हसदेव अरण्य कटाई पर अनुसूचित जनजाति आयोग का बड़ा खुलासा

 रायपुर। (रिपोर्टर- जयदास मानिकपुरी) छत्तीसगढ़ की हसदेव अरण्य क्षेत्र में पेड़ों की कटाई को लेकर विवाद थमने का नाम नहीं ले रहा है। अनुसूचित जनजाति आयोग ने इस मुद्दे पर अपनी रिपोर्ट जारी की है, जिसमें खुलासा किया गया है कि इस कटाई के लिए दी गई अनुमति फर्जी ग्राम सभाओं के आधार पर ली गई थी। आयोग ने स्वीकार किया है कि जिन ग्राम सभाओं का उल्लेख किया गया था, वे वास्तविक नहीं थीं और नियमों का उल्लंघन करते हुए अनुमति दी गई थी। यह रिपोर्ट हसदेव अरण्य के वन क्षेत्र और वहां के आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा के लिए महत्वपूर्ण मानी जा रही है।

हसदेव अरण्य क्षेत्र में कोयला खनन के विरोध में लंबे समय से हसदेव बचाव संघर्ष समिति आंदोलनरत है, जिसका नेतृत्व आलोक शुक्ला जैसे पर्यावरण कार्यकर्ता कर रहे हैं। आलोक शुक्ला और समिति ने कई मुद्दों पर सवाल उठाए हैं, उन्होंने कहा हसदेव अरण्य एक समृद्ध जैव विविधता वाला क्षेत्र है, जहां कई वन्य जीव-जंतु और वनस्पतियाँ पाई जाती हैं। खनन से इस क्षेत्र की पारिस्थितिकी पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है। इस क्षेत्र में आदिवासी समुदाय रहते हैं, जिनकी आजीविका जंगलों पर निर्भर है। खनन के लिए इन समुदायों की ज़मीनें छीनी जा रही हैं और उनके वन अधिकारों का उल्लंघन हो रहा है। आलोक शुक्ला कहना है कि खनन परियोजनाओं को मंजूरी देने में वन अधिकार अधिनियम का पालन नहीं किया गया।

इस मुद्दे को लेकर संघर्ष करने वाले एक्टिविस्ट का कहना है कि राज्य के हसदेव अरण्य में बिना स्थानीय समुदायों की सहमति के खनन की अनुमति दी जा रही है। हसदेव अरण्य क्षेत्र में कई जल स्रोत हैं, जो आसपास के क्षेत्रों को पानी उपलब्ध कराते हैं। खनन से इन जल स्रोतों पर भी खतरा मंडरा रहा है, जिससे जल संकट उत्पन्न हो सकता है। आलोक शुक्ला और उनकी समिति का कहना है कि सरकार को आर्थिक लाभ के बजाय पर्यावरण और स्थानीय समुदायों के हितों को प्राथमिकता देनी चाहिए।

आदिवासी समुदाय और पर्यावरण कार्यकर्ताओं का कहना है कि यह क्षेत्र न केवल उनके जीवन और आजीविका से जुड़ा है, बल्कि इस वन क्षेत्र का पर्यावरणीय महत्व भी है। ग्राम सभा का कहना है कि फर्जी तरीके से सारा काम हुआ है। इस पुष्टि के बाद राज्य सरकार और प्रशासन पर नए सवाल खड़े हो गए हैं। अब देखना यह होगा कि इस मुद्दे पर सरकार क्या कदम उठाती है और आदिवासी समुदाय के अधिकारों की रक्षा कैसे सुनिश्चित की जाती है।

भाजपा नेता ने बहनजी पर की जातिवादी टिप्पणी, बसपा ने दर्ज कराया FIR, अब योगी की पुलिस पर निगाहे

भाजपा नेता रुद्र प्रताप सिंह गौर ने बसपा सुप्रीमो मायावती के खिलाफ की जातिवादी टिप्पणीभाजपा का एक नेता है। नाम है रुद्र प्रताप सिंह। इसी रुद्र प्रताप सिंह ने यूपी की चार बार की मुख्यमंत्री और बसपा प्रमुख मायावती पर जातिवादी टिप्पणी की है। घटना 17 अक्टूबर की है। झांसी जिले के टहरौली क्षेत्र में इस दिन दशहरा मिलन समारोह के दौरान भाजपा नेता ने पूर्व सीएम सुश्री मायावती को लेकर जातिसूचक टिप्पणी की थी। जिसका वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया।

सोशल मीडिया पर वायरल हो रहे वीडियो में रुद्र प्रताप सिंह कह रहा है कि न वो मीडिया से डरता हैं, न मीडिया के पिता जी से। उसका कहना है कि हमारी आदत है बोलने की। लिख देना, जो तुम्हे लिखना हो। चैलेन्ज है हमारा। हम पर बहुत मुकदमे हैं। वह सरकार और प्रशासन से डरना तो दूर, उन्हें सीधी चुनौती देता है। मंच से कहता है कि हमने चौराहे पर दारोगा को मारा था। हमारी आदत खराब है।

वायरल वीडियो में दिखाई दे रहा है कि इतनी बात कहने के बाद बसपा के शासन काल के बारे में बोलते हुए पूर्व मुख्यमंत्री मायावती के खिलाफ जातिसूचक आपत्तिजनक टिप्पणी कर रहा है। इसके बाद आक्रोशित बसपा कार्यकर्ताओं ने उसके खिलाफ केस दर्ज कराया है। मुकदमा बसपा जिलाध्यक्ष अमित वर्मा की शिकायत पर केस दर्ज किया गया है। डीएम को दिए ज्ञापन में नामजद किए गए आरोपी की तत्काल गिरफ्तारी करने की मांग की गई है। बसपा कार्यकर्ताओं ने ज्ञापन में कहा कि यदि नामजद किए गए व्यक्ति की जल्द गिरफ्तारी नहीं की गई तो वे सड़कों पर उतरकर आंदोलन करेंगे।

अब देखना होगा कि योगी आदित्यनाथ की सरकार और पुलिस इस मामले में क्या कदम उठाते हैं। एक पूर्व मुख्यमंत्री के खिलाफ जातिवादी टिप्पणी के मामले में उसे जेल भेजा जाता है, या फिर उसका कहना सही है कि वह किसी से नहीं डरता। क्योंकि खबर के मुताबिक इस पूरी घटना का वीडियो साक्ष्य मौजूद है। तो अगर एक पूर्व मुख्यमंत्री और एक राष्ट्रीय पार्टी की अध्यक्ष के मामले में पुलिस कड़ा कदम नहीं उठाती तो समझा जा सकता है कि आम दलितों के मामले में पुलिसिया रवैया क्या रहता होगा।

हरियाणा में दलितों को बांटने की साजिश शुरू!

हरियाणा। राजनीतिक दलों को दलित समाज को बांटने और राज करने का नया फार्मूला मिल गया है। हरियाणा में तीसरी बार सत्ता में आते ही भाजपा की सरकार ने आरक्षण को लेकर बड़ा फैसला ले लिया। 18 अक्तूबर को अपनी पहली कैबिनेट बैठक में मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने आरक्षण में उप-वर्गीकरण पर मुहर लगा दी है।

सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए मुख्यमंत्री सैनी ने कहा कि हम इसे आज से ही लागू करते हैं। सीएम सैनी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने इस संबंध में राज्यों को अधिकार दिया था। उन्होंने कहा कि हरियाणा सरकार अब अनुसूचित जातियों की जो जातियां वंचित रह गई हैं, उनके लिए कोटा बनाकर उन्हें आरक्षण देगी।

हरियाणा सरकार के इस फैसले पर तमाम दलित एक्टिविस्ट ने सवाल उठाया है और उसे दलितों को बांटने की साजिश कहा है। इस मुद्दे पर एक अगस्त को सुप्रीम कोर्ट की टिप्पणी आने के बाद से ही वर्गीकरण का पुरजोर विरोध करने वाली बसपा सुप्रीमो मायावती ने इसे षड्यंत्र कहा है। उन्होंने सोशल मीडिया पर एक बयान जारी कर कहा कि-

हरियाणा की नई भाजपा सरकार द्वारा एससी समाज के आरक्षण में वर्गीकरण को लागू करने अर्थात आरक्षण कोटे के भीतर कोटा की नई व्यवस्था लागू करने का फैसला दलितों को फिर से बांटने व उन्हें आपस में ही लड़ाते रहने का षड़यंत्र है। यह दलित विरोधी ही नहीं बल्कि घोर आरक्षण विरोधी निर्णय है। वास्तव में जातिवादी पार्टियों द्वारा एससी-एसटी व ओबीसी समाज में ‘फूट डालो-राज करो’ की नीति है।

इस पूरे मामले में जिस तरह हरियाणा सरकार ने तेजी दिखाई है, वह भी कई सवाल खड़े करती है। क्योंकि वर्गीकरण के फैसले के दौरान मुख्यमंत्री ने किसी तरह के आंकड़े को पेश करने या फिर दलित समाज की जातियों के आर्थिक और सामाजिक पिछड़ेपन का सर्वेक्षण करने का जिक्र नहीं किया है, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने भी कहा था। सवाल यह है कि बिना अनुसूचित जातियों के आर्थिक और सामाजिक प्रगति का सर्वेक्षण किये पहली ही कैबिनेट मीटिंग में वर्गीकरण की घोषणा कर देना कितना सही है?

