बिहार में भाजपा के खिलाफ बिछ रही है बिसात!

नरेन्द्र मोदी और अमित शाह 2019 के चुनाव को जीतना आसान समझ रहे थे, वह उतना आसान होता नहीं दिख रहा है. देश में 120 सीटे ऐसी हैं जहां भाजपा के खिलाफ बिसात बिछने लगी है. इसमें बिहार की 40 और उत्तर प्रदेश की 80 लोकसभा सीटे हैं. यूपी में जहां मायावती और अखिलेश यादव ने साथ आने की घोषणा कर दी है तो वहीं बिहार में नीतीश कुमार, एक जमाने में उनके सहयोगी उपेन्द्र कुशवाहा और लोकजनशक्ति पार्टी के अध्यक्ष रामविलास पासवान की तिकड़ी के बीच खुसफुसाहट तेज हो गई है.

इस बीच अम्बेडकर दिवस पर आयोजित एक कार्यक्रम में नीतीश, रामविलास पासवान और राष्ट्रीय लोक समता पार्टी के नेता उपेंद्र कुशवाहा के एक मंच पर दिखने की खबरें बिहार की राजनीति में तेजी से गूंज रही है. यह सारी संभावनाएं यूं ही नहीं है, बल्कि यह तीनों नेताओं के लिए जरूरी भी है. असल में लोकसभा में भाजपा खुद अपने बूते बहुमत में है. ऐसे में वह सहयोगी दलों को बहुत ज्यादा भाव नहीं दे रही है. भाजपा की उपेक्षा के शिकार रामविलास पासवान से लेकर नीतीश और कुशवाहा महसूस कर रहे हैं. तो यूपी में ओमप्रकाश राजभर और महाराष्ट्र में शिवसेना भी इस बारे में अपनी नाराजगी जता चुकी है. ऐसी स्थिति में एनडीए में शामिल सहयोगी दल अब भाजपा को कमजोर करने की रणनीति पर काम कर रहे हैं.

देश की राजनीति के केंद्र लुटियन जोन की चर्चाओं की माने तो बिहार के ये तीनों नेता अगला लोकसभा चुनाव और फिर बिहार का आगामी विधानसभा साथ मिलकर लड़ सकते हैं. ये उनकी जरूरत भी है. नीतीश कुमार को जहां सत्ता में रहने की आदत लग चुकी है तो वहीं रामविलास पासवान अपने बेटे चिराग पासवान को राजनीति में ठीक से स्थापित नहीं कर पाए हैं. उपेन्द्र कुशवाहा की स्थिति भी ढुलमुल बनी हुई है. इन्हें यह भी अहसास है कि बिहार में आगामी चुनाव राजद बनाम भाजपा हो सकती है. ऐसे में अगर भाजपा की सीटें ज्यादा रहीं तो वो गठबंधन सरकार में अपना मुख्यमंत्री चाहेगी. नीतीश को मुख्यमंत्री प्रत्याशी बनाने के लिए पासवान औऱ कुशवाहा आराम से राजी हो सकते हैं. तो वहीं अगर ये साथ नहीं आएं तो इनकी स्थिति काफी कमजोर हो सकती है.

यह बात भी एकदम साफ है कि नीतीश कुमार बिहार में अपने दम पर सरकार नहीं चला सकते हैं. ऐसे में नीतीश पासवान और कुशवाहा के साथ मिलकर एक अलग समीकरण बना सकते हैं. बिहार में गैर-यादव ओबीसी और महादलितों को मिलाकर 38 प्रतिशत का वोटबैंक बनता है. यह आंकड़ा भी इस तीकड़ी साथ आने की संभावना को बल देता है. फिलहाल तीनों नेता ऐसी किसी चर्चा से इंकार कर रहे हैं लेकिन राजनीति में कब क्या हो जाए, कोई नहीं जानता. लेकिन अगर ऐसा हो गया तो 2019 में भाजपा भले ही केंद्र में आ जाए, उसके लिए अपने अकेले बूते सरकार बनाना मुश्किल होगा. और फिलहाल हर क्षेत्रिय दल यही चाहता है.

आईएएस टॉपर रही टीना डाबी ने रचाई शादी

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जम्मू (ब्यूरो)। 2015 में देश की सर्वोच्च प्रतियोगी परीक्षा सिविल सेवा की परीक्षा में टॉप कर सनसनी बन कर उभरी टीना डाबी ने शादी कर ली है. टॉपर टीना डाबी ने अपने बाद दूसरे स्थान पर रहे अतहर आमिर-उल-शफी खान से शादी की है. जम्मू- कश्मीर में पहलगाम की वादियों में दोनों की प्रेम कहानी को शादी के बंधन में बदल दिया गया. शादी 7 अप्रैल को हुई.

 पिछले कुछ वर्ष से कश्मीर के हालात खराब होने की छवि बनाई जा रही है. इस छवि को दूर करने के लिए दिल्ली की रहने वाली टीना डाबी और कश्मीर के रहने वाले अतहर आमिर–उल-शफी खान ने पहलगाम को शादी के लिए चुना. शादी के बाद दोनों अनंतनाग स्थित अतहर आमिर के पैतृक गांव देवेपोरा मटन में चले गए, जहां उन्होंने रिश्तेदारों व अन्य गणमान्य लोगों के लिए पार्टी आयोजित की.

ऐसे प्यार चढ़ा था परवान

2015 में आइएएस की परीक्षा में सफल होने के बाद जब दोनों नार्थ ब्लॉक में पर्सनल और ट्रेनिंग विभाग के सम्मान समारोह में मिले थे तो आमिर पहली नजर में ही टीना को दिल दे चुके थे. टीना ने कहा था कि हम लोग सुबह कार्यक्रम में मिले थे और शाम को आमिर उनसे मिलने पहुंच गया था. वह पहली नजर में प्यार था. टीना ने कहा था कि आमिर बहुत ही अच्छे इंसान हैं.2016 में टीना ने सोशल साइट पर आमिर के साथ शादी करने की बात कही थी.

दलित सांसदों की नाराजगी से पीएम मोदी से लेकर अमित शाह तक परेशान

नई दिल्ली। देश में दलितो को लेकर राजनीति तेज हो गई है. 2 अप्रैल को दलित आंदोलन के बाद भाजपा के दलित सांसदों की बेचैनी भी खुलकर सामने आने लगी है. एक के बाद एक चार दलित सांसद पार्टी में भेदभाव को लेकर मीडिया के सामने आ गए हैं. आलम यह है कि इनकी नाराजगी पीएम मोदी से लेकर अमित शाह तक के लिए चिंता का विषय बन गई है.

पिछले दिनों सावित्रीबाई फुले, छोटे लाल, इटावा के सांसद अशोक कुमार, नागिना के यशवंत सिंह जैसे सांसदों ने दलितों के मसले पर राज्य और केंद्र सरकार की भूमिका पर सवाल उठाकर मोदी और अमित शाह को परेशान कर दिया है. खबर है कि सांसदों की नाराजगी का डैमेज कंट्रोल करने के लिए मोदी ने बीते शनिवार को यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को दिल्ली बुलाया. एक घंटे तक चली इस बैठक के दौरान मोदी ने न केवल योगी से चर्चा की बल्कि इस मसले पर विस्तृत रिपोर्ट भी यूपी बीजेपी से मांगी है.

असल में गोरखपुर और फूलपुर के उपचुनाव में हार से पहले से ही परेशान भाजपा के लिए पार्टी के एक के बाद एक चार बीजेपी दलित सांसदों की नाराजगी पीएम मोदी के लिए भी सिरदर्द बन गई है. सभी सांसदों के यूपी से होने के कारण मोदी और अमित शाह ज्यादा परेशान हैं. वो इस मामले को तूल नहीं देना चाहते हैं.

दलितों को लेकर राजनीति तेज, राहुल और कांग्रेस का देश भर में उपवास

नई दिल्ली। एससी-एसटी एक्ट में संसोधन के खिलाफ सड़कों पर उतरे दलितों की ताकत और एकजुटता को देखते हुए अब तमाम राजनैतिक दल सहमें हुए हैं. दलितों की जागरूकता को देखते हुए अब राजनैतिक दलों को यकीन हो गया है कि वो अब दलितों को बहला नहीं पाएंगे. इसलिए दलितों और आदिवासियों को जोड़ने के लिए राजनैतिक दल पसीना बहाने लगे हैं. कांग्रेस पार्टी आज नौ अप्रैल को देश भर में उपवास और धरना कर रही है. दिल्ली में राहुल गांधी खुद राजघाट जाकर उपवास में शामिल होने पहुंचे.

राहुल गांधी के साथ दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अजय माकन, पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित तमाम दिग्गज नेता मौजूद थे. कांग्रेस कार्यकर्ता बीजेपी सरकार के खिलाफ और देश में सांप्रदायिक सौहार्द तथा शांति को बढ़ावा देने के लिए सभी राज्य और जिला मुख्यालयों में एकदिवसीय अनशन कर रहे हैं. कांग्रेस पार्टी सीबीएसई पेपर लीक, पीएनबी घोटाले, कावेरी मुद्दे, आंध्र प्रदेश को विशेष राज्य का दर्जे देने और दलितों के खिलाफ हो रहे हमले जैसे महत्वपूर्ण विषयों पर संसद में चर्चा कराने में केंद्र सरकार की नाकामी के खिलाफ धरना दे रही है.

असल में कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने पार्टी की प्रदेश इकाइयों के प्रमुखों को समाज के सभी वर्गों में सौहार्द को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रव्यापी उपवास रखने के निर्देश दिया था. दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी के उपवास से भाजपा परेशान है. एक ओर जहां एक के बाद एक दलित सांसद भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोले हुए हैं तो दलित समाज के अन्य लोग भी भाजपा के खिलाफ ज्यादा खड़े हैं. बौखलाई भाजपा के नवनिर्वाचित राज्यसभा सदस्य जीवीएल नरसिम्हा राव ने कहा कि यह दलित हितों के लिए उपवास नहीं है, यह दलित हितों का उपहास है.

