णय लेने के लिए 15 दिन का वक्त मांगा था और शिक्षण कार्य पूर्व की भांति करते रहने की अपील की थी. मुख्यमंत्री के आश्वासन के बाद शिक्षामित्र विद्यालयों में विद्यार्थियों को पढ़ाने में भी जुट गए लेकिन मंगलवार को सचिव बेसिक शिक्षा परिषद संजय सिन्हा के हस्ताक्षर से जारी आदेश शिक्षा मित्रों के बीच चर्चा का विषय बन गया.

अक्षर पटेल कर सकते हैं डेब्यू, जडेजा की जगह टीम में शामिल

नियमों का उल्लंघन करने के कारण एक टेस्ट का बैन झेल रहे रविंद्र जडेजा की जगह तीसरे टेस्ट में अक्षर पटेल लेंगे. मंगलवार को इस बात की पुष्टि की गई है. पल्लेकल टेस्ट में अक्षर पटेल के खेलते हैं तो ये उनके करियर का पहला टेस्ट होगा. अब संशय इस बात पर है कि क्या कुलदीप यादव को मौका मिलेगा या अक्षर ही टीम में आएंगे.

अक्षर पटेल अभी दक्षिण अफ्रीका में हैं, वह इंडिया ए का हिस्सा हैं. उन्हें तीसरे टेस्ट से पहले श्रीलंका बुलाया गया है. आपको बता दें कि अक्षर अभी तक 30 मैच में 35 विकेट ले चुके हैं. उन्होंने भारत के लिए अपना आखिरी मैच न्यूजीलैंड के खिलाफ अक्टूबर 2016 में खेला था.

आपको बता दें कि नंबर 1 टेस्ट गेंदबाज रविंद्र जडेजा पर आईसीसी ने एक मैच का बैन लगाया है. कोलंबो टेस्ट के तीसरे दिन, जब श्रीलंका की टीम दूसरी पारी में फॉलोऑन खेलने उतरी, तो उनकी पारी के 58वें ओवर में रवींद्र जडेजा ने अपने फॉलो थ्रू में गेंद को फील्ड करके क्रीज पर मौजूद श्रीलंकाई बल्लेबाज दिमुथ करुणारत्ने पर अनावश्यक थ्रो कर दिया, जबकि बल्लेबाज ने रन लेने प्रयास भी नहीं किया था.

जडेजा को आईसीसी की धारा 2.2.8 के उल्लंघन का दोषी पाया गया है. इसका साफ मतलब यह है कि अनुचित या खतरनाक तरीके से किसी भी खिलाड़ी, खिलाड़ी के समर्थक, अंपायर या मैच रेफरी की ओर गेंद या कोई अन्य उपकरण जैसे पानी की बोतल आदि फेंकना गलत है.

इससे पहले जडेजा पर आचार संहिता की धारा- 2.2.11 के उल्लंघन के मामले में अक्टूबर 2016 में न्यूजीलैंड के खिलाफ इंदौर टेस्ट के दौरान 50 जुर्माने के साथ तीन डिमेरिट प्वाइंट लगाए गए थे. तब जडेजा को दो बार अनौपचारिक और एक आधिकारिक चेतावनी भी दी गई थी. वह चौथी बार पिच में सुरक्षित क्षेत्र में घुसे और उसे नुकसान पहुंचाया.

चीन में 6.5 तीव्रता के भूकंप से मची भारी तबाही, 100 के मारे जाने की आशंका

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बीजिंग। चीन के दक्षिण-पश्चिमी सिचुआन प्रांत में आए 6.5 तीव्रता के भूकंप से भारी तबाही मची है. 100 लोगों के मारे जाने की आशंका जताई गई है. हालांकि सरकारी टेलिविजन ने सात लोगों के मारे जाने की पुष्टि की है. मगर चीन के आपदा नियंत्रण संबंधी राष्‍ट्रीय आयोग ने भूकंप प्रभावित इलाके में रहने वाले लगभग 100 लोगों के मारे जाने की आशंका जताई है.

सरकारी समाचार एजेंसी शिन्‍हुआ के अनुसार, भूकंप से सात लोगों की मौत हुई है, जबकि 88 लोग जख्‍मी हो गए. इनमें 21 लोगों की स्थिति गंभीर है. यह भी बताया कि मारे जाने वालों में कम से कम पांच पर्यटक शामिल हैं. वहीं पीपुल्‍स डेली अखबार ने भूकंप में छह पर्यटकों समेत कुल नौ लोगों के मारे जाने और 130 से ज्‍यादा के जख्‍मी होने की बात कही है.

हालांकि चीन के नेशनल कमिशन फॉर डिजास्‍टर रिडक्‍शन ने कम से कम 100 लोगों के मारे जाने की आशंका जताई है. 2010 की जनगणना के आंकड़ों के आधार पर यहां की आबादी को देखते हुए यह बात कही गई है. सिचुआन प्रांत के जिस हिस्से में यह भूकंप आया, वह कम आबादी का क्षेत्र है. 13,000 से ज्यादा घरों को भी नुकसान पहुंचने की आशंका है.

अमेरिकी जियोलॉजिकल सर्वे के अनुसार, भूकंप का केंद्र प्रांतीय राजधानी चेंगदू से 300 किमी उत्तर में ज़मीन से दस किलोमीटर नीचे था और यह भारतीय समयानुसार मंगलवार रात करीब 1.20 पर आया.

गौरतलब है कि जिस जगह पर भूकंप आया है, 2008 में उसी के पास 8.0 तीव्रता का एक बड़ा भूकंप आया था. इसमें 87,000 लोग या तो मारे गए या फिर लापता हो गए. एक स्‍थानीय रेस्त्रां कारोबारी ने बताया कि भूकंप के झटके 2008 से ज़्यादा तीव्र थे. भूकंप का जहां केंद्र था, उसके पास ही एक नेशनल पार्क है, जो पर्यटकों के बीच काफी लोकप्रिय है. इसलिए भूकंप में कई पर्यटकों के मारे जाने या घायल होने की आशंका है.