हरियाणा में शपथ ग्रहण के दौरान राज्यपालों को भाजपा ने बना दिया ‘राजनेता’, चंद्रशेखर ने खोला मोर्चा

शपथ ग्रहण के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के साथ नायब सिंह सैनीहरियाणा में नए सरकार के शपथ ग्रहण के दौरान भाजपा ने अपनी ताकत दिखाई। प्रधानमंत्री मोदी समेत तमाम दिग्गज नेता और केंद्रीय मंत्री सहित कई राज्यों के मुख्यमंत्री भी शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। लेकिन इस दौरान राज्यपालों की मौजूदगी को लेकर भाजपा कठघरे में है। सवाल उठ रहा है कि भाजपा ने राज्यपाल जैसे संवैधानिक पद की गरिमा गिराई है। आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष और सांसद चंद्रशेखर आजाद ने इस मुद्दे पर भाजपा को जमकर घेरा है। उन्होंने एक्स पर एक लंबा पोस्ट लिख भाजपा को कठघरे में खड़ा किया। उन्होंने लिखा-

कल (17 अक्टूबर, 2024) चंडीगढ़ में हरियाणा प्रदेश भाजपा सरकार के मुख्यमंत्री जी के शपथ ग्रहण समारोह में सरेआम संविधान की धज्जियां उड़ाकर एक बार फिर ये साबित कर दिया गया कि मौजूदा सरकार के लिए संवैधानिक पद महज कठपुतली बनकर रह गए हैं। एक तरफ भाजपा के मुख्यमंत्री पद की शपथ ले रहे थे दूसरी तरफ आजादी के बाद पहली बार राज्यपाल जैसे महत्वपूर्ण संवैधानिक पद को तमाशबीन बनाकर बैठा दिया गया। सोचिए संविधान निर्माता परम पूज्य बाबा साहेब डॉ. भीमराव अंबेडकर होते तो क्या ये सब तमाशा देखकर उनको दुख नहीं होता कि कि हमने भारतीय राजव्यवस्था में राज्यपाल के पद का सृजन क्या इसीलिए कराया?

शपथ ग्रहण में पहली बार कई राज्यों के राज्यपाल (गुजरात के राज्यपाल आचार्य देवव्रत, पंजाब के राज्यपाल गुलाब चंद कटारिया, हिमाचल प्रदेश के राज्यपाल शिव प्रताप शुक्ला, पश्चिम बंगाल के राज्यपाल डॉ. सीवी आनंद बोस, दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना) को बुलाया गया, इससे साफ हो गया है कि भाजपा ने संवैधानिक पदों का राजनीतिकरण महज अपनी ब्रांडिंग के लिए किया है।

संविधान में राज्यपाल का पद राज्य सरकार के ऊपर एक निष्पक्ष भूमिका के लिये राज्य के संवैधानिक मुखिया के रूप में सृजित किया गया था, लेकिन कल मुख्यमंत्री जी के शपथ ग्रहण समारोह में तमाम राज्यों के राज्यपाल और एक उपराज्यपाल को बुलाकर एक मंच पर बैठाना यह साबित करता है कि वो राज्यपाल और उपराज्यपाल बनने के बाद, आज भी भाजपा के कार्यकर्ता हैं न कि संविधान में वर्णित संवैधानिक मुखिया।

जब भी केन्द्र की भाजपा सरकार पर संविधान के साथ छेड़छाड़ करने के आरोप लगते हैं तब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी संविधान की रक्षा और उसके मूल्यों को बनाए रखने की बात करते हैं लेकिन ये सब उनकी ही मौजूदगी में हो रहा था या यह कह सकते हैं कि उनके के ही दिशा-निर्देशन में हो रहा था।

ऐसे में संविधान को माथे पर लगाने वाले यशस्वी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी को जवाब देना चाहिये कि संविधान की खुलेआम धज्जियां उड़ाने का जिम्मेदार कौन है?

हरियाणा में भाजपा की सोशल इंजीनियरिंग, शपथ ग्रहण के बहाने दिखाई ताकत

हरियाणा में शपथ ग्रहण समारोह के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी साथ मंच पर मौजूद मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी और अन्य नेताकांग्रेस नेता राहुल गांधी ने देश के वंचितों को प्रतिनिधित्व देने को एक बड़ा मुद्दा बनाया हुआ है। हरियाणा में सरकार गठन के दौरान भाजपा भी इस दबाव में साफ दिखी। हरियाणा में भाजपा ने तीसरी बार सरकार बना ली है। नायब सिंह सैनी दूसरी बार मुख्यमंत्री बने। उन्हें पंचकूला के दशहरा मैदान में आयोजित शपथ ग्रहण समारोह में शपथ ली। सैनी के साथ 13 अन्य मंत्रियों ने भी शपथ ली। इस लिस्ट में जिन लोगों ने मंत्री के रूप में शपथ ली है, उससे साफ जाहिर है कि भाजपा ने इसमें सभी जातियों को प्रतिनिधित्व देने की कोशिश की है।

वर्गों के आधार पर देखें तो मंत्रिमंडल में दो जाट, दो ब्राह्मण, एक राजपूत, एक गुर्जर, दो वैश्य, दो दलित और दो यादव समाज के नेताओं को मंत्री बनाया गया है। मंत्रिमंडल में दो महिलाएं कैबिनेट मंत्री हैं। तो वहीं मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी खुद ओबीसी समाज के हैं। दलित चेहरे के रूप में कृष्ण कुमार बेदी और कृष्ण लाल पंवार ने शपथ ली।

हरियाणा की जीत भाजपा के लिए कितनी महत्पूर्ण है, यह इसी से समझा जा सकता है कि शपथ ग्रहण समारोह में खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मौजूद रहे। उनके साथ गृह मंत्री अमित शाह, नितिन गडकरी और रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह भी शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए। तो इसी बहाने भाजपा ने एनडीए के रूप में भी अपनी ताकत दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ा। एनडीए गठबंधन से आंध्र प्रदेश के सीएम चंद्राबाबू नायडू, महाराष्ट्र के सीएम एकनाथ शिंदे, उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित भूपेंद्र पटेल, ललन सिंह, चिराग पासवान मौजूद रहे।

साफ है कि हरियाणा में शपथ ग्रहण समारोह के जरिये भाजपा और एनडीए ने महाराष्ट्र और झारखंड चुनाव का बिगुल भी फूंक दिया है। अब देखना होगा कि भाजपा ने जिस तरह तमाम जातियों को प्रतिनिधित्व दिया है, ऐसे में राहुल गांधी और कांग्रेस इसका जवाब कैसे देते हैं।

झारखंड चुनाव को लेकर सरगर्मी बढ़ी, हेमंत सोरेन ने गिनाई उपलब्धियां

हेमंत सोरेनआज (16 अक्टूबर) जेल से वापस लौटकर राज्य की कमान संभाले 100 दिन पूरे हुए हैं। साथ ही कल चुनाव आयोग द्वारा झारखण्ड में विधानसभा चुनाव की घोषणा भी हुई है। दिसंबर 2019 में झारखण्ड की अपनी महान जनता के आशीर्वाद से मैंने राज्य की बागडोर संभाली। मकसद एक ही था कि झारखण्ड रूपी पेड़ को सिंचित कर इसकी जड़ें मजबूत करना। इस पेड़ को भाजपा ने 20 वर्षों तक दोनों हाथों से लूटने का काम किया था। इसे सुखाने का काम किया था। इसकी जड़ों पर मट्ठा डालने का काम किया था।

 यही कारण था कि 20 वर्षों के युवा झारखण्ड में हमारे गरीब, वंचित और शोषित वर्ग के लोग सामाजिक सुरक्षा जैसी मूलभूत जरूरतों के लिए तरसते थे, हमारे आदिवासी, दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक खोई हुई पहचान के लिए तरसते थे, हमारे राज्य के नौनिहाल अच्छी शिक्षा के लिए तरसते थे, हमारे होनहार युवा नौकरी और रोजगार के लिए तरसते थे, हमारे मेहनतकश किसान कर्ज के बोझ तले दबे जाते थे, हमारी मातायें-बहनें मान-सम्मान और स्वाभिमान के लिए तरसतीं थी, हमारे मजदूर भाई-बहन अपनी पहचान के लिए तरसते थे, हमारे जल-जंगल-जमीन अपनी अस्मिता के लिए तरसते थे। झारखण्ड की जड़ों को सशक्त करने का महती प्रयास जो आपने और हमने मिलकर शुरू किया है, उसे अभी कई पड़ाव पार करने हैं। मार्च 2020 में पूरे देश में जब लॉकडाउन लगा, पूरे देश को जब पता चला कि लाखों-करोड़ों लोग अपने घरों से दूर, जीवन और जीविका की लड़ाई लड़ने को विवश हो चले हैं, तो आपने और हमने अपने राज्य के लाखों प्रवासी लोगों को झारखण्ड वापस लाने का बीड़ा उठाया।

सखी मंडल से जुड़ी दीदी-बहनों ने अपनी जान की परवाह किये बगैर, राज्य वापस लौट रहे लोगों को पौष्टिक खाना खिलाने के काम किया। यह आपका साथ ही था कि झारखण्ड देश के पहला राज्य था जो पहली ट्रेन, पहले प्लेन से अपने लोगों को घर पहुंचा रहा था। विरासत में मिली लचर स्वास्थ्य व्यवस्था को सुदृढ करते हुए पूरी सरकार और प्रशासन ने सुविधाओं को दुरुस्त करना शुरू किया, आपके हौसलों के बगैर यह सब कहां संभव था। यही कारण रहा कोरोना के समय पूरे देश में ऑक्सिजन सप्लाई करने वाला भी झारखण्ड पहला राज्य बना। कोरोना में जीवन के साथ-साथ जीविका बचाना भी बहुत जरूरी था, तो हमने तुरंत बिरसा हरित ग्राम योजना शुरू की, नीलांबर-पीताम्बर जल समृद्धि योजना शुरू की, पोटो हो खेल विकास योजना भी हमने तभी शुरू भी किया।