पिछले 10 साल में दलितों पर अत्याचार 51 फीसदी बढ़ा

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नई दिल्ली। समाज आगे बढ़ रहा है, देश आगे बढ़ रहा है, लोगों में शिक्षा बढ़ रही है लेकिन इन तमाम अच्छी बातों के बीच एक बात चौंकाने वाली है. दलित उत्पीड़न को लेकर जारी सरकारी संस्था नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो की ताजा रिपोर्ट (2016) में इसी समाज का एक दूसरा चेहरा भी सामने आया है. यह रिपोर्ट बताती है कि पिछले दस सालों में दलितों पर अत्याचार तेजी से बढ़ा है. रिपोर्ट के मुताबिक दलितों पर होने वाले उत्पीड़न में पिछले दस सालों में 51 फीसदी की वृद्धि दर्ज हुई है.

देश में दलितों की कुल आबादी 20.14 करोड़ है जो देश की कुल जनसंख्या का 16.6 प्रतिशत है. दलित समाज अपने अधिकारों को लेकर लगातार सजग हुआ है. उसकी जागरूकता के कारण अब वह अत्याचारों का विरोध करने लगा है. हालिया आकड़े के आधार पर हम कह सकते हैं कि इसी विरोध के कारण अब शोषित तबका उस पर अब औऱ जुल्म करने लगा है.

सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी-एसटी एक्ट में जो बदलाव हुए हैं उसको लेकर देश भर में प्रदर्शन हो रहा है. इसमें शीर्ष अदालत का यह कहना था कि इस एक्ट का गलत इस्तेमाल कर लोगों को फंसाया जाता है. सवर्ण समाज ने भी इस पर काफी हल्ला मचाया था. लेकिन नए आंकड़े बताते हैं कि झूठे मामले के 21 फीसदी केसों की संख्या घटकर अब 15 फीसदी हो गई है.

ऐसा दलितों में बढ़ती जागरूकता औऱ शिक्षा के कारण हुआ है. असल में कुछ वक्त पहले तक सामान्य वर्ग का एक व्यक्ति सामान्य वर्ग के दूसरे व्यक्ति से अपनी दुश्मनी निकालने के लिए अपने अधीन काम करने वाले अनुसूचित जाति के लोगों से झूठे मामले दर्ज करवा देता था. अपनी रोजी-रोटी जैसे जरूरी जरूरतों के लिए सामान्य वर्ग पर निर्भर रहने के कारण अनुसूचित जाति का व्यक्ति दबाव में मामले दर्ज करवा देता था. लेकिन अब इस वर्ग में शिक्षा का प्रसार होने और सामान्य वर्ग पर निर्भरता कम होने से झूठे मामलों में कमी आई है. लेकिन दलितों पर बढ़ रहे हमलों के कारण चिंता बढ़ गई है.

सहारनपुर के दलितों ने बाबासाहेब के लिए खरीदा अखबार का पहला पन्ना

सहारनपुर। अपने अखबार ‘केसरी’ में बाबासाहेब के अखबार ‘मूकनायक’ का पेड विज्ञापन तक छापने से मना कर देने वाले बाल गंगाधर तिलक ने कभी यह नहीं सोचा होगा कि एक दिन ऐसा आएगा जब बाबासाहेब के अनुयायी उनके लिए अखबार का पूरा पन्ना खरीद लेंगे. लेकिन सालों बाद यह मुमकिन हो गया है, जब किसी सरकार ने नहीं बल्कि बाबासाहेब को अपना आदर्श मानने वाले लोगों ने ऐसा कर दिखाया है. उत्तर प्रदेश के सहारनपुर में दलित समाज के लोगों ने एक दैनिक अखबार का पहला पन्ना खरीद लिया है.

14 अप्रैल को बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर की 127वीं जयंती है. इसी के मद्देनजर बाबासाहेब को श्रद्धांजली देने के लिए सराहनपुर के अम्बेडकरवादियों ने यह फैसला किया. सराहनपुर में अम्बेडकरवादियों की संस्था ‘जागृति फाउंडेशन’ की ओर से यह विज्ञापन बुक किया गया है. संस्था से जुड़े लोगों के मुताबिक बाबासाहेब को श्रद्धांजली देने वाला यह विज्ञापन 14 अप्रैल को अमर-उजाला में प्रकाशित होगा. असल में पिछले दिनों में दलित आंदोलन लगातार मजबूत हुआ है. ऐसे में बाबासाहेब के विचार दिनों-दिन लोगों तक पहुंच रहे हैं. अम्बेडकरवादी आंदोलन का वैचारिक पक्ष भी लगातार मजबूत हुआ है. तो देश भर में अम्बेडकरवादियों की संख्या भी लगातार बढ़ रही है.

इस विज्ञापन को इसी रूप में देखा जा सकता है. जागृति फाउंडेशन की ओर से बाबासाहेब की जयंती पर 15 अप्रैल को अम्बेडकर जयंती का कार्यक्रम भी आयोजित किया गया है, जिसमें शहर भर के आम्बेडकरवादी हिस्सा लेंगे. कार्यक्रम के मुख्य अतिथि और वक्ता देश के प्रख्यात समाजशास्त्री और जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रोफेसर डॉ. विवेक कुमार हैं.

जिग्नेश मेवाणी ने ऐसा क्या कहा कि भाजपा अध्यक्ष ने दर्ज करवाया केस

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बंगलुरू। निर्दलीय विधायक जिग्नेश मेवाणी ने एक बार फिर पीएम मोदी को लेकर बयान दिया है. मेवाणी का यह बयान भाजपा के जिलाध्यक्ष को इतनी नागवार गुजरी कि उसने मेवाणी पर केस दर्ज कर दिया.

चित्रदुर्ग में जिग्नेश मेवाणी ने एक सभा को संबोधित करते हुए कहा कि कर्नाटक के युवा प्रधानमंत्री मोदी की रैलियों को बाधित करें. जिग्नेश मेवाणी ने युवाओं से अपील की है कि कर्नाटक के युवाओं का इस चुनाव में सबसे बड़ा योगदान यही होगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बेंगलुरु में प्रस्तावित रैलियों में कुर्सियां हवा में उछालें और मोदी की रैली को बाधित करें और उनके फंक्शन को डिस्टर्ब करें. जिग्नेश ने कहा कि दो करोड़ लोगों को नौकरी देने वाले वादे की बात मोदी से कहना अगर वह कुछ न बोलें तो उनसे कहो कि हिमालय चले जाएं. मेवाणी के इस बयान को लेकर कर्नाटक में चित्रदुर्गा जिले के भाजपा जिलाध्यक्ष ने दलित नेता जिग्नेश मेवाणी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराया है.

 

राहुल गांधी इस तरह देंगे कर्नाटक में अमित शाह को मात

नई दिल्ली। गुजरात चुनाव के पहले जो कांग्रेसी और विपक्षी नेता राहुल गांधी को गंभीरता से लेने को तैयार नहीं थे, अब उनका नजरिया बदल गया है. कांग्रेसी जहां राहुल गांधी की तारीफ करते दिख रहे हैं तो वहीं विपक्षी भाजपा नेता राहुल गांधी के तेवर देखकर चिंता में हैं.

कर्नाटक में चुनाव प्रचार अभियान में जुटे कांग्रेस के कुछ नेता करीब 6 महीने पहले राहुल गांधी को लेकर मज़ाक किया करते थे. उनका कहना था कि वे विधानसभा चुनाव में राहुल गांधी से बेहतर कैंपेनिंग कर सकते हैं. आज वे ही नेता खुले तौर पर राहुल गांधी की तारीफ करते दिख जा रहे हैं. चुनाव को लेकर उन्हें कांग्रेस अध्यक्ष की कैंपेनिंग और रणनीति पार्टी के लिए फायदेमंद दिख रही है. राहुल पार्टी कैडर में जोश और उम्मीद जगा रहे हैं.

कांग्रेसी नेताओं के मुताबिक गुजरात चुनाव के बाद राहुल गांधी बदले-बदले से नज़र आ रहे हैं. गुजरात चुनाव में भले ही बीजेपी को जीत मिली हो, लेकिन उसे कांग्रेस से कड़ी टक्कर मिली थी. चुनावी रण में कांग्रेस का नेतृत्व राहुल गांधी कर रहे थे. कांग्रेस नेताओं का मानना है कि इस चुनाव के बाद से राहुल गांधी और ज्यादा उत्साह से भर गए. वे कांग्रेस के लिए अब पहले से ज्यादा मेहनत कर रहे हैं. राहुल गांधी की चुनावी रणनीति ने अमित शाह को भी मुश्किल में डाल दिया है. अगर सब कुछ ठीक रहा तो राहुल गांधी कर्नाटक में कांग्रेस की वैतरणी पार लगा सकते हैं.

मनमोहन सिंह पर बनीं फिल्म का फर्स्ट लुक जारी

पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के जीवन पर बन रही फ़िल्म ‘द एक्सीडेंटल प्राइममिनिस्टर’ का पहला दृश्य सामने आ गया है. इस फिल्म में मनमोहन सिंह का किरदार अनुपम खेर निभा रहे हैं, जबकि सोनिया गांधी का किरदार जर्मनी की सुजैन बर्नर्ट निभा रही हैं. अक्षय खन्ना फ़िल्म में संजय बारू की भूमिका में हैं. इस फिल्म की हिन्दी और अंग्रेज़ी दोनों ही स्क्रिप्ट तैयार हैं. यह फ़िल्म संजय बारू की किताब ‘द एक्सीडेंटल प्राइममिनिस्टर’ पर आधारित है.

इस फ़िल्म का निर्देशन विजय रत्नीकर गुट्टे कर रहे हैं और हंसल मेहता फ़िल्म के क्रिएटिव प्रोड्यूसर हैं. फिल्म में सोनिया गांधी की भूमिका निभाने वाली सुज़ैन इससे पहले वह 7RCR नाम की एक टीवी सिरीज़ में भी सोनिया गांधी का किरदार निभा चुकी हैं. उन्हें हिन्दी, बंगाली और मराठी भाषा भी आती है.

