दो अप्रैल के बंद के बाद राजस्थान में दलितों से मारपीट, आई कार्ड देखकर पीटा

जयपुर। एससी-एसटी एक्ट में संसोधन के खिलाफ बुलाए गए भारत बंद के बाद कई जगह से दलितों के साथ मारपीट की खबर आ रही है. राजस्थान में सवर्णों पर इस समुदाय से मारपीट करने का आरोप है. दलित समाज के स्थानीय लोगों ने यह आरोप लगाया है.

 जनसत्ता में प्रकाशित खबर के मुताबिक आरोप है कि हिंडौन सिटी की जाटव बस्ती में भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा के पास भारी तादाद में सवर्ण इकट्ठा हुए और आई कार्ड से पहचान कर मारपीट की. पीड़ित अश्विनी जाटव ने बताया, “मारपीट करने से पहले उन्होंने हमारा आई कार्ड चेक किया. सभी ऊंची जाति के थे और उन्होंने महिलाओं को भी नहीं बख्शा.” पीड़ित लोगों का कहना है कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो वो इस्लाम धर्म अपना लेंगे.

भाजपा के दलित सांसद की पीएम से शिकायत, योगी डांटकर भगा देते हैं

लखनऊ। भारतीय जनता पार्टी के भीतर उसके ही दलित सांसदों की कोई इज्जत नहीं है. इसको लेकर बीजेपी नेतृत्व के खिलाफ दलित सांसदों की नाराजगी लगातार बढ़ती जा रही है. ताजा मामला रॉबर्ट्सगंज से बीजेपी सांसद छोटेलाल खरवार का है. खरवार ने पीएम मोदी को चिट्ठी लिखकर सीएम योगी आदित्यनाथ की शिकायत की है. खरवार की चिट्ठी में यूपी प्रशासन द्वारा उनके घर पर जबरन कब्जे और उसे जंगल की मान्यता देने की शिकायत की गई है.

मोदी को लिखे पत्र में बीजेपी सांसद ने कहा है कि जिले के आला अधिकारी उनका उत्पीड़न कर रहे हैं. मामले में बीजेपी सांसद ने दो बार मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से मुलाकात की, लेकिन सीएम ने उन्हें डांटकर भगा दिया. सांसद ने पीएम से मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, प्रदेश अध्यक्ष महेंद्र पांडेय और संगठन मंत्री सुनील बंसल की शिकायत की है. पत्र में सांसद ने पीएम से न्याय की गुहार लगाई है. खरवार भाजपा के अनुसूचित जाति मोर्चा के प्रदेश अध्यक्ष भी हैं. उन्होंने कहा कि मेरे साथ ऐसा सुलूक हो सकता है, तो किसी के साथ भी ऐसा हो सकता है.

बैंक में स्पेशलिस्ट ऑफिसर पदों पर निकलीं 145 वैकेंसी, इंटरव्यू से सेलेक्शन

नई दिल्ली। इंडियन बैंक ने स्पेशलिस्ट ऑफिसर पदों पर 145 भर्तियां निकाली हैं. यह भर्तियां स्पेशलिस्ट ऑफिसर के स्केल I, II, III, IV और V के पदों पर होंगी. आवेदन करने की अंतिम तिथि 2 मई 2018 है. ऑनलाइन आवेदन 10 अप्रैल 2018 से किया जा सकता है. ये भर्तियां सूचना प्रौद्योगिकी, सूचना प्रणाली सुरक्षा कक्ष, ट्रेजरी, रिस्क मैनेजमेंट, सुरक्षा, क्रेडिट, योजना और विकास और परिसर और खर्च संबंधी विभागों के लिए होनी हैं.

आयु सीमा

स्केल I ऑफिसर्स के लिए आयु सीमा 20 से 30 साल, स्केल II ऑफिसर्स के लिए 23 से 35 साल, स्केल III ऑफिसर्स के लिए 25 से 38 साल, स्केल IV ऑफिसर्स के लिए 27 से 40 साल और स्केल V ऑफिसर्स के लिए 30 से 45 साल निर्धारित की गई है.

आवेदन राशि

आवेदन करने के लिए SC/ST/PWD उम्मीदवारों को 100 रुपये और अन्य सभी श्रेणी के उम्मीदवारों 600 रुपये का आवेदन शुल्क भरना होगा.

कैसे होगी भर्ती

शॉर्टलिस्ट उम्मीदवारों का इंटरव्यू लिया जाएगा. यदि आवेदन अधिक मिले तो एक प्रीलिमिनेरी स्क्रीनिंग टेस्ट हो सकता है. इस टेस्ट में प्रोफेशनल नॉलेज के 60 अंकों के 60 प्रश्न होंगे.

आवेदन शुल्क

एससी, एसटी और पीडब्लूडी वर्गों के उम्मीदवारों को 100 रुपये का आवेदन शुल्क जमा करना होगा. बाकी सभी वर्गों के उम्मीदवारों को 600 रुपये आवेदन शुल्क देना होगा.

ऑस्ट्रेलिया में कॉमनवेल्थ शुरू, पीवी सिंधू ने की भारतीय दल की अगवानी

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नई दिल्ली। ऑस्ट्रेलिया के गोल्ड कोस्ट में कॉमनवेल्थ गेम्स की ओपनिंग सेरेमनी शुरू हो गई है. इस दौरान भारतीय दल देसी परिधान में उतरा. पीवी सिंधू ने हाथ में तिरंगा थाम कर भारतीय दल की अगवानी की. खेलों की इस बड़ी प्रतियोगिता में 71 कॉमनवेल्थ देश हिस्सा ले रहे हैं, जिनमें 19 खेलों के तहत 275 स्पर्धाओं का आयोजन किया जाएगा. 4 अप्रैल से शुरू होकर ये गेम्स 15 अप्रैल तक चलेंगे.

भारतीय खिलाड़ी 10 खेल में अपना भाग्य अजमाएंगे. इन खेलों की बड़ी शक्ति बन चुके भारत के सामने इस बार दो टारगेट बिलकुल साफ हैं. पहला मेडल टेबल में फिर से टॉप-4 में एंट्री करना और दूसरा अपने ओवरऑल मेडल काउंट को 500 के पार ले जाना. भारत ने 217 खिलाड़ियों का दल भेजा है.

मीडिया रिपोर्ट्स की माने तो ये अभी तक का सबसे महंगा कॉमनवेल्थ गेम्स होगा. पूरे इवेंट पर करीब 2 बिलियन ऑस्ट्रेलियाई डॉलर (करीब 100 बिलियन रुपये) खर्चा होगा. ये पहला मौका होगा जब महिलाओं और पुरुषों के बराबर इवेंट्स होंगे.

न्यूनतम बैलेंस पर एसबीआई ने जारी किया नया फरमान, एक अप्रैल से लागू

नई दिल्ली। स्टेट बैंक ऑफ इंडिया यानि एसबीआई ने खाते में मिनिमम बैलेंस को लेकर नया रेट लागू करने का ऐलान किया है. ये नए रेट एक अप्रैल 2018 से लागू हो चुके हैं. नए लो बैलेंस चार्ज रेट के मुताबिक एसबीआई ने लो बैलेंस चार्ज में 75 फीसदी तक की कटौती की बात कही है.

