प्रबुद्ध वर्ग सम्मेलन में क्या बोलीं बहनजी, यहां पढ़िए पूरा भाषण

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लखनऊ सहित उत्तर प्रदेश के तमाम ज़िलों से आये हुये बी.एस.पी. संगठन व प्रबुद्ध वर्ग में से विशेषकर ब्राह्मण समाज के पार्टी के सभी छोटे-बड़े पदाधिकारी, कार्यकर्तागण एवं महिलायें तथा मीडिया बन्धुओं। सबसे पहले मैं बी.एस.पी. के राष्ट्रीय महासचिव व राज्यसभा सांसद श्री सतीश चन्द्र मिश्र एवं उनकी पूरी टीम का व साथ ही प्रबुद्ध वर्ग में से ख़ासकर ब्राह्मण समाज के पार्टी के छोटे-बड़े पदाधिकारियों का तथा पार्टी संगठन के भी सभी मुख्य सेक्टर प्रभारियों एवं ज़िला अध्यक्षों आदि का भी हार्दिक आभार प्रकट करती हूँ जिन्होंने आपसी तालमेल व सूझबूझ के साथ बीजेपी व इनकी सरकार की हर चुनौती एवं हथकण्डों आदि का मुकाबला करके यहाँ पहले चरण के तहत् प्रबुद्ध समाज के किये गये अपने सभी ज़िला स्तरीय कार्यक्रमों को ज़बरदस्त कामयाब बनाया है और इन कार्यक्रमों में मेरे दिशा-निर्देंशन में श्री एस.सी. मिश्र ने प्रबुद्ध वर्ग में से अपने ब्राह्मण समाज के लोगों को भी दलितों की तरह कभी भी ना गुमराह होने वाला तथा ना ही किसी के बहकावे में व प्रलोभन (लालच) आदि में भी आने वाला समाज बनाने का हर सम्भव पूरा-पूरा प्रयास किया है और यदि वास्तव में ऐसा सम्भव हो जाता है तो फिर हमारी पार्टी को यहाँ आगामी विधानसभा आमचुनाव में सन् 2007 की तरह अपनी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने से कोई भी ताकत रोक नहीं सकती है।

हालाँकि इस मामले में मुझे अपने दलित वर्ग के लोगों पर शुरू से ही यह गर्व रहा है कि इन्होंने बिना गुमराह व बहकावे आदि में आये हुये पार्टी के कठिन से कठिन दौर में भी अपनी पार्टी का कभी भी साथ नहीं छोड़ा है अर्थात् ये लोग एक मज़बूत चट्टान की तरह हमेशा अपनी पार्टी के साथ में खड़े रहे है।

साथ ही, मैं यहाँ यह भी उम्मीद करती हूँ कि बी.एस.पी. से जुड़े अन्य सभी वर्गों के लोग भी इनकी तरह अब आगे कभी भी गुमराह नहीं होंगे तथा ना ही किसी के बहकावे में व ना ही किसी के प्रलोभन आदि में भी आयेंगे जबकि इनको यह मालूम होना चाहिये कि पिछले कुछ वर्षां में चाहे यहाँ समाजवादी पार्टी की सरकार रही हो या अब वर्तमान में बीजेपी की सरकार चल रही हो, लेकिन इन सभी सरकारों की रही जातिवादी, संकीर्ण व पूँजीवादी सोच होने के कारण यहाँ सर्वसमाज में से विशेषकर ग़रीबों, मज़दूरों, कर्मचारियों, किसानों, छोटे व्यापारियों एवं अन्य मेहनतकशः लोगों के साथ-साथ दलितों, पिछड़ों, अकलियतों व प्रबुद्ध वर्ग में से ब्राह्मण समाज के लोगों का भी हर स्तर पर काफी ज्यादा शोषण एवं उत्पीड़न आदि हुआ है जो अभी भी जारी है, जिससे दुःखी होकर अब ये ब्राह्मण समाज के लोग भी प्रदेश के नगर-नगर, शहर-शहर, गाँव-गाँव, गली-गली, कुचो व चौराहों आदि में खुलकर यह कहने लगे है कि इन सभी पार्टियों की सरकारों की तुलना में बी.एस.पी. का शासनकाल हर मामले में व हर स्तर पर कई गुणा बेहतर रहा है लेकिन हमने बीजेपी के प्रलोभन भरे वायदों के बहकावे में आकर इस बार इनकी पूर्ण बहुमत की सरकार बनाके बहुत बड़ी गलती की है।

जबकि बी.एस.पी. की रही सरकार ने ब्राह्मण समाज के लोगों की अपनी सुरक्षा, सम्मान व तरक्की आदि के मामले में हर स्तर पर अनेको ऐतिहासिक कार्य किये है। साथ ही, इन पर कोई भी जुल्म-ज्यादती आदि नहीं होने दी है तथा इनकी रोटी-रोज़ी का भी पूरा-पूरा ध्यान रखा है। इसके साथ-साथ हमने अपनी पार्टी संगठन में व चुनाव में टिकट देने तथा सरकार बनने पर मंत्री आदि बनाने के मामले में भी इनको उचित प्रतिनिधित्व दिया है और इन सब बातो का एहसास कराने तथा इन्हें फिर से बीजेपी व अन्य पार्टियों के भी बहकावे में नहीं आने तथा इनके विकास एवं उत्थान आदि के लिए भी इन्हें पुनः पार्टी में जोड़ने के लिए बी.एस.पी. द्वारा व मेरे दिशा-निर्देशन में, पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव एवं राज्यसभा सांसद श्री सतीश चन्द्र मिश्र के नेतृत्व में दिनांक 23 जुलाई सन् 2021 से प्रबुद्ध वर्गों की विचार संगोष्ठी करने का कार्यक्रम अयोध्या से शुरू किया गया है और पहले चरण का यह कार्यक्रम प्रदेश के लगभग सभी ज़िलो में काफी सफल रहा है, जिसका आज मेरे द्वारा समापन भी किया जा रहा है।

वैसे पार्टी के इस पहले चरण के कार्यक्रम को विफल करने के लिए बीजेपी व इनकी सरकार ने हर प्रकार के साम, दाम, दण्ड, भेद आदि हथकण्डे भी खूब इस्तेमाल किये है जिसमें इनको ज़्यादातर निराशा ही हाथ लगी है। साथ ही, यहाँ मैं यह भी कहना चाहती हूँ कि श्री एस. सी. मिश्र ने पूरे प्रदेश में अपने हर कार्यक्रम के दौरान पार्टी की सरकार बनने पर विशेषकर ब्राह्मण समाज के हित एवं कल्याण को लेकर जो कुछ भी कहा है तो उस पर आप लोगों को जरूर विश्वास करना चाहिये। और आज मैं खुद भी प्रबुद्ध वर्ग में से ब्राह्मण समाज के लोगों को भी यह वायदा करती व विश्वास भी दिलाना चाहती हूँ कि उत्तर प्रदेश में इस बार बी.एस.पी. की सरकार बनने पर अन्य सभी समाज के लोगों के साथ-साथ ब्राह्मण समाज की भी सुरक्षा, सम्मान व तरक्की आदि का सन् 2007 में बी.एस.पी. की पूर्ण बहुमत की रही सरकार की तरह ही इनका पुनः पूरा-पूरा ध्यान रखा जायेगा तथा इनको किसी भी मामले में निराश नहीं होने दिया जायेगा।

इतना ही नहीं बल्कि इनके साथ व अन्य समाज के लोगों के साथ भी संकीर्ण मानसिकता व जातिगत एवं राजनैतिक द्वेष की भावना से जो भी गलत कार्रवाई की गयी है तो फिर बी.एस.पी. की सरकार बनने पर उन सभी मामलों की उच्च-स्तरीय जाँच कराई जायेगी। जाँच में दोषी पाये गये अधिकारियों के विरूद्ध सख्त कार्रवाई की जायेगी तथा पीड़ितों को न्याय व उनके आर्थिक हुये नुकसान की भी भरपाई की जायेगी जिसके लिए अब इन लोगों को भी यहाँ आगामी विधानसभा आमचुनाव में सन् 2007 की तरह ही बी.एस.पी. से पुनः हर स्तर पर पूरी ईमानदारी व निष्ठा से खुलकर जुड़ना होगा। और इसके लिए श्री एस. सी. मिश्र ने भी पार्टी के हर कार्यक्रम में विशेषकर अपने ब्राह्मण समाज को बी.एस.पी. से जोड़ने का पूरा-पूरा प्रयास किया है जिसमें हमें काफी हद तक सफलता भी मिलती दिखाई दे रही है और अब दूसरे चरण के तहत् पार्टी के मण्डल व विधानसभा स्तर पर बनाये गये सभी पदाधिकारियों को शहरों व गाँवों आदि में जाकर अपने ब्राह्मण समाज को युद्ध स्तर पर बी.एस.पी. में जोड़ना है अर्थात् अब इन्हें भी हर स्तर पर पार्टी को सहयोग देकर फिर से यहाँ सन् 2007 की तरह ही बी.एस.पी. की पुनः पूर्ण बहुमत की सरकार बनाना है। इसके साथ ही अब इनको दूसरे चरण के तहत् प्रत्येक विधानसभा के शहरों, कस्बो व गाँवों आदि में जाकर पहले अपने विशेषकर ब्राह्मण समाज के कम से कम एक हजार सक्रिय कार्यकर्ता तैयार करना है तथा उन्हें बी.एस.पी. का सदस्य भी जरूर बनाना है और साथ ही उनकी सूची भी बनानी है। सबसे पहले इनको रिजर्व सीटों पर कार्य करना है। उसके बाद फिर इनको सामान्य सीटों में भी यह कार्य करना है जिनका फिर बन्द जगह पर श्री एस.सी. मिश्र व ब्राह्मण समाज के अन्य वरिष्ठ पदाधिकारियों द्वारा भी कैडर कैम्प लिया जायेगा ताकि फिर वे अपनी-अपनी विधानसभा में विशेषकर अपने ब्राह्मण समाज को बी.एस.पी. से सही से जोड़ सके।

इसके साथ-साथ पहले चरण के तहत् शहरों में प्रबुद्ध वर्ग की महिलाओं को भी तैयार किया जा रहा है जिनकी जिम्मेदारी हमने श्री एस.सी. मिश्र की पत्नी श्रीमति कल्पना मिश्रा की पूरी टीम को सौंप दी गई है। इसी प्रकार पूरे प्रदेश में पहले चरण के तहत् खासकर रिजर्व सीटों को तैयार कर रहे पदाधिकारियों को भी बी.एस.पी. व मुस्लिम समाज एवं क्षत्रीय समाज के लोगों को भी पूरे जी-जान से उन्हें जोड़ने में लग जाना है क्योंकि अब चुनाव का समय बहुत कम रह गया है। और अब मैं इस मौके़ पर भी मीडिया बन्धुओं को अपनी पार्टी के सम्बन्ध में यह भी कहना ज़रूरी समझती हूँ कि बी.एस.पी. ’’सर्वजन हिताय व सर्वजन सुखाय’’ की सोच व सिद्धान्तों पर चलने वाली देश की अकेली एक ऐसी पार्टी हैं जिसकी कथनी व करनी में कभी भी कोई अन्तर नहीं होता है, क्योंकि बी.एस.पी. जो कहती है तो उस पर अपनी पूरी ईमानदारी व निष्ठा से अमल भी करती है। यही बी.एस.पी. की खास राजनीतिक पहचान भी है और इसी आधार पर यहाँ उत्तर प्रदेश में हमने अपनी चार बार बनी सरकार भी चलाकर दिखाई है और इस दौरान हमने सभी जाति व धर्म के लोगों की सुरक्षा, सम्मान एवं तरक्की आदि पर पूरा-पूरा ध्यान दिया है। इतना ही नहीं बल्कि हमारी पार्टी ने दूसरी पार्टियों की तरह ना तो कभी हवा-हवाई बातें की हैं तथा ना ही चुनाव के समय में किस्म-किस्म के प्रलोभन भरे आश्वासन आदि देकर जनता को छलने का भी प्रयास किया है।