 

2 अप्रैल भारत बंद – एक मूल्यांकन

2 अप्रैल को हुआ “भारत बंद”जिसमे दलित-आदिवासी एकता मजबूत नजर आयी. बहुमत आदिवासी और दलित जातियां इस बन्द में शामिल रही. इसके साथ ही देश के प्रगतिशील, बुद्विजीवी, लेखक, रंगकर्मी, कम्युनिस्ट पार्टियां बन्द के समर्थन में मजबूती से शामिल हुए. आदिवासी जिनका इतिहास ही सदियों से लड़ने का रहा है. जिनकी संस्कृति ही अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की, लड़ने की रही है. जल-जंगल-जमीन को बचाने के लिए जिन्होंने अपने सर कटवाए है तो दुश्मन के सर भी काटे है. आदिवासियों ने जंगल में जहाँ गोरे अंग्रेजो को नही घुसने दिया तो वही आजादी के बाद उन्होंने भारत के काले अंग्रेजो को भी नही घुसने दिया है. वो आज भी लड़ रहे है मजबूती से गोरे और काले अंग्रेजो की सयुंक्त लुटेरी सत्ता से, उन्होंने भारत बंद में मजबूती से विरोध दर्ज करवाया. उनके बन्द में सत्ता के उत्पीड़न के खिलाफ विरोध का स्वर मजबूत दिखाई दिया.

लेकिन क्या दलित सच में एकता की तरफ बढ़ रहे है. दावा तो ये भी किया जा रहा है कि दलित-मुस्लिम-पिछड़ा इकठ्ठे हो रहे है अपनी एकता बना रहे है. क्या इसमे सच्चाई है?

2 अप्रैल के भारी जन आक्रोश को देखते हुए दावे तो ब्राह्मणवाद को हराने के किये जा रहे है. बोला जा रहा है ब्राह्मणवाद हार रहा है, अब कुछ दिन का मोहताज है ब्राह्मणवाद. बहुत जल्दी ही दलित-पिछड़ो का राज होगा. सपने बहुत लिए जा रहे है वैसे सपने लेने का सबको अधिकार भी है लेकिन जब सपना टूटता है तो इंसान टूट जाता है भविष्य में खड़ा होना उसके लिए बहुत कठिन हो जाता है.

पूंजीपतियों द्वारा खड़े किए गए अन्ना और केजरीवाल के आंदोलनों से भी देश के लाखों लोगो ने परिवर्तन के सपने देखे थे. लेकिन जब सपना टूटा तो सपना देखने वाले भी टूट गए आज उनकी हालत बहुत बुरी है वो न इधर के रहे और न उधर के रहे.

इसलिए सपना जरूर देखो लेकिन पहले ठोस मैदान जरूर तैयार करो.

किसी भी आंदोलन का ईमानदारी से मूल्यांकन किये बिना आगे बढ़ना “अंधेरे में लठ मारना है”

सबसे पहले तो ब्राह्मणवाद क्या है इसको जानने की जरूरत है. ब्राह्मणवाद के नाम पर जो रोजाना ब्राह्मणों को गाली दे कर सन्तुष्टि की जा रही है. क्या इससे ब्राह्मणवाद हार जाएगा?

ब्राह्मणवाद

लुटेरी क़ौम द्वारा श्रम की लूट को धर्म का चोला पहनाकर लूट को जायज ठहराने और लुटेरो को सर्वश्रेठ साबित करने वाला विचार ब्राह्मणवादी विचार है. ब्राह्मणवाद जिसका प्रतिनिधित्व कभी सवर्ण जातियां करती थी. लेकिन वर्तमान में आज ब्राह्मणवाद सभी जातियों में है. जो भी जाति या व्यक्ति लुटेरी मण्डली में शामिल हो जाता है या होने का इच्छुक होता है वो ब्राह्मणवाद की चपेट में है. आज प्रत्येक जाति दूसरी जाति से खुद को स्वर्ण समझती है. एक झूठे औऱ काल्पनिक मिथकों व इतिहास के सहारे श्रेष्ठ बनने की कोशिश प्रत्येक जाति द्वारा की जा रही है.

बहुमत की मजदूर और किसान जातियाँ जो वर्तमान में दलित व पिछड़ो में विभाजित है. सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक परिवर्तन में जिनकी एकता बहुत जरूरी है. ये जातियाँ आपस में ब्राह्मणवाद का बहुत गहरे से शिकार है. आज भी ब्राह्मण ही ब्राह्मणवाद की अगुवाई कर रहा है. लेकिन इसके पीछे सभी जातियाँ खड़ी है.

दलित जातियाँ भी आपसमें छुआछूत उतना ही करती है जितना उनसे सवर्ण जातियाँ करती है.

सबसे पहले दलित जातियों की बात करे तो अपर दलित जातियाँ चमार, धानक, नायक जाति दलितों में स्वर्ण भूमिका में है. जितनी नफरत सवर्ण, दलितों से करते है उतनी ही नफरत अपर दलित जातियां के लोग अति दलित में शामिल जाति सेंसी, बावरी, वाल्मीक, पासी, भंगी इनके साथ करते है. जातियों में भी अंदर ये जात और गोत्रो में बंटे हुए है.

किसी भी गांव में इनके मकान इकठ्ठे नही है. जात के अनुसार अलग-अलग बस्तियां है. दलित तो जात के अंदर भी जात में बंटे हुए है. जिस समय गांव में पानी का साधन कुँए होते थे तो दलितों ने भी जाति अनुसार कुँए अलग-अलग बनाये हुए थे. चौपाल अलग-अलग, गांव में श्मशान भूमि जहाँ सवर्णो ने अलग बनाई हुई है ऐसे ही दलितों ने भी श्मशान भूमि के अंदर अलग-अलग जगह बनाई हुई है.

स्वर्ण जातियों में जो रीति-रिवाज, सामाजिक जकड़न और समाज का ढांचा है, वैसा ही ढांचा पिछड़ो व दलितों में है.

आप बराबर सवर्णो का ढांचा अपनाए हुए है. बराबर उन्ही नियम कानून कायदों में रहना पसंद करते है. लेकिन ब्राह्मणवाद को गालिया देते है उसको खत्म करना चाहते है. आपके जो दलित नेता है जो सुबह से शाम तक ब्राह्मणवाद के नाम पर सिर्फ ब्राह्मणों को गाली देकर वोट बटोरना चाहते है. लेकिन इस सामाजिक ढांचे को तोड़ना नही चाहते है. ये दलित नेता आपको गुलाम बनाये रखना चाहते है. ये दलित नेता वोटो की फसल के लिए दलित जातियों की एकता बने कभी नही चाहते है.

क्या 2 अप्रैल के भारत बंद में कोई दलित नेता आपको भारत बंद में शामिल होता दिखा? जबकि 60 से 70 सांसद और सैंकड़ो विधायक दलित है.

पिछड़ो के हालात –

जिसको इस आंदोलन से ये लगता है किइस आंदोलन में ओबीसी साथ आये है वो भी मूर्खता कर रहे है. OBC आरक्षण के लिए OBC है नही तो मानसिकता से सवर्ण है.

ऐसे ही मुस्लिम-सिख-ईसाई भी भारतीय संधर्भ में जातियों में बंटे हुए है. उनमें भी जातीय भेदभाव है. पिछड़ी जातियों में 2 तरह की जातियाँ है. छोटा किसान और भूमिहीन पिछड़े भूमिहीनों के सामाजिक हालात दलितों से थोड़े से बेहतर है लेकिन जातीय उत्पीड़न के वो भी शिकार है. OBC किसान जो बहुमत संख्या में ज्यादा है वो दलितों का जमकर उत्पीड़न करता है. सवर्णो के इशारे पर वो गांव में दलितों का सामूहिक सामाजिक बहिष्कार, आर्थिक बहिष्कार, राजनीतिक बहिष्कार करता रहा है. सवर्ण जाति खासकर ब्राह्मण इन पिछड़ी जाति के किसानों को आगे करके दलितों का जमकर उत्पीड़न करता है.

कुछ मामलों में स्वर्ण इन पिछड़ो का भी जातीय शोषण करते है. जहाँ सवर्ण जातीय बहुमत में है वहां वो OBC किसानों को अपना हुक्का भी नही पीने देंगे.

आरक्षण के सवाल पर सवर्ण इनकी खिलाफत करते है.

OBC जातियाँ खासकर किसानी से जुड़ी जातियाँ 2 अप्रैल के भारत बंद के खिलाफ थी और ये ही जातियाँ 10 अप्रैल के लुटेरी जातियों द्वारा बुलाये गए भारत बंद के समर्थन में खड़े है. क्योंकि SC/ST एक्ट उन जाहिलो को नकेल डालने का काम करता है जो इंसान को इंसान न मानकर उनसे जानवरो से भी बुरा व्यवहार करते है.

इसलिए ये जाहिल चाहते है कि उनको और आजादी मिल जाये मेहनतकश जातियों को लूटने की, लूट के खिलाफ आवाज उठाए तो जातीय आधार पर उनका दमन करने की, वो कोई भी कानूनी पाबन्दी नही चाहते है. वो मानवता को कुचलने का जो नंगा नाच धर्म की आड़ में हजारो सालो से करते आ रहे है उस नंगे नाच पर भारत के सविधान ने जो रोक लगाई थी उस रोक से आजादी चाहते है. इसलिए 10 अप्रैल कोउन्होंने भारत बंद बुलाया है. इस भारत बंद में obc किसान जातियाँ बढ़-चढ़ कर भाग लेंगी. भाग नही लेगी तो विरोध कभी नही करेगी इस भारत बंद का.

रोटी-बेटी का रिश्ता

सभी दलित जातियों की सवर्णो के सामने सामाजिक हालात बराबर है. इसलिए दलितों को दलित जातियों में सामाजिक बराबरी की तरफ बढ़ना चाहिए. दलित एकता अगर बनानी है तो सबसे पहले दलित जातियों को आपस मे रोटी-बेटी का रिश्ता कायम करना जरूरी है. रोटी-बेटी के रिश्ते का अभी तक दलित-पिछड़े-सवर्ण भी विरोध कर रहे है. जाति और शादी का भारतीय संधर्भ में मेल है. अगर सभी जातियों में रोटी-बेटी का रिश्ता बनता है तो जातिय बन्धन कमजोर जरूर होंगे. मान लो किसी गाँव मे दलितों का सामाजिक बहिष्कार किया हुआ है. आज कोई सवर्ण दलितों के पक्ष में नही बोलता सिर्फ प्रगतिशील लोगो को छोड़ कर लेकिन अगर उन दलितों में स्वर्ण जाति के बेटी या बेटा की शादी की हुई हैया दलितों में ही आपस में शादियां होती है तो क्या वो सवर्ण जात वाले या दलित अपने रिस्तेदारो के पक्ष में नही आ खड़े होंगे?