यानी बचत खातों का न्यूनतम बैलेंस एक सीमा से कम होने पर जो लो बैलेंस चार्ज वसूला जाता था वह अब 75 फीसदी तक कम देना पड़ेगा. रिपोर्ट के अनुसार, देश के सबसे बड़े बैंक ने लो बैलेंस चार्ज काटने में कमी तो की है लेकिन इसकी स्थिति शहर और ब्रांच के बदलने के साथ ही बदलेगी.

क्या थी न्यूनतम बैलेंस की सीमा ?

– मेट्रो और बड़े शहरों में न्यूनतम बैलेंस की सीमा -3000 रुपए

– छोटे शहरों में न्यूनतम बैलेंस की सीमा – 2000 रुपए

– ग्रामीण इलाके में न्यूनतम बैलेंस की सीमा- 1000 रुपए

एक अप्रैल 2018 से पहले लगने वाला लो बैलेंस चार्ज-

-बैलेंस 50 फीसदी कम होने पर चार्ज- 30 रुपए और जीएसटी

-75 फीसदी तक कम होने पर चार्ज -40 रुपए और जीएसटी

-75 फीसदी से ज्यादा कम होने पर चार्ज -50 रुपए और जीएसटी

एक अप्रैल 2018 के बाद लगने वाला लो बैलेंस चार्ज-

– बैलेंस 50 फीसदी कम होने पर चार्ज- 10 रुपए और जीएसटी

– 75 फीसदी तक कम होने पर चार्ज -12 रुपए और जीएसटी

– 75 फीसदी से ज्यादा कम होने पर चार्ज -15 रुपए और जीएसटी

कर्नाटक में मजबूत हुआ जेडीएस-बसपा गठबंधन

बंगलुरू। कर्नाटक विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को झटका लगा है तो वहीं जेडीएस और बसपा गठबंधन मजबूत हुआ है. 4 अप्रैल को अचानक मुख्यमंत्री सिद्धारमैया के चुनावी क्षेत्र चामुंडेश्वरी से 25 कांग्रेस नेता जेडी(एस) में शामिल हो गए. इसके बाद कर्नाटक का चुनावी माहौल अचानक गरमा गया है.

इस दलबदल के बाद एचडी कुमारस्वामी ने कहा कि वो सिद्धारमैया को हराएंगे. कर्नाटक चुनाव में बहुजन समाज पार्टी ने देवेगौड़ा की पार्टी से गठबंधन किया है. दोनों पार्टियां मिलकर चुनाव लड़ेंगी. बहुजन समाज पार्टी की अध्यक्ष मायावती और जेडीएस के अध्यक्ष मिलकर एक चुनावी सभा को भी संबोधित कर चुके हैं. वहीं दूसरी तरफ यह भी खबर है कि दो जेडी (एस), एक कांग्रेस और एक निर्दलीय नेता जल्द ही बीजेपी ज्वाइन कर सकते हैं.

दलितों के बंद में नीली पट्टी बांध करणी सेना के युवक ने की घुसपैठ!

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नई दिल्ली। एससी/एसटी एक्ट के खिलाफ दलित समाज के भारत बंद आंदोलन को लेकर तमाम तरह की निगेटिव खबरें दिखाई जा रही है. तमाम चैनल और समाचार पत्र दलित संगठनों और दलित समाज के लोगों को खलनायक बनाने में जुटे हुए हैं. इस बंद को हिंसक कह कर प्रचारित किया जा रहा है. लेकिन इस बीच कई ऐसे वीडियो और फोटो सामने आए हैं, जिसमें साफ दिख रहा है कि दूसरे लोगों ने दलितों की भीड़ पर गोलियां चलाई. तो एक ऐसी फोटो भी सामने आई है, जिसमें साफ दिख रहा है कि पिछले दिनों करणी सेना के आंदोलन में शामिल युवक माथे पर नीली पट्टी बांध कर दलित आंदोलन में भी शामिल है.

एक सोशल मीडिया यूजर ने इस शख्स की फोटो ट्विट की है. यूजर ने फोटो शेयर करते हुए लिखा कि ये शख्स करणी सेना प्रदर्शन के दौरान राजपूत था और भीम आंदोलन में किसी और रूप में बदल गया. करणी सेना प्रोटेस्ट में इस शख्स के माथे पर तिलक और हाथ में तलवार है जबकि इसी शख्स ने भीम आंदोलन में माथे पर नीला पट्टा बांधा हुआ है.

तो वहीं अलवर का एक वीडियो सामने आया है, जिसमें एक शख्स दलितों की भीड़ पर अपने छत से ताबड़-तोड़ गोली चला रहा है (दलित दस्तक के पास वीडियो है). इसमें कई लोग गोली लगने से गंभीर रूप से घायल हुए. स्थानीय लोग इस शख्स की पहचान 60 फुट रोड निवासी दीपक (गोलु पहलवान) के रूप में कर रहे हैं. उनका कहना है कि यह सब पुलिस की मूजौदगी में हुआ है. उनका यह भी आरोप है कि पुलिस ने गोली चलाने वाले शख्स पर कार्यवाही ना करते हुए शांति से रैली निकाल रहे दलितों पर लाठीचार्ज किया.

एससी-एसटी एक्ट को लेकर अब भी इन इलाकों में है तनाव

नई दिल्ली। SC/ST एक्ट में बदलाव के बाद 2 अप्रैल को दलित समुदाय द्वारा किए गए भारत बंद का असर अब भी देश के कई हिस्सों में देखा जा रहा है. राजस्थान के अलावा उत्तर प्रदेश के कुछ इलाके में भी तनाव है. राजस्थान में धारा 144 और कर्फ्यू बुधवार को भी लगा रहा.

उत्तर प्रदेश के हापुड़ और मेरठ में तनाव बना हुआ है. दो अप्रैल को हापुड़ के कई इलाकों में हिंसा की हुई थी. स्थानीय लोगों ने इसके लिए दूसरे वर्ग के लोगों पर आरोप लगाया था. तो वहीं स्थानीय लोगों का यह भी आरोप था कि कई गोदाम मालिकों ने खुद अपने गोदामों में आग लगा लिया और इसके लिए आंदोलनकारियों को जिम्मेवार ठहराया. इसको देखते हुए हापुड़ में 3 अप्रैल को प्राथमिक और जूनियर हाई स्कूल बंद रहें. हालांकि अब हिंसा की कोई खबर नहीं है लेकिन आज भी यहां तनाव बना हुआ है.

मेरठ में बसपा विधायक योगेश वर्मा की गिरफ्तारी के कारण बसपा कार्यकर्ताओं और योगेश वर्मा के समर्थकों में गुस्सा है. उनका कहना है कि बसपा विधायक को साजिशन फंसाया गया है.