मनरेगा में काम रहे लोगों को वाजिब मजदूरी मिले इसके लिए हमने मजदूरी दर भी बढ़ाने का काम किया। गरीब, वंचित और शोषित वर्ग के लोगों की सामाजिक सुरक्षा जब तक सुनिश्चित नहीं होती, उनका रोटी-कपड़ा और मकान सुनिश्चित नहीं होता, तब तक कोई राज्य आगे नहीं बढ़ सकता है। इसलिए हमने हर वर्ष राज्य के कोने-कोने में सरकार आपके द्वार के महाअभियान के तहत लाखों-करोड़ों राज्यवासियों को सर्वजन पेंशन योजना, हरा राशन कार्ड, सोना सोबरन धोती साड़ी योजना, अबुआ आवास योजना, जैसी कई कल्याणकारी योजनाओं से जोड़ा। लाखों परिवारों को हमने 200 यूनिट मुफ्त बिजली और बकाया बिजली बिल माफ कर महंगाई के इस दौर में थोड़ी राहत देने का भी काम किया। राज्य के हमारे लाखों मेहनती किसानों का 2 लाख रुपए तक ऋण माफ हुआ। केसीसी, मुख्यमंत्री पशुधन योजना, बिरसा सिंचाई कूप योजना, धान खरीद, किसान पाठशाला जैसी योजनाओं से राज्य के लाखों किसानों को सशक्त करने का प्रयास शुरू हुआ।

 देश-विदेश में फंसे या मदद मांग रहे श्रमिक भाइयों और बहनों को भी संवेदनशीलता के साथ हमेशा मदद पहुंचाई गयी। राज्य की हमारी लाखों माताओं-बहनों और बेटियों के मान, सम्मान और स्वाभिमान से जोड़ने के लिए उन्हें मंईयां सम्मान योजना, हजारों करोड़ के बैंक क्रेडिट लिंकेज, फूलो झानो आशीर्वाद अभियान, सावित्रीबाई फुले किशोरी समृद्धि योजना जैसी योजनाओं से जोड़ने का काम हुआ। दिसम्बर से 18-50 वर्ष की माताओं-बहनों को 2500 रुपए की सम्मान राशि भी मिलने लगेगी। अपने राज्य के नौनिहालों के लिए हमने सीएम स्कूल ऑफ एक्सीलेंस की श्रृंखला शुरू की, जो पंचायत स्तर तक जाएगी। प्री और पोस्ट मैट्रिक स्कॉलरशिप की राशि दो से तीन गुना बढ़ायी गयी। गुरुजी स्टूडेंट क्रेडिट कार्ड, मरङ्ग गोमके ओवरसीज स्कॉलरशिप, साइकिल वितरण, आदि योजनाओं के जरिए उनके सपनों को पंख देना का काम किया है, आप और हमने मिलकर।


झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन द्वारा सोशल मीडिया एक्स पर लिखा गया

विपश्यना से लौटे पत्रकार यशवंत ने साझा किया शानदार अनुभव

विपश्यना सेंटर की तस्वीरें, फोटो क्रेटिड- यशवंत सिंह (भड़ास4मीडिया)मैंने हरियाणा के सोहना स्थित धम्मा सेंटर में भिक्षु के रूप में दस दिन बिताए। यहां न बोलना था, न आंखें मिलानी थी किसी से, जो मिल जाए वो खाना था। काम के नाम पर दिन भर ध्यान करना साधना करना। बाहरी दुनिया से एकदम कट कर जीना।

इन्हीं दिनों में कश्मीर और हरियाणा में चुनाव हुए, रिजल्ट आए लेकिन हम लोगों के कानों तक केवल तेज पटाखों के फटने की आवाजें आईं। जीते चाहें जो, पटाखे तो फूटने ही थे। पटाखों के फूटने से कौन जीता कौन हारा, इसका अंदाजा नहीं लगा सकते। हमें अंदाजा लगाना भी नहीं था क्योंकि हमारा दिमाग बाहर की दुनिया की गतिविधियों हलचलों से बिलकुल डिटैच कर दिया गया था। हम जब चलने को होते तो धीरे धीरे चलते क्योंकि ऐसा हमसे कहा गया था। किसी जीव की हत्या न हो जाए। ये देखना था। चींटी चूंटा टाइप कोई छोटा और विजिबल जीव हमारे कदमों के तले न दब जाए। हर कदम संभले हुए थे। हर पल हमें अपने मन की खबर थी क्योंकि हम मन को काबू में करने का खेल खेल रहे थे।

हर एक के जीवन को नियंत्रित करता है मन। मन बेकाबू और मतवाला घोड़ा होता है। वो हमें डिक्टेट करता है, हमें गाइड करता है। इसी मन को हमें काबू में करना था। सांस का आलंबन लेकर मन पर लगाम लगाना शुरू किया गया। पहले दिन सिर्फ सांस की आवाजाही पर खुद को केंद्रित करना था। ऐसे ही अलग अलग दिनों में अलग अलग टास्क। तीसरे दिन मेरी आंखों से पानी गिरा। अंदर आलोड़न हुआ। लगा सिर के सिरे से कुछ निकलने को आतुर है। कुछ मथ रहा है सिर के आर-पार होने को। पांचवें दिन मेरे बगल वाले साधक को भयानक भय लगा। वह एकदम पिन ड्राप साइलेंस के दौरान हड़बड़ाकर उठा और आचार्य के कदमों के तले बैठ गया। सन्नाटा पहले जैसा ही कायम रहा। सब डूबे हुए अपने अंदर की दुनिया में। ध्यान खत्म हुआ तो आचार्य जी ने पूछा- क्या हुआ? उसने धीरे से बोला- रीढ़ की हड्डी में ऐसी हलचल मची, ऐसी सनसनाहट हुई कि लगा जैसे कोई स्ट्रोक पड़ने वाला हो, मैं डर गया, भाग कर आपके सामने आ गया कि कहीं कुछ हुआ तो आप देख लेंगे उसे। आचार्य बोले- जाइए अपनी सीट पर, कहीं कुछ न होगा, पुराने विकार हैं जो निकल रहे हैं, बस समता भाव बनाए रखिए, सूक्ष्म संवेदना या स्थूल संवेदना, किसी भी स्थिति में आप द्रष्टा भाव बनाए रखेंगे, उसमें शरीक नहीं होंगे।

विपश्यना सेंटर में एक साथी के साथ यशवंत (चश्मे में)- फोटो क्रेटिड- यशवंत (भड़ास4मीडिया)मुझसे बहुत लोग पूछ चुके क्या हुआ। कैसे हुआ। कैसा लग रहा है। क्या चेंज पा रहे हैं। मैं उन्हें कैसे वो सब पूरा पूरा बताऊं जो मैं फील कर रहा रहूं, जो हासिल कर ले आया हूं। चलिए, थोड़ा कोशिश करता हूं बताने की।

हम सब लोग भागे जा रहे हैं। अचानक एक दिन हमारी बेकाबू स्पीड पर ब्रेक लगाया गया। रोका गया, फिर उलटी दिशा में चलने के लिए कह दिया गया। तो ये जो ब्रेक लगना था, रोकना था, वह शुरुआती दो दिन में घटित हुआ। बाहर की दुनिया और उसकी दिनचर्या से फिजिकली-मेंटली डिटैच होने में दो दिन लगे। पैर बांधकर लगातार देर तक बैठने और इसके चलते होने वाले दर्द को साधने में दो दिन लगे। फिर हमें अंदर प्रवेश कराया गया। पहले स्थूल मन को सूक्ष्म बनाने की प्रक्रिया शुरू कराई गई। ये बड़ा विकट काम है। मन बार बार सांसों से छिटक कर बाहर की दुनिया में कूद पड़े। उसे पकड़ पकड़ कर लाना पड़ता। बताया गया कि अगर एक मिनट तक लगातार सांसों पर कंसंट्रेट कर लेते हैं तो ये अच्छी प्रगति है क्योंकि मन एक मिनट तक सांसों पर रुक ही नहीं सकता, शुरुआत में। वो आपकी सारी कुंडली सारे इतिहास सारे अतीत सारे भविष्य में कूदफांद कर आपको उकसाता रहेगा कि कहां फंसे हो चक्कर में। लेकिन हमें मन के चक्कर में नहीं फंसना है बल्कि उसे अपने चक्कर में फांसना है। उसे सांसों से बांधे रखना है।

सूक्ष्म मन को स्कैनर बनाकर अगले कुछ दिन शरीर के अंग प्रत्यंग को विविध तरीके से स्कैन करने का कार्यक्रम हुआ। इसी दरमियान हर एक को अलग अलग अवस्था में कुछ खास किस्म की अनुभूतियां हुईं। हम जो कसा हुआ एकल सुगठित शरीर लेकर विपश्नयना सेंटर आए थे, वह अब अलग अलग हिस्सों में तब्दील होने लगा था। मन को समझ में आने लगा कि ये शरीर कोई एक नहीं है बल्कि ये खुद में एक ब्रह्मांड है। जगमग करते संवेदना देते एटम से निर्मित। सिर से लेकर पांव तक हर इंच पर एक धड़कन है, एक संवेदना है। लगा जैसे कोई असेंबल्ड सिस्टम है जो सांसों के सहारे चल रहा है।