भूमि बंटवारा

बहुमत दलित व अति पिछड़ी जातियां भूमि हीन है इसलिए सबको भूमि बंटवारे की सांझी लड़ाई लड़नी चाहिए. जहाँ दलितों के पास बहुमत में खेती के लिए भूमि है वहाँ जातीय उत्पीड़न बहुत कम है.  दलित संगठित-असंगठित क्षेत्र में मजदूर है, वो खेत मजदूर है उनको श्रम की हो रही लूट के खिलाफ औऱ श्रम कानून लागू करवाने के लिए सांझी लड़ाई लड़नी चाहिए.

दलितों को शिक्षा-स्वास्थ्य-रोजगारके लिए सामूहिक आंदोनल खड़े करने चाहिए.

दलितों को आदिवासियों, अल्पसंख्यको, महिलाओं के मुद्दों परचल रहे संघर्षो में भागीदारी करनी चाहिए.

जब आप इन मुद्दों परलड़ेंगे तो आपकी इस लड़ाई का हिस्सा पिछड़े, सवर्ण जो मजदूर-किसान है वो भी आपके पीछे आएंगे क्योकि उनके आर्थिक मुद्दे भी ये ही है. जब वो आपके साथ आएंगे तो ये जातीय बेड़िया कमजोर होगी. अगर ईमानदारी से लड़े तो जीत आपकी तय है. ब्राह्मणवाद का खात्मा, लूट तंत्र का खात्मा है.

उदय चे

अम्बेडकर जयंती पर देहरादून में एक हफ्ते का भीम महोत्सव शुरू

देहरादून। पिछले तकरीबन तीन-चार सालों से बाबासाहेब डॉ. अम्बेडकर और भगवान बुद्ध की विचारधारा के लिए काम करने वाली संस्था दून बुद्धिस्ट सोसायटी इस साल देहरादून में बड़ा कार्यक्रम आयोजित करने जा रही है. देहरादून के परेड ग्राऊंड में 7 से 15 अप्रैल तक इस बार दून बुद्धिष्ट सोसायटी के नेतृत्व में भीम महोत्सव का आयोजन किया जाएगा. भारत रत्न डा. भीम राव अम्बेदकर के 127वें जन्मोत्सव कार्यक्रम को समर्पित ‘सांझी विरासत का भव्य सांस्कृतिक एवं बौद्धिक मेला’ भी आयोजित किया जाएगा. इस बार मेले को भव्य रूप दिया गया है. परेड ग्राऊंड में होने वाले मेले के दौरान रोज शाम को 5 बजे से रात 9 बजे तक प्रदेशभर के प्रसिद्ध कलाकारों द्वारा गीत, संगीत, कवि सम्मेलन, नाट्य मंचन, लोकनृत्य, समसामयिक विषयों पर बौद्धिक चर्चा, उद्यमिता मार्गदर्शन की कार्यशाला आदि के कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे. मुख्य कार्यक्रम महामना ज्योतिबा फूले की जयंती 11 अप्रैल से लेकर बाबा साहेब की जयंती 14 अप्रैल तक आयोजित किए जाएंगे. इस दौरान नाट्य कार्यक्रम के अलावा देश के जाने-माने अम्बेडकरवादी कलाकारों का जमावड़ा लगेगा. इसके अतिरिक्त मेले में देशभर के राज्यों से लघु उद्यमी, शिल्पकार और स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा उत्पादों को बेचने और प्रमोट करने के लिए स्टाल भी लगाए जाएंगे.

अम्बेडकरवादी युवा से डरे मप्र के सीएम, दौरे से पहले पुलिस ने किया गिरफ्तार

पन्ना। मध्य प्रदेश के पन्ना जिले में मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के दौरे से पहले एक अम्बेडकरवादी दलित एक्टिविस्ट के साथ पुलिसिया ज्यादती की खबर है. अनुसूचित जाति-जनजाति पिछड़ा वर्ग युवा संगठन के कार्यवाहक प्रदेश अध्यक्ष जितेंद्र सिंह जाटव के मुताबिक 4 अप्रैल को बिना किसी कारण के भारी मात्रा में पुलिस बल उनके घर में पहुंच गई और उन्हें गिरफ्तार कर लिया. गिरफ्तार कर पुलिस उन्हें पन्ना में अनुसूचित जाति थाने में ले गई और सुबह से शाम तक बिठाने के बाद शाम को 159 के तहत मामला दर्ज कर छोड़ दिया. पुलिस ने इस गिरफ्तारी की वजह बताते हुए कहा कि मध्यप्रदेश के CM शिवराज सिंह चौहान के 4 अप्रैल को पन्ना दौरे के कारण जितेन्द्र जाटव को गिरफ्तार किया गया. बकौल जितेन्द्र पुलिस वालों ने उनसे कहा कि उन्हें शक है कि वो दलित-पिछड़े समाज से जुड़ी मांग उठा सकते हैं. हालांकि इससे पहले जितेन्द्र की गिरफ्तारी के विरोध में भारी संख्या में अम्बेडरवादी युवा अनुसूचित जाति थाने में पहुंच गए और इस घटना की निंदा की. विरोध दर्ज करते हुए 5 अप्रैल को दलित, पिछड़े और अल्पसंख्यक समाज के लोगों ने जिला कलेक्टर में पहुंचकर सरकार के खिलाफ नारेबाजी की और पन्ना पुलिस अधीक्षक रियाज इकबाल को पद से हटाने की मांग की. विरोध प्रदर्शन में शामिल लोगों का कहना था कि बिना किसी कारणवश उनके साथी को गिरफ्तार कर उन पर असंवैधानिक तरीके से मामला दर्ज करना कहीं ना कहीं उनके मौलिक अधिकारों का हनन है. प्रदर्शनकारियों ने जितेन्द्र जाटव पर दर्ज मामला वापस लेने की मांग की. गौरतलब है कि जितेन्द्र दलित एक्टिविस्ट हैं और दलितों-पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के सवाल पर लगातार संघर्ष करते रहते हैं.

जयपुर में अम्बेडकर जयंती पर होगी समानता के लिए दौड़, क्रिकेटर इरफान पठान भी होंगे शामिल

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जयपुर में एकता नवनिर्माण ट्रस्ट द्वारा 14 अप्रैल को इस दौड़ का आयोजन किया जा रहा है

नई दिल्ली। अम्बेडकर माह शुरू हो चुका है. इस दौरान दुनिया भर में तमाम संगठन संविधान के अनुरूप समानता की बात करते हुए तमाम कार्यक्रम आयोजित करते हैं. इसी श्रृंखला में जयपुर में एक बड़ा और महत्वपूर्ण कार्यक्रम आयोजित किया गया है. एकता नवनिर्माण ट्रस्ट द्वारा जयपुर में रन फॉर इक्वालिटी कार्यक्रम का आयोजन किया जा रहा है. समानता के लिए होने वाली यह दौड़ अम्बेडकर सर्किल पर होगा.

देखिए इरफान खान ने वीडियो जारी कर क्या अपील की 

समानता के लिए होने वाली इस दौड़ को जाने-माने दिग्गजों ने अपना समर्थन दिया है, इसमें मशहूर क्रिकेटर इरफान पठान, दिग्गज अभिनेता गोविंदा और जॉनी लीवर जैसी हस्तियां शामिल हैं. इन सभी दिग्गजों ने इस दौड़ के समर्थन में अपील भी जारी की है. इस दौड़ में मशहूर क्रिकेटर इरफान पठान भी लोगों के साथ दौड़ेंगे.

कार्यक्रम के लिए गोविंदा की अपील देखिए

रन फॉर इक्वालिटी को लेकर एकता नवनिर्माण ट्रस्ट से जुड़े तमाम कार्यकर्ता भी जुटे हुए हैं. सोशल मीडिया, रेडियो और तमाम माध्यमों से इस दौड़ में ज्यादा से ज्यादा लोगों से शामिल होने की अपील की जा रही है. इस दौड़ में शामिल होने के लिए इच्छुक लोग इस नंबर (9001716311, 9660037537) पर संपर्क कर सकते हैं. संबंधित कार्यक्रम के फेसबुक पेज को देख कर आप औऱ जानकारियां हासिल कर सकते हैं. “दलित दस्तक” भी जयपुर और इसके आस-पास मौजूद सभी पाठकों से समानता की इस दौड़ में शामिल होने की अपील करता है.

बंद के बाद मेरठ में दलित युवक की हत्या, मारने वालों ने कहा- ‘तू बड़ा नेता बनता है’

नई दिल्ली। दलित समाज के लोगों द्वारा दो अप्रैल को भारत बंद के बाद मेरठ और हापुड़ में स्थिति सुधर नहीं रही है. बंद के बाद मेरठ में सोशल मीडिया पर दलित गुंडों के नाम से एक लिस्ट वायरल हुई, जिसमें 83 दलितों के नाम थे. इसमें सबसे ऊपर जिस 28 साल के युवा गोपी पेरिया का नाम था, तीन दिन बाद उसकी हत्या हो गई है. उसे पांच गोलियां मारी गई. युवक के पिता बसपा नेता ताराचंद हैं.