इसके साथ ही हमारी पार्टी की चारों रही सरकारों ने हमेशा यहाँ सर्वसमाज के हित एवं कल्याण में, ज़मीनी तौर पर ही कार्य करके दिखाया है और इस सन्दर्भ में वैसे आप लोगों को यह मालूम है कि सन् 2007 में जब दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों, मुस्लिम एवं अन्य धार्मिक अल्पसंख्यकों के साथ-साथ अपरकास्ट समाज में से खासकर ब्राह्मण समाज के सहयोग से बी.एस.पी. की पूर्ण बहुमत की यहाँ प्रदेश में पहली बार सरकार बनी थी तो तब उनके विश्वास पर पूरी तरह से खरा उतरते हुए सरकार बनते ही हमने बिना माँग किए ही ’’सामान्य वर्ग’’ के लिए यानि कि अपरकास्ट समाज के लिए सरकारी भर्ती पर वर्षों से लगे प्रतिबन्ध को तत्काल हटाकर उन्हें बड़ी संख्या में स्थाई सरकारी नौकरी दिये जाने की भी व्यवस्था सुनिश्चित की। इसके साथ ही, पुलिस विभाग में दो लाख से अधिक नए पद सृजित करके उन पर नियुक्ति करने का भी ऐतिहासिक काम किया गया, जिससे सभी वर्गां व धर्मां के लोगों को काफी लाभ हुआ है। इसके अलावा, प्रदेश के सभी गाँवों के लिए एक सरकारी सफाई कर्मचारी नियुक्त करने की नई सरकारी व्यवस्था लागू करके एक मुश्त लगभग 1 लाख 10 हजार स्थाई नियुक्तियाँ पंचायत विभाग में की गई, जो यह भी एक अति-महत्वपूर्ण उठाया गया कदम था। साथ ही, विशेष अभियान के तहत् सरकार के अधिकांषः विभागों में रिक्त पड़े पदों को भी भरा गया। इस प्रकार से कुल मिलाकर बी.एस.पी. की सरकार में किसी भी जाति व धर्म के लोगों के साथ कभी भी हमने कोई जुल्म-ज़्यादती, अन्याय-अत्याचार व उनका शोषण आदि भी नहीं होने दिया है। साथ ही प्रदेश में हर स्तर पर ’’कानून द्वारा कानून का राज’’ भी स्थापित किया गया। इतना ही नहीं बल्कि अपरकास्ट समाज में से ब्राह्मण समाज को भी अन्य समाज की तरह ही पार्टी व सरकार में हर स्तर पर उचित भागीदारी देकर उनको पूरा-पूरा मान-सम्मान एवं सुरक्षा आदि प्रदान की गई तथा जिस पर कभी कोई समझौता नहीं किया गया। लेकिन ठीक इसके विपरीत, सन् 2012 में सत्ता परिवर्तन होने के बाद जब सपा की सरकार बनी तो तब उस पार्टी की कथनी व करनी में अन्तर होने तथा जातिगत द्वेष एवं दुर्भावना आदि होने के कारण सर्वसमाज में से ब्राह्मण समाज को भी काफी बड़े पैमाने पर उत्पीड़न व शोषण आदि का शिकार होना पड़ा है, जिससे दुःखी होकर फिर ये लोग सपा सरकार से मुक्ति पाने के लिए भाजपा की बड़ी-बड़ी बातों के बहकावे व प्रलोभन आदि में आ गए और उनको अपना वोट देकर उनकी भारी बहुमत की सरकार बड़ी उम्मीदों के साथ बनवा दी, जिसपर यह सरकार ‘‘खरी‘‘ नहीं उतरी है।

और अब इस भाजपा सरकार के शासनकाल में भी उन पर जुल्म-ज्यादती, अन्याय- अत्याचार, शोषण व द्वेषपूर्ण कार्रवाई आदि होनी कम नहीं हुई हैं बल्कि उनके विरूद्ध दिल दहला देने वाली ऐसी घटनाएं भी हुई हैं जो देशभर में चर्चा का विषय रहा है जिससे अब प्रबुद्ध वर्ग मे से विशेषकर ब्राह्मण समाज के लोग भाजपा सरकार की ऐसी गलत नीतियों व उनकी जातिवादी एवं द्वेषपूर्ण कार्यशैली आदि से काफी ज्यादा दुःखी व त्रस्त ही नहीं है बल्कि काफी ज्यादा आक्रोशित (गुस्से में) भी हैं जिसे ध्यान में रखकर ही फिर बी.एस.पी. ने इनकी सुरक्षा, सम्मान व तरक्की आदि को लेकर पहले चरण के तहत् उत्तर प्रदेश के लगभग सभी जिलां में विचार-संगोष्ठी के कार्यक्रम आयोजित किये है जो बीजेपी व उनकी सरकारी बाधाओं के बावजूद भी जबरदस्त सफल रहे है।

इतना ही नहीं बल्कि इन सभी कार्यक्रमों में इस वर्ग के लोगों की लगातार उत्साहपूर्ण व धमाकेदार हुई भागीदारी ने सभी बी.एस.पी. विरोधी पार्टियों को काफी चिन्तित व बेचैन भी कर दिया है जिसके कारण ही अब बीजेपी भी यहाँ बी.एस.पी. की तर्ज़ पर प्रबुद्ध वर्ग के तथा महिलाओं आदि के भी सम्मेलन कर रहे है। इसके साथ ही अपनी आदत से मजबूर अब ये लोग इस वर्ग को गुमराह करने के लिए रोज़ाना नये-नये हथकण्डे व षडयंत्र आदि भी इस्तेमाल करने में लग गये हैं, किन्तु प्रबुद्ध वर्ग व इनमें भी विशेषकर ब्राह्मण समाज के लोग अब सत्ता परिवर्तन के लिए यानि कि फिर से यहाँ बी.एस.पी. की पूर्ण बहुमत की सरकार बनाने के लिए काफी हद तक अपना मन बना चुके है जिसे रोकना अब किसी के लिए भी संभव नहीं लगता है चाहे अब ये पार्टियाँ बी.एस.पी. की कितनी भी नकल क्यों ना कर ले।

और अब मैं पहले चरण के इस कार्यक्रम के समापन पर तथा दूसरे चरण के कार्यक्रम की भी शुरूवात करने के मौके पर मीडिया के ज़रिये प्रदेश के सभी वर्गों व धर्मों के लोगों से यही अपील करती हूँ कि वे अपने व अपने परिवार के हित एवं कल्याण के लिए तथा उनके जान-माल व ईमान की सुरक्षा एवं मान-सम्मान आदि के साथ-साथ बेहतर भविष्य के लिए भी दलित समाज की तरह व उनसे प्रेरणा लेकर पूरे तन, मन, धन से बी.एस.पी. से ज़रूर जुड़े जो यह दलित समाज मान्यवर श्री कांशीराम जी को अपना ख़ास आदर्श मानकर विरोधी पार्टियों के किसी भी प्रलोभन व बहकावे आदि में कभी भटके बिना तथा उनके सभी साम, दाम, दण्ड, भेद आदि हथकण्डों का भी काफी डटकर सामना करते हुए परमपूज्य बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर की एकमात्र अनुयाई पार्टी व उनके मजबूत नेतृत्व के साथ हमेशा एक चट्टान की तरह खड़े रहे हैं, जो यह हमारी पार्टी के लिए काफी गर्व की भी बात है।

इसके साथ ही अब मेरा अपरकास्ट में से विशेषकर ब्राह्मण समाज के लोगों से भी यह वादा है कि प्रदेश में बी.एस.पी. की सरकार बनने पर यहाँ दलितों, आदिवासियों, पिछड़ों, मुस्लिम व अन्य अकलियतों आदि की तरह ही इनके भी हित व कल्याण, मान-सम्मान, ईमान, सुरक्षा एवं रोटी-रोजी आदि का भी पूरा-पूरा ध्यान ज़रूर रखा जाएगा। इसके इलावा यहाँ मैं किसानों के सम्बन्ध में मीडिया को यह भी अवगत कराना चाहती हूँ कि बीजेपी ने चुनाव के पहले वोट लेने के लिये किसानों की आमदनी दोगुना करने का वादा किया था। वह तो नहीं किया बल्कि उनके ऊपर तीन काले क़ानून लाद कर उन्हें उनकी ज़मीन से ही वंचित करने का काम किया गया। आज लगभग एक वर्ष से पूरे देश का किसान आंदोलित है तथा बहुजन समाज पार्टी भी संसद से लेकर बाहर भी उनके इस आंदोलन के साथ में खड़ी है। इस आन्दोलन के दौरान करीब 500 से ज्यादा किसानों की मृत्यु हो गई है, परन्तु सरकार को भी कोई फर्क नहीं पड़ रहा है बल्कि अभी हाल ही में हरियाणा सरकार द्वारा यह आदेश दिया गया कि इन आंदोलनकारियों के सर लाठी से फोड़ दो, जिसके बाद वहाँ के डीएम ने किसानों के सर पर लाठियां बरसाईं, जिससे एक किसान की मृत्यु भी हो गई और फिर वहाँ के सीएम ने इस कार्य को सही ठहराया।

इतना ही नहीं बल्कि बीजेपी ने तो सिर्फ झूठा वादा किया था कि हम किसानों की आय दोगुनी करेंगे लेकिन हमने तो ऐसा करके दिखाया था और इस मामले में किसानों को यह मालूम है कि सन् 2007 में किसानों को गन्ने का मूल्य सिर्फ 125 रुपये प्रति कुन्तल मिलता था। हमने उसे हर साल बढ़ाया है और जब हमने सरकार छोड़ी थी तो तब उसका मूल्य दो गुना हो चुका था अर्थात् हमने उसे 250 रुपए प्रति कुन्तल कर दिया था। परन्तु ठीक इसके विपरीत सन् 2012 से 2017 के दौरान जबकि सपा की सरकार थी तो पूरे 5 वर्ष के कार्यकाल में केवल एक बार मामूली सी बढ़ोत्तरी की गयी थी और जहाँ तक भारतीय जनता पार्टी का सवाल है तो उसने तो 2017 से 2021 के बीच में यानि कि अपने पूरे पाँच साल में एक भी रूपया नहीं बढ़ाया है जबकि झूठे वादे करके इस पार्टी ने किसानों का वोट लेते वक्त यह कहा था कि हम किसानों की आमदनी दो गुना बढ़ा देंगे।

इसके साथ ही आज मैं फिर से किसानों को यह भी विश्वास दिलाना चाहती हूँ कि यूपी में बी.एस.पी. की सरकार बनने पर किसानों को उनकी उपज का वाजिब मूल्य दिया जायेगा। साथ ही केन्द्र सरकार द्वारा किसानों पर जबरन थोपे गये तीन कृषि कानूनों को यहाँ कतई भी लागू नहीं किया जायेगा। इसके साथ ही मैंने दिनांक 30 जुलाई, 2021 को वित्तविहीन प्रबन्धक एवं शिक्षक महासभा उत्तर प्रदेश के प्रतिनिधिमण्डल से मिलने पर व इनकी सभी मांगों को सुनने के बाद तथा उनकी सभी समस्याओं को गम्भीरता से लेते हुये हमने इस मामले में यह भी तय किया है कि सन् 2022 में बी.एस.पी. की सरकार बनने पर तुरन्त एक आयोग गठित किया जायेगा और इस आयोग के माध्यम से अति शीघ्र रिपोर्ट लेकर इनकी सभी जायज़ मांगों का स्थायी हल निकाला जायेगा और ख़ासतौर से जो पात्र शिक्षक एवं कर्मचारी इन स्कूलों में कार्य कर रहे है तो उन्हें सम्मानजनक मानदेय देने की भी व्यवस्था की जायेगी तथा इनकी सेवा नियमावली भी बनायी जायेगी।

इसके अलावा मुझे संस्कृत विद्यालयों के सम्बन्ध में भी यह मालूम हुआ है कि उत्तर प्रदेश में जो सरकारी संस्कृत विद्यालय हैं उनको भारतीय जनता पार्टी की सरकार द्वारा सरकारी धनराशि उपलब्ध नहीं कराई जा रही है, जिस कारण अब लगभग 50 प्रतिशत संस्कृत विद्यालय बंद हो गये हैं तथा बाकी विद्यालय भी बन्दी के कगार पर हैं। लेकिन बहुजन समाज पार्टी की सरकार बनने पर फिर इन सभी संस्कृत विद्यालयों को सरकारी धनराशि उपलब्ध करायी जायेगी और उन्हे पुनः संचालित किया जाएगा तथा अध्यापकों व अन्य स्टाफ के खाली पड़े सभी पदों को भी यथाषीघ्र भरा जायेगा।

 साथ ही, मुझे कल मीडिया के ज़रिये यह भी मालूम हुआ है कि आर.एस.एस. प्रमुख श्री मोहन भागवत ने कहा है कि ‘‘हिन्दुओं व मुसलमानों के पूर्वज एक ही है‘‘ लेकिन इस बारे में मैं उनसे यह पूछना चाहती हूँ कि यदि हिन्दुओं व मुसलमानों के पूर्वज एक है तो फिर आर.एस.एस. व इनकी बीजेपी यहाँ हर स्तर पर मुसलमानों के साथ सौतेला रवैया क्यों अपना रही है? यह भी सोचने की बात है। इसके साथ ही मुसलमानों का वोट लेकर फिर इनको अपनी सरकार में तबाह व बर्बाद करने के मामले में भी सपा व कांग्रेस पार्टी भी कोई कम नहीं है। खासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश का मेरठ-मलियाना काण्ड व मुजफ्फरनगर काण्ड को यहाँ के मुस्लिम लोगों को जल्दी से भूलना नहीं चाहिये। यह भी मेरी इनसे खास अपील है। और इस मामले में वैसे यह बात भी सर्वविदित है कि बी.एस.पी. जो कहती है तो वह करके भी दिखाती हैं।

