मायावती और अखिलेश को खाली करना होगा सरकारी बंगला

लखनऊ। उत्तर प्रदेश की पूर्व मुख्यंमत्री मायावती और अखिलेश यादव को अब अपना सरकारी बंगला खाली करना पड़ेगा. इन दोनों की तरह की अन्य पूर्व मुख्यमंत्रियों मुलायम सिंह यादव, राजनाथ सिंह, कल्याण सिंह और एनडी तिवारी को भी अब सरकारी बंगले को छोड़ अपना अलग आशियाना ढूंढ़ना होगा. गैर सरकारी संस्थान (NGO) लोक प्रहरी की याचिका पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने यह फैसला सुनाया है.

सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में राज्य सरकार का पहले का अदेश रद्द कर दिया है. गैर सरकारी संगठन लोक प्रहरी ने 2004 में याचिका लगाकर इसे रद्द करने की मांग की थी. कोर्ट ने 2014 में इस पर सुनवाई पूरी कर ली थी, लेकिन अपना आदेश सुरक्षित रखा था. अब कोर्ट के आदेश के बाद करीब 7 पूर्व मुख्यमंत्रियों या उनके परिवारों को दो महीने में सरकारी बंगले खाली करने होंगे.

याचिकाकर्ता ने अपनी याचिका में उत्तर प्रदेश सरकार का संशोधित कानून रद्द करने की मांग की थी. उसका कहना था कि ऐसा नहीं किया गया तो इसका दूसरे राज्यों पर भी असर होगा. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि पूर्व मुख्यमंत्री सरकारी बंगला हासिल करने के हकदार नहीं हैं.

इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने अगस्त 2016 में भी उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्रियों को बंगले खाली करने का आदेश दिया था. इस पर अखिलेश सरकार ने पुराने कानून में संशोधन कर यूपी मिनिस्टर सैलरी अलॉटमेंट एंड फैसेलिटी अमेंडमेंट एक्ट 2016 विधानसभा से पास करा लिया था. इसमें सभी पूर्व मुख्यमंत्रियों को आजीवन सरकारी बंगला आवंटित करने का प्रावधान किया गया था.

हरामी व्यवस्थाः नाम के साथ ‘सिंह’ लिखने पर अम्बेडकरवादी परिवार को धमकी

सावरकर ने जिन्ना के मुस्लिम लीग के साथ गठबंधन किया था

जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, हैदराबाद यूनिवर्सिटी, दिल्ली यूनिवर्सिटी के रामजस कॉलेज के बाद अब एएमयू हिंदुत्व समूहों के निशाने पर है, जहां उनका दावा है कि कैंपस में ‘देश-विरोधी’ गतिविधियां हो रही हैं. एएमयू स्टूडेंट यूनियन के हॉल में लगी मोहम्मद अली जिन्ना की एक तस्वीर को लेकर जानबूझकर तैयार किया गया विवाद है, क्योंकि न तो ये तस्वीर नई है और न ही इसे अभी लगाया गया है. ये विभाजन और पाकिस्तान बनने से भी पहले से यहां लगी है.

जिन्ना की ये तस्वीर स्टूडेंट यूनियन हॉल में 1938 से लगी है, जब जिन्ना को एएमयू छात्रसंघ की आजीवन सदस्यता दी गयी थी. एएमयू छात्रसंघ की आजीवन सदस्यता सबसे पहले महात्मा गांधी को दी गयी थी. इसके बाद एएमयू छात्रसंघ की आजीवन सदस्यता डॉ. बीआर आंबेडकर, जवाहरलाल नेहरू, सीवी रमन, जयप्रकाश नारायण और मौलाना अबुल कलाम आज़ाद समेत कई और लोगों को दी गयी. इन सबकी तस्वीरें भी यहां लगी हैं.’ अलीगढ़ से भाजपा सांसद सतीश गौतम ने हाल ही में जिन्ना की तस्वीर को लेकर विवाद शुरू किया, जिसके बाद इसमें संघ परिवार के अन्य नेता भी शामिल हो गए और एएमयू पर आज भी जिन्ना और पाकिस्तान के प्रति उदार होने का आरोप लगाया.

बीते बुधवार को पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी के एक कार्यक्रम में एएमयू आने से चंद घंटों पहले हिंदू युवा वाहिनी के करीब 30 कार्यकर्ता वर्दीधारी पुलिस वालों के साथ एमएमयू के मेन गेट बाब-ए-सय्यद पर पहुंचे. उन्होंने ‘हम जिन्ना को भारत में ऐसी इज्जत नहीं मिलने देंगे, ‘अगर भारत में रहना है तो वंदेमातरम कहना है’, ‘वंदेमातरम’ और ‘जय श्री राम’ के नारे लगाए गए.

इस बीच पुलिस वालों ने इस मार्च को मेन गेट से करीब 50 गज दूर रोकने का दिखावा किया. इसके बाद हिंदू युवावाहिनी के कार्यकर्ताओं ने वहां मौजूद छात्रों की जिंदगी खतरे में डालते हुए पिस्तौल और अन्य हथियार हवा में लहराए. मामला आगे बढ़ा और एक तरह से पुलिस के संरक्षण में हिन्दू युवा वाहिनी के सदस्यों ने विश्वविद्यालय के छात्रों पर हमला कर दिया, जिसमें अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय के तकरीबन छात्र गंभीर रूप से घायल हो गए.

लेकिन सच क्या है ये एएमयू में इतिहास के प्रोफेसर मोहम्मद सज्जाद बताते हैं. प्रोफेसर सज्जाद का कहना है कि, ‘जो लोग 1947 के विभाजन और जिन्ना की ‘टू नेशन थ्योरी’ के चलते इस तस्वीर को हटाने की मांग कर रहे हैं, वे ऐतिहासिक तथ्य और कलाकृतियों को न बदलने के बारे में कुछ नहीं जानते जैसा कि उनके ऐतिहासिक स्मारकों और आधुनिक सिलेबस को लेकर रवैये को लेकर पता चलता है. इस सरकार की तरह एएमयू इतिहास को अपने हिसाब से तोड़ने-मरोड़ने में विश्वास नहीं रखता.’

उस्मानी ने भी बताया, ‘जो आज एएमयू पर हमला कर रहे हैं, उन्हें याद रखना चाहिए कि आरएसएस के आदर्श वीडी सावरकर, जो सालों तक हिंदू महासभा के प्रमुख भी रहे, ने असहयोग आंदोलन का बहिष्कार किया था और विभाजन से पहले जिन्ना की मुस्लिम लीग के साथ दो प्रांतों में गठबंधन किया था.’

  • ‘द वायर’ में प्रकाशित अन्सब आमिर खान के लेख का संपादित अंश

कैराना उपचुनावः गठबंधन को राजी अखिलेश व जयंत चौधरी, रालोद की तबस्सुम हसन होंगी उम्मीदवार

लखनऊ। उत्तर प्रदेश के कैराना और नूरपुर के उपचुनाव के लिए सपा और रालोद साथ आने को तैयार हो गए हैं. लखनऊ में सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव और रालोद के उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने इस संबंध में मुलाकात की. इस बैठक के बाद खबर है कि कैराना लोकसभा के साथ ही नूरपुर विधानसभा उपचुनाव में दोनों मिलकर मैदान में उतरेंगे. समाजवादी पार्टी ने कैराना लोकसभा उप चुनाव को लेकर बड़ा गेम खेला है. 4 मई को जयंत चौधरी के साथ अखिलेश यादव की मुलाकात के बाद बने नए समीकरण में समाजवादी पार्टी की तबस्सुम हसन कैराना से राष्ट्रीय लोकदल के सिंबल पर चुनाव लड़ेंगी.

उप चुनाव में गठबंधन की चाहत लेकर रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी कल समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष अखिलेश यादव के आवास पर दोपहर पहुंचे. दोपहर के भोजन पर दोनों नेताओं के बीच करीब तीन घंटे चली मुलाकात में मिलकर भाजपा को रोकने की एक राय बनी. इस मुलाकात को पूरी तरह गोपनीय रखा गया और इन दोनों के अलावा अन्य किसी नेता को साथ नहीं लिया गया. बैठक के बाद जयंत चौधरी ने बताया कि वार्ता सफल रही और भाजपा को हराने को एकजुट होकर लडऩे पर सहमति बनी है. चौधरी ने बताया कि सपा-रालोद के बीच गठबंधन 2019 में भी बना रहेगा.

गौरतलब है कि गोरखपुर में भी निषाद पार्टी के प्रत्याशी ने सपा के चुनाव चिन्ह पर चुनाव लड़ा था. उत्तर प्रदेश की कैराना लोकसभा सीट पर उपचुनाव 28 मई को होने वाला है.

 

Speaking from hegemony to hegemony

In the light of the peaceful protest and demonstrations against the Supreme Court’s decision to dilute certain key provisions to the Scheduled Castes and Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Act 1989, on 1st May, International Labour Day, held at the Jantar Mantar, New Delhi and across 70 cities in India, one comes to realize what kind of days India is seeing and also signals towards what kind of dark times that are ahead for the marginalized communities in India.

Violence –verbal, physical, sexual, mental, gendered, caste, communal and now ideologically systematic as well. You name it and our so-called secular country has all for you.

…and now it is even more systematic and blatant, so much so that you can identify with the State’s ideologies seeped into Brahmanism and the kind of world they want to create for us all and the kind of saffron world they emerge from.