पिता ताराचंद की शिकायत पर पुलिस ने चार लोगों के खिलाफ केस दर्ज किया है. आरोपियों में शोभापुर निवासी मनोज गुज्जर, आशीष गुज्जर, कपिल राणा और गिरधारी का नाम शामिल है. सभी पर भारतीय दंड संहिता(आईपीसी) की धारा 302, 504, 506 और एससी-एसटी एक्ट के तहत केस दर्ज किया है. पुलिस को दी तहरीर में मृतक के पिता ताराचंद ने कहा कि घटनास्थल पर मनोज, आशीष और कपिल अपने दो अन्य साथियों सुनील तथा अनिल के साथ मौजूद थे. मनोज ने सबसे पहले गोपी के सीने में गोली मारी, फिर कपिल और आशीष ने गोली मारी. एक गोली सीने में दो, तीन गोलियां पीछे और पांचवीं गोली उसके हाथ में लगी. ताराचंद के मुताबिक मरने से छह घंटे पहले बेटे गोपी ने कहा था कि आरोपियों ने गोली मारने से पहले जातिसूचक शब्दों से नवाजा फिर कहा-तू बड़ा नेता बनता है.

मृतक गोपी के भाई प्रशांत ने कहा कि सोशल मीडिया पर वायरल हुई लिस्ट में अपना नाम देखकर सभी दलित युवा भाग गए थे, मगर गोपी नहीं भागा और वो गांव में ही रहा. प्रशांत ने कहा कि इस लिस्ट में मेरा नाम पांचवे स्थान पर था. पहले हमने सोचा कि यह पुलिस की लिस्ट है मगर पता करने पर पुलिस ने इन्कार कर दिया. संबंधित लिस्ट में मेरा पाचवां स्थान था. गौरतलब है कि दो अप्रैल को भारत बंद के दौरान दलित बाहुल्य शोभापुर गांव के पास हिंसा भड़क उठी थी, इस दौरान प्रदर्शनकारियों ने पुलिस चौकी को आग के हवाले कर दिया.

अम्बडेकर महासभा योगी को देगी ‘दलित मित्र अवार्ड’, एस.आर. दारापुरी ने कहा भाजपा के हाथों में खेल रहे हैं लालजी निर्मल

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लखनऊ। पिछले दिनों हुए उपचुनाव में दलितों और पिछड़ों के लिए सांप-छुछूंदर जैसी भाषा का प्रयोग करने वाले और मुलाकात से पहले दलितों को साबुन भेजने वाले सीएम योगी आदित्यनाथ को लखनऊ स्थित अम्बेडकर महासभा ने ‘दलित मित्र अवार्ड’ देने का फैसला किया है. सूचना है कि लखनऊ में 14 अप्रैल को अंबेडकर जयंती के मौके पर योगी को ‘दलित मित्र’ का सम्मान दिया जाएगा. अम्बेडकर महासभा के अध्यक्ष लालजी प्रसाद निर्मल हैं.

इस सूचना के सामने आते ही अम्बेडकरवादियों ने कड़ी प्रतिक्रिया दर्ज कराई है और निर्मल के फैसले का पुरजोर विरोध शुरू कर दिया है. 1998 में स्थापित महासभा के दो संस्थापक सदस्यों ने सीएम योगी आदित्यनाथ को दलित मित्र सम्मान दिए जाने के ऐलान का विरोध किया हैं. पूर्व आईजी एसआर दारापुरी सहित दो सदस्यों ने योगी को सम्मान दिए जाने का विरोध करने की धमकी दी है. उन्होंने अंबेडकर महासभा के अध्यक्ष लालजी प्रसाद निर्मल पर बीजेपी के हाथों में खेलने का आरोप लगाया है.

योगी सरकार लगातार दलितों के निशाने पर है. 2 अप्रैल को दलित समाज द्वारा किए गए भारत बंद के बाद भी यूपी में तमाम दलित युवाओं की धड़-पकड़ जारी है, तो कईयों पर रासुका लगा दिया गया है. इसके पहले उत्तर प्रदेश में ही राज्यपाल राम नाईक की सलाह पर अंबेडकर के नाम में उनके पिता का नाम भी जोड़ दिया गया है. इसको लेकर भी दलित संगठन लगातार विरोध कर रहे हैं.

आज की रात भी जेल में गुजारेंगे सलमान

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जोधपुर। काले हिरण के शिकार मामले में सजा सुनाए जाने के बाद सलमान खान जोधपुर की जेल में है. गुरुवार की रात जेल में गुजारने के बाद सबको यकीन था कि सलमान को शुक्रवार को बेल मिल जाएगी और वो जेल से बाहर आ जाएंगे, लेकिन अब आज की रात भी सलमान को जेल में ही बितानी पड़ेगी. जोधपुर सेंट्रल जेल में बंद कैदी नंबर 106 यानि सलमान खान को जोधपुर के कंकाणी में 1998 में दो काले हिरणों का शिकार करने के जुर्म में जोधपुर की CJM कोर्ट ने 5 साल की सजा सुनाई है.

सलमान के वकील जेल में जाकर उन्हें जमानत ना मिलने की जानकारी देंगे. फैसला आने के बाद सलमान से जेल में मिलने के लिए उनकी दोनों बहनें जेल के लिए रवाना हो गईं. अब शनिवार को सुबह 10.30 सलमान की जमानत पर सेशन कोर्ट के जज फैसला सुनाएंगे. इससे पहले शुक्रवार की सुबह जज रवींद्र कुमार जोशी ने सलमान के वकील की सारी दलीलें सुनीं. करीब डेढ़ घंटे तक चली बहस के बाद सेशन कोर्ट के जज रवींद्र कुमार जोशी की अदालत ने सलमान की जमानत पर शनिवार को फैसला सुनाने की बात कही.

इधर इस मामले से जुड़े तमाम लोग सामने आने लगे हैं. सलमान के खिलाफ केस दर्ज कराने वाले फॉरेस्ट अफसर ललित बोरा ने नागपुर में मीडिया से कहा कि उन्होंने कभी नहीं सोचा कि वह एक बॉलीवुड सितारे के खिलाफ कार्रवाई कर रहे हैं.

देश को गृहयुद्ध में झोंक रही है भाजपा

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अभी मैं आजतक न्यूज चैनल पर खबर देख रहा था तभी मैंने देखा कि मेरठ में 2 अप्रैल को आयोजित भारत बंद में शामिल लड़कों को पुलिस द्वारा पकड़कर किसी थाने में बंद किया जा रहा है. उस थाने का दृश्य देखकर मैं सिहर गया, उसमें थाने की गैलरी में कई पुलिसवाले लाइन में लाठी लेकर खड़े थे और जो भी थाने में लाया जा रहा था उसे बेरहमी से एक तरफ से पीटते हुए लाकअप में डाला जा रहा था. उसमें से ज्यादातर दलित बच्चे और कम उम्र के नौजवान थे जो इस मार की वजह से जमीन पर गिरकर बुरी तरह तड़प रहे थे. ठीक इसके बाद उ0 प्र0 पुलिस के एडीजी की बाइट आयी जिसमें में वह 2 अप्रैल के भारत बंद में नामजद हुए लोगों को किसी भी हालत में न बख्शने की धोषणा कर रहे थे. गौरतलब हो कि आंदोलनकारियों पर सरकार ने पहले से ही रासुका लगाने का आदेश दिया हुआ है. यह पूरी स्थिति देश को और विशेषकर उत्तर प्रदेश को गृहयुद्ध में ले जाने की भाजपा की एक गहरी साजिश का हिस्सा है.

दरअसल मोदी सरकार पिछले चार सालों के अपने शासनकाल में चौतरफा विफल और गैरजबाबदेह सरकार साबित हो चुकी है. चुनाव के दौरान की गयी घोषणाएं और वायदे महज जुमले बनकर रह गए हैं. न तो रोजगार सृजन हुआ और न ही विकास किया जा सका. पहले से ही तबाह हो रही खेती किसानी का हाल और खराब हो गया, छोटे-मझोले उद्योग बर्बाद हो गए, महंगाई लगातार बढ़ती गयी और भ्रष्टाचार पर लगाम नहीं लगी. इस दौरान देश की लोकतांत्रिक संस्थाओं को तहस नहस किया गया और सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर दिया गया. तमाम गैरजरूरी सवाल और अज्ञानी विद्धानों ने देश की छवि को अंतर्राष्ट्रीयस्तर पर गहरा नुकसान पहुंचाया. समाज के कमजोर तबकों विशषकार दलितों, आदिवासियों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों पर सरकार और सत्ता के संरक्षण में हमले बढ़े है. कानून के राज की जगह तानाशाही चल रही है.

लोकतांत्रिक प्रतिवादों तक पर बर्बर हमले हो रहे और आंदोलन के नेताओं पर रासुका लगाकर जेल में बंद किया गया है. उ0 प्र0 में भीम आर्मी के नेता चंद्रशेखर की गिरफ्तारी और उनका दमन इसका सबसे बड़ा उदाहरण है. सरकार की इस नाकामियों के विरूद्ध जनता में गहरा आक्रोश है. इस आक्रोश की विभिन्न प्रकार से अभिव्यक्तियां हो रही हैं. महाराष्ट्र, राजस्थान, मध्यप्रदेश समेत कई राज्यों में किसान आंदोलन के रूप में, आंध्र प्रदेश व तेलंगाना में विशेष आर्थिक पैकेज के रूप में, गुजरात में पाटीदार व दलित आंदोलन तथा देश में व्यापारियों, नौजवानों, कर्मचारियों, मजदूरों के आंदोलनों में यह दिखता है. 2 अप्रैल को एससी-एसटी एक्ट 1989 को सुप्रीम कोर्ट द्वारा कमजोर करने के खिलाफ दलितों द्वारा किया गया भारत बंद भी इसी आक्रोश की अभिव्यक्ति थी. इस बंद में स्थापित पार्टियों और नेताओं के बिना ही बड़े पैमाने पर दलित नौजवानों और कर्मचारियों ने भागेदारी की और इसे सफल बनाया.