अब मैं मीडिया बन्धुओं को अपने खुद के बारे में भी यह बताना चाहती हूँ कि मैं दिनांक 2 फरवरी सन् 2021 से लगातार यहाँ लखनऊ में स्थित/मौजूद हूँ और आएदिन मैं पार्टी की छोटी-बड़ी बैठके लगातार यहाँ ले रही हूँ। मीडिया आदि में भी मैं बीच-बीच में जरूरत के अनुसार अपनी पार्टी का स्टैण्ड रखती रही हूँ, लेकिन फिर भी यहाँ ख़ासकर जातिवादी मानसिकता वाला मीडिया मेरे बारे में अक्सर यही चर्चा करता रहता है कि बी.एस.पी. प्रमुख अभी बाहर क्यों नहीं निकल रही हैं जबकि वास्तव में इसका मुख्य कारण कोरोना नियमों की आड़ में भाजपा की सरकारी मशीनरी द्वारा अपनी पार्टी के लोगों पर जान-बूझकर षडयंत्र के तहत् की जाने वाली उनकी जबरदस्ती की कार्रवाई से उन्हें बचाना है जैसा कि पार्टी के किये गये प्रबुद्ध वर्ग के कार्यक्रमों में हमें ऐसा काफी कुछ होते हुये देखने के लिए मिला है।

इतना ही नहीं बल्कि पार्टी से जुड़े प्रबुद्ध वर्ग के लोगों को बहुत कम संख्या में इन कार्यक्रमों मे इन्हें आने दिया है। लेकिन वहीं दूसरी तरफ मेरे ऐसे कार्यक्रम में इनके लाख रोकने के बावजूद भी पार्टी के लोग बड़ी संख्या में आने से कतई भी रूकने वाले नहीं है और फिर यही होता कि हमारी पार्टी के लोगों पर अब तक काफी भारी तादाद् में एफ.आई.आर. दर्ज हो जाती और ऐसा हो जाने पर फिर हमारी पार्टी के ये लोग चुनाव के समय में अपने-अपने क्षेत्र के पार्टी के उम्मीदवारों को चुनाव जिताने की बजाय बल्कि वे ज्यादातर कोर्ट-कचेहरी व थानों आदि में ही अपना समय बर्बाद करते रहते, जिसे खास ध्यान में रखकर ही फिर मजबूरी में मुझे अपनी पार्टी की चुनावी तैयारी अपने लखनऊ पार्टी प्रदेश कार्यालय से या फिर अपने निवास स्थान पर बने पार्टी के कैम्प कार्यालय से ही करनी पड़ रही है और इसीलिए ही आज प्रबुद्ध वर्ग का समापन कार्यक्रम भी हमें मजबूरी में पार्टी के प्रदेश कार्यालय में रखना पड़ा है।

लेकिन चुनाव घोषित होने पर फिर यह सरकार, पार्टी के प्रोग्राम मे हमारे लोगों के आने की संख्या पर जल्दी से रोक नहीं लगा सकती है क्योंकि ऐसा किये जाने पर फिर सभी विपक्षी पार्टियाँ चुनाव आयोग में जाकर इसकी शिकायत कर सकती है अर्थात् फिर ये लोग भीड़ को आसानी से रोक नहीं सकते है। इस प्रकार इन सब बातों को ध्यान मे रखकर हमें चुनाव घोषित होने से पहले अब बहुत ही संभलकर चलना पड़ रहा है। साथ ही अब मैं आप लोगों को यह भी बताना चाहती हूँ कि अगले महीने 9 अक्टूबर को बी.एस.पी. के जन्मदाता एवं संस्थापक मान्यवर श्री कांशीराम जी की पुण्यतिथि है और आप लोगों को यह भी मालूम है कि हमारी पार्टी की रही सरकार ने इनके आदर-सम्मान में व इनके नाम पर यहाँ प्रदेश की राजधानी लखनऊ में बड़ा भारी स्मारक स्थल भी बनाया है तथा पिछले कई वर्षो से इस मौके पर आप लोग यहाँ लखनऊ आकर इनको अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित नहीं कर पा रहे हैं बल्कि इसके स्थान पर आप लोग लखनऊ मण्डल को छोड़कर बाकी मण्डलों में, मण्डल स्तर पर विचार-संगोष्ठी के जरिये इनको अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित कर रहे है। लेकिन आप लोगों के विशेष आग्रह पर इस बार आप लोग पूरे प्रदेश से यहाँ लखनऊ आकर मान्यवर श्री कांशीराम जी को अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करेंगे। आप लोगों के साथ-साथ फिर मैं खुद भी उस दिन मान्यवर श्री कांशीराम जी के स्मारक स्थल पर पहुँचकर उनको अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करूँगी तथा आप लोगों का भी आभार प्रकट करूँगी।

कहने का तात्पर्य यह है कि इस बार आप लोग पूर्व की तरह अपने-अपने मण्डल में इनकी पुण्यतिथि का कार्यक्रम नहीं रखेंगे बल्कि आप लोग प्रातः 8 बजे से ही लखनऊ के स्मारक स्थल पर पहुँच कर इनको अपने श्रद्धा-सुमन अर्पित करेंगे। साथ ही आप लोग यहाँ अपने आने के दौरान् अपने खाने का भी खुद ही प्रबन्ध करके लायेंगे। इसके बाद अर्थात् श्रद्धा-सुमन अर्पित करने के बाद फिर आप लोग अनुशासित तरीके से अपने-अपने क्षेत्रों में वापिस चले जायेंगे। पार्टी के जिम्मेवार लोग इसके लिए इनकी पूरी-पूरी मदद भी करेंगे।

लेकिन लखनऊ में आते व वापिस जाते समय भी पार्टी के लोगों को कोरोना नियमों का पालन करना भी बहुत जरूरी है। वैसे भी अब कुछ नहीं कहा जा सकता है कि पूरी दुनिया में व अपने भारत देश में भी कब ओर नई बीमारी आ जाये। लेकिन कुदरत से तो हम यही प्रार्थना करते है कि अब कोरोना की तरह आगे कोई भी नई बीमारी ना आये। हाँलाकि अब तो वैसे भी किसी का कोई भरोसा नहीं है कि कब कौन स्वस्थ्य व्यक्ति भी अचानक दुनिया से चला जाये, जैसा कि अभी हाल ही में एक युवा व स्वास्थ्य के मामले में एकदम स्वस्थ्य फिल्म कलाकार का अचानक मौत के मुँह में चले जाना हमें देखने को मिला है। ऐसे हालात में अब हमें कोरोना जैसी महामारी से बचने के लिए सरकारी नियमों का पालन करना बहुत जरूरी है। इसलिए 9 अक्टूबर को लखनऊ में पार्टी के लोग मास्क लगाकर ही आयेंगे। वैसे इस सन्दर्भ में ओर भी जरूरी दिशा निर्देश देने के लिए मैंने प्रदेश के सभी मण्डलों के पार्टी संगठन के केवल मुख्य सेक्टर प्रभारियों की जो पूरे मण्डल को देख रहे है उनकी तथा सभी 75 ज़िला अध्यक्षों की भी कल प्रातः 11 बजे से यहाँ प्रदेश कार्यालय में अति जरूरी बैठक भी बुलाई है जिसको मैं खुद ही लेने वाली हूँ। और अब मैं पहले चरण के तहत् प्रदेश के लगभग सभी जिलों में प्रबुद्ध वर्ग के किये गये कार्यक्रमों का जो जबरदस्त सफल रहे हैं। इसके पहले चरण का समापन करते हुये अपनी बात को यहीं विराम देती हूँ।

लेकिन इससे पहले मैं यह भी आप लोगों को पूरा भरोसा व विश्वास दिलाना चाहती हूँ कि यदि प्रदेश के सर्वसमाज के लोगां ने विरोधी पार्टियों के बहकावे में ना आकर फिर से यहाँ सन् 2007 की तरह ही बी.एस.पी. की पूर्ण बहुमत की सरकार बना दी तो तब फिर यहाँ हर मामले में व हर स्तर पर सर्वजन हिताय व सर्वजन सुखाय की नीति के तहत ही सरकार चलाकर केवल दलितों, आदिवासियो, अन्य पिछड़ों व मुस्लिम व अन्य अकलियतों का ही नहीं बल्कि अपरकास्ट समाज का व उसमें से भी खासकर ब्राह्यण समाज की सुरक्षा, सम्मान व तरक्की आदि का भी खास ख्याल रखा जाएगा तथा उनके साथ किसी भी प्रकार की जुल्म-ज्यादती आदि नहीं होने दी जाएगी।

जहाँ तक महिलाओं की सुरक्षा व सम्मान की बात है, जो बहुत बड़ी तादाद में वे यहाँ आयी हुई हैं, लेकिन चाहे पिछली सपा सरकार हो या फिर वर्तमान में भाजपा की सरकार इनका दिन ढलने के बाद घर से बाहर निकलना सुरक्षित नहीं माना जाता है लेकिन सरकार द्वारा प्रायोजित ’भाभीजी’ के माध्यम से यह विज्ञापित किया जा रहा है व हवा बनाने का प्रयास जारी है कि वर्तमान सरकार में महिलाएं सुरक्षित हैं जबकि कडवी हकीकत सबको पता है। इसीलिए एक नहीं कितनी ही भाभियों को ये लोग लेकर घूम लें किन्तु अब महिलाएं इनके चक्कर व बहकावे में आने वाली नहीं हैं। इसके साथ ही मैं मीडिया बन्धुओं व आप सबको यह भी विश्वास दिलाना चाहती हँं कि मेरी पूर्व की रही चारों सरकारों में ख़ास तौर से दलित, आदिवासी व अन्य पिछड़ें वर्ग में समय-समय में जन्मे महान संतों, गूरुओं व महापुरुषों जिन्होंने इस देश में सामाजिक परिवर्तन के लिए अपनी पूरी-पूरी जिन्दगी समर्पित की और अब वे हमारे बीच में नहीं रहे हैं, वे हमारे संत, गुरु किसी जाति व धर्म के खिलाफ नहीं थे बल्कि वे देश में गैर-बराबरी वाली जो सामाजिक व्यवस्था है उसको बदलकर यहाँ मानवतावादी समतामूलक समाज व्यवस्था बनाना चाहते थे और आज उन्ही के बताए हुए रास्तों पर चलकर बहुजन समाज पार्टी इस कार्य में लगी हुई है।

पूरे देश में हम लोग समतामूलक समाज बनाने का प्रयास कर रहे हैं और इसीलिए हमारी पार्टी कोई एक जाति विशेष की नहीं है, कोई धर्म विशेष की पार्टी नहीं है, बल्कि सर्वसमाज की पार्टी है, तो जो ऐसे महान संतों, गुरुओं व महापुरुषों के आदर-सम्मान में हमारी चार बार की रही सरकारों के दौरान हमने दिल्ली के नजदीक नोएडा में तथा उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में जो ज़रूरी थे वे स्थल, स्मारक, संग्रहालय पार्क व मूर्ति आदि स्थापित किए हैं तथा इस सम्बंध में जो मुझे इनके आदर-सम्मान में जो करना था वह सब मैंने कर दिया है। अब कोई भी नया निर्माण या मूर्तियाँ आदि स्थापित करने की फिर से कोई जरूरत नहीं रही है। जितना मुझे करना था मैंने वह ठोक के काफी कर दिया है। कई गुणा ज्यादा उनको आदर-सम्मान देने का काम मैंने कर दिया है। अब जब आगे सरकार बनेगी तब केवल उनके रख-रखाव का ही ध्यान रखा जाएगा। कहने का तात्पर्य यह है कि अब जब आगे यूपी में पाँचवीं बार बी.एस.पी. की सरकार बनेगी तब मेरी पूरी ताकत अब स्मारक, संग्रहालय पार्क व मूर्ति आदि बनाने में नहीं लगेगी बल्कि मेरी पूरी ताकत उत्तर प्रदेश की जो मौजूदा तस्वीर है उसको बदलने में ही लगेगी ताकि पूरा देश ये कहे पूरी दुनिया यह कहे कि शासन हो तो बी.एस.पी. की तरह शासन होना चाहीए। बच्चा-बच्चा यह कहे कि बहुजन समाज पार्टी की मुखिया ने उत्तर प्रदेश की तस्वीर बदल दी है। मेरी पूरी ताकत उत्तर प्रदेश की तस्वीर बदलने में ही लगेगी।

साथ ही, मैं यहाँ सभी धर्मों के लोगों को यह भी कहना चाहती हूँ बल्कि विश्वास दिलाना चाहती हूँ कि अगर वे लोग भी चाहते हैं कि उनके धर्म के भी महान संतों-गुरुओं आदि को भी यहाँ पूरा-पूरा आदर-सम्मान मिले तो उनकी भी धार्मिक भावानाओं को पूरा सम्मान जरूर दिया जाएगा। दलितों, आदिवासियों व अन्य पिछड़ें वर्ग में जन्मे महान सुतों, गुरुओं व महापुरुषों के आदर-सम्मान देने का काम तो मैंने पूरा कर दिया है तथा अन्य लोग भी चाहेंगे तो उनकी भी भावनाओं का जरूर सम्मान किया जायेगा। अन्त में सामाजिक परिवर्तन के लिए अपना सारा जीवन समर्पित करने वाले तमाम संतों, गुरुओं व महापुरुषों को नमन् करते हुए अपनी बात यहीं समाप्त करती हूँ। जय भीम व जय भारत