The attempt of diluting the key provisions of Prevention of Atrocities Act 1989, suggests a clear motivation to disempower people from marginalized communities and systematically strategied methods to harass and punish them and this time more legitimately. Interestingly how I see it, this attack is not only a systematic attack on marginalized communities but it’s an attack towards the asserting voices of those people who have never had ‘access’ to spaces of ‘public discourse.’ But thanks to the man who thought of India differently, a man who dreamt of an equal and fair country for all, that there are tons of voices who have learnt to say their piece and with power.

Babasaheb Ambedkar symbolical assertion is rampant through many voices of Bhaujan communities – intellectuals, scholars, students, activists, academicians, musicians, film-makers, to name a few, although Bahujan’s communities most dedicated. Ambedkar followers are the people who may not have an agency to articulate the politics in your familiar language but they are they people whose lived experienced resonates for what Ambedkar stood for all along. The good thing about this fire is that owing to the limitations of a casteist India, the caravan still goes on, because that’s what perhaps is Ambedlar’s idea of ‘fraternity’.

“For a successful revolution it is not enough that there is discontent. What is required is a profound and thorough conviction of the justice, necessity and importance of political and social rights.”~ Dr. B. R. Ambedkar

Now the spirit of political and social rights is growing and this time it is undying and never seen before in Ambedkarite movement. So when one sees a culmination and participation of various coalition leaders, activists, SCs and STs Employees Associations, Trade Unions, Dalit and Adivasis Organizations, Human Rights Organizations, Women Organizations and community members in different parts of the country condemning this horrendous judicial impunity that the BJP government has been constantly playing, one cannot help but notice the ‘morality; behind such choices, but then who said, politics was meant to serve dirty purposes only.

With the force that fascist powers are hell bent on systematically corroborating towards legitimizing violence against the oppressed- Dalit, Adivasi, Muslims, women and children through cutting out on access and means of a dignified life, a cumulative anxiety is produced in the environment all around. An anxious reality of being the same man and woman that nature has produced but tagged with a superfluous idea of identity and the politics behind it. That very caste politics is the Bahujan assertion in India today. Action of this fiery assertion was seen when Scheduled Castes and Scheduled Tribes organizations held the protest on 1st May 2018 in 70 cities across the country to demand a reversal of the judgment that stopped immediate arrest of offenders under the SC-ST (Prevention of Atrocities) Act, a law meant for their protection.

National Campaign for Dalit Human Rights, Vidhthalai Chiruthaigal Katchi (Liberation Cheetahs’ Party, previously known as the Dalit Panthers of India), Dalit Rights Federation, CPM and the CPI took part in a protest in New Delhi.

Caste indeed is that blight that has stained the spiritual fabric of this country. With spirituality I don’t mean to associate with any kind of religious notion but the mere idea of freedom in a sound rational mind. But do we Indians have a sound mind? Let’s face it. Unless we don’t learn to think beyond caste, gender, communal and more such divisions all we are doing consciously and unconsciously is contributing to the part of infecting the casteist pool further.

Ramesh Nathan, convener of the National Coalition for Strengthening SC-ST PoA Act, said several review petitions had been filed in the Supreme Court seeking a reversal of the March 20 judgment. Below are the major 12 demands of the National Coalition against the repressive ruling and on the effective implementation of SCs and STs (PoA) Act 1989 as Amended 2015.

1. Government of India should ensure that either through Judicial or Parliamentary recourse the status quo of the SCs and STs (PoA) Act 1989 is restored to its original position as was before 20.03.2018 Judgment.

2. The SCs and STs (PoA) Act 1989 and the POA Amendment Act 2015 shall be included in the Ninth Schedule so that it may get some protection in the matter of judicial review.

3. Release of all the Dalit and Human Rights Defenders, activists, leaders, community members and employees arrested on 02nd April, during the “Bharat Bandh”. Immediate action should be taken against the people who were indulged in firing against the community.

4. Robustly, enforce and implement the amended SCs and STs (PoA) Act 1989 and Rules 1995 and in specific the rights of victims and witnesses as enshrined in the amended Act.

5. Establish mandatory Exclusive Special Courts as per Section 14 of the SCs and STs (PoA) Act 1989 in each district. These courts shall not take cases of any other legislation.

6. Take immediate measures to appoint Public Prosecutors of victim’s choice as per Rule 4 (5) of the SCs and STs (PoA) Rules 1995 for the speedy trial of the cases.

7. Conduct an open and transparent investigation under the Scheduled Castes and the Scheduled Tribes (Prevention of Atrocities) Amendment Act, 2015 and prosecute those Government and police officials under section 4 of the Act who are found to have aided and abetted criminals or found to have negligent in their responsibilities in implementing the provisions of the Act /plan and schemes.

8. Immediate notification or G.O to be issued to all the state governments to frame contingency plan in line with the contingency plan framed by the Government of Tamil Nadu and simultaneous framing of guidelines and schemes under the plan if any for the purposes of rehabilitation, employment, pension, strengthening socio economic conditions of the victims. Unless this is done the plan would be merely a piece paper.

9. National Human Rights Commissions, Scheduled Castes and Scheduled Tribe Commissions shall conduct open hearing all over the country on cases of atrocities and on the implementation of the SCs and STs (PoA) Act. The Commissions shall ask for the annual reports from the states and present the same before the Parliament.

10. The Parliament shall also debate during the sessions on the effective implementation of the PoA Act 1989. The Parliament shall constitute a National, State and district level Enforcement Authority for the effective implementation of the PoA Act 1989.

11. Ensure that the under developed Dalit and Adivasi habitats, habitats prone to atrocities, and habitats which are arsoned or damaged are provided with land, adequate housing, clean water and sanitation facilities and infrastructure facilities from the SCP/TsP and from the provisions of Contingency Plan.

12. Ensure externment of the persons likely to commit offence under the Act in any area included in ‘Scheduled Areas’ or ‘Tribal areas’ as referred to in Article 244 of the Constitution.

TIMES NOW, reported 23 hours back that the SC has dismissed Attorney General Venugopal’s plea seeking a stay on its verdict on SC and ST (PoA) Act and the arguments are set to continue on 16th May. It’s reporter also reports that SC clearly says, ‘the judgment has never said that FIR cannot be registered. That there is no bar on registration of any FIR if there is any offence that is made out. The only other thing that this judgment says that there should not be any unnecessary arrests and if there is any absurdity in allegations then there should be a preliminary enquiry. The interpretation and politicization of this SC/ ST Act judgment is something that the SC doesn’t accept. Further with respect to 2nd April ‘Bharat Bandh’ the court says that the agitation and deaths are not because of the court orders, it is because the failure of Law & Order situation.” The reporter further reported, “SC clearly said, ‘the society needs to ensure that Dalit atrocity stops. Social reform is necessary to stop Dalit atrocity.’

How typically Brahamanical? Speaking from hegemony to hegemony. Minus appropriate representation of the nature of crime and flamboyantly obliterating the ‘caste genesis’ and its oppressive history all over. Dropping words like ‘politicization’ ‘social reform’ and lack of ‘tolerance,’ may add to the exoticization of crime but doesn’t speak of the nature of crimes that marginalized communities face everyday in this country.

Presenting a perspective to you by India’s most formidable Bahujan journalist, Dilip C Mandal. This has been taken from Dilip C Mandal’s Facebook wall:

सुप्रीम कोर्ट से:

आज एससी, एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट में हुई सुनवाई में मैं पूरे समय मौजूद रहा। हर तर्क को सुनने के बाद मेरी नजरिया यह है –

1. केंद्र सरकार मान चुकी है कि एससी-एसटी का वोट उसे नहीं मिलने वाला। 2. सरकार एससी-एसटी एक्ट को बचाने को लेकर किसी जल्दबाजी में नहीं है। 3. सरकारी वकील वेणुगोपाल ने स्टे मांगने पर बिल्कुल जोर नहीं दिया 4. जल्द तारीख भी नहीं मांगी। 5. दोनों जज गोयल और ललित सुस्ती में दिखे। कोई जल्दबाजी नहीं। 6. सरकार अपना कोर सवर्ण वोट बचा रही है। एससी-एसटी आता है तो आए। न आए तो भी चलेगा। Now this flips the meaning of everything – politicization, tolerance, and social reform, access. What do you think?
  • Jyotinisha

Jyotinisha is an independent Writer/Film-maker/Illustrator and Scholar based in Mumbai, India. She is an alumnus of the prestigious, Indian Institute of Mass Communication, New Delhi, and Film and Television Institute of India, Pune. Currently she is pursuing MA in Media and Cultural Studies at Tata Institute of Social Sciences, Mumbai and making a feature length documentary film on Dr. B. R Ambedkar

अब तक किसी भी प्रधानमंत्री ने झूठ को लेकर इतने रचनात्मक प्रयोग नहीं किए हैं

अगर चुनावी जीत में प्रधानमंत्री के झूठ का इतना बड़ा रोल है तो हर झूठ को हीरा घोषित कर देना चाहिए.इस हीरे का एक कंगन बना लेना चाहिए.फिर उस कंगन को राष्ट्रीय स्मृति चिह्न घोषित कर देना चाहिए.

तथ्यों को कैसे तोड़ा मरोड़ा जाता है, आप प्रधानमंत्री से सीख सकते हैं. मैं इन्हें सरासर झूठ कहता हूं क्योंकि ये खास तरीके से डिजाइन किए जाते हैं और फिर रैलियों में बोला जाता है. गुजरात चुनावों के समय मणिशंकर अय्यर के घर की बैठक वाला बयान भी इसी श्रेणी का था जिसे लेकर बाद में राज्यसभा में चुपचाप माफी मांगी गई थी.