इस बंद में दलितों ने जो सवाल उठाए हैं वह महज दलितों के सवाल नहीं अपितु देश के हर इंसाफ पसंद नागरिक का सवाल है. सुप्रीम कोर्ट का यह कहना कि जांच के बाद ही एससी-एसटी एक्ट में एफआईआर दर्ज होगी और इससे वह इस एक्ट के दुरूपयोग को रोकना चाहता है, कहां तक जायज है? आप खुद सोचें यदि यह नियम मान लिया जाए तब तो आईपीसी और सीआरपीसी को लागू करना ही असम्भव हो जायेगा. सीआरपीसी साफ कहती है कि किसी अपराध के घटित होने की सूचना प्राप्त होने पर उसकी प्राथमिक सूचना रिपोर्ट लिखकर तत्काल विवेचना शुरू की जाए. प्राथमिक सूचना रिपोर्ट दर्ज करने की अनिवार्यता के सम्बंध में खुद सुप्रीम कोर्ट ने ही दर्जनों आदेश दिए हुए हैं. तब रिपोर्ट से पहले जांच करना और अनुमति प्राप्त करने की बात विधि के विरूद्ध है. यहीं नहीं व्यवस्था यह है कि मामले की विवेचना के बाद पुलिस चार्जशीट न्यायालय में दाखिल करती है और न्यायालय मामले को गुण दोष और साक्ष्यों के आधार पर निस्तारित करता है.

कोई अभियुक्त महज आरोप लगाने से दोष सिद्ध नहीं हो जाता. तब विधि द्वारा स्थापित इस व्यवस्था के विरूद्ध सुप्रीम कोर्ट का आया आदेश ब्रहमवाक्य नहीं है और उसका विरोध कानून के राज को स्थापित करने की लोकतांत्रिक मांग की अभिव्यक्ति है. विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान की रक्षा की इस मांग का समर्थन करना संविधान में विश्वास करने वाले हर नागरिक का दायित्व है. यही वजह है कि वामपंथी, जनवादी, जनपक्षधर सभी संगठनों और आंदोलनों ने इस बंद का समर्थन किया. लेकिन भाजपा और संघ जिनका देश के संविधान में शुरू से ही विश्वास नहीं रहा है और जो लगातार तानाशाही को स्थापित करने का प्रयास करते रहे हैं , ने इस अवसर पर देश में जातीय धु्रवीकरण पैदा करने और इसके जरिए अपनी नाकामियों पर पर्दा डालने का गहरा घृणित खेल खेला. जहां-जहां उसकी सरकारें रहीं पुलिस और प्रशासन की मदद से दमन कराया गया, जुलूसों में संघ के लोगों ने घुस कर उपद्रव किए, सरकारी सम्पत्ति को नुकसान पहुंचाया और हिंसा की. इस बात को खुद विभिन्न चैनलों ने अपनी रिपोर्टो में दिखाया है. इस हिंसा में मरने वाले दलित ही रहे हैं. अब इसी हिंसा का सहारा लेकर पुनः दमन किया जा रहा है. मेरठ में योगी सरकार की पुलिस द्वारा किए जा रहे दमन का यह हदृयविदारक दृश्य इसका एक उदाहरण है.

हम जन मंच की तरफ से प्रदेश की जनता से अपील करेंगे कि भाजपा और संघ की समाज को विभाजित करने की घृणित राजनीति को नकार दें और सरकार व प्रशासन द्वारा किए जा रहे दमन के प्रतिवाद में उतरे. संवैधानिक मूल्यों की रक्षा के लिए खड़े हों और आपसी एकता को बनाए रखें.

दिनकर कपूर जन मंच उ0 प्र0

2 अप्रैल भारत बंद: आक्रोशित दलित जनांदोलन

भारतीय जन आन्दोलनो के इतिहास मे 2 अप्रैल का भारत बंद दलितआक्रोशित जनांदोलन के रूप मे एक अनोखे तरीके से इतिहास मे दर्ज होकर रहेगा . जो बिना किसी दल विशेष नेता के आह्वान पर ना होकर स्व-स्फूर्त जन आन्दोलन मे तब्दील हो गया,जिसका मुख्य कारण वर्तमान भारतीय राजनीति,मीडिया व न्यायपालिका के साथ-साथ धर्माधिकारियो द्वारा दिये गये वक्तव्य मसलन दलितो,अछूतो का मंदिर प्रवेश निषेध बताकर बहुसंख्यक आबादी के दलित,पिछड़े,अल्पसंख्यक वर्ग की उपेक्षा एवं अवहेलना का परिणाम था . आऐ दिन इन वर्गो पर होने वाले कातिलाना हमले व अपने हक हकूक के लिऐ लड़ने वाले सामाजिक योद्धाओ को मिथ्या मुकद्दमे फंसा कर रासुका लगा कर जेल मे बंद कर, दलितो को अधिकार विहिन करने की न्यायपालिका की साजिश बहुजन समाज को लग रही थी ,जिसे पूर्णतया राजनीतिक सुरक्षा कवच मिला हुआ लगता है . इसी सोच विचार समझ के तहत खुद को असहाय व असुरक्षित होने के भाव मे उत्पीड़ितो का एक जुट होना व सड़को पर प्रतिरोध का स्वर उतरना लाजिम ही नही वरन एक बेबसी भी रही होगी.

खास वर्गो के लोगो को निशाना बनाकर उनकी सरे आम हत्याये करना,गौ हत्या व बिरयानी के नाम पर रोजी रोटी को हाथो से छीनना व नोटबंदी कर अंकिचन समाज व श्रमिक वर्ग की आर्थिक नाकेबंदी कर कमर तोड़ना ही मानो इस सरकार का एकमात्र ध्येय रह गया हो . आर्थिक उदारीकरण के नाम पर पूंजीवादी शक्तियो के हित लाभ हेतु आम नागरिको को हित वंचित करके व जाति धर्म के नाम पर जनमानस को उलझाये रखना,विकास के नाम पर जूमलेबाजी कर भाषणो द्वारा संतोष की घुट्टी पिलाकर ही रखना, मानो सरकार का एक मात्र उद्देश्य बन कर रह गया हो . लोकतंत्र मे नारो से कब और कितनी देर तक लुभाया जा सकता था .

EVM द्वारा वोटो के लूटने से आम मतदाता अपने को ठगा सा महसूस कर रहा था . आरक्षण के विरूद्ध उठती आवाजे,दलित अधिकारो पर सरकारी अंकुश व अनुसूचित जाति एव जनजाति तथा पिछड़े आदिवासियो के जल,जंगल,जमीन को हड़प कर कंक्रीट के जंगलो मे तब्दील करना, उनके हितो पर दिन प्रतिदिन होते कुठाराघात,दलित महिलाओ के साथ सामूहिक बलात्कार कर नंगा घुमाना व उनके गुप्तांगो मे सरिया,डंडे लाठिया घुसेड़ निर्ममता से हत्याये कर जलाकर खाक कर देना व पत्थरो से मार-मार कर चेहरे मोहरे को चिथड़े- चिथड़े कर लहुलुहान कर देना,नाबालिगो को अकेले मे दबोच कर लाठी,डंडे,सरिया,बेल्टो से नंगा कर पीटना,पेड़ से बांध कर बेरहमी से दंडित करना व करवाना इत्यादि. किस बर्बर संस्कृति का परिचायक रहा है यह एक सोचनीय ही नही वरन् एक विचारणीय प्रश्न समाज के सम्मुख उठ खड़ा हुआ . लेखक चिंतको को लोकशाही के धराशायी होने की वाजिब दिखती चिंता सताने लगी . विरोध मे कुछ लिखा तो शब्द के साथ शरीर भी मरने लगे . सरेआम लेखको को जान से मारने की धमकिया मिली और उसकी परिणति उन पर जान लेवा हमला कर जान लेकर ही हुयी.

अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर खुलेआम लोकतंत्र मे हमला हुआ . हमारी चुनी हुयी सरकारे इनके विरूद्ध मौन धारण करे रही और मिडिया झूठी खबरो को सच साबित करने पर ही अपनी इतिश्री समझने लगा . जिसके लिये एक तरफा ब्यान बाजी को देख आम जन हताश व निराश होता रहा . जैसे उसके अधिकार और विवेक पर निरंकुश शासन का हथौड़ा चल रहा हो . इस चुप्पी के लिये जगह-जगह से प्रतिरोध के स्वर उभरने लगे और 2 अप्रैल के दिन भारत बंद मे इसका नजारा देखने को मिला . पूरा भारत आग की लपटो मे आखिर क्यो झुलस पड़ा . संविधान व देश को सम्मान देने वाला देशप्रेमी दलित जनांदोलन एकाएक कैसे हिंसक हो उठा, इस पर सरकारी तंत्र को अवश्य विचार करना पड़ेगा आखिर, वो कौन से अवांछित असमाजिक, राजनितिक,अपराधी तत्व थे .

जिन्होंने शान्ति प्रिय जनांदोलन को आग के हवाले कर दिया . सदियो से संताप झेलता आया समाज आखिर एक ना एक दिन तो उठ खड़ा होना तो चाहेगा ही वो भी संवैधानिक दायरे मे . भारतीय संविधान सबको बराबरी व अवसर की समानता प्रदान करता है यही सब कुछ वर्चस्वशाली व सत्ता सम्पन्न होते सामन्ती समाज को रास नही आ रहा था . जो लोग सदियो से धार्मिक /सामाजिक /राजनीतिक व शैक्षणिक सांस्कृतिक शोषण के शिकार होते रहे और आज सिर उठाकर चलने लगे तो तथाकथित वर्ग को यह सब नागवार गुजरने लगा और प्रतिक्रिया स्वरूप दिन पर दिन हिंसक होने लगा और यही उत्पीड़न निर्बल वर्ग को गहरे तक उनकी अस्मिता को तार-तार करने लगा,अंतत् उनका विवेक कभी तो जागना ही था ? बस यही से, लोगो का अधिकारो के प्रति विवेक का जागना ही उन्हे खलने अखरने लगा .

विगत वर्षो मे हुयी दलित छात्रो की संस्थागत हत्याये व अल्पसंख्यक समुदाय विशेष के छात्रो का एकाएक संस्थानो से गायब हो जाना तथा पुलिस प्रशासन से गुहार लगाने के बावजूद कोई हल ना निकलना व कानूनी कार्रवाई के नाम पर कोरा आश्वासन मिलना यही सब कुछ आम भारतीय नागरिको को गहरे तक पीड़ा देता रहा और वह चुपचाप इस संत्रास को झेलता रहा . जगह-जगह अम्बेड़कर की मूर्तियो को तोड़ना किस विरोध का प्रतीक बन उठ खड़ा हुआ . आखिर वो कौन से आराजक तत्व है सरकारी तंत्र व पुलिस प्रशासन को इन पर विचार करना पड़ेगा नही तो समाज का ताना बिखरने मे देर नही लगेगी. जो देश की राष्ट्रीय एकता और अखंडता के लिये एक बड़ा खतरा बनेगा .पड़ोसी देश,आऐ दिन देश को आतंकित करने पर तुला हुआ है .