जारीकर्ता : बी.एस.पी. राज्य कार्यालय उ.प्र. 12 माल एवेन्यू, लखनऊ

बाबासाहेब के संपर्क में 6 सालों तक रहने वाले एल.आर बाली से जानिए बाबासाहेब की अनसुनी कहानी

एल. आर. बाली यानी लाहौरी राम बाली को आप भीम पत्रिका के संपादक के रूप में जानते हैं। लेकिन असल में वह एक संस्थान हैं। 91 साल के बाली जी पिछले 50 से ज्यादा सालों से ‘भीम पत्रिका’ प्रकाशित कर रहे हैं। उन्होंने RPI के नेता के रूप में काम किया है। आज हम जो बाबासाहेब के लिखे को हर भाषा में पढ़ सकते हैं, (अम्बेडकर वांग्मय), जिसने करोड़ो लोगों को अम्बेडकरवादी बनाया, उसको सरकार से प्रकाशित करवाने के लिए आंदोलन करने वाले शख्स का नाम L.R Bali ही है। आपने ‘रंगीला गाँधी’ किताब का नाम सुना होगा, उसके लेखक भी बाली जी ही हैं। बाबासाहेब के आखिरी सालों में 6 वर्षों तक उनके संपर्क में रहें। हाल ही में अपने जालंधर दौरे के दौरान उनका इंटरव्यू किया। लिंक पर जाकर आप भी देखिये, यह इंटरव्यू-

सी-वोटर सर्वे को लेकर बहनजी ने बोला जवाबी हमला, उड़ाई सर्वे की धज्जियां

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 साल 2022 में पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनाव को लेकर एबीपी न्यूज के सी- वोटर के सर्वे को लेकर बहस छिड़ गई है। तमाम लोग इस सर्वे पर सवाल उठा रहे हैं। दरअसल अगले साल उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, गोवा और मणिपुर में चुनाव होने हैं। इस चुनावों को लेकर किये गए सर्वे में उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और गोवा में एक बार फिर से भाजपा शासन की वापसी की बात कही जा रही है। तो पंजाब में आम आदमी पार्टी की सरकार बनने की बात कही जा रही है।

खासकर उत्तर प्रदेश के सर्वे में जिस तरह भाजपा की फिर से वापसी की बात हो रही है, और बसपा को एकदम पीछे धकेल कर सिर्फ 12-16 सीटें ही दी गई है, इससे राजनीतिक बहस तेज हो गई है। खुद बसपा प्रमुख मायावती ने इस मामले में सामने आकर एक प्रेस रिलिज जारी किया है और सर्वे की धज्जियां उड़ा दी है।

मीडिया को जारी प्रेस विज्ञप्ति में बसपा की राष्ट्रीय अध्यक्ष मायावती ने कहा है कि – “कोरोना प्रकोप और अर्थव्यवस्था की सन 1991 जैसी बदहाली के कारण जब देश में महंगाई, गरीबी और बेरोजगारी के कारण आम जनता त्रस्त है, औऱ भाजपा के खिलाफ रोष है। एक हिन्दी चैनल द्वारा यूपी में इस बार विधानसभा के आमचुनाव में भाजपा को पिछली बार के 40 प्रतिशत से अधिक वोट दिखाने का प्री-पोल सर्वे प्रायोजित ही नही, बल्कि भ्रमित करने वाला है।

सन् 2007 में बीएसपी के पक्ष में जबरदस्त माहौल होने के बावजूद हर प्री-पोल सर्वे पक्षपाती तौर पर बी.एस.पी के सरकार बनाने की बात कबूल कर लेने के बजाय केवल सिंगिल लार्जेस्ट पार्टी बनकर उभरने की ही बात कर रहा था, जबकि रिजल्ट आने पर बी.एस.पी की पूर्ण बहुमत की सरकार बनी थी। लेकिन बी.एस.पी. के लोग पहले से ही इस प्रकार के षड्यंत्रों का सामना करने के लिए तैयार हैं तथा इसके बहकावे में आने वाला नहीं है। बल्कि इस सर्वे की चुनौती को स्वीकार करते हुए अब और भी ज्यादा जिद, जोश, मेहनत व हिम्म से काम करेंगे।”

निश्चित तौर पर जब चुनाव को लेकर न तो अंतिम तौर पर गठबंधन की स्थिति साफ है और न ही उम्मीदवारों के टिकट फाइनल हुए हैं, ऐसे में इस तरह के सर्वे निश्चित तौर पर भ्रम फैलाने की कोशिश के अलावा कुछ नहीं हैं।

अमेरिकी अम्बेडकरवादी का कमाल, बाबासाहेब की किताबों का बना डाला ऑडियो बुक

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दुनिया भर में फैले अम्बेडकरवादी अपने-अपने तरीके से बाबासाहेब के मिशन को लोगों तक पहुंचाने में लगे हैं। किताबों के जरिए बाबासाहेब के मिशन का प्रचार-प्रसार करने के बाद बदले वक्त में नई पीढ़ी के अम्बेडकर अनुयायियों ने नई तकनीक का इस्तेमाल कर बाबासाहेब के मिशन को लोगों तक पहुंचाने में जुटे हैं। तेलंगाना के रहने वाले सिद्धार्थ वेलिचेरला, जो फिलहाल अमेरिका के लॉस वेगास शहर में रह रहे हैं, उन्होंने बाबासाहेब की दो किताबों को मिलाकर एक ऑडियो बुक बनाया है। युवा अम्बेडकरवादी सिद्धार्थ ने जो काम किया है, उसे जानिए। देखिए यह वीडियो-

पुलिस के खिलाफ इलाहाबाद में सड़क पर सेहुरा के ग्रामवासी

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उत्तर प्रदेश के प्रयागराज (इलाहाबाद) के बारा तहसील के अंतर्गत आने वाले सेहुरा गांव के ग्राम प्रधान रज्जन कोल की गिरफ्तारी का मामला तूल पकड़ता जा रहा है। ग्राम प्रधान की गिरफ्तारी के विरोध में सेहुड़ा गाँव के ग्रामवासी लगातार धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। धरना स्थल पत्थर गिरजा सिविल लाइन, प्रयागराज में धरना पर सैकड़ों ग्रामवासी बैठे रहे और ग्राम प्रधान की गिरफ्तारी की मांग कर रहे हैं। ग्रामवासियों का आरोप है कि ग्राम प्रधान को फर्जी मुकदमे में फंसाया गया है। ग्रामवासियों की मांग है कि इस मामले में एसओ व सीओ बारा के खिलाफ उच्चस्तरीय जांच की जाए।

ग्रामवासियों के धरना को देखते हुए धरनास्थल पर जिलाधिकारी के प्रतिनिधि के रूप में अपर नगर मजिस्ट्रेट पहुंचे। अपर नगर मजिस्ट्रेट से घटनाक्रम का ब्यौरा देते हुए ग्राम वासियो ने पूरे मामले की जानकारी दी। ग्रामवासियों का कहना था कि “हमारे गांव के लोकप्रिय ग्राम प्रधान को फंसाया जा रहा है। उनका कहना है कि जब सेहुड़ा गांव में रात घुस आए संदिग्ध व्यक्ति को गांव से बाहर ले जाने के लिए 112 नम्बर पर फ़ोन करके पुलिस से मदद मांगी गई तो 112 नम्बर पुलिस आई भी लेकिन संदिग्ध व्यक्ति को ले जाने से साफ़ इंकार कर दिया। जिस पर ग्रामवासी गुस्से में आ गए और नाराज़ होने लगे।  क्योंकि ग्रामवासी उस संदिग्ध व्यक्ति से अपने महिलाओं, बच्चों व मवेशियों की सुरक्षा को लेकर बहुत डरे हुए थे।”

ग्रामवासियों का आरोप है कि उनके बार बार आग्रह पर पुलिस संदिग्ध व्यक्ति को थाने ले गई। आरोप है कि हल्का दरोगा अजीत कुमार ने ग्रामीणों को पूछताछ के लिए थाने बुलाया और जब ग्रामीण थाने पर गए तो बिना किसी चेतावनी के उनपर बर्बर लाठीचार्ज किया गया, जिसमें महिलाओं सहित कई लोगों को चोटें आई। साथ ही ग्राम प्रधान रज्जन कोल और उनके छोटे भाई अर्जुन कोल थाने के अंदर बुलाकर बंद कर दिया गया। ग्रामीणों का आरोप है कि ग्राम प्रधान रज्जन कोल उनके छोटे भाई अर्जुन कोल, बीडीसी के पति श्याम मोहन पाल, राजू कुशवाहा, सुरेश वर्मा पर फर्जी मुकदमा दर्ज कर लिया गया है। ग्राम प्रधान रज्जन कोल को जेल भेज दिया, जो पूरी तरह से अन्याय है। ग्राम वासियों ने कहा हम जिलाधिकारी महोदय प्रयागराज से मांग करते कि एक उच्च स्तरीय समिति बनाकर निष्पक्षता से जाँच करवाएं और ग्रामीणों में व्याप्त भय के वातावरण को दूर करते हुए कानून का राज स्थापित करें।

ग्रामीणों का यह भी आरोप है कि जब सेहुड़ा ग्राम वासी अपनी बात शान्तिपूर्ण व लोकतांत्रिक तरीके से प्रयागराज जिलाधिकारी कार्यालय पर कहने के लिए आ रहे थे तो बारा व घुरपुर पुलिस ने उनकी गाड़ियों को रोका? उन्हें जबरदस्ती वापस उनके गांव क्यों ले जाया गया। ग्रामवासियों का कहना है बारा पुलिस ने सेहुड़ा ग्राम को चारों तरफ़ घेर रखा है और ग्रामीणों को जरूरी व जीवनोपयोगी सामान लिए घर से बाहर नहीं जाने दे रही है। धरनास्थल पर सेहुड़ा बारा के शुभम कोल, अनिल, बब्बू साथी शांति देवी, विभा, सोना देवी, मालती देवी, गेंदा कली, बृजेश आदिवासी, पंचम लाल, सुनील, पुष्पराज, सुनीता देवी, शुशीला, लालजी, जोखू, उमाशंकर रैदास, बीरबल चौहान, और इलाहाबाद नागरिक समाज से डॉ कमल उसरी, सुभाष पाण्डेय, एडवोकेट माता प्रसाद, एड चंद्र पाल, मनीष सिन्हा, रिशेश्वर उपाध्याय, विनोद तिवारी, गायत्री गांगुली, अनिल वर्मा, सुनील मौर्य, बाबू लाल, अशोक, सोनू यादव, नसीम, अखिल, सुमित कुमार, प्रदीप ओबामा, आर ए पाल इत्यादि शामिल रहें। अर्जुन कोल, उमा कोल, राजबहादुर, मीना देवी, सुंदरी इत्यादि कई लोगों को पुलिस ने रास्ते में ही रोक कर वापस भेज दिया गया।


रिपोर्ट- अंकित तिवारी, प्रयागराज

इस शहर में बाबासाहेब के कदम पड़े तो अम्बेडकरवादियों ने बना डाला अम्बेडकर भवन

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 पंजाब के जालंधर शहर में बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर साल 1951 के अक्टूबर महीने में आए थे। पंजाब के अम्बेडकरवादियों ने पंजाब की इस भूमि को अपने लिए पवित्र माना और जिस जगह बाबासाहेब आंबेडकर आए थे, वहां अम्बेडकर भवन बना दिया। जानिए, इसकी पूरी कहानी-

 

पंजाब के बसपा प्रदेश अध्यक्ष का एक्सक्लूसिव इंटरव्यू

पंजाब में साल 2022 में विधानसभा चुनाव होने हैं। इस चुनाव में बसपा और शिरोमणि अकाली दल के बीच गठबंधन हुआ है। बहुजन समाज पार्टी ने खुद को चुनाव में झोंक दिया है और पार्टी कार्यकर्ता से लेकर पार्टी के पदाधिकारी तक सभी बसपा-अकाली गठबंधन को जीताने के लिए दिन रात लगे हैं। दलित दस्तक के संपादक अशोक दास ने पंजाब बसपा के अध्यक्ष जसवीर सिंह गढ़ी का इंटरव्यू लिया। आप भी देखिए, क्या कह रहे हैं बसपा के पंजाब प्रदेश अध्यक्ष-

 

बाबासाहेब ने किया था पंजाब में तीन दिन का एतिहासिक दौरा, जानिए पूरी कहानी

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बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर ने सन् 1951 के अक्टूबर महीने में तीनदिवसीय पंजाब का दौरा किया। वह राजनैतिक दौरे पर थे। इस दौरान उन्होंने तीन शहरों में भाषण दिया, जहां लोगों ने उनका भव्य स्वागत किया। क्या है वो कहानी, देखिए इस वीडियो में-

दलित-आदिवासी साहित्य और साहित्यकारों से दिल्ली विश्वविद्यालय को क्यों है चिढ़?