बुधवार को मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले के महाराजपुर थाने इलाके में कर्फ्यू में थोड़ी ढील दी गई है. इसके अलावा वहां पर इंटरनेट सर्विस भी दोबारा चालू कर दी गई है. प्रदेश के भिंड और मुरैना में अभी भी कर्फ्यू लगा हुआ है, वहीं इंटरनेट अभी भी बंद है. तो वहीं सागर और बालाघाट जैसे इलाकों में अभी भी धारा 144 लागू है. आपको बता दें कि भिंड में 70 ज्ञात और 3400 अज्ञात लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया गया है.

ग्वालियर में कर्फ्यू ग्रस्त थाना क्षेत्र के सभी हथियारों के लाइसेंस निरस्त कर दिए हैं. इनकी संख्या करीब 6 हज़ार है. हालांकि, इंटरनेट सेवा बहाल करने के घोषणा की गई है. जिले में अब तक 65 लोगों की गिरफ्तारी हुई है. इसके अलावा अलग-अलग थानों में अब तक कुल 29 FIR दर्ज हुईं हैं.

राजस्थान के आधे दर्जन जिलों में अभी तक धारा 144 लगी हुई है. साथ ही इन जिलों में इंटरनेट की सुविधा भी बंद है. जिन इलाकों में तनाव बरकरार है, वहां पर पैरामिलिट्री फोर्स को तैनात किया गया है. वहीं अलवर में सीआरपीएफ की कंपनियों को तैनात किया गया है. मंगलवार की घटना के बाद हिंडौन में बीएसएफ ने फ्लैग मार्च किया था.

राजस्थान के करौली जिले के हिंडौन कस्बे में 5,000 लोगों की उग्र भीड़ द्वारा वर्तमान भाजपा विधायक और एक पूर्व विधायक के घरों में आग लगाने और अन्य स्थानों पर आगजनी एवं पत्थरबाजी की घटना के बाद कर्फ्यू लगा दिया गया था. हिंडौन में अभी भी कर्फ्यू जारी है. इलाके में बस, स्कूल और इंटरनेट की सुविधा बंद है. इसके अलावा लगातार पुलिस इलाके में गश्त कर रही है.

गौरतलब है कि SC/ST एक्ट में हुए बदलावों के खिलाफ केंद्र सरकार की पुनर्विचार याचिका पर मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई थी. सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले पर रोक लगाने से इनकार दिया. सुप्रीम कोर्ट ने भारत बंद के दौरान हुई हिंसा पर कहा, ‘अदालत के बाहर क्या हो रहा है इससे कोर्ट का कोई लेना देना नहीं है.’

कर्नाटक चुनावः मठों की राजनीति में राहुल से पिछड़े अमित शाह

बंगलुरू। कर्नाटक चुनाव में जहां सत्ता की चाबी जनता के हाथ में है तो वहीं सत्ता तक पहुंचने का रास्ता जनता के अलावा तमाम मठों से भी होकर गुजरता है. प्रदेश के तमाम लोग अपना फैसला उस मठ के आदेश के बाद लेते हैं, जिसके वो फॉलोअर होते हैं. यही वजह है कि राजनीतिक दल तमाम मठों में माथा टेक रहे हैं. लेकिन इस मामले में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से आगे निकल गए हैं.

बीते मंगलवार को राहुल गांधी और अमित शाह जनसभाओं के अलावा मठों में पहुंचे. बीजेपी अध्यक्ष अमित शाह हवेरी जिले के कनक गुरुपीठ गए. हालांकि, यहां उन्हें गुरुपीठ के मुख्य स्वामी श्री श्री निरंजनानंद पुरी से आशीर्वाद नहीं मिल पाया. दरअसल, ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मुख्य स्वामी यहां मौजूद ही नहीं थे. लेकिन दूसरी तरफ कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी को मुख्य पुजारी से मिलने का मौका मिल गया. राहुल गांधी ने ट्विटर पर इस मुलाकात की फोटो भी शेयर की है. मठ के सूत्रों का कहना है कि राहुल गांधी का कार्यक्रम बहुत पहले से निर्धारित था, यही वजह रही कि अमित शाह के पहुंचने पर मुख्य स्वामी उपलब्ध नहीं हो पाए.

कनक गुरुपीठ पिछड़े समुदाय का सबसे असरदार मठ माना जाता है. यही वजह है कि यहां के मुख्य स्वामी से मुलाकात होने और न होने के भी बड़े राजनीतिक मायने हैं. गौरतलब है कि राज्य के सभी 30 जिलों में मठों का जाल फैला हुआ है. जातीय समीकरण के लिहाज से मठों का अपना प्रभुत्व और दबदबा है, जो राजनैतिक दलों को उनकी ओर आकर्षित करता है. राज्य में 12 मई को 224 सीटों पर मतदान होना है. जबकि वोटों की गिनती 15 मई को होगी.

पढ़िए, SC-ST एक्ट पर सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा

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नई दिल्ली। SC/ST एक्ट में गिरफ्तारी से पहले जांच अनिवार्य करने के मामले में केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई की. सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने साफ किया कि हम एक्ट के खिलाफ नहीं हैं, लेकिन बेगुनाह को सजा न मिले, यह देखा जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने क्या-क्या कहा, आइए इस पर डालते हैं एक नजर-

  • सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि हम फिलहाल तुरंत गिरफ्तारी पर रोक के निर्देश पर रोक नहीं लगाएंगे. SC/ST एक्ट में केस दर्ज दर्ज करने के लिए प्रारंभिक जांच जरूरी है. कोर्ट ने स्पष्ट किया कि पीडित को मुआवजे का भुगतान तुरंत किया जा सकता है चाहे शिकायत आने के बाद FIR दर्ज ना हुई हो. कोर्ट ने ये भी स्पष्ट किया कि FIR, IPC के अन्य प्रावधानों पर दर्ज हो सकती है.
  • कोर्ट यह चाहती है कि किसी निर्दोष को सजा न मिले. क्योंकि यह इकलौता ऐसा कानून है कि जिसमें किसी व्यक्ति को कोई कानूनी मदद नहीं मिलती है. अगर एक बार मामला दर्ज हुआ तो व्यक्ति गिरफ़्तार हो जाता है, क्योंकि इस मामले में अग्रिम जमानत का प्रावधान नहीं है.

जस्टिस आदर्श कुमार गोयल ने कहा कि अन्य अपराध में आरोपों को वैरीफाई किया जा सकता है लेकिन इस कानून में आरोपों को वैरीफाई करना मुश्किल है इसलिए इस तरह की गाइडलाइन जारी की गई. सरकारीकर्मियों का पक्ष लेते हुए कोर्ट ने कहा कि अगर सरकारी कर्मी पर कोई आरोप लगाए तो वो कैसे काम करेगा. हमने एक्ट को नहीं बल्कि सीआरपीसी की व्याख्या की है.

इस मामले के कारण देश भर में हो रहे प्रदर्शन पर कोर्ट का कहना था कि हम सिर्फ कानूनी बात करेंगे, बाहर क्या हो रहा है हमें नहीं पता. हमने शिकायत की वैरिफिकेशन के लिए सात दिनों का वक्त रखा है.