हिन्दु फासीवादी ताकते सांस्कृतिक राष्ट्रवाद के नाम पर आमजन को आतंकित करने पर तुली है . जातिगत सेना का वजूद बढने लगा प्रतिक्रिया स्वरूप दलित जातियो ने भी अपने जातिगत संगठन बनाने शुरू कर दिये जो आगे चलकर वर्ग संघर्ष की राह पकड़ने का पथ ही साबित होगा .जो देश के स्वास्थ्य के लिये हानिकारक ही सिध्द होगा . क्या यह सब षड्यंत्र सरकारी संरक्षण का परिणाम नही है ? इन सवालो के जवाब तो ढूंढने ही होगे . वरना, देश व्यापी आक्रोश तो सरकार के विरूद्ध उभरने ही लगा है . देश के चिन्तनशील बुद्धिजीवियो /साहित्यकारो को इन विषयो पर सरकार से संवाद तो स्थापित करना ही होगा. जनता का जनता द्वारा जनता के लिये स्थापित लोकतंत्र कंही खतरे मे ना पड़ जाऐ . ये आशंका निर्मूल नही है . संसार का सबसे दीर्घजीवि चार खम्बो पर खड़ा लोकतंत्र इन फासीवादी ताकतो से परास्त ना हो जाऐ . सत्तासीन राजनैतिक दलो ने समय-समय पर अपने-अपने हित साधने के लिये संविधान मे संशोधन किये फिर अमानत मे ख्यानत क्यो ?

इससे साफ प्रतीत होता है कि – ” किसी भी देश का संविधान कितना भी सर्वश्रेष्ठ क्यो ना हो,जब तक उसके लागू करने वालो की नियत ठीक नही, तो वह निरर्थक ही साबित होगा . (डा.अम्बेडकर )

आज संविधान की गरिमा को जीवित बनाये रखने का दायित्व केन्द्र व राज्य सरकारो का ही नही अपितू भारतीय गणतंत्र के प्रत्येक नागरिक का है . देश की न्यायपालिका, कार्यपालिका पर दिन प्रतिदिन हावी होती जा रही है जो जातिगत मानसिकता को सामने रख न्याय की विषैली घुट्टी पिला रही है . जिस पर भारत के चार न्यायधीशो ने लीक को तोड़कर देश के प्रति अपनी वाजिब गम्भीर चिंता जाहिर की . जिस पर राज्यसभा व लोक सभा ने कोई संग्यान क्यो नही लिया ? देश मे आऐ दिन हो रहे साम्प्रदायिक व जातिगत दंगे देश के आर्थिक विकास मे एक बड़ी बाधा बन कर आ रहे है . राजनीति जनसेवा के भाव से विमुख हो व्यवसायिकता की ओर मुखातिब हो चली है . पहले स्वय हित बाद मे राष्ट्र एवं नागरिक हित यही आज का भयावह राजनीतिक दौर है . जिसे जितनी जल्दी बदला जाऐ या फिर इस पर अंकुश लगाये बिन देश तरक्की की राह पर नही आ सकता . हर और विषमता आन खड़ी है . श्रमिक व किसान आत्महत्याऐ कर रहा है . सरकारी शिक्षक कर्मचारियो मे सरकार की नीतियो के विरूद्ध रोष बढ रहा है . जिसके फलस्वरूप जगह-जगह आन्दोलनो का चलन बढने लगा है . सरकार को विषमता की और ध्यान देने की त्वरित आवश्यकता है वरना तो ऐसे लग रहा कि देश का अवाम बारूद के ढेर पर बैठ कर उचित समय का इंतजार कर रहा है . अंतत् सरकार को एकल शिक्षा प्रणाली पर जोर,ठेकेदारो के चंगुल से श्रमिक को बाहर निकालना,किसानो की फसल का उचित मूल्य,दलित अधिकारो का संरक्षण, आरक्षण का लाभ समुचित अनुपात मे देने की गारंटी व दलितो के सम्मान की रक्षा करना,पुलिस प्रशासन के जातिगत ढांचे को तोड़ना होगा . जिससे पुलिसकर्मियो द्वारा एक तरफा लाठियां भांजने पर अंकुश लग सके,युवाओ के रोजगार की गारंटी लेनी होगी,प्राईवेट सेक्टर रोजगारो मे आरक्षण व्यवस्था लागू हो, चुनाव प्रक्रिया को EVM रहित कर बैलेट पत्र से घोषित करे व आर्थिक बर्बादी को रोकने के लिये पूरे देश मे एक या दो चरण मे चुनाव सम्पन्न कराये जाये . जनसेवक की मृत्यु के बाद चुनाव करवाना अपवाद स्वरूप है . राजनीति को अपराधियो से मुक्त करने की और सरकार को अविलंब ध्यान देने की आवश्यकता पर विचार करना पड़ेगा या फिर वर्तमान सरकार या आने वाली सरकारे जन आक्रोश का सामना करने को तत्पर रहे.

डा.कुसुम वियोगी (लेखक वरिष्ठ आम्बेडकरवादी कवि चिंतक साहित्यकार है)

भारत बंद के पीछे पूंजीभूत हुईं मोदी सरकार की सवर्णपरस्त नीतियां !

गत 3 अप्रैल को सोशल मीडिया पर बेहद सक्रिय यादव शक्ति पत्रिका के संपादक चन्द्रभूषण सिंह यादव ने 2 अप्रैल को हुए भारत बंद पर एक पोस्ट डाला, जिसे बहुत से लोगों की लाइक मिली. ‘भारत बंद पर और दलित चेतना’ शीर्षक डाले गए उस पोस्ट में उन्होंने लिखा था-‘मैं दलित चेतना और उनके संघर्ष को कोटिशः नमन करता हूँ क्योंकि वे ही कौमें जिंदा कही जाती हैं जिनका इतिहास संघर्ष का होता है,जो अन्याय के प्रतिकार हेतु स्वचेतना से उठ खड़े होते हैं. 2 अप्रैल 2018 का दिन दलित चेतना का,संघर्ष का,बलिदान का,त्याग का ऐतिहासिक दिन बन गया है क्योंकि बगैर किसी राजनैतिक संगठन या बड़े नेता के आह्वान के सिर्फ और सिर्फ सोशल मीडिया पर दलित नौजवानों/बुद्धिजीवियों की अपील पर पूरे देश में दलित समाज का जो स्वस्फूर्त ऐतिहासिक आंदोलन उठ खड़ा हो गया,वह देश के तमाम बड़े आंदोलनों को पीछे छोड़ते हुए एक अद्वितीय और अनूठा आंदोलन हो गया है.

अब तक देश मे जितने बड़े अंदोलन हुए उन सबका नेतृत्व या तो किसी नेम-फेम वाले बड़े व्यक्ति/नेता ने किया या किसी बड़े राजनैतिक/सामाजिक संगठन द्वारा प्रायोजित हुवआ, जिसका भरपूर प्रचार -प्रसार विभिन्न माध्यमों से या मीडिया द्वारा किया गया . लेकिन सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी/एसटी ऐक्ट में किये गए अमेंडमेंट के बाद सोशल मीडिया पर एक न्यूज उछला कि 2 अप्रैल को दलित समाज द्वारा भारत बंद किया जाएगा. इस आह्वान का कर्ता-धर्ता कौन है,यह अपील किसकी है,ये सब कुछ बेमानी हो गया और सोशल मीडिया पर उछले इस अपील की परिणति यह हुई कि 2 अप्रैल को पूरा भारत बिना किसी सक्षम नेतृत्व के बुद्धिजीवियों/छात्रों/नैजवानों और प्रबुद्ध जनो के सड़क पर उतर जाने से बंद हो अस्त-व्यस्त हो गया.

इस आंदोलन का एक पहलू जहाँ यह रहा कि पूरे देश के दलित बुद्धजीवी एकजुट हो करो या मरो के नारे के साथ जय भीम का हुंकार भरते हुए देश भर में सड़कों पर आ गये तो कथित प्रभु वर्ग अपने अधिकारों को बचाने हेतु आंदोलित संविधान को मानते हुए शांतिपूर्ण सत्याग्रह कर रहे वंचित समाज के लोगो पर ईंट-पत्थर-गोली चलाते हुए इस आंदोलन को हिंसक बना दिया जिसमें 14 दलित साथी शहीद हो गए.

यह आंदोलन अपने आप मे बहुत ही महत्वपूर्ण आंदोलन हो गया है क्योंकि अपने संवैधानिक अधिकारों को महफ़ूज बनाये रखने के लिए शहादत देने का ऐसा इतिहास अब तक किसी कौम ने नही बनाया है.यह दलित समाज ही है जो अपने अधिकारों व सम्मान के लिए लड़ना व मरना जानता है.‘

वास्तव में दलितों का स्वतःस्फूर्त भारत बंद था ही इतना प्रभावशाली कि यादव शक्ति पत्रिका के संपादक की भांति तमाम समाज परिवर्तनकामी बुद्धिजीवी और एक्टिविस्ट उसकी सराहना करने में एक दूसरे से होड़ लगाये . उस दिन सचमुच देश थम गया था. यूपी-बिहार , राजस्थान-पंजाब-हरियाणा इत्यादि की भांति ही 2 अप्रैल का भारत बंद हर जगह सफल रहा. तमाम जगहों पर ट्रेनों के चक्के थम गए, सड़क यातायात रुक गया: दुकानें बंद हुईं एवं जीवन अस्त व्यस्त हो गया. इस दौरान यह कई जगहों पर हिंसात्मक रूप अख्तियार कर लिया. विरोध प्रदर्शन के दौरान बिहार में भारी बवाल हुआ. पटना समेत प्रमुख शहरों और जिला मुख्यालयों में हालात बेकाबू हो गए. स्कूल, कॉलेज, और बाजार बंद रहे .