1948 की घटना का ज़िक्र कर रहे हैं तो ज़ाहिर है टीम ने सारे तथ्य निकाल कर दिए ही होंगे, फिर उन तथ्यों के आधार पर एक झूठ बनाया गया होगा.

कर्नाटक के कलबुर्गी में प्रधानमंत्री ने कहा कि फील्ड मार्शल केएम करिअप्पा और जनरल के थिमैया का कांग्रेस सरकार ने अपमान किया था. यह एक ऐतिहासिक तथ्य है. जनरल थिमैया के नेतृत्व में हमने 1948 की लड़ाई जीती थी. जिस आदमी ने कश्मीर को बचाया उसका प्रधानमंत्री नेहरू और रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन ने अपमान किया. क्या अपमान किया, कैसे अपमान किया, इस पर कुछ नहीं कहा.

1947-48 की लड़ाई में भारतीय सेना के जनरल सर फ्रांसिस बुचर थे न कि जनरल थिमैया. युद्ध के दौरान जनरल थिमैया कश्मीर में सेना के ऑपरेशन का नेतृत्व कर रहे थे. 1957 में सेनाध्यक्ष बने. 1959 में जनरल थिमैया सेनाध्यक्ष थे. तब चीन की सैनिक गोलबंदी को लेकर रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन ने उनका मत मानने से इनकार कर दिया था. इसके बाद जनरल थिमैया ने इस्तीफे की पेशकश कर दी जिसे प्रधानमंत्री नेहरू ने अस्वीकार कर दिया.

प्रधानमंत्री मोदी को पता है कि उनकी इन बातों को मीडिया जस का तस रिपोर्ट करेगा. कुछ वेबसाइट पर सही बात छप भी जाएगी तो क्या फर्क पड़ेगा मगर कर्नाटक की जनता तो इन बातों से बहक जाएगी. क्या इस बात पर चिंता नहीं करनी चाहिए कि भारत के प्रधानमंत्री जनता को बहकाने के लिए झूठ भी बोल देते हैं?

लगातार आलोचना हो रही है कि भाजपा ने बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं के परिवार के सात सदस्यों को टिकट दिया है. कोई इन्हें मंच पर बुलाता है तो कोई इन्हें दूर रखता है. अमित शाह रेड्डी बंधु से किनारा करते हैं, रेड्डी बंधु भाजपा का प्रचार कर रहे हैं. येदियुरप्पा इंडियन एक्सप्रेस से कहते हैं कि अमित शाह का फैसला था.

अब प्रधानमंत्री बेल्लारी गए. रेड्डी बंधुओं पर अवैध खनन के तमाम मामले चल रहे हैं. प्रधानमंत्री की आलोचना भी हो रही थी इस बात को लेकर. जिनके अभियान की शुरुआत न खाऊंगा न खाने दूंगा से हुई थी, वो प्रधानमंत्री अब रेड्डी बंधुओं का बचाव कर रहे हैं.

बेल्लारी जाकर वे अपनी भाषण कला(?) का इस्तेमाल करते हैं. बात को कैसे घुमाते हैं, आप खुद देखिए. कहते हैं कि कांग्रेस ने बेल्लारी का अपमान किया है. कांग्रेस कहती है कि बेल्लारी में चोर और लुटेरे रहते हैं. जबकि 14 वीं से 17वीं सदी के बीच विजयनगरम साम्राज्य के समय गुड गवर्नेंस था.

भला हो प्रधानमंत्री का जिन्होंने विजयनगरम के महान दौर को भाजपा सरकार का दौर नहीं कहा. मगर किस चालाकी और खूबी से उन्होंने बेल्लारी के रेड्डी बंधुओं का बचाव किया.

वे बेल्लारी की जनता के अपमान के बहाने रेड्डी बंधुओं का खुलेआम बचाव कर गए. तालियां. पहली बार प्रधानमंत्री ने रेड्डी बंधुओं को क्लीन चिट दे दिया है. अब सीबीआई भी चुप ही रहेगी.

हर चुनाव में प्रधानमंत्री झूठ का नायाब उदाहरण पेश करते हैं. अभी तक के किसी भी प्रधानमंत्री ने झूठ को लेकर इतने रचनात्मक प्रयोग नहीं किए हैं.

अगर चुनावी जीत में उनके झूठ का इतना बड़ा रोल है तो हर झूठ को हीरा घोषित कर देना चाहिए. इस हीरे का एक कंगन बना लेना चाहिए. फिर उस कंगन को राष्ट्रीय स्मृति चिन्ह घोषित कर देना चाहिए. आप ही तय कीजिए कि क्या प्रधानमंत्री को इस तरह की बातें करनी चाहिए?

(यह लेख मूलतः रवीश कुमार के ब्लॉग पर प्रकाशित हुआ है.)

     

बिहार जाने वाली इस ट्रेन में इतने यात्री चढ़ गए कि डब्बा ही बैठ गया

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नई दिल्ली। पिछले तीन सालों में रेलवे की जो दुर्दशा हुई है, वैसा कोहराम रेल चलने से लेकर अब तक नहीं हुआ था. रोज चलने वाली देश की तकरीबन आधे से ज्यादा ट्रेनें लगातार लेट चल रही है. रेलवे के हालात इतने खराब हैं कि कई ट्रेनों का 5-8 घंटे देरी से चलना तो अब आम हो गया है. लेकिन हाल में ट्रेन की एक बोगी में इतने ज्यादा लोग सवार हो गए कि ट्रेन ही बैठ गई.

दिल्ली से पटना के बीच चलने वाली संपूर्ण क्रांति एक्सप्रेस में मंगलवार को ऐसा ही हुआ. नई दिल्ली स्टेशन पर सामान्य श्रेणी के डिब्बे में इतने यात्री सवार हो गए कि डिब्बा ही बैठ गया. सूचना मिलने पर वरिष्ठ अधिकारी पहुंचे और सुरक्षाकर्मियों को बुलाकर डिब्बा खाली कराया गया. जांच और डिब्बा ठीक करने के बाद 5.25 पर चलने वाले ट्रेन को 7.15 पर रवाना हो सकी.

रेलवे के मैकेनिकल विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी का कहना था कि यदि गाड़ी को चलने की अनुमति दी जाती तो उसके पटरी से उतरने का खतरा था. इसके मद्देनजर ट्रेन को रोका गया और मरम्मत के बाद ही रवाना किया गया. सवाल यह है कि पैसे देने के बावजूद भी रेलवे अपने यात्रियों को बेहतर यात्री सुविधा देने में नाकाम रहा है.

करन कुमार

उत्तर कोरिया ने अपने घड़ी की सुई को आधा घंटा बढ़ाया

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नई दिल्ली। उत्तर कोरिया और दक्षिण कोरिया लगातार एक-दूसरे के करीब आने की कोशिश कर रहे हैं. इसके लिए दोनों हर संभव कोशिश करने के लिए तैयार हैं. आज (5 मई) को उत्तर कोरिया ने एक ऐसा ही कदम उठाया, जब उसने अपनी घड़ी की सुइयां आधा घंटा आगे बढ़ाते हुए अपना टाइम जोन दक्षिण कोरिया के टाइम जोन के अनुरूप कर लिया.

उत्तर कोरिया ने यह कदम दोनों देशों के बीच सुलह की दिशा में एक कदम आगे बढ़ाते हुए उठाया है. समाचार एजेंसी योनहाप के मुताबिक, टाइम जोन में यह बदलाव उत्तर कोरिया के सर्वोच्च नेता किम जोंग उन के दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति मून जे इन को यह बताने के एक सप्ताह बाद हुआ है कि वह अंतर कोरियाई सुलह और एकता को बढ़ावा देने के लिए दोनों देशों के टाइम जोन्स को एक करना चाहते हैं.

यह फैसला आधी रात से प्रभावी हुआ. उत्तर कोरिया की सरकारी समाचार एजेंसी ने एक बयान जारी कर कहा, “प्रेसिडयम ऑफ द सुप्रीम पीपुल्स असेंबली ऑफ उत्तर कोरिया के आदेश के मुताबिक, प्योंगयांग के समय को पुनर्निर्धारित किया गया है और यह पांच मई से प्रभावी हो गया.

JNU का एक और प्रोफेसर गिरफ्तार

नई दिल्ली। दिल्ली स्थित जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी (JNU) में विवाद ख़त्म होने का नाम नहीं ले रहा है. विगत दिनों प्रोफ़ेसर अतुल जौहरी को आठ स्टूडेंट्स के यौन उत्पीड़न के आरोप में गिरफ्तारी के बाद अब इसी तरह का एक नया मामला सामने आया है. सेंटर ऑफ़ स्टडीज इन साइंस पॉलिसी के डिपार्टमेंट में असिस्टेंट प्रोफ़ेसर राजबीर सिंह पर भी एक छात्रा ने यौन उत्पीड़न का आरोप लगाया है. पुलिस ने प्रोफ़ेसर के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज कर ली है.

पुलिस के मुताबिक एफआईआर धारा 354 और 506 के तहत दर्ज की गई है. बता दें कि छात्रा ने 9 फरवरी को दर्ज कराई थी. छात्रा ने शिकायत में आरोप लगाया है कि 9 फरवरी को वो और उसके कुछ साथी छात्र प्रोफ़ेसर राजबीर को एक प्रोटेस्ट में शामिल होने के लिए बुलाने उनके ऑफिस गए थे.