आदिवासी दिवस पर विशेष : भारत के छले हुए लोग

9 अगस्त को प्रत्येक वर्ष आदिवासी दिवस आते ही मन में यह प्रश्न उठता है कि हम आदिवासियों को अपने देश (आजाद भारत) में अबतक क्या मिला? यदि हम आदिवासियों के मुद्दों को लेकर संविधान सभा में हुई बहस पर गौर करें तो यह स्पष्ट दिखता है कि मरंग गोमके जयपाल सिंह मुंडा आदिवासी मसले पर बहुत स्पष्ट थे. उनकी मौलिक मांग थी कि संविधान में आदिवासी शब्द को रखा जाये, अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासियों को स्वायत्तता दी जाये और लोकतांत्रिक ढांचे में आदिवासियों को पीसने के बजाय देश को उनसे लोकतंत्र सीखना चाहिए क्योंकि वे धरती पर सबसे लोकतांत्रिक लोग हैं. इस बहस के दौरान देश के प्रथम गृहमंत्री सरदार वल्लभभाई पटेल ने जयपाल सिंह मुंडा से कहा था कि आप दस वर्षों में आदिवासी शब्द को ही भूल जायेंगे. उनके कहने का तात्पर्य यह था कि भारत सरकार आदिवासियों के साथ संपूर्ण न्याय करेगी और उनकी पीड़ा हमेशा के लिए दूर हो जायेगी. यहां मौलिक प्रश्न यह है कि आज आदिवासी इलाकों में अंतहीन पीड़ा, क्रंदन और किलकारी क्यों है?

यद्यपि आजाद भारत के शासकों ने आदिवासियों के साथ न्याय करने का वादा किया था, लेकिन काम ठीक इसके विपरीत हुआ. भारतीय संविधान के मूर्त रूप लेते ही आदिवासी लोग छले गये. ब्रिटिश शासन के समय आदिवासियों के लिए अंग्रेजी में ‘अबॉरिजिनल’ शब्द का प्रयोग किया जाता था, जिसका अर्थ आदिवासी है. इसलिए जब संविधान का प्रारूप तैयार हुआ तो उसमें आदिवासियों के लिए संविधान के अनुच्छेद 13(5) में ‘अबॉरिजिनल और आदिवासी शब्द’ रखा गया था. संविधान सभा में बहस के दौरान जयपाल सिंह मुंडा ने कहा था कि हमें ‘आदिवासी’ शब्द के अलावा कुछ मंजूर नहीं होगा, क्योंकि यह हमारी पहचान का सवाल है. लेकिन, जातिवाद से ग्रसित नेताओं ने आदिवासियों के ऊपर जातिवाद को थोपते हुए संविधान में आदिवासियों को ‘जनजाति’ का दर्जा देकर उनके आदिवासी पहचान पर सीधा प्रहार किया. आजाद भारत में यह आदिवासियों के साथ सबसे बड़ा छलावा था, क्योंकि पहचान और अस्मिता की लड़ाई आदिवासियों की सबसे बड़ी लड़ाई है.

भारत में संविधान लागू होने के बाद देश के आदिवासी बहुल इलाकों में औद्योगिक विकास को गति मिली, क्योंकि ये इलाके खनिज संपदा से परिपूर्ण थे. भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू ने सोवियत रूस के विकास मॉडल को यहां लागू करते हुए आदिवासियों से आह्वान किया कि वे राष्ट्रहित के लिए बलिदान दें. आदिवासी इलाकों में डैम बनाया गया, खनन कार्य बड़े पैमाने पर शुरू हुए और बड़े-बड़े उद्योग लगाये गये. इसका हस्र यह हुआ कि आदिवासियों का बड़े पैमाने पर विस्थापन हुआ और आदिवासी इलाके में गैर-आदिवासी जनसंख्या की घुसपैठ हुई. फलस्वरूप, आदिवासी लोग अपने ही इलाकों में अल्पसंख्यक हो गये. देशभर में लगभग एक करोड़ आदिवासी विस्थापित हुए हैं. सबसे दुखद बात यह है कि आदिवासियों की जमीन को डुबाकर बिजली पैदा करने के लिए डैम का निर्माण किया गया, लेकिन आदिवासी गांवों में बिजली नहीं है. उनकी जमीन पर सिंचाई परियोजना स्थापित की गयी, लेकिन उनके खेतों में पानी नहीं है. उनके इलाके में खनन कार्य हो रहा है, लेकिन बच्चे कुपोषित हैं और उनको शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल, सड़क जैसी बुनियादी सुविधाएं नसीब नहीं हो सकी हैं. ऐसी स्थिति में सवाल उठता है कि विकास किसके लिए और किसकी कीमत पर? देश में सबसे पहले विकास परियोजनाओं का लाभ किसको मिलना चाहिए था? देश के विकास, आर्थिक तरक्की और राष्ट्रहित के नाम पर आदिवासियों के साथ सबसे ज्यादा अन्याय हुआ है.

1980 के दशक में संघ परिवार को इस बात का एहसास हुआ कि आदिवासी बहुल राज्यों में शासन करना है, तो आदिवासियों की एकता को तोड़ना होगा और धर्म आधारित विवाद इसके लिए सबसे बड़ा हथियार है. इसी आधार पर संघ परिवार ने आदिवासियों के बीच सरना और ईसाई आदिवासी नामक हथियार को खोज कर निकाला. वर्ष 2000 पहुंचते-पहुंचते संघ परिवार ने आदिवासी इलाको में अपनी मजबूत पकड़ बना ली. इसी का परिणाम है कि आज देश के आदिवासी बहुल इलाकों के अधिकतर सीट भाजपा जीत पा रही है. इन इलाकों में आदिवासी लोग अपनी मूल लड़ाई को छोड़ धर्म के विवाद में फंस कर आपस में लड़ रहे हैं, जबकि आदिवासियों को आज तक धर्म कोड नहीं मिला. यह उनके लिए एक बड़ा छलावा है.