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चाहे सरकार हो या संस्थान, जब सत्ता बदलती है तो व्यवस्था के रंग भी बदलने लगते हैं। सत्ताधारी हर चीज अपने हिसाब से चलाना चाहता है, फिर चाहे वह सही हो या फिर गलत। दिल्ली युनिवर्सिटी ने हाल ही में एक ऐसा फैसला लिया है, जिससे एकेडमिक जगत में हंगामा खड़ा हो गया है। बुद्धिजीवि वर्ग दिल्ली विश्वविद्यालय को लानत भेज रहा है। हुआ यह है कि डीयू की ओवरसाइट कमेटी ने जानी-मानी लेखिका महाश्वेता देवी की शार्ट स्टोरी को अंग्रेजी के सिलेबस से हटा दिया गया है। इसके साथ ही दलित समाज के भी दो लेखकों की रचनाओं को सिलेबस से हटा दिया गया है। ओवरसीज कमेटी (ओसी) निगरानी समिति ने जिन दो दलित लेखकों की रचनाओं को सिलेबस से हटाया है, उनके नाम बामा और सुखरथारिनी हैं, जबकि इनकी जगह “उच्च जाति की लेखिका रमाबाई” की रचनाओं को शामिल किया गया है। जबकि महाश्वेता देवी की जिस रचना को सिलेबस से हटाया गया है, उस रचना का नाम द्रौपदी है, जो कि एक आदिवासी महिला की कहानी है। यह स्टोरी सिलेबस में 1999 से ही पढ़ाई जा रही थी।

बुधवार 25 अगस्त को एकेडमिक काउंसिल की हुई मीटिंग में काउंसिल के 15 सदस्यों ने इसको लेकर अपना विरोध दर्ज कराया है। इन सदस्यों ने ओवरसीज कमेटी के काम करने के तरीके पर असहमति दर्ज कराई। साथ ही आरोप लगाया है कि सेमेस्टर फाइव में अंग्रेजी पाठ्यक्रमों को लेकर काफी बर्बरता बरती गई है। एकेडमिक काउंसिल के सदस्यों ने आरोप लगाया कि अचानक ही अंग्रेजी विभाग को इन लेखकों की रचनाओं को हटाने को कहा और इसकी कोई वजह भी नहीं बताई। ऐसा तब है जब महाश्वेता देवी को साहित्य एकेडमी अवार्ड, ज्ञानपीठ अवार्ड औऱ पद्म विभूषण अवार्ड मिल चुका है।

 एकेडमिक काउंसिल के सदस्यों ने आरोप लगाया है कि ओसी यानी निगरानी समिति ने हमेशा से दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और यौन अल्पसंख्यकों के प्रतिनिधित्व के खिलाफ पूर्वाग्रह दिखाया है। पाठ्यक्रम से ऐसी सभी आवाजों को हटाने के ओवरसीज कमेटी के प्रयासों से यह स्पष्ट है। दरअसल ओवरसीज कमेटी में दलित या आदिवासी समुदाय से कोई सदस्य नहीं है। जो इस मुद्दे पर कुछ संवेदनशीलता ला सकते हैं।

इस पूरे विवाद पर ओसी यानी ओवरसीज कमेटी के अध्यक्ष एम के पंडित का तर्क है कि जब भी पाठ्यक्रमों में से कुछ हटता है तो हमेशा असहमति होती है। यह एक प्रक्रिया है। हमारे यहां सिर्फ एक लेखक नहीं है; ऐसे कई लेखक हैं जिन्हें पढ़ाया जाना चाहिए। जातिवाद के आरोपों पर उन्होंने कहा कि “मैं लेखकों की जाति नहीं जानता। मैं जातिवाद में विश्वास नहीं करता। मैं भारतीयों को अलग-अलग जातियों के रूप में नहीं देखता।”

निश्चित तौर पर एम के पंडित से इसी तर्क की उम्मीद की जा सकती है, क्योंकि न तो वह भेदभाव के आरोप को स्वीकार करेंगे, और न ही जातिवाद के, लेकिन एकेडमिक काउंसिल के जिन 15 सदस्यों ने यह तमाम आरोप लगाए हैं, आखिर उसे कैसे खारिज किया जा सकता है? एम के पंडित चाहें जो कहें, दलित-पिछड़े समाज को लेकर दिल्ली युनिवर्सिटी का जातिवादी रवैया कई मौकों पर सामने आ चुका है। दिल्ली युनिवर्सिटी के हिन्दी विभाग में विभागाध्यक्ष के पद पर दलित समाज के प्रोफेसर श्योराज सिंह बेचैन की नियुक्ति को लेकर दलित समाज को आंदोलन तक करना पड़ा था। यह तब था जब वो इस पद के सही हकदार थे। सवाल है कि आखिर दिल्ली विश्वविद्यालय को दलित शोषित समाज के शिक्षकों और उनके विषयों को उठाने वाले पाठ्यक्रम से क्या दिक्कत है?

पुरातत्व विभाग को मिला वह स्तूप, जिसमें बुद्ध की चिता की लकड़ी की राख को रखा गया था

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उत्तर प्रदेश के गोरखपुर से सटा चौरी चौरा का नाम अपने आंदोलन के लिए इतिहास में दर्ज है। बुद्ध की परिनिर्वाण भूमि कुशीनगर के समीप यह ऐसा क्षेत्र है, जहां बुद्ध ने अपने का आखिरी वक्त बिताया। ताजा खबर यह है कि स्थानीय पुरातत्व विभाग ने हाल ही में किये अपने सर्वे में उस स्तूप को ढूंढ़ निकाला है, जिसमें भगवान बुद्ध की चिता की लकड़ी की राख को रखा गया था। दरअसल पुरातत्व विभाग के सर्वे में बुधवार 25 अगस्त को तहसील क्षेत्र के ब्रह्मपुर ब्लॉकके गोरसैरा गांव में 2 हजार साल पुराना स्तूप मिला है।

क्षेत्रीय पुरातत्व अधिकारी नरसिंह त्यागी व उनकी टीम ने यह सर्वे किया, जिसमें यह ऐतिहासिक स्तूप सामने आया। पुरातत्व अधिकारियों के मुताबिक यह कुषाण कालीन है। पुरातत्व अधिकारियों का दावा है कि सर्वे में मिला स्तूप भगवान बुद्ध के उस प्रसिद्ध स्तूप का शेष है, जिसमें बुद्ध की चिता की राख को रखा गया था।

पुरातत्व अधिकारियों का कहना है कि बाद में हिन्दू धर्मावलंबियों ने तेरहवीं शताब्दी के आसपास इस स्तूप के ऊपर शिव मंदिर का निर्माण करा दिया। यहीं एक और स्तूप भी है, उस पर भी लाल बलुए प्रस्तर पर निर्मित शिवलिंग स्थापित कर दिया गया है। स्थानीय लोगों के मुताबिक ब्रह्मपुर क्षेत्र के कुछ गाँव पुरातात्विक महत्व से जुड़े हुए हैं।

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फोटो क्रेडिट- हिन्दुस्तान, न्यूज सोर्स- लाइव हिन्दुस्तान.कॉम

दलित समाज की बेटी बनी मिस इंडिया

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 इंदौर की मूक बधिर छात्रा वर्षा डोंगरे ने ‘मिस इंडिया अवार्ड’ हासिल कर कीर्तिमान रच दिया है। 5 अगस्त को उत्तरप्रदेश के आगरा में आयोजित सामान्य प्रतिभागियों की ‘स्टार लाइन मिस इंडिया कांटेस्ट’ में एक हजार प्रतियोगी को पीछे छोड़ते हुए वर्षा ने यह अवार्ड हासिल किया। इस उपलब्धि के बाद से ही वर्षा डोंगरे का नाम चर्चा है। वर्षा की यह जीत कई मायने में अनोखी है। दरअसल वर्षा बचपन से ही मूक-बधिर हैं। यानी वह बोल और सुन नहीं सकती। इस आयोजन में वर्षा अकेली ऐसी मूक बधिर थी, जो सामान्य प्रतियोगियों में शामिल हुई थी। वर्षा की सफलता ने एक इतिहास रच दिया है। वर्षा इससे पहले मूक बधिरों का मिस एमपी अवार्ड जीत चुकी हैं। एक खास बात यह भी है कि वर्षा दलित समाज की बेटी हैं।

हालांकि वर्षा की इस सफलता पर मनुवादी मीडिया में सन्नाटा पसरा है। सोशल मीडिया पर बहुजन समाज द्वारा संचालित यू-ट्यूबर्स और वेबसाइट में तो वर्षा छाई रहीं, लेकिन एक मूक-बधिर लड़की की ऐतिहासिक सफलता पर कथित मुख्यधारा की मीडिया को जितना जश्न मनाना चाहिए था, वैसा नहीं हुआ। हालांकि वर्षा के सपने आसमान जैसे ऊंचे हैं। वर्षा फिलहाल बीकॉम सेकंड ईयर में पढ़ रही हैं।

वर्षा की यह सफलता आसान नहीं रही। वर्षा इस मुकाम तक बहुत मुश्किल और संघर्ष से पहुंची है। वर्षा के माता-पिता और बहन भी मूक बधिर हैं। इस कारण वर्षा की परवरिश आम बच्चों जैसी नहीं हुई। बल्कि मुश्किलों ने बचपन में ही वर्षा का दामन थाम लिया था। वर्षा ने इन मुश्किलों से घबराने की बजाय, इनसे दोस्ती कर ली और अपनी जीवटता से इस मकाम को हासिल करने में सफल रही।

वर्षा की जीवटता और अपने लक्ष्य के प्रति जिद्दी होने का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि वर्षा ने 13 अगस्त को ‘विश्व अंगदान दिवस’ के मौके पर मृत्यु पश्चात अंगदान देने की घोषणा की है। वर्षा कहना है, भले ही मैं मूक-बधिर हूं, लेकिन मेरी मौत के बाद मेरी किडनी, आंखें व अन्य अंग किसी के काम आ सकें, इससे बड़ी दौलत मेरे लिए और कुछ नहीं हो सकती।

मिस इंडिया बनने के बाद वर्षा का सपना ‘मिस यूनिवर्स’ बनने का है। खबर है कि इंदौर के कलेक्टर ने वर्षा को भरोसा दिलाया है कि ‘मिस यूनिवर्स’ की तैयारी के लिए उसे सामाजिक न्याय विभाग द्वारा मदद की जाएगी। तो वहीं वर्षा के परिवार ने उसके ‘मिस यूनिवर्स’ की तैयारियों के लिए लोगों से अपील की `है कि वे उसे आर्थिक मदद करें।

जानिए कौन थी डॉ. गेल ओमवेट, जिनकी मृत्यु पर शोक मना रहा है बहुजन समाज

 डॉ. गेल ओमवेट (Dr. Gail Omvedt) नहीं रहीं। आज 25 अगस्त को उनका परिनिर्वाण हो गया। 81 साल की उम्र में महाराष्ट्र के कासेगांव में उनका निधन हुआ, जहां वह अपने पति भरत पाटंकर और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ रहती थीं। गेल ओमवेट के निधन के बाद यूं तो देश भर में उदासी है, और तमाम आम और खास लोगों ने उन्हें याद किया है, लेकिन दलित-बहुजन समाज और आंबेडकरी-फुले मूवमेंट से जुड़े लोगों के लिए गेल ओमवेट का जाना एक बड़े झटके की तरह है।

इसकी एक जायज वजह भी है। अमेरिका में जन्मी अमेरिकी नागरिक गेल ओमवेट 1978 के दौर में एक शोध के सिलसिले में भारत आईं। फुले-अम्बेडकरी विचारधारा ने उनपर इतना प्रभाव डाला कि फिर वो यहीं की होकर रह गईं। उन्होंने जीवन का बड़ा हिस्सा एक भारतीय नागरिक और यहां के दलित-उत्पीडित लोगों की आवाज उठाने वाली एक विदुषी के रूप मे जिया। उन्होंने दलितों, आदिवासियों के हक में मजबूती से आवाज उठाई। स्त्री मुक्ति आंदोलन और श्रमिक आंदोलन में सक्रिय रहीं। उन्होंने बुद्ध, फुले, आंबेडकर, मार्क्स और स्त्री मुक्तिवादि विचारक और संतों के विचार को एक साथ जिया।

उन्होंने न सिर्फ भारत के वंचितों और पीड़ितों के पक्ष में अपनी शोधपरक पुस्तकों के जरिए उनके आंदोलन और उनकी बातों को दुनिया भर में पहुंचाया, बल्कि जरूरत पड़ी तो सड़क पर उनके साथ खड़ी हुईं। उन्हें एक शोधार्थी और शानदार लेखक के रूप में भी याद किया जाएगा। एक ऐसी लेखक, जिनकी कलम ने भारत के शोषितों के दर्द को आवाज दी।