हमने हरामी मन को हमेशा बाहरी दुनिया की दुनियादारी में लगाए रखा। उसे आंतरिक दुनिया में ले जाना और साध पाना बड़ा मुश्किल था। मन ही मन में मन को गरियाता रहा कि आखिर वो सांसों को छोड़ कहां कहां जाकर क्या क्या बातें याद दिलाता बताता रहता है। कभी कभी उब जाते। पैरों का दर्द, पीठ का दर्द, मन की खदबदाहट सब मिलाकर ऐसा माहौल बनाता कि हे भाई ये कहां तुम आकर फंस गए हो। पर ये समझ में आ रहा था कि आगे कुछ नई और अलग अनुभूतियां हैं, बस इस स्टेज को धैर्य से झेल लो, पार कर लो।

स्वर्गीय सत्यनारायण गोयनका के निर्देशन में ये विपश्यना शिविर चला। उनके आडियो वीडियो निर्देशों संवादों गायन उदबोधन प्रवचन के जरिए सब कुछ संचालित होता रहा। इस पूरे आयोजन के लिए एक माडरेटर की जरूरत पड़ती है जिसके लिए एक जिंदा आचार्य जी को काम पर रख लिया जाता है। हमारे बैच वाले शिविर को आचार्य कौशल भारद्वाज माडरेट किए। माडरेशन में भी काम सिर्फ इतना कि सत्यनारायण गोयनका के प्रवचन के आडियो वीडियो का बटन आन आफ करना।

हम लोग इंतजार करने लगे कि भवतु सब्ब मंगलम कब बजे और शिविर खत्म हो। क्योंकि बैठे बैठे पैर दुख जाते। सांस और देह को मन से स्कैन करते करते मन भर जाता। ज्यों भवतु सब्ब मंगलम बजने लगता, सब समझ जाते कि अब साधु साधु साधु कह कर शिविर खत्म करने का वक्त हो गया है। मन में प्रसन्नता होती।

सुबह चार बजे सायरन बजता। उसके बाद धम्म सेवक घंटी लेकर कमरे कमरे के बाहर बजाते घूमते। धम्म सेवक वो बनाए जाते जो पहले विपश्यना शिविर अटेंड कर चुके होते हैं और भविष्य के विपश्यना शिविरों में धम्म सेवक बनने के लिए लिखित रूप से लिखकर देते। हर शिविर के खात्म पर एक फीडबैक फार्म मिलता जिसमें एक कालम भविष्य के शिविरों के लिए धम्म सेवक के रूप में सेवा देने पर सहमति असहमति देने का भी होता है।

साढ़े चार बजे तक हम सबको धम्मा हाल सामूहिक साधना के लिए पहुंचना होता। साढ़े छह बजे नाश्ता के लिए सायरनधम्मा हाल में वीडियो सेशन, फोटो क्रेटिड- यशवंत (भड़ास4मीडिया) बजता। स्नान और आराम के बाद आठ बजे से फिर धम्मा हाल के लिए सायरन बज जाता। ग्यारह बजे लंच के लिए सायरन बजता। एक बजे से पांच बजे तक धम्मा हाल में साधना करते। पांच बजे डिनर के लिए सायरन बजता। पुराने साधकों को डिनर में सिर्फ नीबू पानी दिया जाता।

खाने पीने का प्रबंध गजब लाजवाब। बहुत विविधता। अनार, सेब, केला, पनीर की सब्जी, पोहा, मिठाई, हलवा, तरह तरह की सब्जियां, दूध… मतलब ये कि आप को न प्रोटीन की कमी होगी न किसी किस्म के खाने की कमी महसूस होगी। मैं सुबह शाम खाने के बाद लास्ट में एक गिलास दूध में हल्दी डालता, इसबगोल डालता, केला काट काट डालता, चीनी मिलाता और इसे खा पी जाता। ये कार्यक्रम दसों दिन चला। बड़ा आनंद आया। मेरा वजन दो से तीन किलो बढ़ गया इन दस दिनों में। दस दिन में किस किस तरह का स्वीट डिश मिला, देखिए लिस्ट- पेठा, इमरती, स्पंज वाला रसगुल्ला, खीर, हलवा, बेसन लड्डू, लौकी की देसी घी वाली मिठाई और सेवई।

सुबह से शाम तक एक एक घंटे तीन बार ऐसा ध्यान किया जाता जिसमें सबसे अपेक्षा की जाती कि वे इस एक एक घंटे में अपने शरीर को तनिक न हिलाएंगे, एकदम बुत बन जाएंगे। सब लोग ये कर नहीं पाते। मैं तीन चार बार ऐसा कर पाया। इस काम को अधिष्ठान बोला जाता है।

इन दस दिनों में दुनिया मेरे लिए म्यूट मोड पर चली गई थी। मैं सीख रहा था कि सब कुछ अनित्य है। अनिच्च! हम जीवन भर भूत काल या भविष्य काल में जीते हैं और इन दो भावों को जीते हैं- राग और द्वेष।

भारत में विपश्यना को लाने वाले आचार्य एस.एन गोयनकाराग में सारी आकांक्षाएं मोह माया बंधन शामिल है। द्वेष में समस्त घृणा गुस्सा साजिश! इन दो भावों के हम भोक्ता होते हैं। भोक्ता भाव से जीते हैं। हमे सिखाया गया कि भोक्ता भाव नहीं, द्रष्टा भाव साक्षी भाव सम भाव समता भाव में जीना है रहना है और ऐसा सांसों के जरिए मन को स्थूल से सूक्ष्म करके किया जा सकता है। इसे लगातार अभ्यास से कर लिया जाएगा तो नए पुराने संस्कार उर्फ संखारा नष्ट होने लगते हैं। हमारे मन के अनकांसस माइंड में पत्थर के लकीर की तरह दर्ज राग द्वेष की रेखाएं खत्म होने लगती हैं।

विपश्यना शिविर में नब्बे प्रतिशत प्रैक्टिकल होता है। विपश्यना शिविर में हर धर्म के लोग शामिल होते हैं। धर्म की यहां व्याख्या ये की गई कि असली धर्म व्यक्ति केंद्रित नहीं बल्कि गुण केंद्रित होता है। विपश्यना असली धर्म है। बाकी सारे कथित धर्म सिर्फ संप्रदाय भर हैं जो व्यक्ति पूजक हैं। गौतम बुद्ध से पहले भी विपश्यना थी जो लुप्त हो गई थी। ऋग्वेद में विपश्यना का जिक्र मिलता है। गौतम बुद्ध ने विपश्यना को पुनर्जीवित किया। पांच सौ साल विपश्यना की धूम रही। फिर ये विद्या लुप्त होती गई। इस विद्या में मिलावट की जाने लगी। इस विद्या में भी विकार पैदा किए जाने लगे। बर्मा उर्फ म्यांमार में कुछ गुरुओं ने गुरु शिष्य परंपरा के जरिए इस विद्या की ओरिजनिलिटी को जिंदा रखा। उसी विद्या को म्यांमार के गुरु से सीखकर आचार्य सत्यनारायण गोयनका भारत ले आए और छा गए।

ये अदभुत विद्या है। ये मन के संसार में देह के संसार में प्रवेश कराने की अद्भुत विद्या है। ये देह और मन को नियंत्रित करने की अद्भुत विद्या है। ये विकारों को दूर कर साक्षी भाव द्रष्टा भाव डेवलप करने की अद्भुत विद्या है। कहा जाता है कि सिद्ध विपश्यना साधक अगर इस विद्या के माध्यम से बहुत गहरे उतर जाता है तो वह भूत भविष्य अपने पहले के जन्मों के दर्शन साक्षात्कार कर सकता है। मुझे भी ऐसा लगता है कि मन देह दिमाग एक पूरा ब्रह्मांड होता है। इसे समझने का एक पूरा आंतरिक विज्ञान होता होगा। विपश्यना उन्हीं में से एक है। ये प्रामाणिक है, ये पच्चीस सौ वर्षों की परंपरा लिए हुए हैं, ये किसी संप्रदाय के खिलाफ नहीं है, ये आपकी किसी आस्था को दरकिनार करने को नहीं कहता है। ये बस ये कहता है कि आप मुझे समझो, मुझे एक बार आजमाओ, फिर जो चाहे मन करे, करो!