भारतीय संविधान में आदिवासियों के संरक्षण के लिए कानून तो बनाये गये, लेकिन नीतियों को लागू नहीं किया गया. जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 को हू-ब-हू लागू किया गया, लेकिन देश के अनुसूचित क्षेत्रों में अनुच्छेद 244(1) को सही ढंग से लागू ही नहीं किया गया. इसी तरह सीएनटी-एसपीटी जैसे भूमि रक्षा कानून, वन अधिकार कानून 2006, पेसा कानून 1996 जो आदिवासियों की जमीन और जंगल पर अधिकार तथा स्वायत्तता को बरकरार रखनेवाले कानूनों को सही ढंग लागू ही नहीं किया गया. जबकि, सुप्रीम कोर्ट ने 5 जनवरी 2011 को ‘कैलास एवं अन्य बनाम महाराष्ट्र सरकार’ स्पेशल लीव पीटिशन (क्रिमिनल) सं 10367 ऑफ 2010 के मामले में फैसला देते हुए कहा था कि आदिवासी लोग ही भारत के मूलनिवासी और देश के मालिक हैं. उनके साथ देश में सबसे ज्यादा अन्याय हुआ है. अब उनके साथ और अन्याय नहीं होना चाहिए. दुर्भाग्य है कि आज भी आदिवासियों के साथ अन्याय जारी है और वे अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहे हैं.

आदिवासी अस्मिता, अबुआ दिसुम अबुआ राज और प्राकृतिक संसाधनों पर मालिकाना हक की मांग पिछले तीन सौ वर्षों से आदिवासियों के संघर्षों की मूल मांगे हैं और उसी के तहत झारखंड, छत्तीसगढ़ और तेलांगना जैसे राज्यों की मांग की गयी थी. लेकिन, सबसे आश्चर्य की बात यह है कि झारखंड जैसे राज्य में भी सिर्फ 14 वर्षों में ही आदिवासियों के हाथों से सत्ता चली गयी. राज्य में मुख्यमंत्री गैर-आदिवासी को बनाया गया और आदिवासियों के सबसे बड़े संवैधानिक संस्थान ‘आदिवासी सलाहकार परिषद’ के अध्यक्ष पद पर भी गैर-आदिवासी ही विराजमान हैं. इसके अलावा झारखंड सरकार ने स्थानीय नीति बना कर बाहरी लोगों को झारखंडी घोषित कर दिया. आदिवासियों की जमीन सुरक्षा कानून सीएनटी-एसपीटी का संशोधन किया गया. फलस्वरूप, नौकरी, जमीन और जनसंख्या सब हाथ से निकल रहा है और आदिवासी अपने ही घर में बेघर हो रहे हैं.

आज बाहरी ताकतें आदिवासियों को धर्म के नाम पर आपस में लड़वा रही हैं. वहीं, केंद्र और राज्य सरकारें आदिवासियों को अपनी मूल लड़ाई से भटकाने की कोशिश में जुटी हैं, क्योंकि उन्हें उनकी जमीन, जंगल, पहाड़, जलस्रोत और खनिज संपदा चाहिए. इसलिए आदिवासी युवाओं को समझना चाहिए कि आज भी उनकी मूल लड़ाई है आदिवासी पहचान, अस्मिता, भाषा-संस्कृति, परंपरा और स्वायत्तता को बरकरार रखना तथा जमीन, जंगल, पहाड़, जलस्रोत और खनिज संपदा पर अपना मालिकाना हक हासिल करना. क्या आदिवासी युवा फिर से उलगुलान करेंगे? आदिवासियों के लिए आदिवासी दिवस उसी दिन सार्थक होगा, जिस दिन भारत के संविधान में अनुसूचित जनजाति की जगह आदिवासी शब्द डाला जायेगा, अनुसूचित क्षेत्रों में आदिवासी स्व-शासन व्यवस्था कायम की जायेगी और आदिवासियों को प्राकृतिक संसाधनों पर मालिकाना हक दिया जायेगा.

यह लेख ग्लैडसन डुंगडुंग ने लिखा है. प्रभार: – प्रभात खबर

5 साल में क्रूज टूरिज्म को मिलेंगे 40 लाख टूरिस्ट

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सरकार का इरादा पांच साल में 40 लाख पर्यटकों को क्रूज टूरिज्म की तरफ आकर्षति करने का है. पिछलें साल यह आंकड़ा 1.80 लाख रहा है. केन्द्रीय सडक परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने यह जानकारी दी. समुद्री क्षेत्र में बड़े बड़े आलीशान जलपोतों में यात्रा करना क्रूज टूरिज्म कहलाता है. हालांकि, क्रूज टूरिज्म उद्योग भारत में माल एवं सेवाकर जीएसटी लगाये जाने को लेकर आशंकित है.

सडक परिवहन एवं नौवहन मंत्री ने यहां क्रूज टूरिज्म पर आयोजित एक कार्यक्रम में कहा कि यदि सही दिशा में कदम बढ़ाये जायें तो भारत में पर्यटकों को लेकर आने वाले जहाजों की संख्या मौजूदा 158 से बढ़कर सालाना 955 तक पहुंच सकती है. गडकरी ने कहा कि जल-विहार के पर्यटकों की संख्या बढ़ने से राजस्व लाभ 2022 तक 35,500 करोड़ रुपये तक पहुंच सकता है. पिछले साल यह आंकड़ा 700 करोड़ रुपये था.

कार्नविल यूके के चेयरमैन डेविड डिंगल ने कराधान और बंदरगाह शुल्क जैसी कुछ चिंताओं को उठाया. उन्होंने कहा कि विकसित देशों के मुकाबले यह शुल्क यहां 50 प्रतिशत तक अधिक हैं. यूके कार्नविल दुनिया में क्रूज टूरिज्म का 42 प्रतिशत हिस्सा नियंत्रित करता है. डिंगल ने कहा, भारत में क्रूज टूरिज्म से जुड़ी किसी भी गतिविधि पर कोई जीएसटी नहीं लगना चाहिये.

यह केवल धन की बात नहीं है बल्कि सैद्धांतिक तौर पर क्रूज टूरिज्म को टिकट के दाम और यात्रा के दौरान क्रूज जहाज में होने वाली बिक्री पर जीएसटी लागू नहीं होना चाहिये. इस उद्योग में ऐसा नहीं हो सकता हॉ. यह समझाने की बात है कि क्रूज टूरिज्म अंतरराष्ट्रीय समुद्री क्षेत्र में संचालित होता है. इसमें खपत का स्थान महत्वपूर्ण है, जो कि गहरा समुद्री क्षेत्र है, इसलिये इस पर जीएसटी नहीं लगना चाहिये.