इसी दौरान राजबीर किसी बात पर गुस्सा हो गए और उसने सभी छात्रों को धक्का देना और पीटना शुरू कर दिया. छात्रा का आरोप है कि इसी दौरान राजबीर ने उसे भी गलत तरीके से छुआ और मना करने के बावजूद भी लगातार ऐसा करता रहा. इसके बाद राजबीर ने छात्रा को धमकी भी दी कि अगर उसने पुलिस में शिकायत की तो वो उसे देख लेगा.

गौरतलब है कि जेएनयू में प्रोफेसर अतुल जौहरी के बाद स्कूल ऑफ़ इंटरनेशनल स्टडीज़ के प्रोफेसर महेंद्र पी लामा पर भी यौन शोषण के आरोप लग चुके हैं. एक छात्रा का आरोप है कि 17 जनवरी को जब वो प्रोफ़ेसर लामा के साथ एक टूर पर चीन गई थी, तो वहां प्रोफ़ेसर लांबा ने उसका यौन शोषण किया था.

कर्नाटक में मोदी को कड़ी टक्कर दे रहे हैं राहुल

बंगलुरू। कर्नाटक विधानसभा चुनाव को लेकर चुनाव प्रचार अपने चरम पर है. मोदी पिछले कुछ दिनों से कर्नाटक में चुनाव प्रचार संभाले हुए है. तो वहीं राहुल गांधी भी प्रदेश में अपनी पार्टी के लिए प्रचार कर रहे हैं. चुनाव प्रचार परवान चढ़ने के साथ ही बीजेपी और कांग्रेस नेताओं के बीच जुबानी हमले बढ़ते जा रहे हैं. खासकर कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी और पीएम मोदी एक-दूसरे के आमने-सामने हैं. राहुल गांधी अपने सवालों से लगातार पीएम मोदी को परेशान कर रहे हैं.

कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने रेड्डी बंधुओं और भ्रष्टाचार के मुद्दे पर एक बार फिर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से सवाल किए हैं. पीएम मोदी की आज शनिवार को कर्नाटक में प्रस्तावित रैलियों से पहले राहुल गांधी ने ट्वीट कर उन पर कई सवाल दाग दिए. राहुल ने अपने ट्वीट में लिखा, ‘प्रिय मोदी जी, आप काफी बोलते हैं, लेकिन समस्या ये है कि आपकी कथनी और करनी में बड़ा फर्क है.’

राहुल ने ट्वीट के साथ एक वीडियो भी शेयर किया. राहुल ने अपने ट्वीट में यह भी लिखा कि मोदी जी कर्नाटक में आपके चयनित उम्मीदवारों का चिट्ठा यहां (वीडियो में) है. राहुल गांधी ने बीजेपी के मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार बीएस येदियुरप्पा और दूसरे उम्मीदवारों पर भ्रष्टाचार के केस का जिक्र करते हुए इस पूरे एपिसोड को ‘कर्नाटक मोस्ट वॉन्टेड’ करार दिया. वीडियो में बाकायदा उम्मीदवारों के नाम और उन पर लगे केस के बारे में बताया गया.

राहुल गांधी द्वारा शेयर किए गए वीडियो में पीएम मोदी से कई सवाल किए गए हैं. राहुल ने मोदी से पूछा है कि-

-क्या आप रेड्डी बंधुओं को दिए गए 8 टिकट पर 5 मिनट बोलेंगे?

-क्या अपने मुख्यमंत्री उम्मीदवार (बीएस येदियुरप्पा) पर बोलेंगे, जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार और धोखाधड़ी जैसे 23 केस दर्ज हैं?

-आप उन 11 मंत्रियों पर कब बोलेंगे, जिनके खिलाफ भ्रष्टाचार के केस हैं?

इस वीडियो में बाकायदा इन नेताओं के नाम और फोटो भी लगाए गए हैं. साथ ही रेड्डी बंधुओं के भ्रष्टाचार को भी प्रमुखता से दिखाया गया है. वीडियो के अंत में लिखा गया है कि हमें आपके जवाब का इंतजार है.

बारात निकालने से पहले दलितों को देनी होगी पुलिस को सूचना

प्रतीकात्मक चित्र

उज्जैन। बारात में दलित दूल्हे को घोड़ी पर न चढ़ने देने या फिर बारात को एक खास वर्ग के घर के सामने से न गुजरने देने की खबर आए दिन देश के कई हिस्सों से आती रहती है. ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए मध्य प्रदेश के उज्जैन की पुलिस ने एक अलग कदम उठाया है. उज्जैन के माहिदपुर तहसील में सरपंचों और पंचायत सचिवों को आदेश दिया गया है कि दलितों के घर होने वाली शादी की सूचना पुलिस को पहले ही दे दें.

प्रशासन ने आदेश दिया है कि सरपंच और पंचायत सचिव अपने अधिकार क्षेत्र में किसी दलित के घर पड़ने वाली शादी की सूचना शादी से कम से कम तीन दिन पहले पुलिस को दें. दरअसल प्रशासन ने यह कदम बीते दिनों उज्जैन के नाग गुराडियां गांव में एक दलित दूल्हे को सवर्णों द्वारा घोड़ी से जबरन उतारे जाने की घटना को देखते हुए उठाया है. माहिदपुर के सब डिविजनल मजिस्ट्रेट जगदीश गोमे ने एक सर्कुलर जारी कर सरपंचों और पंचायत सचिवों को दलितों के घर होने वाली शादियों को लेकर सतर्क रहने के लिए कहा है. पुलिस का कहना है कि “एहतियातन यह कदम उठाया गया है. हम नहीं चाहते कि कोई अनहोनी घटना घटे. किसी के साथ घटना बीत जाने के बाद कोई सबूत नहीं मिल पाता. क्योंकि आरोपी हर आरोप से इनकार करता है और बिल्कुल नई कहानी सुनाता है. इससे अच्छा है कि बारात निकलने के वक्त पुलिस मौजूद रहे.”

जिन्ना को लेकर अलीगढ़ के AMU में बवाल जारी

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अलीगढ़। अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी (एएमयू) के छात्रसंघ भवन में लगी मोहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर को लेकर हंगामा जारी है. स्थिति खराब होती देख जिलाधिकारी चंद्र भूषण सिंह ने चार और पांच मई तक शहर में इंटरनेट सेवाएं बंद करने का फरमान जारी किया है. डीएम ने धारा 144 के तहत यह आदेश पारित किया है.

इधर दूसरी ओर मुहम्मद अली जिन्ना की तस्वीर को लेकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) परिसर और उसके बाहर हुई घटनाओं के बाद विश्वविद्यालय में छात्रों का धरना आज शुक्रवार को भी जारी रहा. एएमयू के बाब-ए-सैयद गेट के पास अनिश्चितकालीन धरना प्रदर्शन कर रहे छात्रों ने आज वहीं पर जुमे की नमाज अदा की. प्रदर्शनकारी छात्रों ने अगले दो दिनों तक परिसर में होने वाली सभी शैक्षणिक गतिविधियों का बहिष्कार जारी रखने का एलान किया है. एएमयू के कुलपति प्रोफेसर तारिक मंसूर ने जवाहर लाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल का दौरा कर बुधवार को पुलिस लाठीचार्ज में घायल हुए छात्रों का हाल-चाल जाना.

दूसरी ओर एएमयू टीचर्स एसोसिएशन ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को पत्र लिखकर गत बुधवार को हिन्दू युवा वाहिनी के कार्यकर्ताओं द्वारा विश्वविद्यालय परिसर में अराजकता फैलाये जाने के घटनाक्रम की फौरन उच्च स्तरीय जांच कराने की गुजारिश की. एसोसिएशन के सचिव प्रोफेसर नजमुल हसन ने बताया कि संगठन ने राष्ट्रपति से गुहार लगायी है कि वह मामले को गम्भीरता से लें, क्योंकि यह पूर्व उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी की सुरक्षा से जुड़ा मामला है. उन्होंने आरोप लगाते हुए कहा कि दो मई को पुलिस हिन्दू युवा वाहिनी के गुंडों को रोकने के बजाय तमाशबीन बनी रही.

गौरतलब है कि एएमयू के यूनियन हॉल में जिन्ना की तस्वीर लगाये जाने से नाराज हिन्दू युवा वाहिनी के कुछ कार्यकर्ताओं ने दो मई को परिसर में घुसकर नारेबाजी की थी. उन पर मारपीट और भड़काऊ नारेबाजी करने के आरोप हैं.

एससी-एसटी एक्ट पर अगली सुनवाई 16 मई को

नई दिल्ली। एससी-एसटी एक्ट पर अदालत के भीतर बहस जारी है. केंद्र सरकार द्वारा इस एक्ट में हुए बदलाव को खारिज करने की मांग को शीर्ष अदालत ने खारिज कर दिया. केंद्र की पुनर्विचार याचिका पर गुरुवार को सुनवाई करते हुए कोर्ट ने अपने फैसले पर पीछे हटने से इंकार कर दिया.