2 अगस्त 1941 को अमेरिका के मिनीपोलिस-मिनेसोटा शहर में जन्मी गेल ओमवेट ने कैलिफोर्निया स्थिति बर्कले विश्वविद्यालय से समाजशास्त्र में पीएचडी की उपाधि ली। इसके बाद ही वो एक शोध के लिए भारत आ गई थीं, जिसके बाद भारत ने उन्हें और उन्होंने भारत को अपना लिया। उन्होंने भारत के महाराष्ट्र राज्य को अपनी कर्मस्थली के रूप में चुना। उन्होंने बाक़ायदा भारत की नागरिकता ली और उस समय अपनी एम.डी. की पढ़ाई छोड़ कर सामाजिक कार्य करने वाले डॉ. भरत पाटणकर से प्रेम विवाह किया।

डॉ. गेल की तकरीबन 25 से अधिक किताबे प्रकाशित हो चुकी है। बहुजन आंदोलन की दृष्टि से देखें तो उनके द्वारा लिखी गई महत्वपूर्ण पुस्तकों में- ‘कल्चरल रीवोल्ट इन कोलोनियल सोसायटी- द नॉन ब्राम्हीण मूवमेंट इन वेस्टर्न इंडिया’, ‘सिकिंग बेगमपुरा’, ‘बुद्धिज़म इन इंडिया’, ‘डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर’, ‘महात्मा जोतीबा फुले’, ‘दलित एंड द डेमोक्रेटिक रिव्ह्यूलेशन’, ‘अंडरस्टँडिंग कास्ट’, ‘वुई विल स्मॅश दी प्रिझन’, ‘न्यू सोशल मूवमेंट इन इंडिया आदि का नाम शामिल है।

उन्होंने भारत के कई विश्वविद्यालयों में पढ़ाया भी, तो लगातार शोध पत्र और लेखों के जरिए दुनिया से संवाद करती रहीं। गेल ओमवेट की शख्सियत को ज्यादा समझने के लिए बेहतर है कि हम उन लोगों की भावनाओं को देखें, जिन्होंने गेल ओमवेट के निधन के बाद उन्हें याद करते हुए उनको श्रद्धांजली दी है-

महाराष्ट्र के नागपुर से चलने वाले महत्वपूर्ण मीडिया संस्थान, आवाज इंडिया के अमन कांबले ने गेल ओमवेट को याद करते हुए लिखा-

डॉ. बाबासाहब आंबेडकर के विचारों से प्रभावित होकर, भारत में बहुजन, बौद्ध, श्रमिक और नारीवाद आंदोलन की इतिहास लेखक, हम सबकी बेहद प्रिय, प्रखर चिंतक, विचारक, ज्ञानवंत, मान्यवर कांशीराम की वैचारिक सहयोगी प्रोफ़ेसर गेल ऑम्वेट नहीं रहीं। नमन।

वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने उन्हें याद करते हुए लिखा- कुछ ही देर पहले दुखी करने वाली यह बुरी खबर मिली। प्रख्यात लेखिका गेल ओमवेट (Gail Omvedt) नहीं रहीं। महाराष्ट्र के कासेगांव में उनका निधन हुआ, जहां वह अपने पति भरत पाटंकर और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ सन् 1978 से ही रहती थीं।

गेल का जन्म भले अमेरिका में हुआ था पर उन्होंने जीवन का बडा हिस्सा एक भारतीय नागरिक और यहां के दलित-उत्पीडित लोगों की आवाज उठाने वाली एक विदुषी के रूप मे जिया! उन्होने बर्कले से समाजशास्त्र में पीएचडी किया। एक शोध अध्ययन के सिलसिले में वह भारत आई और फिर यहीं की होकर रह गयीं। अपनी कई शोधपरक पुस्तकों के जरिये उन्होने प्रबुद्ध, लोकतांत्रिक और समावेशी होने की कोशिश करते भारत की तलाश की है। उनकी कुछ महत्वपूर्ण पुस्तकें जो इस वक्त याद आ रही हैं- दलित एन्ड डेमोक्रेटिक रिवोल्यूशन, अंडरस्टैन्डिग कास्ट: फ्राम बुद्ध टू अम्बेडकर एन्ड बियान्ड और अम्बेडकर: टुवर्ड्स एन इनलाटेन्ड इंडिया। उनको पढ़ने का मेरा सिलसिला तो काफी पहले शुरू हुआ लेकिन उनसे मुलाकात और निजी परिचय बहुत बाद में हुआ। कुछ साल पहले एक संगोष्ठी में हम दोनों ने एक ही मंच के एक ही सत्र में अपनी-अपनी बात रखी। गेल की मौलिकता और सहजता से मैं प्रभावित था। एक मौलिक समाजशास्त्री और उत्पीड़ित व वंचित समाज की पक्षधर लेखिका के तौर पर गेल हमेशा याद की जायेंगी। उनके जीवनसाथी भरत पाटंकर और बेटी प्राची पाटंकर के प्रति हमारी शोक संवेदना। सलाम और श्रद्धांजलि गेल ओमवेट!

वरिष्ठ लेखक, चिंतक और बहुजन डायवर्सिटी मिशन के एच.एल. दुसाध ने गेल ओमवेट को याद करते हुए लिखा- बहुत ही स्तब्धकारी खबर। बहुजन चिंतन के दुनिया की विराट क्षति। मैडम गेल जैसा सॉलिड और मौलिक चिंतन बहुजन वर्ल्ड में शायद किसी ने किया हो। वह जितनी आला दर्जे की थिंकर थीं, उतनी ही जिंदादिल महिला भी थीं। उनसे मिलने पर जीवन के प्रति उत्साह का नया संचार होता था। उन जैसी विदुषी को भूलना मुश्किल है!

ट्रूथ सिकर्स के सुनील सरदार ने उन्हें याद करते हुए लिखा – Dear sister Dr. Gail Omvedt went to Begumpura. We are thankful for her life and works of reconciliation. Her life is testimony of sacrificial life of purpose. We will miss her here in this side of eternity. Jay Bheem!! Jay Joti, Jay Baliraj. Sauté and goodbye Gail. See you soon.

वरिष्ठ पत्रकार दिलीप मंडल ने लिखा- भारत में बहुजन, बौद्ध, श्रमिक और नारीवाद आंदोलन की इतिहास लेखक, हम सबकी बेहद प्रिय, प्रखर चिंतक, विचारक, ज्ञानवंत, मान्यवर कांशीराम की वैचारिक सहयोगी प्रोफ़ेसर गेल आम्वेट नहीं रहीं। नमन। आपकी लिखी बीसियों किताबें आने वाली पीढ़ी का मार्गदर्शन करती रहेंगी। मेरे लिए यह निजी क्षति है। मैंने जिनसे सबसे ज़्यादा सीखा, उनमें प्रो. ऑम्वेट प्रमुख हैं। अलविदा प्रोफ़ेसर!

पेशे से राजनीतिक विज्ञान की प्रोफेसर सीमा प्रकाश, जिन्होंने शोध के दौरान गेल ऑम्वहेट को पढ़ा है, उनको याद करते हुए लिखा है- डॉ. अम्बेडकर के आंदोलन पर शोध के दौरान जिन विद्वानों की पुस्तकों को पढ़ने का अवसर मिला उनमें गेल ओमवेट की कृतियों ने अपने सरल एवं स्वाभाविक वैचारिक प्रवाह से सर्वाधिक प्रभावित किया। उन्होंने डॉ. अम्बेडकर के सपनों के भारत को प्रबुद्ध भारत के स्वप्न के रूप में दर्शाते हुए इसका संबंध बौद्ध धर्म की वैचारिक परम्परा और कबीर एवं रैदास के आदर्श समाज की कल्पनाओं से जोड़ा। एक महान विदुषी को हार्दिक श्रद्धांजलि एवं नमन।


नोट- इस खबर में ऊपर का हिस्सा चैतन्य दलवी की पोस्ट का सरसरी तौर पर अनुवाद एवं संपादित हिस्सा है। जबकि नीचे का हिस्सा सोशल मीडिया से लिया गया है।

 जाति जनगणना पर पीएम मोदी से मिले बिहार के बहुजन नेता, जानिए क्या हुई बात

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 पिछले करीब एक दशक से जातिगत जनगणना की मांग काफी तेज हुई है। खासकर ओबीसी की जातियां इस मुद्दे पर ज्यादा मुखर हैं। लेकिन केंद्र सरकार लगातार जाति जनगणना के सवाल पर या तो चुप्पी साधे है या फिर इस सवाल को ही टालने में जुटी रही। हालांकि अब जाति जनगणना के सवाल को टालना संभव होता नहीं दिख रहा है। इस मद्दे पर बिहार के 10 राजनीतिक दलों के 11 नेताओं ने प्रधानमंत्री मोदी से मिलकर अपनी बात रखी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से दिल्ली में हुई यह मुलाकात करीब 40 मिनट से ज्यादा चली। खास बात यह रही कि मोदी से मिलने वालों में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से लेकर नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव तक शामिल रहे।

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 बैठक के बाद मीडिया से मुखातिब होते हुए नीतीश कुमार ने कहा कि- बिहार की सभी राजनीतिक पार्टियों का जातिगत जनगणना को लेकर एक मत है। हम सभी ने प्रधानमंत्री से इसकी मांग की है। उन्होंने कहा कि सरकार के एक मंत्री का बयान आया था कि जाति के आधार पर जनगणना नहीं होगी। इसलिए हम सभी ने प्रधानमंत्री से मिलकर बात की। उन्होंने हमारी पूरी बात सुनी, उन्हें हर पहलू से अवगत कराया गया है।

राजद नेता तेजस्वी यादव भी पीएम मोदी से मिलने वाले प्रतिनिधिमंडल का हिस्सा थे। उन्होंने कहा कि- जातियों को ओबीसी में शामिल करने का हक राज्य सरकारों को दे दिया गया है, लेकिन इससे कोई फायदा नहीं होगा। क्योंकि, हमारे पास कोई आंकड़े ही नहीं हैं। जातिगत जनगणना राष्ट्रहित में ऐतिहासिक काम होगा। एक बार आंकड़े सामने आ जाएंगे तो सरकारें उसके हिसाब से कल्याणकारी योजनाओं को भी लागू कर पाएंगी। मंडल कमीशन के बाद पता चला कि हजारों जातियां देश में मौजूद हैं। जब पेड़ और जानवरों की गिनती होती है तो जातीय सेन्सस क्यों नहीं हो? जब धर्म पर सेन्सस होता है तो जाति पर क्यों नहीं?

देश में 1931 में पहली बार जातिगत जनगणना हुई थी। इसके बाद 2011 में ऐसी ही जनगणना करवाई गई, लेकिन सरकार की ओर से इसके आंकड़े जारी नहीं किए गए। लेकिन अब केंद्र पर इसको लेकर काफी दबाव है। बिहार विधानसभा में दो बार जातीय जनगणना का प्रस्ताव पास हो चुका है।

प्रधानमंत्री मोदी से मिलने जाने वाले नेताओं में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव, पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी, शिक्षा मंत्री विजय कुमार चौधरी, भाजपा नेता एवं मंत्री जनक राम, वीआईपी मुकेश सहनी, कांग्रेस नेता अजीत शर्मा, सीपीआई विधायक सूर्यकांत पासवान, सीपीएम विधायक अजय कुमार, भाकपा माले विधायक महबूब आलम और एआईएमआईएम विधायक अख्तरूल इमान शामिल थे। यानी साफ है कि जाति जनगणना के सवाल पर अब बिहार पीछे हटने वाला नहीं है। बिहार के दलित-पिछड़े समाज के नेताओं की यह एकता निश्चित तौर पर जाति जनगणना के मामले में निर्णायक साबित होगी।

(फोटो साभार- गूगल)

भाजपा का मिशन यूपीः ध्रुवीकरण, लालच और नए वादे

 उत्तर प्रदेश की सत्ता में आने के लिए प्रदेश के करोड़ों युवाओं को नौकरी देने का लालच देने वाले योगी आदित्यनाथ 2022 का चुनाव सामने देखकर एक बार फिर जागे हैं। 19 अगस्त को विधानमंडल के मानसून सत्र के दौरान उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ताबड़तोड़ कई घोषणाएं कर के यूपी के आगामी विधानसभा चुनाव को लेकर अपना एजेंडा लगभग घोषित कर दिया। योगी आदित्यनाथ ने जो लोकलुभावन घोषणाएं की है, उसमें हिन्दू वोटों का ध्रुवीकरण, युवाओं और कर्मचारी वर्ग को लुभाने की कोशिश, और दलितों को लालच देकर सत्ता में वापसी करने की राह बना रही है।