अमेरिकी द्वीप गुआम पर हमले की तैयारी में उत्तर कोरिया

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यह ख़बर उत्तर कोरिया के सरकारी मीडिया से आई है. उत्तर कोरिया के सरकारी मीडिया ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रंप की धमकी के कुछ ही घंटों बाद एक सैन्य बयान जारी किया है. उत्तर कोरिया की सरकारी समाचार एजेंसी का कहना है कि गुआम पर मध्यम से लंबी दूरी के मिसाइल हमले के बारे में विचार किया जा रहा है. गुआम में अमरीकी सामरिक बमवर्षक विमानों के ठिकाने हैं. उत्तर कोरिया का यह बयान दोनों देशों के बीच ख़तरनाक तनाव को ही दर्शाता है. हाल ही में संयुक्त राष्ट्र ने उत्तर कोरिया पर और आर्थिक पाबंदी लगाई थी. दूसरी तरफ़ उत्तर कोरिया का कहना है कि यह उसकी संप्रभुता का हिंसक उल्लंघन है और इसके लिए अमरीका को क़ीमत चुकानी होगी.

बुधवार को उत्तर कोरिया की सरकारी समाचार एजेंसी केसीएनए ने कहा कि गुआम पर हमले की तैयारी का मुआयना किया गया है. केसीएनए ने कहा कि गुआम के चारों तरफ़ हमले की तैयारी है. इसमें उत्तर कोरिया में ही बनी मिसाइल ह्वॉसोंग-12 का इस्तेमाल किया जा सकता है. उत्तर कोरिया की तरफ़ से मंगलवार को जारी सैन्य बयान में इस बात का ज़िक्र किया गया था. उत्तर कोरिया का यब बयान उस ख़बर के बाद आई है कि अमरीकी सेना ने गुआम में सैन्य अभ्यास किया है. उत्तर कोरिया के इस आक्रामक बयान से स्थिति और बिगड़ गई है.उत्तर कोरिया ने पांच बार परमाणु बम का परीक्षण किया है. इसके साथ ही जुलाई में इंटरनेशनल बैलिस्टिक मिसाइल (आईसीबीएम) का भी परीक्षण किया था. दावा है कि उसकी मिसाइल की क्षमता अमरीका तक को निशाने पर लेने की है. मंगलवार को अमेरिकी मीडिया में यह रिपोर्ट छपी थी कि उत्तर कोरिया ने परमाणु हथियारों को हासिल कर लिया है और उसकी मिसाइलों में भी परमाणु हथियारों से लैस होने की क्षमता है.

वॉशिंगटन पोस्ट में एक रिपोर्ट छपी है कि उत्तर कोरिया उम्मीद से ज़्यादा तेजी से अमेरिका को निशाने पर लेने वाली परमाणु हथियारों से लैस मिसाइलों को विकसित कर रहा है. जापानी सरकार ने भी एक श्वेतपत्र जारी किया है जिसमें बताया गया है कि उसके पास संभवतः परमाणु हथियार हैं. राष्ट्रपति ट्रंप ने उत्तर कोरिया को धमकी देते हुए कहा था कि वह अमेरिका को चेताना बंद करे नहीं तो उसे ऐसे हमले का सामना करना पड़ेगा जिसे दुनिया ने कभी नहीं देखा होगा. हालांकि अमेरिकी सीनेटर जॉन मैकेन ने ट्रंप की चेतावनी पर संदेह जताया है. उन्होंने कहा कि वो इस मामले में आश्वस्त नहीं हैं कि ट्रंप ऐसा करने के लिए तैयार हैं.

दलित भाई, बहन को चाकू से गोदा

अलीगढ़। कोतवाली के गांव महगवां में दरवाजे के सामने पड़ी मिट्टी हटाने को लेकर मंगलवार को दो पक्षों में विवाद हो गया. आवेश में आए एक पक्ष ने दलित भाई-बहन को चाकू से गोद दिया. चाकू के हमले से युवक की हालत गंभीर है. उसे अलीगढ़ के प्राइवेट अस्पताल में भर्ती कराया गया है. महगवां निवासी लाल सिंह ने बताया कि उनके घर के सामने गांव के ही दबंगों ने कई दिनों से मिट्टी डाल रखी है. मंगलवार को उनके बेटे राजेंद्र उर्फ राजू ने पड़ोसियों से मिट्टी हटाने के लिए कहा तो कहासुनी हो गई. इस पर दबंगों ने राजेंद्र को जमकर मारा पीटा.

इसी बीच भाई को बचाने उनकी बेटी राजकुमारी पहुंची तो उसे भी बेरहमी से पीटा गया. भाई-बहन पर दबंगों ने ईंट, पत्थर और चाकू से भी हमला किया. इससे उनकी हालत गंभीर है. आरोपी पक्ष में एक व्यक्ति पुलिस में तैनात है, इसीलिए थाना पुलिस आरोपी पक्ष को बचाने का प्रयास कर रही है. दलित की तहरीर पर पुलिस ने इंद्रपाल, बबलू आदि के खिलाफ रिपोर्ट दर्ज कर ली.

हमले में आरोपी पक्ष की एक महिला भी थाने पहुंच गई. उसने पीड़ित पक्ष से फैसला करने के लिए आरजू मिन्नत करने लगी. कोतवाली में ही वह हमले में लाल सिंह के पैर पकड़कर बैठ गई. बोली कि अपने बेटे का इलाज कराओ, मेरा मंगलसूत्र ले जाओ पर मेरे पति के खिलाफ रिपोर्ट मत दर्ज कराओ. इलाज पर जितना खर्च होगा हम करेंगे, लेकिन फैसला कर लो. हालांकि पीड़ित परिवार समझौते के लिए तैयार नहीं हुआ.

नहीं रहे पूर्व केंद्रीय मंत्री सांवर लाल जाट

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पूर्व केंद्रीय मंत्री सांवरलाल जाट का बुधवार सुबह निधन हो गया है. सांवरलाल जाट पिछले काफी समय से बीमार थे और एम्स में भर्ती थे. कुछ दिन पहले ही उन्हें हार्ट अटैक आया था. सांवरलाल जाट मोदी सरकार में जल संसाधन राज्य मंत्री रह चुके हैं. सांवरलाल 62 वर्ष के थे, उनका जन्म 1 जनवरी 1955 को हुआ था. आपको बता दें कि जुलाई में राजस्थान की राजधानी जयपुर में बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह के कार्यक्रम में बेहोश होकर गिर पड़े थे. उनकी बिगड़ती तबीयत देखते हुए तुरंत एंबुलेंस बुलाई गई थी और सांवरलाल जाट को एसएमएस अस्पताल पहुंचाया गया.