गुरुवार को सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार का पक्ष रखते हुए अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने कोर्ट में कहा कि कोर्ट के इस फैसले से SC/ST लोगों के मनोबल और आत्मविश्वास को कम हुआ है. उन्होंने कहा कि 20 मार्च को शीर्ष कोर्ट ने जो फैसला दिया उससे काफी नुकसान हुआ. इसके विरोध में जो प्रदर्शन हुआ उसमें 8 लोगों की जान चली गई थी. इस पर कोर्ट ने साफ कहा है कि हमारे फैसले से कोई हिंसा नहीं हुई है, लेकिन लोगों ने फैसले को सही तरीके से समझा ही नहीं था. जस्टिस गोयल ने कहा कि SC/ST समुदाय के लोगों को कोर्ट भी पूर्ण सुरक्षा देता है. सरकार की ओर से कहा गया कि इस मामले को बड़ी बेंच को सौंपा जाना चाहिए.

कोर्ट ने कहा है कि हमारे फैसले में ऐसा नहीं है कि अगर कोई गलत काम होता है तो उसपर एक्शन ना लिया जाए. बल्कि आदेश कहता है कि कानून का कोई गलत इस्तेमाल ना कर पाए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमने केवल एक फिल्टर लगाया है, ताकि गिरफ्तारी करने से पहले ये देखा जाए कि वो गिरफ्तार करने योग्य है या नहीं. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि केंद्र सरकार ये कह रही है कि 15 फीसदी ही मामले इस एक्ट के तहत झूठे दर्ज किए गए हैं. इसका मतलब ये नहीं की बाकी 85 फीसदी सही हों. इस मामले में अब अगली सुनवाई 16 मई को होगी.

मोदी के दलित कार्ड पर कांग्रेस का करारा जवाब

र्नाटक में एक चुनावी सभा को संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने दलित कार्ड खेला. पीएम मोदी ने दलित कार्ड के जरिए कांग्रेस को घेरने की कोशिश की, हालांकि कांग्रेस नेताओं ने भी मोदी को करारा जवाब दिया. चुनावी सभा को संबोधित करते हुए कांग्रेस को घेरने के लिए मोदी ने मल्लिकार्जुन खड़गे का जिक्र कर दिया.

पीएम मोदी ने मल्लिकार्जुन खड़के को मुख्यमंत्री नहीं बनाए जाने को लेकर कांग्रेस को घेरने पर हमला बोला. तो दूसरी तरफ, खड़गे ने पीएम पर पलटवार करते हुए कहा कि दलित होने के कारण ही भाजपा और पीएम मोदी ने उन्हें ‘विपक्ष का नेता’ नहीं बनाया.

खड़गे ने कहा, “मेरी पार्टी के बारे में बात मत कीजिए. उन्होंने मुझे बहुत कुछ दिया है. आपने ही मुझे विपक्ष का नेता नहीं बनने दिया क्योंकि मैं दलित हूं. दलितों के प्रति आपकी चिंता सिर्फ पाखंड है. आपकी सरकार में एससी और एसटी पर जुल्म हो रहे हैं.”

खड़गे ने दावा किया कि आरएसएस की विचारधारा से परेशान होकर ही बीआर आंबेडकर ने हिंदू धर्म छोड़ा और बौद्ध धर्म अपनाया. दूसरी ओर मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने भी पीएम से अपना दलित प्रेम जाहिर करने के लिए किसी दलित को बीजेपी कैंडिडेट बनाने की मांग की है. उन्होंने मीडिया से कहा, “अगर आप दलितों की चिंता करते हैं तो येदियुरप्पा को छोड़ दलित नेता गोविंद कराजोल को सीएम कैंडिडेट बनाइए. हमें दलित विकास पर लेक्चर मत दीजिए. खुद को देखिए. मोदी सरकार एससी/एसटी सरकार विरोधी है.”

हर जिले में कबीर बहुजन केंद्र खोलेगी लालू यादव की पार्टी

पटना। राष्ट्रीय जनता दल के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने कुछ दिन पहले ही यह बयान दिया था कि अगला चुनाव जय श्रीराम और जय भीम के बीच होगा. राजद ने अब इसके लिए जमीन तैयार करने का काम भी शुरू कर दिया है. राष्ट्रीय जनता दल अम्बेडकरी विचारधारा को फैलाने के लिए हर जिले में कबीर बहुजन केंद्र खोलने जा रही है.

यह केंद्र लाइब्रेरी की तरह होगा, जिसमें दलित-पिछड़ा विमर्श, मानव उत्थान के अलावा समाज सुधारकों की जीवनी से संबंधित पुस्तकें उपलब्ध रहेंगी. कम्प्यूटर, इंटरनेट सहित अन्य सुविधाओं से सुसज्जित इस केंद्र में ई-बुक रीडिंग की भी व्यवस्था होगी. इस केंद्र को बनवाने के लिए पार्टी के सांसद और विधायक भी अपने कोष से मदद करेंगे.

पार्टी के राष्ट्रीय प्रवक्ता और राज्यसभा सांसद मनोज झा ने इसकी जानकारी देते हुए कहा है कि नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव चाहते हैं कि खास कर युवा पीढ़ी इन केंद्रों के माध्यम से ज्ञान अर्जित कर अपनी क्षमता का उपयोग समाज की बेहतरी के लिए कर सके. तेजस्वी यादव ने कार्यकर्ताओं से यह भी कहा है कि वे अब जय भीम, जय बहुजन, जय मंडल और जय हिंद के नारे के साथ जनता के बीच जाएं.

राजद प्रवक्ता ने कहा कि भाजपा साम्प्रदायिकता का जहर फैला हमारे सामाजिक ताना-बाना को नष्ट करने पर तुली है. आरक्षण को समाप्त करने की पुरजोर कोशिश जारी है. लेकिन हम किसी भी सूरत में इस साजिश को सफल होने नहीं देंगे. दलित, पिछड़े और अकलियतों को गोलबंद कर राजद एक मजबूत विकल्प पेश करेगा.

दलित के घर खाने पर भाजपा की दलित सांसद ने ही उठाया सवाल

लखनऊ। दलितों के घर खाने और उसे प्रचारित करना राजनीतिक दलों का फैशन बनता जा रहा है. फिलहाल भाजपा के नेता इस कवायद में जुटे हुए हैं. लेकिन भाजपा की ही एक दलित सांसद ने अपनी ही पार्टी के नेताओं को आड़े-हाथों लिया है. बीजेपी सांसद सावित्री बाई फुले ने इसे दिखावा और बहुजन समाज का ‘अपमान‘ करार दिया है.

बहराइच लोकसभा सीट से सांसद सावित्री बाई फुले ने कहा, “बाबा साहब भीमराव आंबेडकर ने भारत के संविधान में जाति व्यवस्था को खत्म करते हुए सबको बराबर की जिंदगी जीने का अधिकार दिया है, लेकिन आज भी अनुसूचित जाति के प्रति लोगों की मानसिकता साफ नहीं है. इसीलिये लोग उनके घर में खाना खाने तो जाते हैं, लेकिन उनका बनाया हुआ खाना नहीं खाते. उनके लिये बाहर से बर्तन आते हैं, बाहर से खाना बनाने वाले आते हैं, वे ही परोसते भी हैं. दिखावे के लिये दलित के दरवाजे पर खाना खाकर फोटो खिंचवायी जा रही है और उन्हें व्हाट्सअप, फेसबुक पर वायरल किये जाने के साथ-साथ टीवी चैनलों पर चलवाकर वाहवाही लूटी जा रही है. इससे पूरे देश के बहुजन समाज का अपमान हो रहा है.’’

सावित्री ने कहा कि बात तो तब हो जब दलित के हाथ का बनाया हुआ खाना खाएं और खुद उसके बर्तनों को धोएं. उन्होंने कहा कि अगर अनुसूचित जाति के लोगों का सम्मान बढ़ाना है तो उनके घर पर खाना खाने के बजाय उनके लिये रोटी, कपड़े, मकान और रोजगार का इंतजाम किया जाए. हम सरकार से मांग करते हैं कि वह अनुसूचित जाति के लोगों के लिये नौकरियां सृजित करे. केवल खाना खाने से अनुसूचित जाति के लोग आपसे नहीं जुड़ेंगे.

करन कुमार

22 लाख कर्मचारियों ने दी सीएम योगी को धमकी

​लखनऊ। ​उत्तर प्रदेश के 22 लाख राज्य कर्मचारियों ने 8 जून को हड़ताल पर जाने का ऐलान किया है. ये कर्मचारी वेतन विसंगति, सेवानिवृति की सीमा बढ़ाने, मेडिकल कैशलेस सेवा का लाभ सभी कर्मचारियों को देने की मांग को लेकर नाराज हैं. कर्मचारियों के संगठन ने ऐलान किया है कि 16 मई को सभी जनपद मुख्यालय पर मोटरसाइकिल रैली निकाली जाएगी. इस दौरान मांगों को लेकर मुख्यमंत्री को ज्ञापन सौंपा जाएगा. वहीं 7 और 8 जून को दो दिवसीय कामबंदी रहेगी.

कर्मचारी शिक्षक संयुक्त मोर्चा के अध्यक्ष वीपी मिश्र ने इस दौरान मुख्यमंत्री को अंतिम विनम्र चेतावनी दी कि 8 जून के पहले 19 सितम्बर 2016 के सहमतियों के अनुपालन शासनादेश निर्गत नहीं किया गया तो दो दिवसीय कार्य बहिष्कार को आगे बढ़ाने के लिए बाध्य होना पड़ेगा. दरअसल कर्मचारी शिक्षक संयुक्त मोर्चा उत्तर प्रदेश की प्रदेशीय कार्यकारिणी की बैठक गुरुवार को वीपी मिश्र की अध्यक्षता में जवाहर भवन, इंदिरा भवन प्रांगण में हुई. इस दौरान राज्य कर्मचारी संयुक्त परिषद उप्र, राज्य कर्मचारी महासंघ, चतुर्थ श्रेणी कर्मचारी महासंघ, निगम कर्मचारी महासंघ, स्थानीय निकाय कर्मचारी महासंघ, जवाहर भवन इन्द्रा भवन कर्मचारी महासंघ, माध्यमिक शिक्षक संघ, शिक्षणेत्तर कर्मचारी महासंघ, फेडरेशन ऑफ फॉरेस्ट, विकास प्राधिकरण कर्मचारी महासंघ, मिनिस्टीरियल फेडरेशन आदि सम्बद्ध संगठनों के पदाधिकारियों ने हिस्सा लिया.