हिन्दू वोटों के ध्रुवीकरण के लिए भाजपा उत्तर प्रदेश के तीन जिलों जो मुस्लिम बहुल आबादी वाले हैं, उनका नाम बदलने की तैयारी में है। फ़िरोज़ाबाद का नाम चंद्रनगर, अलीगढ़ का नाम हरिगढ़ और मैनपुरी का नाम मयन नगरी करने का प्रस्ताव मुख्यमंत्री ऑफिस भेजा जा चुका है। अब मुख्यमंत्री योगी को इस मामले में आख़िरी फ़ैसला लेना है, जो कि निश्चित है कि वह सही समय देख कर ले ही लेंगे।

 इसी तरह 2022 के चुनाव को देखते हुए युवाओं को साधने के लिए सीएम योगी आदित्यनाथ ने एक करोड़ युवाओं को टैबलेट या स्मार्ट फोन देने की बात कही। हालांकि वो युवा कौन होंगे और उनको कैसे चिन्हित किया जाएगा, यह अभी नहीं बताया गया है। लेकिन यहां सवाल यह उठता है कि जब देश कोविड से जूझ रहा था और बच्चे ऑनलाइन क्लासेज कर रहे थे और उन्हें स्मार्ट फोन की सबसे ज्यादा जरूरत थी, तब योगीजी को स्मार्ट फोन बांटने का ख्याल क्यों नहीं आया? अब, जब इसी सरकार ने स्कूल खोलने की घोषणा कर दी है, और चुनाव सामने है, तो इस योजना का कोई मतलब नहीं है। यह सीधे तौर पर युवाओं को लालच देने जैसा है। राज्य के 16 लाख कर्मचारियों और 12 लाख पेंशनरों को 11 फीसदी महंगाई भत्ता और महंगाई राहत देने की घोषणा भी ऐसी ही है।

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 एक बड़ी चुनावी घोषणा करते हुए सीएम योगी ने माफियाओं से जब्‍त जमीन पर दलितों-गरीबों के लिए मकान बनवाने की घोषणा की। योगी के मुताबिक सरकार ने माफियाओं की 1500 करोड़ रुपए की सम्‍पत्तियां जब्‍त कर ली हैं और इसी जमीन पर वैसे गरीबों और दलितों के लिए मकान बनवाने की बात कही है, जिनके पास रहने के लिए घर नहीं है।

अब सवाल यह है कि जब उत्तर प्रदेश चुनाव की दहलीज पर खड़ा है, और तीन से चार महीने बाद कभी भी आचार संहिता लागू हो सकती है, योगी एक करोड़ युवाओं को टैबलेट और स्मार्ट फोन कब बाटेंगे? क्या योगी, माफियाओं की जमीन पर दलितों और गरीबों को इन चार महीनों में पक्का मकान बनवाकर दे देंगे?

जब योगी आदित्यनाथ प्रदेश की जनता को लुभा रहे थे, उस दौरान उन्होंने अपने काम भी गिनवाएं। सीएम योगी अयोध्या, मथुरा और काशी जैसे धार्मिक स्थलों पर हुए विकास कार्यों को गिनवाते रहें। लेकिन यूपी के 75 जिलों में क्या सिर्फ तीन जिलों का ही विकास होना था? और वो भी सिर्फ धार्मिक विकास? योगी आदित्यनाथ ने पांच करोड़ युवाओं को नौकरी देने का जो वादा किया था, वह वादा कहां गया?

इसी तरह  सरकार ने क़रीब 86 लाख लघु और सीमांत किसानों के 36 हज़ार करोड़ रुपये के कर्ज़ माफ़ करने की घोषणा की। सरकार की इस घोषणा के बाद तमाम किसानों के कर्ज़ माफ़ ज़रूर हुए लेकिन लाखों रुपये के बकाए किसानों के जब दो रुपये और चार रुपये के कर्ज़ माफ़ी के प्रमाण पत्र मिलने लगे तो बैंकों के इस गणितीय ज्ञान ने किसानों को हैरान कर दिया। ऐसे किसानों ने बैंकों से लेकर सरकार तक न जाने कितने चक्कर लगाए लेकिन बैंकों की गणित को वो झुठला नहीं पाए।

दरअसल योगी सरकार ने ऐसी कोई नीति नहीं बनाई जो आम आदमी के लिए हो। प्रदेश में जिस उज्जवला योजना और सस्ता अन्न योजना का थोड़ा-बहुत लाभ गरीब जनता को मिला भी है, वो केंद्र सरकार की योजना है, न कि योगी सरकार की। इसमें भी सिलेंडर के बढ़ते दामों के कारण उज्जवला योजना की हवा निकल चुकी है। ऐसे में सवाल यह उठता है कि विकास के नाम पर चार साल से ज्यादा समय तक चुप्पी साधने के बाद योगी आदित्यनाथ ने जो घोषणाएं की है, उस पर प्रदेश की जनता आखिर यकीन करे तो कैसे करें?

अफगानिस्तान, तालिबान और बुद्ध

अफगानिस्तान के कण-कण में कभी बुद्ध की प्रेम, करुणा व मैत्री की वाणी गूंजती थी। सुख, समृद्धि और खुशहाली थी। अफगानिस्तान प्रागैतिहासिक काल (prehistoric era) से भारत का अंग रहा है। आज का अफगानिस्तान भी सांस्कृतिक तौर से भारत के बहुत करीब है। गौतम बुद्ध के समय में अफगानिस्तान राजा दारयोपहु के साम्राज्य का अंग था और ‘गंधार’ कहलाता था। पेशावर (प्राचीन पुरुषपुर) गंधार का प्रमुख नगर रहा है। तक्षशिला (रावलपिंडी) पहले पूर्वी गंधार की राजधानी थी। गंधार एक समय रावलपिंडी से लेकर हिंदूकुश पर्वतमाला तक फैला हुआ था।

तक्षशिला बुद्ध के समय में विद्या व व्यापार का बड़ा केंद्र था और उसका उत्तरी भारत से बहुत घनिष्ठ संबंध था। राजा पोक्कसाति ने जब बुद्ध की महिमा व यश सुना तो वह अपना राज-पाट छोड़कर तक्षशिला से बुद्ध के पास मगध में आए और भिक्षु बनकर मानव कल्याण का मार्ग अपनाया। बुद्ध का संदेश उनके जीवन काल में ही गंधार पहुंच गया था और उनके महापरिनिर्वाण के बाद तो खूब फला फूला। बुद्ध के ढाई सौ साल बाद सम्राट अशोक ने जम्बूद्वीप के अपने विशाल साम्राज्य में 84 हजार स्तूप बनवाए थे, उनमें से एक स्तूप तक्षशिला में था। अशोक महान ने बुद्ध वाणी के प्रचार के लिए विश्व के कई देशों में धम्मदूत भेजे थे। वरिष्ठ भिक्षु मध्यान्तक के नेतृत्व में कई विद्वानों को गंधार व कश्मीर भेजा था।

मौर्य काल व बाद में कश्मीर और गंधार बुद्ध की मानव कल्याणकारी शिक्षा, कला और व्यापार के प्रमुख केंद्र बन गए थे। ग्रीक और शक समुदायों को भारतीय संस्कृति की शिक्षा देने में सबसे बड़ा योगदान गंधार के बौद्ध भिक्षुओं का ही था। सम्राट कनिष्क के समय तो अफगानिस्तान बुद्ध धम्म और संघ का महान सिंहासन था। उन्होंने उस भू-भाग पर बुद्ध की शिक्षाओं का बहुत प्रचार करवाया। गंधार पहले ईरान फिर ग्रीक संस्कृति की सीमा पर पड़ता था इसलिए गंधार को अलग- अलग संस्कृतियों के मिश्रण से नई संस्कृति को जन्म देने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। इसी के परिणाम स्वरूप इंडो-ग्रीक शिल्प मूर्तिकला का जन्म हुआ और इसी गंधार शैली की बुद्ध प्रतिमाएं व चित्रकला विश्वविख्यात हुई।

 गंधार ने असंग और वसुबंधु जैसे बौद्ध दर्शन के महान विचारक व दार्शनिक दिए। दिग्नाग के गुरु वसुबंधु यही के थे जिन्होंने न्याय शास्त्र के प्रथम ग्रंथों को लिखा। ईसा से दो सौ साल पहले से एक हजार साल बाद तक गंधार बुद्ध की शिक्षा, साहित्य, संस्कृति व कला का प्रमुख केंद्र रहा। यहीं से मैत्री का संदेश चीन, मंगोलिया व आगे पहुंचा। पश्चिम से आने वाले कबिलाओं के आक्रमण की मार सबसे पहले गंधार ही सहन करता था। लेकिन उनको भारतीय संस्कृति का पाठ पढ़ा कर इसी में समाहित कर देता था। गंधार ने खुशी-खुशी से कभी अपनी संस्कृति को ध्वस्त होते हुए नहीं देखा। 5वीं से 7वीं सदी तक गंधार में बुद्ध की शिक्षाओं का स्वरूप कितना भव्य, व्यापक और ऊंचाई पर था, इसका गुणगान फाहि्यान व ह्वानसांग ने अपनी यात्राओं के विवरण में विस्तृत रूप में लिखा है।

 भारत, चीन और मध्य एशिया का यातायात व व्यापार इसी मार्ग से होता था। यहां के लोग व्यापार ही नहीं बल्कि धम्म, शिक्षा और संस्कृति के प्रचार में सबसे आगे थे। ईसा के बाद दूसरी सदी में बामियान घाटियों की विशाल चट्टानों को काटकर बनाई गई बुद्ध की विशाल प्रतिमाएं संसार का एक अजूबा है, लेकिन समय के करवट लेने के साथ उन्हें 2001 में बम से ध्वस्त कर दिया गया। फिर कई वर्षों की मेहनत से पुनर्निर्माण किया गया।

 लगभग 75 साल पहले महापंडित राहुल सांकृत्यायन अपने ग्रंथ में लिखते हैं- “आज के अफगानिस्तान में बुतपरस्ती सबसे जघन्य अभिशाप मानी जाती है लेकिन इस देश की कला, संस्कृति, शिक्षा और दर्शन का सबसे गौरवशाली काल भी वही था, जब सारा अफगानिस्तान बुतपरस्त था। बुत परस्त फारसी शब्द है जो बुद्ध-परस्त (बुद्ध पूजक) का विकृत रूप है। अरब के बंधुओं को इनमें सिर्फ मिट्टी, पत्थर और धातु की मूर्तियां और उनके प्रति मिथ्या विश्वास ही दिखाई दिए। लेकिन वे इनकी कला की गंभीरता को नहीं समझ सके, क्योंकि कला को समझने के लिए संस्कृति की समझ होना जरूरी है। आज का अफगानिस्तान अपने प्राचीन गंधार की कला, शिक्षा, संस्कृति, महान विचारकों पर गर्व करें तो कौन अनुचित कहेगा? बुद्ध की शिक्षाएं वापस लौटे या न लौटे लेकिन पुरानी संस्कृति अफगानिस्तान की नवीन संस्कृति के निर्माण में अवश्य मददगार होगी।”

लेखक- महापंडित राहुल सांकृत्यायन संदर्भ ग्रंथ – बौद्ध संस्कृति (1949)

डॉ. मुकेश गौतम को राज्यपाल ने दिया मातृभूमि भूषण सम्मान

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 प्रसिद्ध कवि और पर्यावरण कार्यकर्ता डॉ. मुकेश गौतम को महाराष्ट्र के राज्यपाल श्री भगत सिंह कोश्यारी द्वारा “मातृभूमि भूषण सम्मान- 2021” से सम्मानित किया गया। डॉ. मुकेश गौतम को यह सम्मान पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में उनके द्वारा किए जा रहे रचनात्मक कार्यों के लिए दिया गया है। हिंदी अकादेमी; मुम्बई द्वारा आयोजित समारोह में तीनों सेनाओं में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले सैन्य अधिकारियों, समाज सेवा, साहित्य, तथा शिक्षा के क्षेत्र में उल्लेखनीय कार्य करने वाले लोगों को भी राज्यपाल ने सम्मानित किया। राज्यपाल ने अपने संबोधन में कहा कि जब भी राष्ट्र के सामने कोई संकट आता है तो हमारे देश के सभी लोग मिलकर उसका मुकाबला करते हैं, और सफलता प्राप्त करते हैं। उन्होंने कहा कि कोविड-19 से भी निपटने में हमारे देश के लोगों ने केंद्र तथा राज्य सरकारों के साथ मिलकर सराहनीय कार्य किया है। पूर्व गृह राज्य मंत्री कृपाशंकर सिंह ने अपने संबोधन में सभी पुरस्कार प्राप्त कर्ताओं को बधाई दी और कहां कि जो लोग समय पर राष्ट्र और समाज के लिए अच्छा कार्य करते हैं वही लोग अन्य लोगों के प्रेरणा स्रोत बनते हैं।