सांवरलाल जाट अजमेर से लोकसभा सांसद थे. वे मोदी सरकार में जल संसाधन राज्य मंत्री भी रह चुके हैं. 9 नवंबर 2014 से 5 जुलाई 2016 तक उन्होंने जल संसाधन राज्य मंत्री के रूप में केंद्र में काम किया है.सांवरलाल का जन्म सन् 1955 में राजस्थान के अजमेर जिले के गोपालपुरा नामक गांव में हुआ. उन्होंने वाणिज्य में स्नातकोत्तर करने के बाद राजस्थान विश्वविद्यालय में शिक्षक का कार्य किया. वे राजस्थान के अजमेर जिले की भिनाई विधानसभा क्षेत्र से तीन बार विधायक रह चुके हैं.1993, 2003 और 2013 में वे राजस्थान सरकार में मंत्री भी रह चुके हैं. 2014 से अजमेर से लोकसभा चुनाव जीतने के बाद उन्हें मंत्री बनाया गया था, लेकिन बाद में मंत्रिमंडल में फेरबदल के दौरान हटा दिया गया.

सरकार को झकझोरने निकलेंगे लाखों मराठा

मुंबई। मराठा महारैली से आज मुंबई महाजाम से जूझ रही है. सरकारी नौकरियों और शिक्षा में 16 प्रतिशत आरक्षण के लिए मराठा समाज के लोगों के मुंबई की सड़कों पर उतरने से जगह-जगह जाम की खबरें आ रही हैं. मराठा समाज का यह मूक मोर्चा है. इसमें कोई नारेबाजी और भाषणबाजी नहीं है, ना ही इस मोर्चे में किसी राजनीतिक दल का बैनर है. बावजूद इसके मुंबई की रफ्तार थम सी गई है.

मराठा मोर्चा में शामिल होने के लिए मंगलवार से ही राज्य भर से लोग मुंबई पहुंचने शुरू हो गए थे. महाराष्ट्र के हर हिस्से से लोग मुंबई आ रहे हैं. मुंबई की तरफ आने वाले रास्तों पर बड़ी संख्या में भगवा झंडे लगाए हुए वाहन आते दिखाई दिए. मुंबई-पुणे और मुंबई-नासिक दोनों हाइवे पर मुंबई की ओर आने वाले यातायात में मंगलवार सुबह से ही रोज की अपेक्षा ज्यादा गाड़ियां दिखाई दीं. इसके अलावा मुंबई आने वाली बसों और ट्रेनों से भी लोग बड़ी संख्या में मुंबई पहुंच रहे हैं. खबर है कि मध्यप्रदेश, गुजरात, राजस्थान और अन्य प्रदेशों में बसे मराठा समाज के लोग भी मोर्चे में शामिल होने के लिए मुंबई पहुंच रहे हैं.

अहमद पटेल की जीत कांग्रेस के लिए महत्वपूर्ण

गुजरात में राज्यसभा की तीन सीटों के लिए हुए चुनाव में बीजेपी ने दो सीटों पर कब्जा कर लिया. हालांकि यहां सबसे ज्यादा चर्चा तीसरी सीट पर कांग्रेस के ‘चाणक्य’ अहमद पटेल को मिली जीत की है. राज्यसभा चुनाव की वोटिंग के बाद मंगलवार को करीब 10 घंटे के हाई-वोल्टेज ड्रामे के बाद नतीजे सामने आए, जिसमें बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को 46-46 वोट मिले, वहीं अहमद पटेल ने 44 वोटों के साथ जीत दर्ज की. राज्य की 176 सदस्यीय विधानसभा में 2 कांग्रेसी विधायकों के वोट रद्द होने के बाद जीत का आंकड़ा 43.51 पहुंच गया. ऐसे में पटेल की जीत का अंतर भले ही मामूली दिखे, लेकिन राज्य की सियासत के हिसाब से देखें तो बड़े मायने रखती है.

कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को हराने के लिए अमित शाह एंड कंपनी की तरफ से बेहद आक्रामक तैयारी दिखी. एक वक्त तो लगा कि अमित शाह ने मानो पटेल को हराने की ठान रखी है. वहीं कांग्रेस ने भी उन पर अपने विधायकों को डिगाने के लिए हर तरह के साम, दाम, दंड, भेद अपनाने के आरोप लगाए. ऐसे में चुनावी नतीजों के बाद एक बात तो साफ इन लड़ाई में कांग्रेस ही विजेता बनकर उभरी.

गुजरात में इस साल के अंत में विधानसभा चुनाव होने हैं. इसी वजह से आम तौर पर बिना किसी शोर-शराबे के निपट जाने वाले राज्यसभा चुनाव में इस बार खूब हंगामा देखने को मिला था. यहां राजनीतिक जानकार अमित शाह की इन सारी कवायद को राज्य में चुनाव से पहले कांग्रेस पर मनोवैज्ञानिक बढ़त बनाने की थी. हालांकि इस लड़ाई में कांग्रेस ही विजेता बनकर उभरी, जो उसके लिए संजीवनी जैसी है.

यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि गुजरात के कद्दावर नेताओं में शंकरसिंह वाघेला ने राज्यसभा चुनाव से ठीक पहले कांग्रेस का दामन छोड़ दिया. वाघेला की इस घोषणा के समय कांग्रेस ने इसे ज्यादा तरजीह न देते हुए कहा था कि उनके जाने से पार्टी को कोई खास नुकसान नहीं होगा. हालांकि इन चुनावों में कांग्रेस के अंदर मची फूट ने पार्टी को वाघेला कैंप की शक्ति का वक्त रहते एहसास करा दिया. ऐसे में पार्टी के पास इस नुकसान की भरपाई के लिए अब समय मिल जाएगा.

दरअसल कांग्रेस इस बार राज्य में पाटीदारों, दलितों और दूसरे पिछड़े तबकों के भीतर सरकार के प्रति असंतोष को भुनाते हुए बीजेपी को सत्ता से उखाड़ फेंकने की उम्मीद लगाए है. यहां राज्यसभा में अगर उसकी फजीहत होती, तो उसके लिए राज्य में उसके लिए विकल्प के रूप में लोगों का भरोसा जीतना थोड़ा मुश्किल हो जाता.