एक बार आपको भी विपश्यना में जाना चाहिए। vipassana 10-day course registration गूगल पर लिखेंगे तो एक वेबसाइट आएगी, उसके जरिए आप अप्लाई कर सकते हैं। देश भर में इनके सेंटर हैं। मैं सोहना (हरियाणा) सेंटर में गया था। मुझे बहुत मजा आया। मैं पहले से ही देश दुनिया से थोड़ा डिटैच किस्म का आदमी रहा हूं। आंतरिक यात्रा को महसूस करता रहा हूं। तो विपश्यना ने मेरी आंतरिक यात्रा की गति को बढ़ा दिया है। भविष्य में फिर विपश्यना करने जाऊंगा। एक बार धम्म सेवक बनकर जाऊंगा। एक बार पचास दिन वाला कोर्स करूंगा। जब आंतरिक यात्रा पर निकल ही लिए हैं, तो ठीक से आगे बढ़ा जाए। वैसे भी, ये जो शिविर करने का मौका मिला है, वो कोई इत्तफाक नहीं हो सकता। शायद प्रकृति का कुछ बड़ा संकेत है इसके पीछे।

आखिरी दिन सुबह साढ़े छह बजे पूड़ी तरकारी खीर खिलाकर विदा किया गया। उसके पहले दो घंटे तक चले ध्यान और प्रवचन में सत्यनारायण गोयनका ने आगाह किया कि अगर बाहर निकल कर रोजाना सुबह शाम एक एक घंटे ये इसी विद्या से ध्यान नहीं किया तो फिर ये सब छूट जाएगा, भूल जाएगा और मन फिर बाहरी दुनिया के राग द्वेष में भोक्ता भाव से रम जाएगा। फिर करते रहिए हाय हाय। मैं हर सुबह शाम एक एक घंटे विपश्यना करता हूं। कैसे करता हूं, ये मैं आपको बता नहीं सकता और न ही बताया जा सकता है। इसके लिए आपको विपश्यना सेंटर जाना ही पड़ेगा। वहां आपको भिक्षु बनना पड़ेगा। उनका दिया हुआ भोजन करना होगा। मौन रखना होगा। झूठ नहीं बोलना होगा। जीव हत्या न करेंगे। और सबसे बड़ी बात, आप समता भाव से, राग द्वेष से परे रहकर, शरीर की सूक्ष्म और स्थूल संवेदनाओं को महसूस करने का अभ्यास करते रहेंगे। ये करना आंतरिक यात्रा का क ख ग घ सीखना है। साक्षर बनना है। फिर जब लिखना आ जाएगा तो फिर आप अदभत लिखेंगे, अद्भुत रचेंगे, अद्भुत महसूसेंगे, अद्भुत देखेंगे।


भड़ास4मीडिया वेबसाइट पर यह आलेख यशवंत ने लिखा है। वहां से साभार। आप भड़ास पर भी यह खबर पढ़ सकते हैं।

झारखंड और महाराष्ट्र में चुनाव की घोषणा, जानिये एससी-एसटी के लिए कितनी सीटें रिजर्व

झारखंड और महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों का ऐलान हो गया है। महाराष्ट्र की 288 सीटों पर 20 नवंबर को चुनाव होंगे, जबकि झारखंड की 81 सीटों पर 13 और 20 नवंबर को दो चरणों में चुनाव होंगे। दोनों राज्यों में मतगणना 23 नवंबर को होगी। यानी 23 नवंबर को साफ हो जाएगा कि महाराष्ट्र और झारखंड में बाजी किसके हाथ में रही।

महाराष्ट्र की 288 सीटों की बात करें तो इसमें 234 सामान्य सीटे हैं जबकि एससी के लिए 29 और एसटी के लिए 25 सीटें रिजर्व हैं। प्रदेश में कुल मतदाताओं की संख्या 9.63 करोड़ है। तो वहीं झारखंड की 81 विधानसभा सीटों में एससी के लिए 9 जबकि एसटी के लिए 28 सीटें आरक्षित हैं। प्रदेश में कुल मतदाताओं की संख्या 2.6 करोड़ हैं।

झारखंड में अभी हेमंत सोरेन के नेतृत्व में झारखंड मुक्ति मोर्चा की सरकार है। जबकि महाराष्ट्र में एकनाथ शिंदे के नेतृत्व में गठबंधन की सरकार है। चुनाव की घोषणा होते ही सभी दलों ने एक-दूसरे पर आरोप लगाने शुरू कर दिए हैं। इस बीच बसपा सुप्रीमों मायावती ने अपनी स्थिति साफ कर दी है। उन्होंने ट्विट कर कहा है कि बीएसपी इन दोनों राज्यों में अकेले ही चुनाव लड़ेगी और यह प्रयास करेगी कि उसके लोग इधर-उधर न भटकें बल्कि पूरी तरह बीएसपी से जुड़कर परमपूज्य बाबा साहेब डा. भीमराव अम्बेडकर के आत्म-सम्मान व स्वाभिमान कारवाँ के सारथी बनकर शासक वर्ग बनने का अपना मिशनरी प्रयास जारी रखें।

चुनाव के तारीखों की घोषणा करते हुए मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार ने दोनों राज्यों में चुनाव को लेकर की गई तैयारियों के बारे में विस्तार से बताया। मुख्य चुनाव आयुक्त ने कहा कि हाल में आयोग ने दोनों राज्यों का दौरा किया था। सारी तैयारियां बेहतर मिली है। दोनों राज्यों में प्रत्येक मतदान केंद्र पर मतदाताओं के लिए सभी तरह की सुविधाएं जुटाई गई है। लोगों को लंबी लाइनों में न लगने पड़े इसके लिए विशेष व्यवस्था और लाइनों के बीच में कुर्सी या बैठने के लिए बेंच आदि की व्यवस्था करने के निर्देश दिए गए है। दोनों ही राज्यों के चुनाव करीब महीने भर में खत्म हो जाएंगे।’

प्रो. जीएन साईबाबा को हैदराबाद में अंतिम विदाई, एक्टिविस्ट और बुद्धिजीवियों ने किया याद

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हैदराबाद में क्रांतिकारी साथी प्रो. जीएन साईंबाबा को अंतिम विदाई देते साथी दिल्ली यूनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफ़ेसर जीएन साईबाबा का को 14 अक्टूबर 2024 को देश भर से पहुंचे एक्टिविस्टों और उनके चाहने वालें के बीच दी गई। इसके बाद उनकी इच्छा के मुताबिक उनके शरीर को अस्पताल को दान दे दिया गया। साईंबाबा का बीते शनिवार 12 अक्टूबर की शाम को हैदराबाद के निज़ाम इंस्टीट्यूट ऑफ़ मेडिकल साइंसेज (निम्स) अस्पताल में निधन हो गया। 57 साल के साईबाबा का गॉल ब्लैडर का ऑपरेशन हुआ था लेकिन इसके बाद उन्हें दिक्कत होने लगी और उनकी जान नहीं बच सकी।

दिल्ली युनिवर्सिटी के पूर्व प्रोफेसर साईंबाबा शारीरिक तौर पर 90 फीसदी तक विकलांग थे। साल 2014 में वह तब चर्चा में आए जब उनको माओवादी संगठनों से संबंध रखने के आरोप में गैरक़ानूनी गतिविधियां रोकथाम क़ानून (यूएपीए) के तहत साल गिरफ़्तार किया गया था। उन्हें अदालत ने उम्रक़ैद की सज़ा दी थी। उन्हें सात महीने पहले ही मार्च में उनको रिहा कर दिया था। तब वह नागपुर सेंट्रल जेल में बंद थे।

उनकी मृत्यु के बाद उन्हें देश भर के सोशल एक्टिविस्ट विदाई देते हुए याद कर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार और लेखक सिद्धार्थ रामू जो साईंबाबा को अंतिम विदाई देने के लिए 14 अक्तूबर को खुद हैदराबाद में मौजूद थे, ने अपने इस क्रांतिकारी साथी को श्रद्धांजलि देते हुए जीएन साईबाबा को 21वीं सदी का भारत का महान शहीद कहा। उन्होंने लिखा-

जब इतिहास 21 सदी के भारत का मूल्यांकन करेगा, तो जीएन साईबाबा इतिहास के उन महान शहीदों में स्थान पाएंगे, जो भारतीय राजसत्ता के खिलाफ आदिवासियों, दलितों, मेहनतकशों, किसानों के पक्ष में खड़े होकर आजीवन संघर्ष करते रहे। आखिर भारतीय राजसत्ता ने उन्हें मौत के मुंह में ढ़केल दिया। भूमिहीन श्रमिक और दलित परिवार में जन्मा यह महान क्रांतिकारी शारीरिक तौर विकलांग होने पर भारतीय राजसत्ता के बड़ी चुनौती था। ऐतिहासिक चुनौती।

दिल्ली युनिवर्सिटी में ही एडहॉक पर एक दशक से ज्यादा समय तक असिस्टेंट प्रोफेसर के तौर पर पढ़ाने वाले डॉ. लक्ष्मण यादव ने भी साईंबाबा को याद किया है। उन्होंने फेसबुक पर लिखा-

दिल्ली विश्वविद्यालय के पिछले डेढ़ दो दशक के अपने करियर में मैने जिन प्रोफेसरों की सबसे ज्यादा चर्चा सुनी, उनमें से एक शानदार प्रोफेसर थे जी.एन. साईबाबा। वह हमें अलविदा कह गए। प्रो. साईबाबा एक शानदार प्रोफेसर के साथ-साथ एक सोशल एक्टिविस्ट भी थे। वैसे तो वे शारीरिक रूप से 90% विकलांग थे, मगर देश के हुक्मरान उनसे इतना डरते थे कि उन्हें जेल में रखे हुए थे। जी हां, एक प्रोफेसर जेल में रहा। वह उन आरोपों की सजा काट रहे थे, जो कायदे से सिद्ध भी नहीं हो सके। आखिरी दिनों में भी उनके तेवर बरकरार थे। रीढ़ विहीन, चापलूस और दरबारी प्रोफेसरों की भीड़ के बीच एक रीढ़ वाला प्रोफेसर विदा हो गया। अलविदा प्रोफेसर!