उल्लेखनीय है कि डॉ. मुकेश गौतम पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में लंबे समय से महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं। उन्होंने अभी तक पूरे देश में तीस हजार पेड़ लगाए हैं। पेड़ विषय पर उन्होंने कई पुस्तकों का लेखन भी किया है। उनकी पुस्तकों का अनेक भाषाओं में अनुवाद भी प्रकाशित हुआ है। वृक्ष संरक्षण विषय पर उनका आंदोलन “वृक्ष बचाओ-विश्व बचाओ” काफी चर्चित रहा है। हिंदी अकादमी, मुंबई के अध्यक्ष डॉ. प्रमोद पांडेय ने भी सम्मान समारोह को संबोधित किया। कार्यक्रम का संचालन आलोक चौबे ने किया।

देश की राजधानी में स्वतंत्रता दिवस पर मनुवादियों ने किया डॉ. आंबेडकर का अपमान

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 दिल्ली के तुगलकाबाद में स्वतंत्रता दिवस के दिन जातिवाद का नंगा नाच देखने में आया। इस दिन संविधान निर्माता बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर की प्रतिमा पर झंडा फहराने गए स्थानीय जाटव मुहल्ले के दलितों को गुजर समाज के लोगों ने न सिर्फ झंडा फहराने से रोका, बल्कि राष्ट्रध्वज का अपमान किया और भारत रत्न बाबासाहेब डॉ. आंबेडकर को लेकर अपशब्द कहे। इस बारे में दलित समाज ने एफआईआर दर्ज कराई है।

 तुगलकाबाद के चंदरपाल ने गोविन्पुरी थाने में दी गई अपनी शिकायत में कहा है कि 15 अगस्त को वह अपने दलित जाटव समाज के 25-30 साथियों के साथ, जिसमें औरतें भी शामिल थी, कमन की जोहर जाटव मोहल्ला तुगलकाबाद गाँव स्थित बाबासाहेब की प्रतिमा पर झंडा फहराने गए। उसी समय वहां जितेन्द्र गुजर, दीपक गुजर, रिंकू गुजर और शकुंतला गुजर आए और झंडा उतार कर फेंक दिया। साथ ही बाबासाहेब और वहां मौजूद औरतों को जातिसूचक गालियां देने लगे। एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि गुजरों ने जाटव समाज के साथ मारपीट की और पथराव शुरू कर दिया, जिसमें कई लोग घायल हो गए।

एफआईआर में आरोप लगाया गया है कि गुजर समाज के गुंडों ने डॉ. आंबेडकर की प्रतिमा पर गोबर फेंका और राष्ट्रध्वज का अपमान किया। इस मामले में पुलिस की भूमिका पर भी सवाल उठ रहे हैं। क्योंकि यह सारा घटनाक्रम पुलिस की मौजूदगी में हुआ। इस हंगामे के दौरान पुलिस मूकदर्शक बनी रही। यहां तक की पुलिस वालों ने अपने नेम प्लेट भी हटा दिये थे, ताकि उनकी पहचान सामने नहीं आ सके। दलितों ने थाने के एसएचओ पर धमकाने का आरोप लगाया कि आखिर दलित झंडा फहराने क्यों गए थे। इस मामले में जमीन को लेकर विवाद की बात भी सामने आ रही है। कहा जा रहा है कि दलितों को आवंटित इस जमीन पर एक कद्दावर भाजपा नेता की शह पर उसके समर्थक इस जमीन को हथियाना चाहते हैं और यहां से बाबासाहेब की प्रतिमा हटाना चाहते हैं।

15 अगस्तः झंडा फहराने पर दलित सरपंच के साथ मारपीट

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भारत की आजादी के बाद हर स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस को देश में दलितों, वंचितों को कितनी आजादी मिली है, इसकी कलई खुल जाती है। 15 अगस्त हो या फिर 26 जनवरी, हर मौके पर दलितों को देश के किसी न किसी हिस्से में झंडा फहराने से रोकने की खबर आ ही जाती है। इस बार मध्य प्रदेश के छतरपुर में एक दलित सरपंच की पिटाई इसलिए कर दी गई क्योंकि दलित समाज के सरपंच ने ब्राह्मण समाज के सचिव का इंतजार किये बिना झंडा फहरा दिया। मामला छतरपुर जिले के धामची गाँव का है। इस घटना का वीडियो भी जमकर वायरल हो रहा है।

सरपंच हन्नु बसोर का आरोप है कि उसकी पंचायत में सचिव सुनील तिवारी को 15 अगस्त के दिन उसका झंडा फहराना नागवार गुजरा। सरपंच हन्नू बसोर ने आरोप लगाया कि सचिव ने जाति सूचक शब्द कहते हुए, उसे लात मार दी है। जातिवादी गुंडे सचिव पर सरपंच के साथ उनकी पत्नी कट्टू बाई और बहू के साथ भी मारपीट की गई। घटना के बाद दलित सरपंच, उसकी पत्नी और गांव के कुछ लोग ओरछा रोड थाना पहुंचे और मामला दर्ज कराया।

कुछ सवर्ण जातिवादियों की इसी मानसिकता के चलते देश में जातिवाद की खाई आए दिन गहरी होती जा रही है। सवाल है कि आखिर सवर्ण समाज के जातिवादियों को दलितों द्वारा प्रमुख पदों पर पहुंचना इतना क्यों अखर जाता है कि वह इसे बर्दास्त नहीं कर पाते और मारपीट पर उतर आते हैं।

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रस्म अदायगी नहीं है स्वतंत्रता दिवस की बधाई

पूरा देश आज स्वतंत्रता दिवस का पर्व मना रहा है। भारत के 75वें स्वतंत्रता दिवस पर देश एवं विदेश में रहने वाले देशवासियों और अप्रवासी भारतीयों को इस दिवस की बहुत-बहुत बधाई। लेकिन यहां हमें यह समझना होगा कि स्वतंत्रता दिवस पर बधाई केवल रस्म अदायगी नहीं होनी चाहिए। इस दिवस के पीछे छुपे मूल्यों की पड़ताल कर उनको जीवन में धारण करना इस दिवस के पर्व का लक्ष्य होना चाहिए। आइये आज के दिन बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा बनाये गए भारत के संविधान में प्रद्दत- समता, स्वतंत्रता, बंधुत्व, सामजिक न्याय एवं धर्मनिरपेक्षता जैसे मूल्यों का पर्व बनाये।

आज के दिन हमें बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा राष्ट्र निर्माण की संकल्पना में दिए गए मूल्यों की भी पड़ताल करनी करनी चाहिए। हमें समझना और समझाना होगा की बाबासाहेब आंबेडकर द्वारा राष्ट्र निर्माण हेतु बताये गए मार्ग यथा सत्ता, शिक्षा, अर्थ, संसाधन आदि की संस्थाओं में भारत में रह रहे सभी समाजों- यथा- अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति, धार्मिक अल्पसंख्यक, सामान्य समाज और साथ ही साथ सभी समाजों की महिलाओं को उनकी जनसंख्या के अनुपात में प्रतिनिधित्व देना ही वास्तविक स्वतंत्रता दिवस है।

इन सभी समाजो में से जो समाज सबसे ज्यादा वंचित है, उनको उपरोक्त संस्थाओं में सबसे पहले प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करना ही स्वतंत्रता दिवस की मूल भावना होनी चाहिए। आज के दिन हमारे राजनीतिज्ञों, राजनैतिक दलों, कॉर्पोरटे घरानो, मीडिया हाउसेस, विश्वविद्यालयों एवं सामान्य शिक्षाविदों और बुद्धिजीवियों आदि को बहुत ही गंभीरता से सोचना-विचारना चाहिए की आखिर इस देश की संस्थाओं ने पिछले 74 वर्षों में कितना प्रतिशत संवैधानिक लक्ष्य प्राप्त किया है।

हमें यहां, 26 नवंबर 1949, को संविधान सभा को संबोधित करते हुए बाबासाहेब आंबेडकर ने क्या कहा था, यह बात भी याद रखनी चाहिए। उन्होंने साफ शब्दों में कहा था कि किसी भी देश का संविधान अच्छा या बुरा नहीं होता। अच्छे से अच्छा संविधान बुरा हो जाएगा, अगर उसको चलाने वाले लोग अच्छे नहीं होंगे। और खराब से खराब संविधान भी अच्छे से अच्छा हो जाएगा अगर उसको चलाने वाले अच्छे होंगे।

आज अगर हम 15 अगस्त 2021 में अपनी स्वतंत्रता की 75वीं वर्षगांठ मना रहे हैं तो हमें यह चिंतन करना होगा कि हमने अपने संविधान को कितना सफल बनाया है। और इस पड़ताल का आधार यह होना चाहिए कि हमने संविधान में दिए गए मूल्यों को जमीनी स्तर पर कितना लागू किया है। अगर हम आज के दिन यह पड़ताल नहीं करते हैं तो स्वतंत्रता दिवस का पर्व निरर्थक होगा।

मान्यवर कांशीराम के जेल भरो आंदोलन की 37वीं वर्षगांठ और मंडल कमीशन की सिफारिशें

 आज बहुजन समाज के लिए बड़ा दिन है। आज ही के दिन मान्यवर कांशीराम जी के नेतृत्व में बहुजन समाज पार्टी द्वारा मंडल कमीशन में पिछड़ी जातियों के सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान हेतु की गई सिफारिशों को लागू करवाने के लिए जेल भरो आंदोलन किया गया था। आज उसकी 37वीं वर्षगांठ है। 37 वर्ष पहले सन् 1984 में 1 से 14 अगस्त तक बहुजन समाज पार्टी ने मंडल कमीशन की रिपोर्ट को लागू कराने के लिए जेल भरो आंदोलन किया था। इस दौरान बसपा ने संसद भवन के सामने बोट क्लब पर अपने 3749 कार्यकर्ताओं के साथ धरना प्रदर्शन किया तथा गिरफ्तारियां भी दी।

यहां 3749 कार्यकर्ताओं की संख्या के पीछे छिपे हुए अर्थ को भी समझना अति आवश्यक है। मान्यवर कांशी राम ने यह संख्या इसलिए चुनी थी क्योंकि मंडल कमीशन के अंदर 3749 जातियों का ही समावेश था। अर्थात मंडल कमीशन ने आरक्षण के लिए 3749 पिछड़ी जातियों को चिन्हित किया था। यद्यपि बाद में मंडल कमीशन की फाइनल रिपोर्ट में 3743 जातियों का ही नाम आया। जिसमें से 88 जातियां मुस्लिम समाज की भी समायोजित की गई।

साथ ही साथ मान्यवर कांशीराम ने ऑपरेस्ड इंडियन मैगजीन के अक्टूबर 1984 के अंक में यह भी वर्णित किया कि ऐसे ही प्रदर्शन एवं गिरफ्तारियां भारत के अनेक राज्यों की राजधानियों एवं जिला मुख्यालयों पर भी दिए गए। साथ ही साथ यह नारा भी प्रचलित किया गया कि, “मंडल कमीशन लागू करो, वरना कुर्सी खाली करो”।

इतना ही नहीं इसके पश्चात मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कराने के लिए मान्यवर कांशीराम ने 10-11 अगस्त 1985 से 1993 तक मा. कांशीराम के नेतृत्व में बामसेफ, डीएस-4 और बसपा ने मिलकर पूरे भारत में पाँच सेमिनार और 500 सिंपोज़ियम किए। यहां बहुजन समाज को यह जानना जरुरी है कि पिछड़ी जातियों के सामाजिक एवं आर्थिक उत्थान हेतु संविधान में जिस कमीशन की संकल्पना की गई थी, वह भारतीय संविधान के अनुच्छेद 340 के तहत बना।

संविधान के इस अनुच्छेद 340 को बाबा साहेब आंबेडकर ने बनाया था। और बाद में जब वे नेहरू की कैबिनेट में कानून मंत्री थे तब इसे लागू कराने का भरसक प्रयास किया। जब वे इसमें कामयाब नहीं हुए तो उन्होंने नेहरू की कैबिनेट से भी त्यागपत्र दे दिया। यह तथ्य उन्होंने अपने रेजिग्नेशन स्पीच में साफ-साफ लिखा, जिसे हम बाबा साहेब (English Writings and Speeches ) के वॉल्यूम 14- पार्ट 2; पृष्ठ संख्या 1319 पर पढ़ सकते हैं।

इसका तात्पर्य यह हुआ कि मान्यवर कांशीराम ने मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू करवाने के लिए जो भी धरना, प्रदर्शन, सिंपोजियम, सेमिनार, और गिरफ्तारियां आदि बहुजन समाज पार्टी के माध्यम से दी वह बाबा साहेब आंबेडकर के अधूरे एजेंडे को पूरा करने के मार्ग में उठाया गया कदम था। इसीलिए बार-बार मान्यवर कांशीराम कहा करते थे कि मैंने बाबा साहेब आंबेडकर के कारवां को आगे बढ़ाने के लिए ही बहुजन समाज पार्टी बनाई है। बहुजनों की एकता के लिए हमें ऐसे आंदोलनों की तिथियों को अवश्य याद रखना चाहिए।