पुलिस ने आरएसएस नेता को गरियाया तो याद आई गरिमा

आरएसएस के नेता और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राकेश सिन्हा पुलिस के व्यवहार से काफी आहत हैं. उन्होंने अपने आहत मन की बात ट्विटर पर लिखा है. असल में उनकी भावना इसलिए आहत हुई है क्योंकि पुलिस ने उन्हें दलित एक्टिविस्ट समझ कर जबरन गाड़ी में बैठा लिया और अभ्रद भाषा (इसे गरियाना ही कहते हैं) का इस्तेमाल किया.

घटना दो अप्रैल को भारत बंद के दौरान नोएडा की है. राकेश सिन्हा घटना के समय नोएडा के फिल्म सिटी एरिया में एक न्यूज चैनल पर पैनल डिस्कशन के लिए गए थे. वह वहां से लौट रहे थे तभी पुलिस ने उन्हें दलित प्रदर्शनकारी समझकर गिरफ्तार कर लिया. सिन्हा के ट्विट के मुताबिक “अनिल कुमार शाही के नेतृत्व में ज़बरन पुलिस उन्हें गाड़ी में बैठाकर ले गयी. उनका व्यवहार अशोभनिया था. धमकी भरा था. भीड़ जुटने पर 500 मीटर दूर जाकर छोड़ा. बाद में सफ़ाई दी. मुझे दलित एक्टिविस्ट समझ बैठे.”

आरएसएस नेता का कहना है कि पुलिस को किसी के साथ अभद्र भाषा का इस्तेमाल करने से पहले कम से कम उस शख्स की गरिमा का ध्यान रखना चाहिए. यहीं उन्होंने पुलिस की भी बात बताई है. जब राकेश सिन्हा ने अपना परिचय दिया तो पुलिस ने उन्हें बताया कि उन्हें लगा कि राकेश सिन्हा दलित प्रदर्शनकारी हैं इसीलिए गलती से उन्होंने मुझे गिरफ्तार कर लिया.

यहां सवाल यह है कि पुलिस ने संघ के नेता को दलित प्रदर्शनकारी समझ कर जबरन गाड़ी में बैठा लिया. उन्हें गालियां दी. बाद में यह जानकर कि वह दलित प्रदर्शनकारी नहीं बल्कि समान्य वर्ग से ताल्लुक रखने वाले संघ के नेता हैं तो पुलिस ने उन्हें तुरंत छोड़ दिया. तो क्या दलित प्रदर्शनकारियों की कोई गरिमा नहीं होती और पुलिस जैसे चाहे उनके साथ अभद्रता कर सकती हैं?? 2 अप्रैल को प्रदर्शन में शामिल सभी लोग कोई आम नागरिक या राजनैतिक प्रदर्शनकारी नहीं थे, बल्कि उसमें कई लोग सरकारी कर्मचारी और अधिकारी थे, पत्रकार, डॉक्टर और वकील थे. क्या उनकी कोई गरिमा नहीं थी? क्या प्रदर्शनकारियों के कोई नागरिक और मौलिक अधिकार नहीं थे?

अपनी मांगों के पक्ष में शांतूपूर्ण प्रदर्शन करना तो किसी भी नागरिक का मौलिक अधिकार है, चाहे वो संघ का नेता हो या फिर दलित प्रदर्शनकारी. लेकिन शायद भारत की सच्चाई यही है कि यहां किसी व्यक्ति के साथ व्यवहार उसके मौलिक अधिकार को ध्यान में रखकर नहीं किया जाता है, बल्कि उसकी जाति, धर्म और उसका पद देखकर किया जाता है. आरएसएस नेता को इसके खिलाफ भी आवाज उठानी चाहिए. भाजपा शासित राज्यों में लगातार दलितों के नागरिक अधिकारों का हनन हो रहा है. दलितों पर एक के बाद एक अत्याचार हो रहे हैं. संघ के इन नेता महोदय को अपने संगठन के मंच से इस बात पर भी आवाज उठानी चाहिए.

दलित दूल्हे की बारात निकालने की मांग को हाई कोर्ट ने किया खारिज

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लखनऊ। यूपी में दलित समाज का एक युवक अपनी दुल्हन के घर तक बारात लेकर जाना चाहता है, लेकिन शायद यूपी की योगी सरकार उसे ऐसा नहीं करने देना चाहती. हाथरस के बसई बाबा गांव के संजय कुमार की माने तो ऐसा ही लगता है.

असल में संजय की शादी ठाकुर बहुल गांव में तय हुई है. संजय अपनी दुल्हन के घर तक गाजे-बाजे के साथ बारात लेकर जाना चाहते हैं. लेकिन दिक्कत यह है कि उस गांव में जातिवादियों का इतना वर्चस्व है कि उस गांव में किसी जाटव को ठाकुरों के घर के सामने से अपनी बारात ले जाने की अनुमति नहीं है.

संजय कुमार ने हाईकोर्ट में अपील कर ठाकुर बहुल गांव में रहने वाली दुल्हन के घर तक बारात निकालने की इजाजत मांगी थी, लेकिन यूपी सरकार की रिपोर्ट के आधार पर कोर्ट ने अर्जी खारिज कर दी है. दरअसल कोर्ट द्वारा मामले में अपील के बाद पिछले सप्ताह DM और SP ने दुल्हन के गांव निजामाबाद (कासगंज जिला) का दौरा किया. इसके बाद उन्होंने अपनी रिपोर्ट में रास्ते में नाले, कूड़े और चौड़ाई का हवाला देकर बारात निकालने की इजाजत देने से इनकार कर दिया. अधिकारियों ने बारात निकालने की इजाजत न देने के पीछे यह भी बहाना दिया कि अब तक उस रास्ते से कभी जाटवों की बारात नहीं निकली.

जबकि दूल्हा और उसके परिवार वालों का आरोप है कि ठाकुर समुदाय नहीं चाहता कि उनके घर के सामने से कोई दलित बारात निकाले. संजय कुमार कहते हैं, ‘संविधान कहता है कि हम सब बराबर हैं, और मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहते हैं कि हम सब हिंदू हैं. वे एक हिंदूवादी पार्टी के मुखिया हैं. फिर हमें ऐसी स्थिति का सामना क्यों करना पड़ रहा है.’ ब्लॉक डेवलपमेंट काउंसिल के सदस्य कुमार पूछते हैं, ‘क्या मैं हिंदू नहीं हूं? एक संविधान से चलने वाले देश में लोगों के लिए अलग-अलग नियम नहीं हो सकते.’