गौरतलब है कि संयुक्त मोर्चा के नेताओं का कहना है कि 19 सितम्बर 2016 को तत्कालीन मुख्यसचिव राहुल भटनागर द्वारा बैठक करके कर्माचारियों की मांगो पर जो निर्णय लिया गया था, उस पर सार्थक निर्णय लेकर शासनादेश जारी किया जाए. सीएम योगी पर आरोप लगाते हुए संगठन के पदाधिकारियों ने कहा कि प्रदेश के मुखिया द्वारा पिछले एक साल से प्रदेश के लाखों कर्मचारियों एवं शिक्षकों की उपेक्षा की जा रही है, उससे कर्मचारी आहत हैं.

हिन्दू थे जिन्ना के पिता, जानिए क्यों बन गए मुस्लिम

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पाकिस्तान के संस्थापक मोहम्मद अली जिन्ना के पिता हिन्दू परिवार में पैदा हुए थे. लेकिन एक घटना से वह इतने नाराज हो गए कि उन्होंने अपना धर्म ही बदल लिया और हिन्दू से मुस्लिम बन गए. एक बार मुस्लिम बनने के बाद जिन्ना के पिता जिंदगी भर इस धर्म के साथ रहें और उनके बाद जिन्ना और उनके बच्चे भी इसी धर्म का पालन कर रहे हैं.

अकबर एस अहमद की किताब जिन्ना, पाकिस्तान एंड इस्लामिक आइडेंटीटी में विस्तार से उनकी जड़ों की जानकारी दी गई है. इसके मुताबिक जिन्ना परिवार गुजरात के काठियावाड़ का रहने वाला था. जिन्ना के दादा का नाम प्रेमजीभाई मेघजी ठक्कर था. जाहिर है कि वो हिन्दू थे. वो काठियावाड़ के गांव पनेली के रहने वाले थे. लोहाना मूल तौर पर वैश्य होते हैं, जो गुजरात, सिंध और कच्छ में होते हैं. कुछ लोहाना राजपूत जाति से भी ताल्लुक रखते हैं. प्रेमजी भाई मछली के कारोबार में थे. उनका मछली का कारोबार देश-विदेश में फैला हुआ था. इससे उन्होंने बहुत पैसा भी कमाया. जिन्ना का खानदान लोहना जाति से ताल्लुक रखता था. इस जाति के अन्य लोगों को उनका मछली का कारोबार पसंद नहीं था. लोहना कट्टर तौर शाकाहारी थे और धार्मिक तौर पर मांसाहार से सख्त परहेज करते थे.

ऐसे में जब प्रेमजी भाई ने मछली का कारोबार शुरू किया तो उनकी जाति के लोग इसका विरोध करने लगें. उनसे कहा गया कि अगर उन्होंने इस बिजनेस से हाथ नहीं खींचे तो उन्हें जाति से बहिष्कृत कर दिया जाएगा. प्रेमजी ने बिजनेस जारी रखने के साथ जाति समुदाय में लौटने का प्रयास किया लेकिन बात नहीं बनी. उनका बहिष्कार जारी रहा. इस बहिष्कार के बाद भी प्रेमजी तो लगातार हिन्दू बने रहे लेकिन उनके बेटे पुंजालाल ठक्कर को पिता और परिवार का बहिष्कार इतना अपमानजनक लगा कि उन्होंने गुस्से में पत्नी और बच्चों के साथ धर्म ही बदल डाला और मुस्लिम बन गए.

हालांकि प्रेमजी के बाकी बेटे हिन्दू धर्म में ही रहे. इसके बाद जिन्ना के पिता पुंजालाल के रास्ते अपने भाइयों और रिश्तेदारों तक से अलग हो गए. वो काठियावाड़ से कराची चले गए. वहां उनका बिजनेस और फला-फूला. वो इतने समृद्ध व्यापारी बन गए कि उनकी कंपनी का आफिस लंदन तक में खुल गया. कहा जाता है कि जिन्ना के बहुत से रिश्तेदार अब भी हिन्दू हैं और गुजरात में रहते हैं.

चौपाल लगाकर भाजपा के दलित प्रेम की पोल खोलेगी बसपा

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भाजपा के झूठे दलित प्रेम की पोल खोलने के लिए बहुजन समाज पार्टी ने अपनी कमर कस ली है. इसके लिए बसपा ने दलित बाहुल्य गांवों में चौपाल लगाने का फैसला किया है. इस चौपाल में बसपा नेता भाजपा सरकार द्वारा किए जाने वाले दलित विरोधी कामों की पोल खोलेंगे. इस चौपाल में जिला कोऑर्डिनेटर के साथ क्षेत्रीय बसपा नेता भी शामिल होंगे. चौपाल कार्यक्रम की शुरुआत अगले महीने से होगी.

दरअसल भाजपा उत्तर प्रदेश में दलितों को अपने पाले में लाने के लिए ग्राम स्वराज अभियान चला रही है, जिसके तहत मुख्यमंत्री से लेकर डिप्टी सीएम, मंत्री, सांसद और विधायक गांवों में चौपाल लगाने से लेकर दलित के घर खाना खा रहे हैं. इस दौरान भाजपा नेताओं द्वारा दलित समाज के घर होटल से खाना मंगवा कर खाने सहित अपने ही महिला मंत्री से खाना बनवा कर खाने की खबर सामने आ चुकी है. बहुजन समाज पार्टी ने इस सच्चाई को दलित समाज तक पहुंचाने का फैसला किया है. बसपा नेताओं द्वारा लगाया जाने वाला चौपाल इसी पोल-खोल की कड़ी का हिस्सा है. इसमें बसपा नेता दलित समाज के लोगों को सरकार और भाजपा नेताओं की सच्चाई से अवगत करवाएंगे.

2019 के लोकसभा चुनाव को देखते हुए चौपाल के जरिए बसपा बूथ स्तर पर संगठन को मजबूत करने की कवायद में भी जुट गई है. बसपा प्रमुख मायावती ने भी पार्टी पदाधिकारियों को बूथ स्तर पर संगठन को मजबूत करने के निर्देश दिए हैं. इसके अलावा उन्होंने पार्टी से युवाओं को जोड़ने का भी निर्देश दिया है. दरअसल, बसपा लोकसभा चुनाव से पहले बूथ स्तर तक संगठन को खड़ा करना चाहती है. इसके लिए जोनल प्रभारियों को काम पर लगाया गया है.

बसपा के चौपालों में एक ओर जहां बीजेपी सरकार द्वारा किए गए दलित विरोधी कार्यों की जानकारी दी जाएगी. दूसरी ओर बसपा सरकार में हुए दलित हितों के लिए किए गए कार्यों को बताया जाएगा. बसपा का मानना है कि चौपाल के माध्यम से वह बीजेपी के झूठे दलित प्रेम का पर्दाफाश कर सकेगी. भाजपा के ग्राम स्वराज अभियान के जवाब में बसपा की इस चौपाल ने जहां उत्तर प्रदेश की राजनीति को दिलचस्प बना दिया है. तो वहीं इससे बहुजन समाज पार्टी अपने कार्यकर्ताओं को भी यह संदेश दे दिया है कि वह 2019 के लिए अपनी कमर कस लें.

SSC CGL 2018: 5 मई को जारी होगा 4 हजार नौकरियों के लिए नोटिफिकेशन

नई दिल्ली। स्टाफ सिलेक्शन कमीशन (SSC) SSC कंबाइन ग्रेजुएट लेवल (SSC CGL) 2018 एग्जाम के लिए शनिवार यानी 5 मई को नोटिफिकेशन जारी करेगा. इस साल CGL के एग्जाम से करीब 4 हजार नौकरियां मिलने की उम्मीद है. हर साल की तरह इस साल भी कैंडिडेट्स को नौकरी पाने के लिए 4 टेस्ट पास करने होंगे.

5 मई से CGL 2018 के लिए रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया शुरू होने जा रही है. एग्जाम देने के लिए कैंडिडेट्स को ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन करना होगा.

SSC CGL एग्जाम के लिए योग्यता: CGL का एग्जाम देने के लिए किसी भी विषय में ग्रेजुएट होना जरूरी है. जो स्टूडेंट्स ग्रेजुएशन के फाइनल ईयर में पढ़ाई कर रहे हैं वो भी इस एग्जाम के लिए अप्लाई कर सकते हैं.

आयु सीमा: SSC ने इस साल आयु सीमा में बदलाव करते हुए इसे 27 साल की बजाए 30 साल करने का फैसला किया है. इस एग्जाम को देने के लिए न्यूनतम उम्र 20 साल होनी चाहिए.

सैलरी: अलग-अलग पोस्ट के लिए सैलरी अलग होगी. पोस्ट के अनुसार ग्रेड को 5 हिस्सों में बांटा गया है. सैलरी की पूरी जानकारी ऑफिशिलय वेबसाइट पर उपलब्ध करवाई गई है.