वहीं वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश ने भी जी.एन. साईबाबा को याद किया। उन्होंने लिखा कि, प्रो. जी.एन साईंबाबा से कभी मिलना न हो सका, लेकिन पिछले कुछ सालों से उनके बारे में अक्सर कुछ न कुछ सुनने को मिलता रहा.. अद्भुत व्यक्तित्व, शरीर से लाचार पर चमत्कृत करने वाली प्रखरता! दमन और यातना का भयावह सिलसिला पर कैसा अटूट संकल्प, कितना मजबूत विचार और कैसी फौलादी प्रतिबद्घता! लगातार यातना सहने के कारण पहले से लाचार शरीर और बेहाल हुआ। पर विचार और प्रतिबद्घता पर आंच नहीं! आपके संघर्ष और शहादत को सलाम।

BBC को दिये जीएन साईंबाबा के इस इंटरव्यू को भी जरूर सुना जाना चाहिए  

14 अक्टूबर, जब 1956 में बाबासाहेब ने अपनाया था बौद्ध धर्म

14 अक्टूबर 1956 को नागपुर (दीक्षा भूमि) में बौद्ध धर्म की दीक्षा लेते बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर और सविता ताई आम्बेडकरभारत के इतिहास में 14 अक्टूबर 1956 का दिन एक क्रांति के रूप में दर्ज है। इस दिन भारत में वह क्रांति हुई, जिसके बारे में किसी ने भी सोचा नहीं होगा। अछूत समाज पर हिन्दू समाज के लगातार अत्याचार और इसमें सुधार की कोई गुंजाइश नहीं देखते हुए दुनिया के श्रेष्ठ विद्वानों में से एक बाबासाहेब डॉ. आम्बेडकर ने 14 अक्टूबर, 1956 (अशोक विजयादशमी) को एक बड़ा फैसला किया। उन्होंने प्राचीन मूलनिवासी नागवंशियों की भूमि नागपुर की दीक्षाभूमि के मैदान में 5 लाख से अधिक महिलाओं और पुरुषों के साथ ब्राह्मणवादी (तथाकथित हिन्दू) धर्म को छोड़कर मानवतावादी, समतावादी और लोकतांत्रिक मूल्यों से ओत-प्रोत बौद्ध धम्म को अंगीकार किया था।

बौद्ध धम्म की दीक्षा लेते समय बाबा साहेब डॉ. आम्बेडकर ने पहले खुद और फिर सभी को इस दौरान 22 प्रतिज्ञाएं लीं थीं, जिसके तहत बौद्ध धर्म को हिन्दू धर्म से बिल्कुल अलग करने की बात कही गई थी। साथ ही हिन्दू धर्म के संकेतों और देवताओं को नाकार दिया गया था। महत्वपूर्ण बात यह भी है कि जिस बौद्ध धम्म के कारण महान सम्राट अशोक के शासन काल में भारत विश्व गुरु बना था, उस बौद्ध धम्म को बाबा साहेब डॉ. आम्बेडकर ने स्वीकार कर न सिर्फ पुनर्जीवित किया, बल्कि लोकतांत्रिक भारत के नवनिर्माण के लिए उसके विस्तार को आवश्यक बताया।

इस दौरान उन्होंने विषमतावादी, जातिवादी, अमानवीय एवं अवैज्ञानिक ब्राह्मणवादी-हिन्दू धर्म को छोड़कर 13 अक्टूबर, 1935 ई. के येवला की सभा में लिए गए अपने उस संकल्प को पूरा किया था, जिसमें उन्होंने घोषणा की थी कि- “मैं एक हिन्दू के रूप में पैदा हुआ, यह मेरे वश में नहीं था। लेकिन मैं एक हिन्दू के रूप में मरूंगा नहीं, यह मेरे वश में है।”

बहुजन समाज के लोगों के चतुर्दिक विकास के लिए उन्होंने वैज्ञानिक एवं समतामूलक विचारों पर आधारित बौद्ध धम्म को ग्रहण करने एवं भारत में सामाजिक- सांस्कृतिक परिवर्तन करने का आह्वान किया था। आधुनिक भारत के विकास के लिए उनका यह कदम महान क्रांतिकारी और परिवर्तनकारी था, जिसपर आज हमें चलने के लिए संकल्प लेने की जरूरत है। नमो बुद्धाय! जय सम्राट अशोक!! जय भीम!!!

जानिये असोक धम्मविजय दशमी का पूरा इतिहास

सम्राट असोकसम्राट असोक ने धरती पर समता और शांति का साम्राज्य स्थापित करने हेतु बौद्ध धम्म को अपना कर तलवार के विकल्प के रूप में धम्म को चुना। उन्होंने ईसा पूर्व 266 में विधिवत आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी के दिन बौद्ध धम्म ग्रहण किया था । सम्राट असोक ने बौद्ध धम्म में दीक्षित होने और शस्त्र त्याग करने की ऐतिहासिक घटना को धम्म का सबसे बड़ा विजय माना था। ‘प्रियदर्शी असोक अनुसार शस्त्रों की विजय सबसे बड़ी विजय नहीं है, सबसे बड़ी विजय धम्म की विजय है। यदि धम्म के सदाचार और भाईचारा सत्ता की बुनियाद को मजबूत करता है तो फिर शस्त्र की क्या आवश्यकता?’ चूंकि असोक ने युद्ध (शस्त्र) द्वारा राज्य विजय का मार्ग छोड़कर धम्म द्वारा विजय का संकल्प लिया था इसीलिए उनके द्वारा बौद्ध धम्म ग्रहण करने की तिथि को ‘धम्म-विजय दिवस’ कहा जाता है। उस दिन हिन्दी तिथि के अनुसार आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी पड़ता था इसीलिए इसे ‘असोक विजयादशमी’ कहा जाता है। अतः सम्राट असोक के बौद्ध धम्म में धर्मान्तरण की तिथि को असोक धम्मविजय दशमी कहा जाता है जो आगे चल कर एक महोत्सव के रूप में में स्थापित हो गया। आश्विन शुक्ल पक्ष अष्टमी को सम्राट असोक विशाल बौद्ध-जुलूस निकालते थे और उसमें में भाग लेते थे। असोक द्वारा बौद्ध धर्म ग्रहण करने के 2222 सौ साल तथा महामानव बुद्ध के जन्म के 2500 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में बाबासाहेब डॉ. बी. आर. आंबेडकर ने 14 अक्टूबर 1956 को अपने पांच लाख से ज्यादा अनुयायियों के साथ नागपुर में बौद्ध धम्म की दीक्षा ली थी। यह दिन भी आश्विन शुक्ल पक्ष दशमी था। बाबासाहेब ने बौद्ध धम्म ग्रहण कर अपने पूर्वजों की मंगलकारी श्रमण परम्परा की जड़ों में पानी डाल कर उसे पुष्पित और पल्लवित कर दिया।

सम्राट असोक (ईसा पूर्व 304 से ईसा पूर्व 232) विश्वप्रसिद्ध एवं शक्तिशाली भारतीय मौर्य राजवंश के महान सम्राट थे। असोक बौद्ध धर्म के सबसे प्रतापी राजा थे। सम्राट असोक का पूरा नाम देवानांप्रिय असोक था। उनका राजकाल ईसा पूर्व सम्राट अशोक269 से, 232 प्राचीन भारत में था। मौर्य राजवंश के चक्रवर्ती सम्राट असोक राज्य का मौर्य साम्राज्य उत्तर में हिन्दुकुश, तक्षशिला की श्रेणियों से लेकर दक्षिण में गोदावरी नदी, सुवर्णगिरी पहाड़ी के दक्षिण तथा मैसूर तक तथा पूर्व में बांग्लादेश, पाटलीपुत्र से पश्चिम में अफगानिस्तान, ईरान, बलूचिस्तान तक पहुँच गया था। सम्राट असोक का साम्राज्य आज का सम्पूर्ण भारत, पाकिस्तान, अफगानिस्तान, नेपाल, बांग्लादेश, भूटान, म्यान्मार के अधिकांश भूभाग पर था, यह विशाल साम्राज्य उस समय तक से आज तक का सबसे बड़ा भारतीय साम्राज्य रहा है। चक्रवर्ती सम्राट असोक विश्व के सभी महान एवं शक्तिशाली सम्राटों एवं राजाओं की पंक्तियों में हमेशा शीर्ष स्थान पर ही रहे हैं। सम्राट असोक ही भारत के सबसे शक्तिशाली एवं महान सम्राट हैं। सम्राट असोक को ‘चक्रवर्ती सम्राट असोक’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है – ‘सम्राटों के सम्राट’ और यह स्थान भारत में केवल सम्राट असोक को मिला है। सम्राट असोक को अपने विस्तृत साम्राज्य से बेहतर कुशल प्रशासन तथा बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए भी जाना जाता है।

 सम्राट असोक के नाम के साथ संसार भर के इतिहासकार ‘महान’ शब्द लगाते हैं। सम्राट असोक का राज चिन्ह ‘असोक चक्र’ भारतीय अपने ध्वज में लगाते हैं एवं सम्राट असोक का राज चिन्ह ‘चारमुखी शेर’ को भारतीय ‘राष्ट्रीय प्रतीक’ मानकर सरकार चलाया जाता हैं और साथ ही ‘सत्यमेव जयते’ को भी अपनाया है। भारत देश में सेना का सबसे बड़ा युद्ध सम्मान, सम्राट असोक के नाम पर, ‘असोक चक्र’ दिया जाता है। सम्राट असोक से पहले या बाद में कभी कोई ऐसा राजा या सम्राट नहीं हुआ जिसने ‘अखंड भारत ‘ (आज का नेपाल, बांग्लादेश, पूरा भारत, पाकिस्तान, और अफगानिस्तान) जितने बड़े भूभाग पर एक-छत्र राज किया हो।