सवर्णों की मानसिकता ही नहीं बदली तो क्या बदला

गावों से शहरों में आकर बसे दलित वर्ग के लोग इस भ्रम में जी रहे हैं कि वक्त के साथ-साथ जाति-प्रथा कमजोर पड़ती जा रही है. यह भ्रम यूं ही नहीं पनप रहा है. इसके पीछे जो सबसे बड़ा कारण इन लोगों को दिखता है, वह है… आफिस में काम करने वाले सभी वर्गों के लोगों का एक साथ बैठकर खाना खाना… साथ-साथ काम करना… साथ-साथ बिना किसी अलगाव के बातचीत करना. किंतु मैंने कभी भी इस भ्रम प्रकार को नहीं पाला. कारण कि यह ऊपरी तौर एक प्रकार की बाध्यता का परिणाम है. जातपाँत ज्यों के त्यों ही नहीं अपितु और अधिक पुख्ता हुई है.
दलित और गैरदलितों के बीच ही नहीं अपितु दलित वर्ग के लोग अपनी-अपनी जाति के ढोल पीटने में लग गए हैं. इसके परिणाम स्वरूप जातीय संस्थओं की बाढ़ सी आ गई है. दलितों को यह नही भूलना चाहिए कि ये जो थोड़ा-बहुत परिवर्तन देखने को मिल रहा है, यह केवल शिक्षा-दीक्षा के प्रसार-प्रचार और भौगोलिक मान्यताओं में परिवर्तन होने के चलते दिख रहा है… अन्यथा नहीं. गहरे से देखा जाए तो गैर दलितों की मानसिकता में कोई परिवर्तन नहीं आया है जिसके प्रमाण व्यापक रूप से विद्यमान हैं. शहरी दलित यदि गावों की ओर मुंह उठाकर देखेंगे तो पाएंगे कि दलितों के साथ गैरदलितों के व्यवहार में कुछ भी तो अंतर नहीं आया है, केवल और केवल ऊपरी तौर पर कुछ नरमी देखने को मिलती है. मानसिकता कतई नहीं बदली है. अलग-अलग राज्यों से जब-तब दलित उत्पीड़न की घटनाएं सामने आती रहती हैं.
पिछले दिनों राजस्थान विधानसभा में खुद सरकार की तरफ से यह जानकारी उपलब्ध कराई गई कि तीन साल में दलित दूल्हों को घोड़ी पर चढ़ने से रोकने की 38 घटनाएं लिखा-पढ़ी में सामने आई हैं. करीब दो साल पहले मध्य प्रदेश में एक दलित दूल्हे का हेल्मेट लगाए फोटो चर्चा में आया था. उसकी वजह भी घोड़ी पर चढ़कर बारात आना था. विरोध कर रही भीड़ ने पहले उसकी घोड़ी छीन ली, फिर पथराव शुरू कर दिया. दूल्हे को घायल होने से बचाने के लिए पुलिस को उसके लिए हेल्मेट का बंदोबस्त करना पड़ा. इन्हीं घटनाओं से एक सवाल उपजता है कि दलित शादी करें, इस पर किसी को कोई ऐतराज नहीं होता है लेकिन दूल्हा घोड़ी पर बैठकर नहीं आ सकता, इस सोच की कुछ और वजह नहीं अपितु गैरदलितों की नाक का सवाल है.
 मोदी जी के गुजरात में आज भी बहुत से गाँव ऐसे हैं जहाँ दलित वर्ग के लोग आज भी कुए से अपने आप पानी नहीं निकाल पाते हैं. दुखद ये भी है कि कुए से पहले गैरदलित अपने लिए पानी निकालते हैं और उसके बाद दलित वर्ग के लोगों को खुद पानी निकालकर देते हैं. इस काम में घंटा लगे या दो घंटा दलितों को पानी लेने के लिए इंतजार करना पड़ता है….. क्या शहरी दलितों को ग्रामीण दलितों की पीड़ा का कुछ भान होता है? नहीं….मुझे तो ऐसा नहीं लगता. कोई शक नहीं कि आजाद भारत में संविधान की रोशनी में समतामूलक समाज की बात होती आई है लेकिन कुछ प्रतीक ऐसे हैं जो खास वर्ग की पहचान से अभी तक जुड़े हुए हैं. खास वर्ग उन प्रतीकों को साझा करने को तैयार नहीं है. उसको लगता है कि साझा करने से उसकी ‘श्रेष्ठता’ जाती रहेगी.
ताजा खबर ये है कि कासगंज (इलाहाबाद) के निजामपुर गाँव में आज तक दलित दुल्हे की घोड़ी  पर चढ़कर  कोई बारात नहीं निकली है. ताजा मामला ये है कि दलित वर्ग के दुल्हे संजय कुमार घोड़ी पर सवार होकर अपनी बारात निकालना चाहते है. इसके लिए उन्होंने जिला स्तर के बड़े अधिकारियों से गुहार लगाई किंतु सब बेकार. आखिरकार संजय ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. संजय का आरोप है कि निजामपुर के सवर्ण उनके घोड़ी पर बैठकर बारात निकालने का विरोध कर रहे हैं. कानून व्यवस्था का हवाला देकर स्थानीय प्रशासन ने घोड़ी पर चढ़कर बारात निकालने की इजाजत देने से इंकार कर दिया था. कोर्ट से भी संजय को निराशा ही हाथ लगी. कोर्ट ने इस बिना पर संजय की याचिका खारिज कर दी कि यदि याची को किसी प्रकार की परेशानी है तो वह पुलिस के माध्यम से मुकदमा दर्ज करा सकता है. अगर दुल्हे य दुलहन पक्ष के लोगों से कोई जोर-जबरदस्ती करें तो वह पुलिस में इसकी शिकायत कर सकते हैं. कोर्ट के इस निर्णय पर हैरत की बात ये है कि पुलिस अधिकारी तो पहले ही संजय की चाहत को यह कहकर खारिज कर चुकी है कि यदि संजय घोड़ी पर चढ़कर बारात निकालता है तो ऐसा करने निजामपुर का माहौल बिग़ड़ सकता है. संजय ने अपने इस मामले को मुख्यमंत्री तक को भेजा है किंतु मुख्यमंत्री जी मौन साधे हुए हैं. वैसे वो दलित समर्थक होने का दावा करते हुए नहीं थकते हैं. इतना ही नहीं, दुल्हन के परिवार से कहा गया है कि बारात के लिए उसी रास्ते का इस्तेमाल किया जाए जिससे गांव के सभी दलितों की बारात जाती है
इस फैसले का शीतल का परिवार विरोध कर रहा है. उनका कहना है कि यह हमारे सम्मान की बात है. हम काफी जोर-शोर के साथ दूल्हे का स्वागत करना चाहते हैं और घोड़े वाली बारात चाहते हैं. गांव की सड़कें जितनी ठाकुरों की हैं उतनी ही हमारी भी हैं. इसकी वजह से जाटव (शीतल और संजय इसी समुदाय से ताल्लुक रखते हैं) और ठाकुरों के बीच तनाव का माहौल है.
गांव की प्रधान ठाकुर कांति देवी का कहना है, “हमें कोई दिक्कत नहीं है. लड़की की शादी हो, ठाकुर लोगों को कोई एलर्जी नहीं है. हम बारात का तहेदिल से स्वागत करेंगे. शीतल हमारी भी बेटी है किंतु दिक्कत यह है कि कोई जबर्दस्ती हमारे रास्ते पर आएगा और परंपरा को तोड़ेगा तो वो हमें मंजूर नहीं है.”
यूपी कैडर के रिटायर्ड आईपीएस एसआर दारापुरी इन हालात के लिए दो चीजें जिम्मेदार मानते हैं. एक, समाज के अंदर सामंतवादी सोच जिंदा है जो बदलाव स्वीकार करने को तैयार नहीं. उसे लगता है कि जैसे पुरखों के जमाने से होता आ रहा है, वैसे आगे भी पुश्त दर पुश्त चलता रहे. अगर दलित भी बराबर में आ खड़े हुए तो उन्हें अतिरिक्त सम्मान मिलना खत्म हो जाएगा. दूसरी चीज, सरकारी तंत्र भी सवर्णवादी मानसिकता से उबर नहीं पा रहा है. उसे लगता है कि सवर्णों की हर बात जायज है. यूपी का ही उदाहरण लें तो वहां के कलेक्टर का यह कहना है कि ‘उस जिले में पहले कभी दलित की घुड़चढ़ी नहीं हुई’, बहुत ही हास्यास्पद है. यह सलाह कि ‘अगर घुड़चढ़ी जरूरी है तो चुपके से कर ली जाए’ यह और भी हास्यास्पद है.
हाल ही में गुजरात के भावनगर जिले में कुछ गैरदलित लोगों ने घोड़ा रखने और घुड़सवारी करने पर एक दलित की हत्या कर दी. प्रदीप राठौर (21) ने दो माह पहले एक घोड़ा खरीदा था और तब से उसके गांववाले उसे धमका रहे थे. उसकी गुरुवार देर रात हत्या कर दी गई. प्रदीप के पिता कालुभाई राठौर ने कहा कि प्रदीप धमकी मिलने के बाद घोड़े को बेचना चाहता था, लेकिन उन्होंने उसे ऐसा न करने के लिए समझाया. कालुभाई ने पुलिस को बताया कि प्रदीप गुरुवार को खेत में यह कहकर गया था कि वह वापस आकर साथ में खाना खाएगा. जब वह देर तक नहीं आया, हमें चिंता हुई और उसे खोजने लगे. हमने उसे खेत की ओर जाने वाली सड़क के पास मृत पाया. कुछ ही दूरी पर घोड़ा भी मरा हुआ पाया गया. गांव की आबादी लगभग 3000 है और इसमें से दलितों की आबादी लगभग 10 प्रतिशत है. प्रदीप के शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भावनगर सिविल अस्पताल ले जाया गया है, लेकिन उसके परिजनों ने कहा है कि वे लोग वास्तविक दोषियों की गिरफ्तारी तक शव स्वीकार नहीं करेंगे.
ऐसी घटनाएं गैरदलितों की मानसिकता की पोल खोलने के लिए काफी हैं. अत: मेरा सबसे ये निवेदन है कि किसी प्रकार के परिवर्तन का भ्रम न पालकर समूचे समाज के भले के लिए बिना किसी वैमनस्य के जीजान से काम करें. ऐसे प्रकरण ऐसा सन्देश भी देते है कि शासन-प्रशासन के भरोसे सामाजिक एकता की कामना करना एक दिवास्वप्न जैसा ही है.
-तेजपाल सिंह ‘तेज’-