ऐसे में अब अहमद पटेल की इस जीत ने कांग्रेस के अंदर एक उम्मीद जरूर जगाई है, हालांकि पार्टी को गुजरात विधानसभा चुनाव में जीत के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं में इस उम्मीद को जगाने रखने और पूरी ऊर्जा से चुनाव में जुट जाने की जरूरत होगी.

‘बेटी बचाओ’ का नारा देने वाले भाजपा नेता कहां हैं? : मायावती

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नई दिल्ली। बसपा अध्यक्ष मायावती ने भारत हरियाणा सरकार और हरियाणा भाजपा के अध्यक्ष पर निशाना साधा है. हरियाणा के भाजपा अध्यक्ष के बेटे पर अपहरण और पीछा करने के मामले में कमजोर धाराएं लगाकर छोड़ देने के मामले में मायावती पीड़ित लड़की के पक्ष में आ गई हैं.

मायावती ने कहा कि हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल खट्टर ने इसे मामूली घटना बताकर रफा-दफा करने की कोशिश की है जोकि बहुत ही दुखद है यही नहीं भाजपा के बड़े-बड़े नेता भी इस जघन्य घटना पर ना केवल मौन हैं बल्कि इसका बचाव भी करने पर अमादा हैं.

मायावती ने अपने बयान में कहा कि भाजपा शासित राज्यों में दलितों, शोषितों, उपेक्षितों, पिछड़ों और मुस्लिम एवं धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ-साथ महिला उत्पीड़न व अन्याय की घटना आम बात हो गई है. भाजपा शासित राज्यों में कानून राज नहीं बचा है. हरियाणा की बीजेपी तो इन मामलों में खासतौर से बहुत ही बदनाम सरकार है.

बसपा सुप्रीमों ने कहा कि महिला उत्पीड़न व शोषण के इतने गंभीर मामले में भी बीजेपी की हरियाणा सरकार द्वारा घोर लापरवाही व पक्षपात करने की जितनी भी निन्दा की जाय वह कम है. उन्होंने कहा कि हरियाणा की वर्तमान घटना ने यह साबित कर दिया है कि उसकी सरकारों को न्याय प्रिय नहीं हैं. महिला सम्मान, बेटी बचाओ, गौरक्षा, लवजेहाद, एण्टी-रोमियों’ आदि केवल नारेबाजी व शिगुफाबाजी है, ताकि ज्यादा से ज्यादा लोगों को बहकाकर उनका वोट हासिल करके सत्ता पर कब्जा किया जा सके.  फिर उसके बाद सत्ता का हर प्रकार से दुरूपयोग करके आरएसएस के तमाम गुप्त एजेण्डों पर अमल करके देश को ’अंधकार युग’ में वापस ढकेला जा सके.

‘टॉयलेट…’ को लेकर मथुरा की गलियों में अक्षय कुमार

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नई दिल्ली। ‘टॉयलेट: एक प्रेम कथा’ का एक वीडियो रिलीज हुआ है जिसमें अक्षय कुमार बता रहे हैं कि जब उन्होंने पहली बार इस फिल्म की कहानी सुनी थी, उसी समय फैसला कर लिया था कि वे इस फिल्म को करेंगे. हाल ही में टॉयलेट… की टीम ने मथुरा की गलियों में नाम से वीडियो रिलीज किया है. जिसमें शूटिंग के दौरान की बातचीत और पूरे माहौल को दिखाया गया है, जो काफी दिलचस्प है.

अक्षय कुमार गांव के लोगों से मिले, और अपने प्यार का इजहार किया. दिलचस्प यह है कि अक्षय कुमार को देखने के लिए अपार भीड़ जुटी. अक्षय बताते हैं कि इस फिल्म की कहानी सुनकर जब टॉयलेट को लेकर मेरी सोच इतनी बदल गई तो इस फिल्म से कितने लोगों की सोच बदलेगी. यही नहीं, शूटिंग के दौरान वे मथुरा के लोगों से खूब मिले और टॉयलेट को लेकर उनकी राय भी जानी.

अक्षय कुमार और भूमि पेडनेकर की इस फिल्म को श्री नारायण सिंह ने डायरेक्ट किया है और यह 11 अगस्त को सिनेमाघरों में रिलीज होगी. फिल्म प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के स्वच्छता मिशन से प्रेरित है और फिल्म के विषय को लेकर सभी ओर से जबरदस्त समर्थन भी मिल रहा है.

झारखंड की आदिवासी खिलाड़ी सुमराई टेटे को ध्यानचंद लाइफटाइम अवार्ड

आदिवासी समुदाय से ताल्लुक रखने वाली झारखंड की हॉकी खिलाड़ी-कोच सुमराई टेटे को ध्यानचंद लाइफटाइम अवार्ड मिलने की घोषणा हो गई है. समुराई टेटे पिछले पांच सालों से इस अवार्ड की दावेदार थीं और इस घोषणा के साथ उनका इंतजार खत्म हो गया है. सुमराई हॉकी की पहली महिला खिलाड़ी हैं, जिन्हें यह अवार्ड मिला है.

समुराई से पहले सन् 2016 में झारखंड के ही सिलवानुस डुंगडुंग को इसी अवार्ड के लिए चुना गया था. डुंगडुंग 1980 ओलंपिक की उस टीम में थे जिसने अंतिम बार भारत के लिए स्वर्ण पदक जीता था. हालांकि उन्हें भी यह अवार्ड काफी देर से दिया गया. सरकार द्वारा इस महान खिलाड़ी की अनदेखी का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि जिस समय सिलवानुस डुंगडुंग को ध्यानचंद अवार्ड देने की घोषणा हुई थी, उस समय उनकी उम्र 68 साल की थी और मास्को ओलंपिक के 36 साल बीत चुके थे.