सम्राट असोक के ही समय में ’23 विश्वविद्यालयों’ की स्थापना की गई। जिसमें तक्षशिला, नालन्दा, विक्रमशिला, कंधार, आदि विश्वविद्यालय प्रमुख थे। इन्हीं विश्वविद्यालयों में विदेश से छात्र उच्च शिक्षा पाने भारत आया करते थे। सम्राट असोक के शासन काल को विश्व के बुद्धिजीवी और इतिहासकार, भारतीय इतिहास का सबसे ‘स्वर्णिम काल’ मानते हैं। सम्राट असोक के शासन काल में भारत ‘विश्व गुरु’ था। ‘सोने की चिड़िया ́था। जनता खुशहाल और भेदभाव-रहित थी। उनके शासन काल में, सबसे प्रख्यात महामार्ग ‘ग्रेड ट्रंक रोड’ जैसे कई हाईवे बने। 2,000 किलोमीटर लंबी पूरी ‘सड़क’ पर दोनों ओर पेड़ लगाये गए। ‘सरायें’ बनायीं गईं। मानव तो मानव, पशुओं के लिए भी, प्रथम बार ‘चिकित्सा घर’ (हॉस्पिटल) खोले गए। पशुओं को मारना बंद करा दिया गया।

असोक ने बौद्ध धर्म को अपना लिया और साम्राज्य के सभी साधनों को जनता के कल्याण हेतु लगा दिया। असोक ने बौद्ध धर्म के प्रचार के लिए निम्नलिखित साधन अपनाये-

(क) धर्मयात्राओं का प्रारम्भ, (ख) धर्म महापात्रों की नियुक्त, (ग) धर्म श्रावण एवं धर्मोपदेश की व्यवस्था, (घ) धर्मलिपियों का खुदवाना, (च) राजकीय पदाधिकारियों की नियुक्त, (छ) दिव्य रूपों का प्रदर्शन, (ज) लोकाचारिता के कार्य, (झ) विदेशों में धर्म प्रचार को प्रचारक भेजना आदि।

प्रियदर्शी मौर्य सम्राट असोक के द्वारा तथागत गौतम बुद्ध व इनके धम्म को विश्व में लोकगुरू स्थापित करने का योगदान

हालांकि सम्राट असोक अपने साम्राज्य के लिए शासन प्रशासन और नीतियों के लिए बहुत ही काबिल व्यक्ति रहा परंतु साथ ही साथ में भारतवर्ष में जब हम बौद्ध धर्म के प्रसार और स्थायित्व की बात करते हैं तो सबसे पहले मौर्य सम्राट असोक का नाम स्वगर्णिम अक्षरों से लिया जाता है। दीपवंश और महावंश के अनुसार असोक अपने शासन के चौथे वर्ष ही बौद्ध धम्म में दीक्षित हो गया था। उसने 84 हजार स्तूपों का निर्माण किया। साँची के लघु स्तम्भ लेख से पता चलता है कि बौद्ध संघ में फूट डालने वाले 60,000 भिक्खुओं को संघ से निष्कासित कर दिया और उनके लिए नियम था वे श्वेत वस्त्र पहनकर किसी अयोग्य स्थान पर रहेंगे। तीसरी बौद्ध संगीति पाटलीपुत्र (पटना) में असोक द्वारा कराई गयी। इस संगीति की अध्यक्षता मोग्गिलिपुत्त तिष्य ने की थी उसके बाद ही बौद्ध धम्म के अंदर त्रिपिटक स्थापित हुआ जिसमें ( सूत्त पिटक, विनय पिटक और अभिधम्म पिटक)। सम्पूर्ण विश्व के इतिहास में असोक एक मात्र ऐसा उदाहरण था कि जिसने अपने पुत्र महेन्द्र एवं पुत्री संघमित्रा का उनके भरपूर यौवन काल में राज्य एवं सुख-सम्पत्ति या वैभव से न जोड़कर राजपाट छुड़वाकर धम्मविजय एवं धम्मप्रसार के लिए संसार के कोने-कोने में भेजा। आज हम प्रमाण के साथ कह सकते हैं कि विश्व मे कई बुद्धिस्ट देश हैं तो उसमें सम्राट असोक का ही योगदान है। प्रियदर्शी सम्राट असोक ने ही भगवान बुद्ध को लोक गुरु / विश्व गुरु में स्थापित कर चुके हैं।

सम्राट असोक द्वारा प्रवर्तित कुल 33 अभिलेख प्राप्त हुए हैं जिन्हें असोक ने स्तंभों, चट्टानों और गुफाओं की दीवारों में अपने 269 ईसापूर्व से 231 ईसापूर्व चलने वाले शासनकाल में खुदवाए। ये आधुनिक बंगलादेश, भारत, अफ़्गानिस्तान, पाकिस्तान और नेपाल में जगह-जगह पर मिलते हैं और बौद्ध धर्म के अस्तित्व के सबसे प्राचीन प्रमाणों में से हैं।

इन शिलालेखों के अनुसार असोक के बौद्ध धर्म फैलाने के प्रयास भूमध्य सागर के क्षेत्र तक सक्रिय थे और सम्राट मिस्र और यूनान तक की राजनैतिक परिस्थितियों से भलीभाँति परिचित थे। इनमें बौद्ध धर्म की बारीकियों पर जोर कम और मनुष्यों को आदर्श जीवन जीने की सीखें अधिक मिलती हैं। पूर्वी क्षेत्रों में यह आदेश प्राचीन मगधी भाषा में पाली भाषा के प्रयोग से लिखे गए थे। पश्चिमी क्षेत्रों के शिलालेखों में भाषा संस्कृत से मिलती-जुलती है और खरोष्ठी लिपि का प्रयोग किया गया। एक शिलालेख में यूनानी भाषा प्रयोग की गई है, जबकि एक अन्य में यूनानी और अरामाई भाषा में द्विभाषीय आदेश दर्ज है। इन शिलालेखों में सम्राट अपने आप को ‘प्रियदर्शी’ (प्राकृत में ‘पियदस्सी’ ) और देवानाम्प्रिय (यानि देवों को प्रिय, प्राकृत में ‘देवानम्पिय’) की उपाधि से बुलाते हैं।

असोक के बारे में जानने का प्रामाणिक स्रोत उनके ही लिखवाए अभिलेख हैं। ये अभिलेख शिलाओं पर कहीं स्तंभों पर और कहीं गुफाओं में लिखवाए गए हैं। असोक का शायद ही कोई अभिलेख हो, जिनमें धम्म शब्द का प्रयोग न हो। वहां दान भी धम्म दान है, यात्रा भी धम्म यात्रा है, मंगल भी धम्म मंगल है, लिपि भी धम्म लिपि है, विजय भी धम्म विजय है। असोक – राज में सत्ता के केंद्र में धम्म था । धम्म से गृह-नीति संचालित थी और धम्म से ही विदेश नीति भी संचालित थी। पड़ोसी देशों के साथ असोक ने जो मैत्री, शांति और सह-अस्तित्व की नीति अपनाई थी, उसके केंद्र में धम्म था। भारी फौज के बावजूद भी असोक ने पड़ोसी देशों में राजनीतिक प्रभुत्व स्थापित करने की बात कभी नहीं सोची। वे धम्म विजय के हिमायती थे। इसीलिए उन्होंने पश्चिमी एशिया, उत्तरी अफ्रीका और दक्षिण- पूर्व यूरोप से लेकर दक्षिण के राज्यों तक में धम्म के सिद्धांत और कल्याणकारी कार्यक्रम फैलाए। असोक धम्म-मार्ग के राही थे । गौतम बुध के वचनों में उनकी आस्था थी । असोक के अभिलेख गौतम बुद्ध के काल से सर्वाधिक निकट हैं और शिलाओं पर अंकित होने के कारण उनमें मिलावट भी संभव नहीं है। भानु के लघु शिलालेख में असोक ने लिखवाए हैं कि बुद्ध, धम्म और संघ में मेरी आस्था है। तब बौद्ध गया का नाम संबोधि था। देवान पियेन का अर्थ है- बुद्धप्रिय । बुद्ध हों प्रिय जिसके, वह है देवान पियेन । देव यहां बुद्ध का प्रतीक है। पियदसिन का अर्थ है- प्रियदर्शी। प्रिय दिखने वाला पियदसिन है। दसिन से ही दास संबंधित है। अशोक चक्र को कर्तव्य का पहिया भी कहा जाता है. ये 24 तीलियाँ मनुष्य के 24 गुणों को दर्शाती हैं। दूसरे शब्दों में इन्हें मनुष्य के लिए बनाये गए 24 धर्म मार्ग भी कहा जा सकता है। अशोक चक्र में बताये गए सभी धर्म मार्ग किसी भी देश को उन्नति के पथ पर पहुंचा देंगे। शायद यही कारण है कि हमारे राष्ट्र ध्वज के निर्माताओं ने जब इसका अंतिम रूप फाइनल किया तो उन्होंने झंडे के बीच में चरखे को हटाकर इस अशोक चक्र को रखा था।