तीन वर्षो में 36 हजार किसानों ने आत्महत्या की – सरकारी रिपोर्ट

नई दिल्ली। देश में अन्नदाता के नाम से संबोधित किए जाने वाले किसान की हालत क्या है, यह केंद्र सरकार के एक रिपोर्ट से साफ हो गया है. केंद्र सरकार द्वारा जारी एक आंकड़े के मुताबिक देश में पिछले तीन सालों में 36 हजार किसानों ने आत्महत्या कर ली है. रिपोर्ट के मुताबिक साल 2014 से 2016 तक के दौरान ऋण, दिवालियापन एवं अन्य कारणों से करीब 36 हजार किसानों एवं कृषि श्रमिकों ने आत्महत्या की है.

कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने 2014, 2015 के राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के आंकड़े तथा वर्ष 2016 के अनंतिम आंकड़ों के हवाले से लोकसभा में यह जानकारी दी. लोकसभा में एडवोकेट जोएस जार्ज के प्रश्न के लिखित उत्तर में कृषि मंत्री ने कहा कि गृह मंत्रालय के राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के ‘भारत में दुर्घटना मृत्यु तथा आत्महत्याएं’ नामक प्रकाशन में आत्महत्याओं से जुड़ी रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2014 में 12360 किसानों एवं खेतिहर मजदूरों ने आत्महत्या की जबकि वर्ष 2015 में यह आंकड़ा 12602 था. वर्ष 2016 के लिये राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनंतिम आंकड़ों के मुताबिक 11370 किसान एवं कृषि श्रमिकों के आत्महत्या की बात सामने आई है.

ब्रेकिंगः SC-ST एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट ने नहीं बदला अपना फैसला

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नई दिल्ली। एससी-एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई पर कोर्ट का फैसला आ गया है. सुप्रीम कोर्ट ने अपनी सुनवाई में पिछले फैसले को बहाल रखा. कोर्ट ने कहा कि वह अपने फैसले पर कायम है और इस मामले में फिलहाल कोई बहाल नहीं किया जाएगा. खबर यह भी है कि कोर्ट का कहना था कि इस एक्ट के कारण किसी बेगुनाह को सजा नहीं मिलनी चाहिए.

 दलित संगठनों और आंदोलनकारियों को झटका देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले पर स्टे देने से इंकार कर दिया. सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की खुली अदालत में सुनवाई करते हुए कहा है कि एससी-एसटी ऐक्ट के प्रॉविजन से कोई छेड़छाड़ नहीं की गई है. गौरतलब है कि एससी-एसटी एक्ट पर सरकार ने पुनर्विचार याचिका डाली थी. इससे पहले मामले पर सियासत काफी तेज हो गई है. कांग्रेस पार्टी ने भाजपा पर मामले को देर से उठाने का आरोप लगाया है.

दलितों के सवाल पर राहुल गांधी ने पीएम मोदी पर लगाएं ये आरोप

नई दिल्ली। एससी-एसटी एक्ट में बदलाव के बाद बिना किसी राजनैतिक सहयोग के सड़क पर उतरे दलित समाज के लोगों ने विपक्ष को एक नई ताकत दे दी है. विपक्षी दल इस मुद्दे को सबसे पहले कर्नाटक में भुनाने में जुटे हैं. दो अप्रैल को बंद के खिलाफ देश भर की सड़कों पर युवाओं के उतरने के बाद कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने सीधे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को घेरा है.

दलित मुद्दे को उठाते हुए राहुल गांधी ने पीएम मोदी से सवाल किया कि दलितों के खिलाफ हिंसा पर पीएम खामोश क्यों रहते हैं. उन्होंने कहा कि दलितों को पीटा जाता है लेकिन पीएम कुछ नहीं बोलतें. राहुल गांधी ने कहा कि एससी-एसटी एक्ट रद्द करने कर भी पीएम मोदी खामोश क्यों हैं?