जहां तक सुमराई की बात है तो उन्होंने 1996 से 2006 तक लगातार हॉकी खेला. वह भारतीय महिला हॉकी टीम की कप्तान भी रहीं. इसके बाद वह कोच बन गईं. सुमराई को यकीन था कि एक न एक दिन उन्हें हॉकी में दिए गए योगदान के लिए जरूर सम्मानित किया जाएगा, लेकिन यह उनका भ्रम साबित होने लगा. हर बार यह पुरस्कार किसी और को मिल जाता. लेकिन इस जुझारू खिलाड़ी ने यह ठान लिया था कि जब तक उन्हें पुरस्कार नहीं मिलेगा, वह आवेदन भेजती रहेंगी. इस साल भी उन्होंने नॉमिनेशन के लिए आवेदन भेजा था जिसे आखिरकार मंजूर कर लिया गया.

गौरतलब है कि सुमराई एक दमदार खिलाड़ी रही हैं और अपने नेतृत्व में कई प्रतियोगिताएं जीती हैं. उन्होंने अपनी प्रतिभा से झारखंड का नाम भी आगे बढ़ाया.

सुप्रीम कोर्ट में बोला शिया वक्फ बोर्डः अयोध्या में ही बने राम मंदिर

नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश के शिया सेंट्रल वक्फ बोर्ड ने श्रीराम जन्मभूमि विवाद को नया मोड़ दे दिया है. अयोध्या में राम जन्मभूमि विवाद को लेकर सुप्रीम कोर्ट में 11 अगस्त से सुनवाई होनी है. शिया वक्फ बोर्ड ने अदालत में हलफनामा दायर किया है. शिया वक्फ बोर्ड ने अपने हलफनामे में कहा है कि मस्जिद को राम जन्मभूमि से थोड़ी दूर मुस्लिम बहुल इलाके में बनाया जाना चाहिए.

वक्फ बोर्ड का कहना है कि दोनों धार्मिक स्थल के पास होने से झगड़े की आशंका होगी, मंदिर और मस्जिद दोनों में लाउडस्पीकर का इस्तेमाल किया जाता है. बोर्ड ने यह भी कहा कि साल 1946 तक बाबरी मस्जिद उनके पास थी अंग्रेजों ने गलत कानून प्रक्रिया से इसे सुन्नी वक्फ बोर्ड को दे दिया था. शिया वक्फ बोर्ड ने कहा कि बाबरी मस्जिद मीर बकी ने बनवाई थी जो कि शिया था.

11 अगस्त से होगी सुनवाई सुप्रीम कोर्ट ने अयोध्या रामजन्म भूमि विवाद मामले की सुनवाई के लिए तीन न्यायाधीशों की विशेष पीठ तय कर दी है. न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा, न्यायमूर्ति अशोक भूषण और न्यायमूर्ति अब्दुल नजीर की पीठ अपीलों पर 11 अगस्त से मामले की सुनवाई करेगी. इस विशेष पीठ के गठन के बाद सात वर्षो से लंबित इस मामले में नियमित सुनवाई और जल्दी निपटारे की उम्मीद जगी है.

रामजन्म भूमि विवाद मामले में जमीन के तीन बराबर हिस्सों में बंटवारे के इलाहाबाद हाई कोर्ट के आदेश को भगवान रामलला विराजमान सहित सभी पक्षों ने सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दे रखी है. फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगा रखी है और पक्षकारों को यथास्थिति बनाए रखने के आदेश दिए हैं.

गौरतलब है कि इलाहाबाद हाई कोर्ट की तीन न्यायाधीशों की पीठ ने 30 सितंबर, 2010 को दो-एक के बहुमत से फैसला सुनाया था. बाद में सर्वोच्च न्यायालय ने इस फैसले पर अंतरिम रोक लगा दी थी. साथ ही मामला लंबित रहने तक विवादित भूमि पर यथास्थिति बनाए रखने का आदेश दिया था.

जाति-धर्म की आड़ में जनता को गुमराह कर रही है सरकार और मीडिया

14वीं लोकसभा के चुनाव में देश में लंबे-लंबे वादों से बनी मोदी सरकार तीन साल बाद भी जनता के अहम सवालों की जवाबदेही से कतरा रही है. मीडिया को अपने कंट्रोल में लेकर महत्वपूर्ण मुद्दों को दफनाया जा रहा है.

आज देश के कुछेक ईमानदार पत्रकार भी इस मुददे को उठाने से कतरा रहें है. कारण साफ है या तो उनकी हत्या कर दी जाती है या उनकी पैसों के दम पर क़लम ख़रीद ली जाती है. जिससे न चाहते हुए भी वो पंगु बन जाते है. आख़िर सत्ता का पावर कुछ ऐसा ही होता है.

आप किसी भी शहर के न्यूज़ पेपरों को उठा लीजिये रोजाना की तरह सरकार की भक्ति करते हुए दिखाई देंगे और न्यूज़ चैनलों का और भी बुरा हाल है, लगता है हम किसी लोकतांत्रिक देश में हैं ही नहीं. न्यूज़ चैनलों के हेडलाईनें सरकार की मंशा के अनुरूप लिखी जा रही है. ठीक इन्हीं कारणों से देश के महत्वपूर्ण मुद्दे जानबूझकर दफनाये जा रहे है. कभी-कभी तो ऐसा लगता है जैसे देश के विपक्ष को सांप सूंघ गया हो.

शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार व महिला सुरक्षा पर लिखना या बोलना अपनी जान जोखिम में डालने जैसा हो गया है. 14वीं लोकसभा के लिए चुनी गई सरकर अपनी कमजोरियों को छिपाने के लिए पूर्व की सरकारों का जोरदार विरोध करती रहती है. क्या सरकार के इन विरोधों के कारण देश के महत्वपूर्ण मुद्दे सुलझ जाएंगे?

बिल्कुल नहीं? जाति व धर्म की आड़ में आप जनता को बरगलाने का काम ही कर सकते है. आज सबका-साथ, सबका-विकास का नारा पूरी तरह झूठा साबित हो रहा है. सरकर के नुमाइंदे इस बात को भली भांति जानते है इसलिए देश को फ़र्जी राष्ट्रवाद की ओर ले जा रहे है. सरकार के इस रवैये से देश के दलित, आदिवासी, ओबीसी व अल्पसंख्यक समुदाय अपने आपको कमजोर समझ रहा है.