ऐसे करें अप्लाई: स्टूडेंट्स को ऑफिशियल वेबसाइट पर ऑनलाइन एप्लिकेशन अप्लाई करना होगा. पेमेंट के बारे में जानकारी ऑफिशियल नोटिफिकेशन आने के बाद ही पता चलेगी.

महत्वपूर्ण तिथियां:-
Activity Dates
SSC CGL 2018 Online Application 5th May to 25th May 2018
SSC CGL 2018 Tier-I 25th July to 20th Aug 2018(CBE)
SSC CGL Tier-II 27.11.2018 to 30.11.2018(P-II CBE)
SSC CGL Tier-III (Des) To be notified later
SSC CGL Tier-IV Exam To be notified later

इश्क़ में मारा गया बड़ा राजन, तब आया छोटा राजन

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हर नई कहानी तब शुरू होती है, जब एक कहानी ख़त्म हो जाए. छोटा राजन की कहानी भी वहां से शुरू होती है, जहां पर बड़ा राजन यानी राजन नायर की कहानी ख़त्म होती है.
मुंबई के अपराध की दुनिया को जानने वाले जानते हैं कि राजन नायर दर्जी की नौकरी करता था. 25 से 30 रुपए कमा पाता था. उसकी गर्लफ्रेंड का बर्थडे आया. पैसों की ज़रूरत हुई तो उसने एक टाइपराइटर चुराकर बेच दिया.इन पैसों से राजन नायर गर्लफ्रेंड की ज़रूरतें पूरी करने लगा, जल्द ही पुलिस ने गिरफ्तार कर राजन नायर को तीन साल के लिए जेल भेज दिया. जेल से निकलकर राजन ने गुस्से में अपनी गैंग बना ली. नाम ‘गोल्डन गैंग’, जो आगे जाकर ‘बड़ा राजन गैंग’ कहलाया. बताया जाता है कि 1991 में एक मलयाली फ़िल्म आई थी ‘अभिमन्यु’ जो बड़ा राजन की ज़िंदगी पर आधारित थी उसमें इन घटनाओं को दिखाया गया है, बड़ा राजन की भूमिका इस फ़िल्म में मोहनलाल ने की थी.
राजन ने एक गुर्गे अब्दुल कुंजू को गैंग में जोड़ा. कुछ दिनों बाद इसी अब्दुल कुंजू ने राजन नायर की गर्लफ्रेंड से शादी कर ली. दोनों की दोस्ती दुश्मनी में बदल गई. अख़बार बताते हैं कि 1982 में पठान भाइयों ने कुंजू की मदद से अदालत के बाहर बड़ा राजन यानी राजन महादेव नायर की हत्या करा दी. राजन नायर अंडरवर्ल्ड की दुनिया का बड़ा राजन था. बड़ा राजन के ख़त्म होने के बाद शुरू होती है छोटा राजन के आने की कहानी, वही छोटा राजन जिसके बारे में भारत की जाँच एजेंसियाँ पता लगा चुकी थीं कि वो काफ़ी समय तक दाऊद इब्राहिम का ख़ास आदमी था.
1993 के मुंबई बम धमाकों के मुख्य अभियुक्त दाऊद और छोटा राजन की ये क़रीबी जिस एक शख्स की आंख में सबसे ज़्यादा चुभ रही थी, वो था छोटा शकील. जिसने छोटा राजन की जान लेने की कई कोशिशें की. 1993 के बम धमाकों के बाद छोटा राजन और दाऊद की साझीदारी ख़त्म हो गई.
मुंबई के चेंबूर के तिलक नगर में 1960 में एक मराठी परिवार में बेटे ने जन्म लिया. नाम रखा गया राजेंद्र सदाशिव निखल्जे. पिता सदाशिव थाणे में नौकरी करते थे. राजन के तीन भाई और दो बहनें थीं. राजन का पढ़ाई में कम ही मन लगता था. पांचवीं तक पढ़ाई के बाद राजेंद्र ने स्कूल छोड़ दिया. राजेंद्र जल्द ही बुरी संगत में आ गया. राजन जगदीश शर्मा उर्फ गूंगा की गैंग में शामिल हो गया.राजेंद्र की सुजाता नाम की लड़की से शादी हुई. तीन बेटियां हुईं.
1979 में इमरजेंसी के बाद पुलिस कालाबाज़ारी करने वालों पर शिकंजा कस रही थी. इस वक्त राजेंद्र मुंबई के सहकार सिनेमा के बाहर टिकटें ब्लैक करने लगा था. लोग बताते हैं कि एक दिन पुलिस ने इसी सिनेमा हॉल के बाहर लाठीचार्ज किया. लाठियों से गुस्साए 20 साल से कम उम्र के राजन ने पुलिस की लाठी छीनी और पुलिसवालों को पीटना शुरू कर दिया. पुलिसवालों से राजेंद्र की ये पहली मुठभेड़ थी. कई पुलिसवाले घायल हुए. इसका एक नतीजा ये रहा कि मुंबई की ज़्यादातर गिरोह क़रीब पांच फुट तीन इंच के राजेंद्र को अपने साथ जोड़ना चाहते थे. राजेंद्र ने बड़ा राजन गैंग ज्वाइन करने का फ़ैसला किया.
दाऊद से छोटा राजन की पहली मुलाक़ात
1982 में बड़ा राजन के मरने के बाद गैंग को संभालने वाला राजेंद्र छोटा राजन बन गया. छोटा राजन ने तय किया कि वो अपने बड़ा राजन भाई की मौत का बदला लेगा. कुंजू के भीतर छोटा राजन का डर इस क़दर बैठा कि 9 अक्तूबर 1983 को कुंजू ने क्राइम ब्रांच में जाकर सरेंडर कर दिया. कुंजू को ये लगा कि ज़िंदगी बचाने का यही तरीका है.लेकिन छोटा राजन हार मानने वालों में से नहीं था. जनवरी 1984 में छोटा राजन ने कुंजू को मारने की कोशिश की लेकिन कुंजू इस हमले में बस घायल हुआ.
25 अप्रैल 1984 को जब पुलिस कुंजू को इलाज के लिए अस्पताल ले गई. अस्पताल में एक ‘मरीज’ हाथ में प्लास्टर बांधे बैठा हुआ था. जैसे ही कुंजू करीब आया, प्लास्टर को हटाकर शख्स ने फायरिंग शुरू कर दी. किस्मत ने कुंजू का फिर साथ दिया लेकिन हमले के इस तरीके से भविष्य में दो लोग सबसे ज्यादा प्रभावित हुए. पहला दाऊद इब्राहिम. दूसरा बॉलीवुड, जहां आज भी कई फ़िल्मों में इस सीन को फिल्माया जाता है.
मुंबई अंडरवर्ल्ड की कहानी सुनाने वाले बहुचर्चित किताब ‘डोंगरी टू दुबई’ में एस हुसैन ज़ैदी लिखते हैं, ”इस ख़बर को सुनने के बाद दाऊद ने छोटा राजन को मिलने के लिए बुलाया. इस मुलाक़ात के बाद छोटा राजन दाऊद की गैंग में शामिल हो गया और छोटा राजन की कुंजू को मारने की अगली कोशिश सफल हुई.”
ज़ैदी ने अपनी किताब में लिखा है, “कुंजू क्रिकेट के मैदान में था. क्रिकेट की सफेद पोशाक पहनकर मैदान में कई लोग थे. तभी कुछ नए खिलाड़ियों ने मैदान में शामिल होकर कुंजू और उसके साथियों पर फायरिंग शुरू कर दी”.
इस तरह छोटा राजन ने अपने अंडरवर्ल्ड भाई, बड़ा राजन की मौत का बदला लेने का मिशन पूरा कर लिया था.
कहां से शुरू हुई दाऊद से छोटा राजन की नाराज़गी?
दाऊद और छोटा राजन दोनों एक दूसरे का भरोसा जीत चुके थे, अगले कुछ सालों में छोटा राजन दाऊद भाई के इशारों पर काम करता रहा. अब दाऊद की गैंग में दो छोटा थे, जो ‘भाई’ के लिए बड़े से बड़ा काम कर सकते थे.
1987 में छोटा राजन दाऊद का काम संभालने के लिए दुबई चला गया. इसके ठीक एक साल दुबई छोटा शकील ने दुबई का रुख़ किया लेकिन दाऊद का करीबी छोटा राजन रहा न कि छोटा शकील. ऐसे कई मौके रहे, जब छोटा शकील को ये बात चुभी कि दाऊद उससे ज्यादा छोटा राजन पर यकीन करता है. छोटा राजन को गैंग में नाना भी कहा जाता था.
राजन दाऊद के लिए बिल्डर्स और रईस लोगों से वसूली करने लगा. किसी भी कॉन्ट्रेक्टर को अगर कोई ठेका लेना होता तो इसकी तीन से चार फीसदी फीस छोटा राजन को चुकानी होती. पुलिस आंकड़ों के मुताबिक, छोटा राजन हर महीने 90 के दशक में क़रीब 80 लाख रुपए जुटा लिया करता था. कहा ये भी गया कि छोटा राजन के नाम 122 बेनामी होटल और पब सिर्फ मुंबई में थे. इस कमाई का एक हिस्सा गैंग के गुर्गों के कोर्ट केस लड़ने में भी खर्च किया जाता था.
कभी दाऊद के वफ़ादार फिर जानी दुश्मन राजन
गैंग में छोटा राजन की बढ़ती अहमियत को खत्म करने की छोटा शकील, शरद शेट्टी, सुनील रावत सोचते हैं.