दूसरी ओर बीते दिनों कर्नाटक के बीजेपी सांसद और केंद्रीय मंत्री अनंत हेगड़े के उस बयान को भी कांग्रेस भुनाने में जुटी है, जिसमें उन्होंने संविधान में बदलाव की बात कही थी. संविधान में बदलाव की बात को कांग्रेस दलित समुदाय के बीच आंबेडकर के अपमान के तौर पर प्रचारित कर रही है. बता दें कि कर्नाटक में दलितों की 17 फीसदी आबादी है.

भारत बंदः पुलिस ने बसपा विधायक पर कसा शिकंजा

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लखनऊ। एससी-एसटी एक्ट में संशोधन के खिलाफ 2 अप्रैल को हुए भारत बंद में पुलिस ने अब शिकंजा कसना शुरू कर दिया है. यूपी में इस प्रदर्शन के दौरान दो लोगों की जान चली गई, जबकि 75 लोग घायल हो गए. इस संबंध में पुलिस ने बहुजन समाज पार्टी के विधायक योगेश वर्मा को गिरफ्तार कर लिया है. योगेश वर्मा मेरठ के हस्तिनापुर से विधायक हैं.

असल में प्रदर्शन के बाद सरकार के निशाने पर कई लोग हैं. मेरठ के एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी मंजिल सैनी ने योगेश वर्मा को हिंसा का मुख्य षड्यंत्रकारी बताया. मंजिल सैनी ने कहा कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने प्रदर्शनकारियों को संभालने के लिए पुलिस को खुली छूट दी हुई थी. प्रदर्शन के बाद करीब 200 लोगों को हिरासत में लिया गया है और उन पर नेशनल सिक्योरिटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया है. योगेश वर्मा भी उन 200 लोगों में शामिल है, जिन्हें हिरासत में लिया गया है.

बंद औऱ प्रदर्शन को लेकर बसपा प्रमुख मायावती ने भी अपनी पार्टी का समर्थन जताया था. उन्होंने आरोप लगाया कि कुछ असामाजिक तत्वों ने हिंसा भड़कायी जिससे जान एवं माल की क्षति हुई. उन्होंने कथित रूप से हिंसा भड़काने वालों के खिलाफ कार्रवाई की मांग करते हुए कहा कि राज्य सरकारों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उच्चतम न्यायालय के आदेश का विरोध कर रहे बेगुनाह लोगों को परेशान नहीं किया जाए. जहां तक योगेश वर्मा की बात है तो उन्हें एक दबंग बसपा विधायक माना जाता है.

दलित पुलिस अधिकारी बी.पी. अशोक ने भेजा राष्ट्रपति को इस्तीफा!

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नई दिल्ली। एससी-एसटी एक्ट में सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए संशोधन की आग अब दलित आंदोलनकारी, समाज के सामान्य वर्ग से होता हुए अब पुलिस महकमें तक में पहुंच गया है. इस बदलाव से आहत जाने-माने पुलिस अधिकारी और बहुजन मूवमेंट में बड़ा नाम डॉ. बी.पी अशोक ने इस्तीफे की पेशकश की है.

पुलिस प्रशिक्षण निदेशालय में तैनात अपर पुलिस अधीक्षक (एएसपी) डॉ. बीपी अशोक ने सोमवार को राष्ट्रपति को एक पत्र भेजा, जिसमें उन्होंने 7 मांगों को मानने या इस्तीफा स्वीकार करने का आग्रह किया है. उन्होंने पत्र में लिखा है, “इस परिस्थिति में मुझे बार-बार यही विचार आ रहा है कि अब नहीं तो कब, हम नहीं तो कौन.” उन्होंने पत्र की एक प्रति पुलिस महानिदेशक को भी भेजी है.

डॉ. अशोक ने पत्र में लिखा है कि एससी-एसटी एक्ट को कमजोर किया जा रहा है. संसदीय लोकतंत्र को बचाया जाए. रूल ऑफ़ जज, रूल ऑफ़ पुलिस की जगह पर रूल ऑफ़ लॉ का सम्मान किया जाए. उन्होंने आगे लिखा है कि अभी तक महिलाओं को पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं दिया गया है. उच्च न्यायालयों में एससी, एसटी, ओबीसी और माइनॉरिटी महिलाओं को अभी तक प्रतिनिधित्व नहीं मिल सका है. प्रमोशन में पर्याप्त प्रतिनिधित्व नहीं है. श्रेणी 1 से 4 तक इंटरव्यू युवाओं में आक्रोश पैदा करते हैं. सभी इंटरव्यू खत्म किए जाएं और जाति के खिलाफ स्पष्ट कानून बनाया जाए. हालांकि उन्होंने पत्र में आक्रोशित दलित युवकों से शांति की अपील भी की है.

गौरतलब है कि बहुजन आंदोलन में बी.पी. अशोक एक जाना माना नाम है. बसपा शासन में वह एएसपी सिटी लखनऊ (पूर्वी) के रूप में तैनात थे. बसपा शासन में ही अखिलेश यादव को गिरफ्तार कर इन्होंने खूब सुर्खियां बटोरी थी. डॉ. अशोक के पिता भी आईपीएस रहे हैं. हाल ही में डॉ. अशोक की बेटी और दामाद भी सिविल सर्विस की परीक्षा में चयनित हुए हैं.