आज देश में बेरोजगारी अपने पूरे चरम पर है, रोजगार मिलना काफ़ी मुश्किल हो गया है. प्राइवेट स्वास्थ्य सेवाएं बहुजन समाज के दायरे से बहुत ऊपर निकल गयीं है और सरकारी अस्पतालों की स्वास्थ्य सेवाएं पूरी तरफ चरमराई हुईं हैं. वहीं शिक्षा का व्यापारीकरण करके दलितों, आदिवासियों, ओबीसी व अल्पसंख्यक समुदाय को शिक्षा से वंचित किया जा रहा है.

देश के सरकारी स्कूलों में सबसे ज्यादा बहुजन समाज के बच्चें पढ़ते है जिसे मिड डे मील के चक्कर में अपंग बनाया जा रहा है. जो सरकार की बहुजन समुदाय को शिक्षा से वंचित रखने की बहुत बड़ी सोची समझी रणनीति का हिस्सा मात्र है. वहीं दूसरी ओर कॉलेज व यूनिवर्सिटी में भी शिक्षा का भगवाकरण तो किया ही जा रहा है, वहीं पाठ्यक्रम भी बदले जा रहें हैं ये भी किसी आपातकाल से कम नहीं है.

ग़रीबी, महिला सुरक्षा, अपराध, कानून व्यवस्था के बारे में तो आज कोई अखबार लिखना ही नहीं चाहता है, टीवी चैनलों पर सिर्फ एक विशेष धर्म को चमकाने का लाइव टेलीकास्ट किया जा रहा है. जो भारत जैसे धर्म निरपेक्ष गणराज्य में रह रहे बहुजन समाज के बहुत बड़े हिस्से के साथ धोखा है.

देखिए, बहुजन समाज का एक छोटा सा हिस्सा होने के नाते हमनें तो अपना दृष्टिकोण आप सबसे शेयर कर दिया. अब आप सब अपने नजरिये से अच्छे-बुरे का अंदाजा लगते रहिये और प्रत्यक्ष- अप्रत्यक्ष रूप से बहुजन समाज को हर तरह से मजबूत करने की सांझा जिम्मेदारी उठाइये…

यह लेख अशोक बौद्ध ने लिखा है. अशोक बौद्ध एक समाजिक कार्यकर्ता हैं.

चोटी काटने, डायन बता कर मारने की घटनाएं दलित बस्तियों में ही क्यों ?

हिंसा, नफ़रत, भय और उपहास पर आधारित भी क्या कोई धर्म हो सकता है? जी हां! उसका नाम है हिन्दू, वैदिक, सनातनी, मनुवादी आदि. रुकिए! जनाब ये सब एक ही धर्म के नाम हैं, जी कुछ और भी हो सकते हैं. मगर इनके त्यौहार में नाचने, मुस्कुराने, हंसने या गले मिलने सबके पीछे कोई गहरी साज़िश ही रही है.

आज देश के कई हिस्सों में औरतों की चोटी काटने की घटनाएं सामने में आ रही हैं. इसी बीच एक महिला को डायन कह कर मार दिया गया. ये सब घटनाएं गरीब, दलित-आदिवासी बस्तीयों/गांवों में ही क्यों होती हैं? ये सवाल आपके मन क्यों नहीं आता? समाधान के लिए सवाल जरुरी है.

वास्तव में यह सब बहुत सोचा-समझा षडयंत्र है. ये साज़िश सीधे आपके दिमाग को कंट्रोल करने की है. आपके हाथ-पैर बांधने की जरुरत नहीं पड़ती. आपके दिमाग को दुश्मन अपनी मर्ज़ी से चलता है. ये वही हो रहा है.

सोचिए अब होगा क्या? लोग अपनी लड़कियों को घर तक सीमित कर देंगे. सीधे असर लड़कियों की शिक्षा पर असर पड़ेगा. अनपढ़ता की वजह से लोग पहले ही अपनी लड़कियों को गांव से बाहर भेजने को तैयार नहीं होते. अब अगर कुछ जागरूकता आयी थी तो ये षड़यंत्र रच दिया गया.

ये साज़िशें कोई अधार्मिक अर्थात नास्तिक लोग नहीं रचते अपितु तिकलधारी, चोटीधारी, जनेऊधारी, नीकारधारी रचते हैं ताकि दलित-आदिवासी कभी शिक्षित हो ही न पाए. देखिएगा इस घटना के बाद हज़ारों बेटियों का स्कूल/कॉलेज छुड़वा दिया जाएगा.

याद करो! जिन दिनों बच्चों को अपने एग्जाम की तैयारी करनी होती है उन्हीं दिनों तिकल-चोटी व जनेऊधारी पंडित शादी की तारीखें निकालता है. दलितों के लिए कुछ अलग देवता भी गढ़े गए हैं जैसे गोगा, बालक नाथ आदि. उनके बड़े-बड़े मेले भी उन्हीं दिनों में लगते हैं. यह सब मनु के कहने के अनुसार हो रहा है कि दलित-आदिवासी शिक्षा से दूर रहे.

कहते हैं कि मन्त्रमुग्ध करके कोई चोटी काट ले जाता है. ऐसे लोगों को सरहद पर भेजिए. जहां चीन शंकर के हिमालय की चोटियों पर काट रहा है. बकवास है, कुलबुलाहट है, नहीं सहन कर पा रहे कि कल जो चारपाई पर नहीं बैठते अब वो अधिकारी की कुर्सी पर बैठकर शासन का हिस्सा बनने जा रहे हैं.

इसमें कुछ गुमराह दलित औरतें और महन्त-नुमा लोग भी शामिल हैं. वास्तव में ये मज़ारों और पंडितों के एजेंट हैं जिन्हें नहीं पता कि वो क्या कर रहे हैं. ये स्वयं चोटी काटते हैं और भीड़ में शोर मचा देते हैं. इसके लिए इन्हे कुछ पैसे या दूसरे लालच मिलते होंगे. ऐसा करके ये बाकि मासूम लोगों को फांस लेते हैं.

आप स्वयं सोचिए! आपने कब तक हिन्दू-धर्म को पालना है? धर्म लिखते हुए भी अपने आप पर गुस्सा आता है कि किस प्रकार की नीच, साज़िशी व हिंसक सोच को मैं धर्म कहने को मज़बूर हूं. इन तमाम साज़िशों को समझते हुए अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचिए.

 

       

यह लेख दर्शन ‘रत्न’ रावण ने लिखा है.