एस हुसैन ज़ैदी अपनी किताब ‘डोंगरी टू दुबई’ में ये वाकया शेयर करते हैं.
“दाऊद भाई छोटा राजन सारी ताकत खुद के पास रखता जा रहा है. कल को वो तख्तापलट कर गैंग पर कब्ज़ा कर सकता है.”
किताब में लिखा है कि दाऊद जवाब देता है- “तुम लोग कब से ऐसी अफवाहों पर यकीन करने लगे. वो बस अपनी गैंग का मैनेजर है”. लेकिन दाऊद के इस जवाब के बाद भी वहाँ मौजूद लोगों के दिल से छोटा राजन के लिए कड़वाहट कम नहीं हुई. कुछ वक्त की ख़ामोशी के बाद दाऊद छोटा शकील से कहता है- “छोटा राजन को फोन लगाओ”.
यहां एक बात का ज़िक्र ज़रूरी है कि ये वो वक्त था, जब दाऊद ने छोटा राजन को अपने भाई साबिर इब्राहिम कासकर की हत्या करने वाले करीम लाला और अमीरज़ादा को मारने का काम दे रखा था. छोटा राजन के फोन उठाते ही दाऊद कहता है, “इब्राहिम की मौत के लिए ज़िम्मेदार लोगों को तू अब तक नहीं पकड़ पाया न?” छोटा राजन जवाब देता है, “हां भाई, मेरे लड़के लगे हुए हैं. हमले के लिए ज़िम्मेदार गवली के लड़के अभी जेजे अस्पताल में भर्ती हैं. सिक्योरिटी बहुत टाइट है. मैं जल्दी कुछ करेगा भाई.”
वहां कमरे में बैठा सौत्या दाऊद से कहता है- “मेरे को बस एक मौका और दो भाई और आप देखोगे कि मैं कैसे सिक्योरिटी तोड़कर बदला लेता हूँ”. सौत्या दाऊद के पैर छूकर निकलता है. अब छोटा शकील और सौत्या के लिए यही मौका था कि छोटा राजन को दाऊद की नज़र से गिराया जाए.
‘डी’ गैंग में छोटा राजन के अंत की शुरुआत
12 सितंबर 1992 को अस्पताल में छोटा शकील और सौत्या के गुर्गे घुसने की साजिश रचते हैं. अस्पताल पर हमले के लिए एके-47 का इस्तेमाल किया गया. पुलिस पंचनामे के मुताबिक, 500 राउंड फायरिंग हुई. ज़ैदी के मुताबिक़, दाऊद का बदला पूरा हो चुका था और ‘डी’ गैंग में छोटा राजन के अंत की शुरुआत भी.
अपनी ख़ास बैठकों में दाऊद अब छोटा शकील को ले जाने लगा. छोटा राजन को किनारे कर दिया गया. 1993 में मुंबई में बम धमाके हुए. कई लोगों की जान गई. धमाकों के बाद मुंबई के लोगों के मन में दाऊद और उसके सहयोगी छोटा राजन के लिए नफरत भर गई.
एस हुसैन ज़ैदी अपनी किताब में लिखते हैं, “छोटा राजन ने अख़बारों को फैक्स के ज़रिए अपना पक्ष रखने की कोशिश की. राजन ने दाऊद का बचाव भी किया.”
ऐसा नहीं है कि गैंग में छोटा राजन और छोटा शकील से मतभेद कम करने की कोशिश दाऊद ने नहीं की. ज़ैदी ने लिखा है कि दाऊद ने ऐसी ही एक मुलाकात में चिल्लाकर कहा था- “नाना मेरे बुरे वक्त का दोस्त है. मैं उसकी बुराई नहीं सुनना चाहता. आपस में झगड़ा धंधे की मौत होता है.” दाऊद की बात से छोटा शकील टुकड़ी के लोग भले ही खुश न हों लेकिन छोटा राजन के दिल में महीनों बाद कुछ तसल्ली ने घर किया था लेकिन ये तसल्ली ज़्यादा दिन तक नहीं रही. छोटा शकील की ओर से राजन को काफिर कहा जाने लगा और ज़रूरी बैठकों में शामिल नहीं किया गया. 1993-94 आते-आते दोनों धड़े एक दूसरे के खून के प्यासे हो गए थे. राजन ने दाऊद गैंग का काम करना बंद कर दिया. राजन अब भारत लौटना चाहता था. लेकिन छोटा राजन का पासपोर्ट उन शेखों के पास था, जिनकी मदद से वो दुबई में रहने गया था. राजन के पास मुल्क वापसी का कोई रास्ता नहीं बचा था लेकिन ये ज़रूर जानता था कि अगर वो वहां और रुका तो अपनी जान खो बैठेगा.
ज़ैदी ने अपनी चर्चित किताब में लिखा है–तभी दाऊद एक बड़ी पार्टी करता है. इस पार्टी में शहर के बड़े लोगों को बुलाया गया. छोटा राजन भी पार्टी में जाने के लिए तैयार हो रहा था. तभी एक फोन आता है. राजन फोन उठाता है तो एक अनजान आवाज़ आती है- “नाना वो तुमको टपकाने का प्लानिंग किए ला है.”
‘डोंगरी टू दुबई’ किताब बताती है कि “छोटा राजन फोन रखने के बाद इंडियन एम्बेसी का रुख करता है. वहां एक रॉ अफसर से राजन की बात होती है. दिल्ली फोन लगाए जाते हैं. कुछ घंटों बाद राजन काठमांडू की फ्लाइट में बैठा था. काठमांडू से राजन मलेशिया चला गया.” दुबई में छोटा राजन के गायब होने के बाद छोटा शकील धड़े के तेवर और हौसले बुलंद हो गए. यहीं से जो छोटा राजन कभी दाऊद का दायां हाथ था, अब उस जगह को छोटा शकील ने भर दिया. अगले कुछ साल छोटा राजन ने छिपकर बिताए. अगले कुछ साल छोटा राजन ने कुआलालम्पुर, कंबोडिया और इंडोनेशिया में छिपते हुए बिताए. लेकिन राजन को अपने लिए सुरक्षित ठिकाना बैंकॉक लगा. राजन ने मोबाइल नंबर से लेकर घर के पते तक, अपनी लोकेशन छिपाए रखने की हर कोशिश की.
इधर छोटा शकील भी छोटा राजन के सीने में गोली उतारने का सपना लिए हुए था. काफी कोशिशों के बाद साल 2000 में छोटा राजन का पता छोटा शकील को लग चुका था. 14 सितंबर 2000 को चार हथियार बंद लोग राजन के अपार्टमेंट पर हमला करते हैं. लेकिन राजन भागने में कामयाब होता है. राजन पुलिस की मदद से अस्पताल में भर्ती होता है. ये खबर भारत भी पहुंचती है. ये भी पता चला कि राजन अब तक बैंकॉक में छिपा हुआ था. कुछ दिनों बाद राजन अचानक अस्पताल से भी गायब हो जाता है. राजन को ये खबर मिली थी कि कोई अस्पताल को उड़ा सकता है इसलिए वो अस्पताल की चौथी मंजिल से कूदकर भाग जाता है. साल 2001 में राजन इस हमले का बदला लेता है. राजन छोटा शकील गैंग के दो गुर्गों को मरवा देता है.
2001 के बाद छोटा राजन कहां रहा, इस बात की ख़बर दुनिया को नहीं रही. अगली बार छोटा राजन का दुनिया ने नाम सुना जून 2011 में . जब मिड डे न्यूज़ पेपर में वरिष्ठ क्राइम रिपोर्टर ज्योतिर्मय डे की मंबई के पवई में गोली मारकर हत्या कर दी गई. इस हत्या में छोटा राजन को नाम आया. इसी दौरान साल 2013 में मुंबई के बिल्डर अजय गोसालिया और अरशद शेख की हत्या केस में भी छोटा राजन गैंग के लोगों का ही नाम आया.
इंटरपोल ने छोटा राजन को पकड़वाने के लिए रेड कॉर्नर नोटिस जारी किया. फिर 2015 में ख़बरें आईं कि छोटा राजन पर ऑस्ट्रेलिया में हमला हुआ. राजन जान बचाकर बाली चला गया.
भारत का इंतज़ार अक्टूबर 2015 में खत्म होता है. इंडोनेशिया के बाली में छोटा राजन को गिरफ्तार कर लिया गया. नवंबर 2015 में ऐसी तस्वीरें सामने आईं, जिसको लोगों ने कभी उम्मीद नहीं की थी. जो छोटा राजन बंदूक थामे हमलावर के आगे बैठकर लोगों को धमकाता नज़र आता था, वो हथकड़ियों में जकड़ा नारंगी रंग के कपड़ों में पुलिस से घिरा नज़र आया, बेबस और लाचार.
ड्रग्स, हथियार, वसूली तस्करी और हत्या के क़रीब 70 मामलों में अभियुक्त छोटा राजन को पत्रकार जे डे की हत्या केस में दोषी माना गया और आजीवन कैद की सज़ा सुनाई गई.
जिस मुंबई में कभी छोटा राजन टिकटें ब्लैक करता था. उसी मुंबई की एक अदालत ने छोटा राजन को पत्रकार जे डे की हत्या के केस में उम्र क़ैद की सज़ा सुनाई, उसका शो ख़त्म हो चुका है.
साभार बीबीसी