भारत बंद से जुड़ी देश भर से 50 खबरें

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नई दिल्ली। भारत बंद का असर पूरे देश में देखा गया. सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी अधिनियम में बदलाव के विरोध में सड़कों पर उतरे लोग. सबसे बड़ी बात यह रही कि एससी-एसटी समाज के लोग बिना किसी राजनीतिक संगठन के सड़कों पर उतरे थे. बंद के दौरान दिन भर तमाम शहर सुलगते रहें. आइए एक नजर डालते हैं देश भर में बंद से जुड़ी 50 बड़ी खबरों पर… 1. बंद में शामिल होने के लिए सरकारी कर्मचारियों ने लिया सामूहिक अवकाश 2. बंद में महिलाओं ने भी जमकर हिस्सा 3. दिल्ली में तमाम इलाकों में सड़कों पर खड़ी रहीं डीटीसी की बसें 4. दलित संगठनों ने दिल्ली के मंडी हाउस पर इकट्ठा होकर किया प्रदर्शन 5. बिहार के गोपालगंज में जय भीम फाउंडेशन के बैनर तले अम्बेडकरवादियों ने किया प्रदर्शन. गोपालगंज में अम्बेडकरवादियों ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए संसोधन के खिलाफ नारे लगाएं. 6. आगरा में एत्मद्दौला के टेढ़ी बगिया पर 2 घंटे से ज्यादा हाइवे जाम रहा. आक्रोशित लोगों ने पुलिस बूथ पर किया कब्जा. दुकानों में तोड़-फोड़. 7. बिहार के छपरा में भी सड़कों पर उतरे प्रदर्शनकारी 8. बिहार के हाजीपुर में प्रदर्शनकारियों ने किया चक्का जाम. हाजीपुर में आंदोलनकारियों ने ट्रेन भी रोकी. 9. बिहार के अररिया, सुपौल, मधुबनी, दरभंगा, जहानाबाद और आरा में भीम सेना के लोगों ने रेल रोकी और सड़कों पर जाम लगा दिया. 10. मोतिहारी में प्रदर्शनकारियों ने गाड़ियों में कई गाड़ियों में तोड़-फोड़ की, वहीं कई जगह टायर जलाकर विरोध जताया गया. 11. यूपी के गोरखपुर में भी दिखा बंद का व्यापक असर 12. प्रशासन द्वारा अनुमति नहीं मिलने के बाद भी नहीं मानें अम्बेडकरवादी 13. हापुड़ में बंद से जन-जीवन अस्त व्यस्त 14. दिल्ली आने वाली सड़कों को दो घंटे तक जाम रखा 15. हापुड़ में आगजनी और गोलीबारी की भी खबर 16. हरियाणा में भी बंद के समर्थन में सड़कों पर उतरें हजारों अम्बेडकरवादी 17. उत्तराखंड के हल्द्वानी में एससी-एसटी शिक्षक अवकाश लेकर बंद में हुए शामिल 18. काली पट्टी बांधकर और एकजुट होकर बंद को दिया समर्थन 19. दलितों की सबसे ज्यादा आबादी वाले राज्य पंजाब में बंद को लेकर काफी गहमा-गहमी रही. 20. सिर्फ लुधियाना शहर में 4000 पुलिसकर्मी तैनात किए गए. पुलिस ने स्कूल, कॉलेज, मोबाइल और इंटरनेट सब बंद किया. 21. मध्य प्रदेश में भारत बंद का खासा असर रहा. यहां कई क्षेत्रों में हिंसा की खबरे हैं. 22. मध्य प्रदेश के लहार, गोहद, मेहगांव और भिंड में कर्फ्यू की खबर है. 23. भोपाल और इंदौर में जुलूस निकाले गए. 24. सागर और ग्वालियर में झड़प के बाद धारा 144 लगा दी गई. 25. प्रदेश के मुरैना स्टेशन पर छत्तीसगढ़ एक्सप्रेस में तोड़फोड़ और ट्रेन के शीशे तोड़ने की खबर है. पुलिस द्वारा फायरिंग की भी खबर है. 26. इसमें एक व्यक्ति की मौत हो गई है. जिसके बाद इलाके में कर्फ्यू लगा दिया गया. 27. मध्यप्रदेश के ही ग्वालियर में प्रदर्शन कर रहे दो समूहों के भिड़ने पर दो लोगों की मौत होने की खबर है. जबकि भिंड में भी एक मौत की खबर है. 28. पिछले कुछ समय से चर्चा में आए सहारनपुर में भी बंद का खासा असर रहा. 29. सहारनपुर के बेहट तहसील के बबैल में प्रदर्शनकारियों और पुलिस के बीच झड़प के बाद पुलिस ने प्रदर्शनकारियों पर लाठीचार्ज किया. 30. राजस्थान के बाड़मेर में करणी सेना और दलित संगठन के प्रदर्शनकारियों के बीच पथराव हुआ. इसके बाद कई गाड़ियों को फूंक दिया गया. 31. करणी सेना के लोग बंद का विरोध कर रहे थे, जिसके बाद अम्बेडकरवादियों के साथ उनकी झड़प हो गई. 32. राजस्थान के अलवर में आंदोलन उग्र होने पर पुलिस की फायरिंग में 3 युवक जख्मी हो गए हैं. 33. पुष्कर शहर में भी हिंसा की खबर है. यहां करीब 25 गाड़ियों को आग के हवाले कर दिया गया. 34. मामला बिगड़ने के बाद हालत पर काबू पाने के लिए पुलिस को लाठीचार्ज करना पड़ा. 35. राजस्थान के सांचौर में सोशल साइट पर भारत बंद को लेकर आपत्तिजनक पोस्ट के बाद मामला बिगड़ गया. 36. नीम का थाना, सीकर, बीकानेर में भी दलित संगठनों ने जमकर प्रदर्शन किया. 37. पंजाब के अमृतसर में सड़कों पर सन्नाटा पसरा रहा. 38. अमृतसर में बंद को देखते हुए भारी संख्या में सुरक्षाबल तैनात किया गया. प्रदर्शनकारियों ने पठानकोट अमृतसर नेशनल हाईवे को ब्लॉक कर दिया. 39. बंद का असर स्कूलों पर भी पड़ा है. पंजाब में 10 वीं और 12 वीं की परीक्षा पोस्टपोन कर दी गई है. 40. झारखंड की राजधानी रांची में पुलिस और प्रदर्शनकारियों के बीच हिंसक झड़प हुए. इसमें कई लोगों के घायल होने की खबर. 41. रांची के विमेंस कॉलेज के साइंस ब्लॉक में पुलिस और छात्र-छात्राओं के बीच जमकर हंगामा हुआ. छात्रों ने पत्थरबाजी की. पुलिस ने आंसू गैस के गोले दागे और लाठीचार्ज किया. 42. महाराष्ट्र के मुंबई, नागपुर, अमरावती समेत औरंगाबाद में दलित संगठनों ने जुलूस निकाले. मुंबई में कई जगह रेल रोके जाने की खबर है. 43. ओडिशा के संबलपुर में सुप्रीम कोर्ट के फैसले के विरोध में प्रदर्शनकारियों ने ट्रेन रोक दिया, जिसके कारण कई ट्रेंने प्रभावित हुई हैं. 44. मुजफ्फरनगर के नई मंडी थाने पर प्रदर्शनकारियों ने पत्थरबाजी की. जिसके बाद पुलिस ने फायरिंग की. 45. गाजियाबाद में रेलवे ट्रैक पर बड़ी तादाद में दलित प्रदर्शनकारी जमा हुए. जिसके चलते इस रूट से आने वाली तमाम ट्रेन रुकी हुई हैं. 46. मेरठ में दिल्ली-देहरादून हाइवे पूरी तरह से बंद हो गया है. इसके अलावा 2 बसों को भी आग के हवाले कर दिया गया है. 47. हाजीपुर में लोगों ने नरेन्द्र मोदी और स्थानीय सांसद और मंत्री रामविलास पासवान का पुतला दहन किया. हाजीपुर के लोगों ने रामविलास पासवान पर जाति का गद्दार होने का आरोप लगाया. 48. जयपुर में बंद समर्थकों ने अम्बेडकर चौक पर इकट्ठा होकर नारे लगाएं. 49. उज्जैन में प्रदर्शनकारियों ने जबरदस्त प्रदर्शन किया. पूरा शहर नीले झंडों से पटा रहा. 50. बिहार के रोहतास जिले के कोचस में भी बंद को लेकर सुबह से ही उत्साह रहा. सबसे खास बात यह रही कि यहां एससी-एसटी समाज के साथ पिछड़ा समाज और अल्पसंख्यक समाज भी बंद में शामिल हुआ.