पंजाब सरकार के शांतिपूर्ण बंद की अपील को ताक पर रखते हुए प्रदर्शनकारियों ने हिंसा की. इस दौरान पुलिस मूकदर्शक बनी रही. अमृतसर, जालंधर सहित चार जिलों में ट्रेनों को रोका गया. शिक्षण संस्थान , सरकारी व प्राइवेट बसें पूरी तरह बंद रहीं, मोबाइल इंटरनेट सेवा व एसएमएस सेवा भी बंद रही . हरियाणा के पंचकुला,अम्बाला , कैथल, हिसार, रोहतक, यमुनानगर, फरीदाबाद, गुरग्राम व चंडीगढ़ में दलितों ने विरोध मार्च निकाले. सड़क व रेल यातायात बाधित किया. समूचे राजस्थान में जगह-जगह तोड़ –फोड़, आगजनी की घटनाएं सामने आयीं. एससी/एसटी एक्ट में बदलाव के सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ उत्तर प्रदेश में बंद बेहद सफल रहा. किन्तु कुछ जिलों में हिंसात्मक रूप ले लिया .

पश्चिमी उत्तर प्रदेश के चार जिलों मेरठ, आगरा, हापुड़, और मुजफ्फरनगर में तो हालात इतने बेकाबू हो गए कि दोपहर बाद चार कंपनी आरएऍफ़ और भेजनी पड़ी. इस दौरान मेरठ में दो और मुजफ्फरनगर में एक की मौत हो गयी. किन्तु मौतों के लिहाज से ज्यादे चर्चा में रहा , मध्य प्रदेश . यहाँ भारत बंद के दौरान ग्वालियर में दो, भिंड में तीन , मुरैना व डबरा में एक-एक जानें गईं. शाम होते-होते अधिकांश चैनेल ही इस सफलतम बंद के पीछे क्रियाशील कारणों की खोज करने के बजाय बंद के दौरान हुई घटनाओं को प्रमुखता देकर इसकी अहमियत कम करने की कोशिश किये.

बहरहाल बंद के दौरान जो हिंसक घटनायें हुईं , उसके लिए देश के सबसे सज्जन युवा नेता अखिलेश यादव सहित ढ़ेरों लोगों ने ही भाजपा को जिम्मेवार ठहराया है, जिससे कोई इनकार भी नहीं कर सकता. दरअसल कानून के अनुपालन में अगली क़तार में रहने वाले दलितों ने स्वतःस्फूर्त से जब भारत बंद अंजाम दे डाला, यह बात विशेषाधिकारयुक्त तबकों की चैम्पियन भाजपा को भौचक्क कर दी. भाजपाई सोच भी नहीं सकते थे कि बंद का ऐसा रूप वे देख्नेंगे.किन्तु सोशल मीडिया के सौजन्य से शुरू से ही ज्यों -ज्यों इसके सफल होने की खबर आने लगीं , संघ परिवार बेचैन होने लगा. और अंत में इस यादगार और शानदार बंद की गरिमा को म्लान करने के लिए उसे उसमें हिंसा की छौंक लगानी पड़ गयी. पर,यह, बंद इतिहास के पन्नों में जगह बना चुका है.

इस बंद की अहमियत पर फेसबुक पर रमेश मांझी की ओर से एक बेहद महत्वपूर्ण पोस्ट पढने को मिला. मांझी जी ने अपने पोस्ट की शुरुआत में ही लिखा है-’ 2 अप्रैल, 2018 का भारत बंद एक नया इतिहास बन चुका है. इसे आने वाले समय में स्कूलों में पढ़ाया जायेगा, जानिए क्यों ? भारत में समय-समय पर अनेकों बार भारत बंद होते रहे हैं,लेकिन 2 अप्रैल ,2018 भारत का एक नया इतिहास बन चुका है. इस भारत बंद की निम्नलिखित विशेषताएं हैं.’ आगे इस बंद की 27 वीं व आखरी विशेषता बताते हुए उन्होंने लिखा है-‘दो अप्रैल भारत बंद क्रांति का इतिहास आने वाले भविष्य में स्कूलों एवं कॉलेजों में पढाया जायेगा एवं इस पर टीवी सीरियल एवं फिल्में भी बनेंगी . इसलिए इससे सम्बंधित फोटो , वीडियो , सीडी, डी वी डी इत्यादी साक्ष्य के रूप में पेश करने के लिए सुरक्षित रखें.‘

इसमें कोई शक नहीं कि यह बंद निर्विवाद रूप से ऐतिहासिक रहा और इसने बदले हुए दलित साईक का साक्ष्य पेश कर दिया है. इस ऐतिहासिक बंद पर मीडिया द्वारा हिंसात्मक घटनाओं को ज्यादा जोर दिए जाने से इसकी सफलता के पीछे क्रियाशील कारणों की सही पड़ताल नहीं हो पाई है.पर, इसमें कोई शक नहीं कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा एससी/एसटी एक्ट को निष्प्रभावी किये जाना एकमेव कारण नहीं रहा. इसके लिए पूरी तरह जिम्मेवार मोदी राज की सवर्णपरस्त रही .इसका सबसे पहला प्रकटीकरण मोदी राज में 2016 में हैदराबाद यूनिवर्सिटी के प्रतिभाशाली छात्र रोहित वेमुला की सांस्थानिक हत्या के बाद हुआ. किन्तु रोहित की हत्या के बाद उठे जनविक्षोभ से मोदी सरकार ने कोई सबक नहीं लिया. वह बेख़ौफ़ होकर ऐसी नीतियाँ बनाती रही, जिससे शक्ति के सारे स्रोत(आर्थिक-राजनीतिक-शैक्षिक और धार्मिक इत्यदि) पूरी तरह जन्मजात विशेषाधिकारयुक्त अल्पजन तबकों के हाथ में चली जाय. इसके तहत उन सरकारी उपक्रमों को बड़ी तेजी से निजी हाथों में देने का प्रयास किया गया, जहाँ दलित-आदिवासियों-पिछड़ों को आरक्षण मिलता है. इन्हें आरक्षण से वंचित करने के लिए ही एयर इंडिया, रेलवे स्टेशनों, हास्पिटलों इत्यादि को निजी हाथों में सौपने का उपक्रम चलाया गया. मोदी की सवर्णपरस्त नीतियों का भयावह परिणाम 2018के जनवरी के शेष में तब सामने आया जब ऑक्सफैम की रिपोर्ट सामने आई . रिपोर्ट से पता चला कि 2016 और 2017 के बीच 1% टॉप की आबादी की दौलत में 15% इजाफा हुआ,जिससे उनके हाथ में आज 73 % दौलत पर कब्ज़ा हो गया है. कुल मिलाकर ऑक्सफैम की रिपोर्ट सामने आने बाद स्पष्ट हो गया कि 10 % विशेषाधिकारयुक्त तबकों के हाथ में 90 % धन-संपदा चली है.

इससे बहुजनों के आक्रोश में लम्बवत विकास हो गया. इसी बीच यूजीसी ने स्वायत्तता के जरिये प्रतिष्ठित यूनीवर्सिटीयों को निजी हाथ में देने एवं दलित-आदिवासी-पिछड़े समुदायों के युवाओं को प्रोफ़ेसर बनने से रोकने लिए जो फैसले लिए उसने आरक्षित वर्गों के क्रोधाग्नि में घी डालने का काम किया. अभी बहुजन समाज के लोग मोदी सरकार की सवर्णपरस्त नीतियों के खिलाफ कमर कसने का मन बना ही रहे थे कि एससी/एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला आ गया. और इस फैसले के खिलाफ किसी कोने से जब भारत बंद की आवाज उठी, बिना किसी नेतृत्त्व और तैयारी के पूरा दलित समुदाय स्वतः स्फूर्त रूप से सडकों पर उतर आया और उनका भारत बंद इतिहास के पन्नों में दर्ज हो गया. बहरहाल भारत का विशेषाधिकारयुक्त तबका दलित साईक में आये बदलाव को सहजता से नहीं लेने जा रहा है. इसलिए उसने पिछड़े भाइयों को सामने रख कर एक नए भारत-बंद के जरिये बहुजन एकता में पलीता लगाने तथा दलितों में बढे मनोबल तोड़ने के लिए 10 अप्रैल को एक नए भारत बंद की घोषणा कर दिया है. अब लाख टके का सवाल है,’क्या आरक्षित वर्गों के जागरूक लोग विशेषाधिकार युक्त तबकों के नए भारत बंद के पीछे छिपे मंसूबों को व्यर्थ कर पायेंगे ?

90 जगहों पर बाबासाहेब की जयंती मनाएगा यह राजनैतिक दल

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लखनऊ। दो अप्रैल को दलित समाज द्वारा बुलाए गए बंद के बाद अब सबकी नजर अम्बेडकर जयंती पर है. इस दौरान समाजवादी पार्टी भी बसपा से अपने संबंधों को महत्वपूर्ण बनाने के लिए बाबासाहेब की जयंती की जोर-शोर से तैयारी कर रही है. खबर है कि बाबासाहेब की 127वीं जयंती पर 14 अप्रैल को समाजवादी पार्टी पूरे उत्तर प्रदेश में 90 जगहों पर एकसाथ श्रद्धांजलि कार्यक्रम मनाने का फैसला किया है.

सपा की सभी जिला इकाई और नगर अध्यक्षों को इस संबंध में जरूरी दिशा-निर्देश भेजे जा चुके हैं. उस दिन बाबा साहब भीमराव अंबेडकर की प्रतिमाओं पर फूल-माला चढ़ाने के बाद पार्टी कार्यकर्ताओं को भी संबोधित करने का कार्यक्रम है. पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव खुद लखनऊ के हैरतगंज में मौजूद रहेंगे, जहां वह बाबासाहेब की प्रतिमा पर फूल-माला चढ़ाने के बाद पार्टी मुख्यालय में सभा को संबोधित करेंगे. इस मौके पर डॉ. अंबेडकर के जीवन, दर्शन और सिद्धांतों से जुड़ी फिल्म का प्रदर्शन भी किया जाएगा. इसके अलावा उनके जीवन को रेखांकित करते हुए गीत भी सुनवाए जाएंगे.