आइये अब अशोक चक्र में दी गयी सभी तीलियों का मतलब (चक्र के क्रमानुसार) जानते हैं-

  1. पहली तीली:- संयम (संयमित जीवन जीने की प्रेरणा देती है), 2. दूसरी तीली:- आरोग्य (निरोगी जीवन जीने के लिए प्रेरित करती है), 3. तीसरी तीली:- शांति (देश में शांति व्यवस्था कायम रखने की सलाह), 4. चौथी तीली:- त्याग (देश एवं समाज के लिए त्याग की भावना का विकास), 5. पांचवीं तीली:- शील (व्यक्तिगत स्वभाव में शीलता की शिक्षा), 6. छठवीं तीली:- सेवा (देश एवं समाज की सेवा की शिक्षा), 7. सातवीं तीली:- क्षमा (मनुष्य एवं प्राणियों के प्रति क्षमा की भावना) 8. आठवीं तीली:– प्रेम (देश एवं समाज के प्रति प्रेम की भावना), 9. नौवीं तीली:- मैत्री (समाज में मैत्री की भावना), 10. दसवीं तीली:- बन्धुत्व (देश प्रेम एवं बंधुत्व को बढ़ावा देना), 11. ग्यारहवीं तीली:- संगठन (राष्ट्र की एकता और अखंडता को मजबूत रखना), 12. बारहवीं तीली:- कल्याण (देश व समाज के लिये कल्याणकारी कार्यों में भाग लेना), 13. तेरहवीं तीली:- समृद्धि (देश एवं समाज की समृद्धि में योगदान देना), 14. चौदहवीं तीली:- उद्योग (देश की औद्योगिक प्रगति में सहायता करना), 15. पंद्रहवीं तीली:- सुरक्षा (देश की सुरक्षा के लिए सदैव तैयार रहना), 16. सौलहवीं तीली:- नियम (निजी जिंदगी में नियम संयम से बर्ताव करना), 17. सत्रहवीं तीली:- समता (समता मूलक समाज की स्थापना करना), 18. अठारहवी तीली:- अर्थ (धन का सदुपयोग करना), 19. उन्नीसवीं तीली:- नीति (देश की नीति के प्रति निष्ठा रखना), 20. बीसवीं तीली:- न्याय (सभी के लिए न्याय की बात करना), 21. इक्कीसवीं तीली:- सहकार्य (आपस में मिलजुल कार्य करना), 22. बाईसवीं तीली:- कर्तव्य (अपने कर्तव्यों का ईमानदारी से पालन करना), 23. तेईसवी तीली:- अधिकार (अधिकारों का दुरूपयोग न करना), 24. चौबीसवीं तीली:- बुद्धिमत्ता (देश की समृधि के लिए स्वयं का बौद्धिक विकास करना)
    यह आलेख गौतम बुद्ध कल्चरल एंड वेलफेयर ट्रस्ट, ग्रेटर नोएडा द्वारा असोक विजयदशमी के इतिहास पर तैयार करवाया गया है।

रिंकू मांझी ने मजदूरी मांगी तो रमेश पटेल और गौरव पटेल ने मूंह पर थूका, किया पेशाब

बिहार के मुजफ्फरपुर में दलित समाज के रिंकू मांझी द्वारा मजदूरी मांगने पर उसके मूंह पर थूका और शरीर पर पेशाब कर उसे अपमानित करने की खबर सामने आई है। खबर 9 अक्तूबर की बताई जा रही है, जिस दिन बहुजन नायक कहे जाने वाले मान्यवर कांशीराम की पुण्यतिथि थी। लेकिन जिस कांशीराम ने बहुजन समाज बनाने का सपना देखा था और अपने वक्त में बनाया भी था, वही बहुजन समाज आज एक-दूसरे पर अत्याचार करने लगा है। इस मामले में पीड़ित रिंकू मांझी ने ओबीसी समाज के अरुण पटेल और गौरव पटेल पर आरोप लगाया है। मामला बोचहां थाना क्षेत्र के चौपार मदन गांव का है।

घटना के अनुसार आरोपी ओबीसी समाज के पटेल समाज का व्यक्ति पोल्ट्री फार्म संचालक है। रिंकू मांझी उसके यहां काम करते थे। काम करते दो दिन बीत गए तो उसने मजदूरी मांगी। इस पर बाप और बेटे ने दलित मजदूर की जमकर पिटाई कर दी। यहीं नहीं आरोप है कि उन्होंने पीड़ित रिंकू मांझी के मुंह पर थूका और उसे जमीन पर पटक कर उसके शरीर पर पेशाब भी कर दिया। मामले की शिकायत पुलिस से करने पर दलित मजदूर को जान से मारने की धमकी भी दी। लेकिन इस दौरान किसी ने घटना का वीडियो बना लिया जो वायरल हो गया और मामला पुलिस तक पहुंच गया। इसके बाद पुलिस ने मामले को गंभीरता से लेते हुए मामला दर्ज कर लिया है। थानेदार राकेश कुमार यादव के मुताबिक, रमेश पटेल, उसके भाई अरुण पटेल और बेटे गौरव पटेल के खिलाफ एफआईआर दर्ज की गई है।

अंबेडकरी समाज के जस्टिस सुरेश कैत बने मध्यप्रदेश हाईकोर्ट के चीफ जस्टिस

अंबेडकरी समाज के लिए बड़ी खबर है। दिल्ली हाई कोर्ट के जस्टिस सुरेश कैत मध्यप्रदेश के नए चीफ जस्टिस बनाए गए हैं। इसके बाद उनका एक बयान देश भर में चर्चा का विषय बना हुआ है। मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के चीफ़ जस्टिस बनने पर अपने सम्मान में आयोजित संपूर्ण कोर्ट समारोह को उत्तर देते हुए जस्टिस सुरेश कुमार कैत ने कहा कि मध्य प्रदेश हाई कोर्ट का चीफ़ जस्टिस बनने का मेरा भविष्य 14 अप्रैल 1891 को ही लिखा गया था, जब भीमराव जो कि अब बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर हैं, उन्होंने मध्य प्रदेश के महू में जन्म लिया था। मैं उनकी वजह से ही यहाँ चीफ़ जस्टिस बना हूँ। बता दें कि जस्टिस सुरेश कैत बाबासाहेब की समता, समानता और बंधुत्व की विचारधारा में विश्वास करने वाले जस्टिस हैं।  

‘साहेब’ बनना आसान, ‘बहनजी’ बनना मुश्किल!

बसपा संस्थापक मान्यवर कांशीराम जी के साथ बसपा अध्यक्ष सुश्री मायावती (फाइल फोटो)

भारतीय राजनीति में गला काट प्रतियोगिता, जानलेवा संघर्ष, षड्यंत्र, और चालबाजियों का बोलबाला है। यहाँ अनगिनत प्रतिद्वंद्वी और दुश्मन हैं—अपने भी, पराये भी, अंदर से भी, और बाहर से भी। ऐसी स्थिति में आज किसी के लिए बहनजी या उनके समान किसी नेता के विकल्प के रूप में उभरना अत्यंत कठिन प्रतीत होता है। इस मुकाम तक पहुँचने के लिए पूरा जीवन संघर्ष में लगाना पड़ता है, और तभी कुछ संभावनाएँ बन सकती हैं।

1977 से अपने संघर्ष और सही समय पर सटीक निर्णय लेने की अद्वितीय क्षमता के बल पर बहनजी (मायावती) ने तमाम विरोधियों और बाधाओं पर विजय पाई और आज बहुजन राजनीति के शीर्ष पर पहुँच गई हैं। उनके संघर्ष की प्रतिद्वंद्वी भी आज तारीफ करते हैं। उनके नेतृत्व की विशेषता यह है कि उन्होंने अपने व्यक्तिगत और राजनीतिक जीवन में लगातार चुनौतियों का सामना किया और उन्हें परास्त किया।

साहेब कांशीराम बनना आसान क्यों है?

इसके विपरीत, साहेब कांशीराम बनना अपेक्षाकृत सरल है। यहाँ कोई सीधा प्रतिद्वंद्वी नहीं है—न बाहर से, न अंदर से। न ही कोई जानलेवा संघर्ष करना पड़ता है। मिशन का मैदान खाली है, जहाँ सिर्फ दृढ़ निश्चय, त्याग, लगन, और प्रभावी कार्य योजना के सहारे आप उस मुकाम तक पहुँच सकते हैं जहाँ साहेब कांशीराम पहुँचे। उनका व्यक्तित्व ऐसा है कि जो कोई भी उनके विचारों से एक बार जुड़ता है, वह हमेशा के लिए उनके मिशन का हिस्सा बन जाता है।

 

साहेब बनने के लिए किसी अन्य से प्रतियोगिता करने की आवश्यकता नहीं है। यह पूरी तरह से अपने आप पर विजय प्राप्त करने का मामला है। जबकि बहनजी बनने के लिए न केवल स्वयं को मजबूत बनाना पड़ता है, बल्कि हज़ारों-लाखों प्रतिद्वंद्वियों को भी पछाड़ना आवश्यक होता है। यह ताकत और रणनीति का खेल है, जिसमें सामने वाले को कमजोर करके ही विजय पाई जा सकती है। यह राजनीति का एक प्रमुख सत्य है।

राजनीति और मिशन की वास्तविकता

भारत में राजनीति अब साम, दाम, दंड, भेद और छल-कपट का पर्याय बन चुकी है। इसमें हर कदम पर षड्यंत्र और चालाकी के साथ आगे बढ़ना पड़ता है। लेकिन मिशन की राह इससे भिन्न है। मिशन में किसी को हराकर आगे बढ़ने की बाध्यता नहीं है। यह एक प्रतियोगिता-विहीन प्रक्रिया है, जहाँ आत्म-विकास और सामाजिक परिवर्तन के लिए कार्य करना होता है।

साहेब कांशीराम मिशन का प्रतीक हैं, जबकि बहनजी संगठन की संरचना का प्रतिनिधित्व करती हैं। दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं। साहेब के बिना बहनजी बन पाना लगभग असंभव है, क्योंकि साहेब ने उस मिशन की नींव रखी है, जिसके बिना संगठनात्मक राजनीति का ढाँचा खड़ा नहीं हो सकता।

 

सबक और चुनौती

विडंबना यह है कि समाज में काम कर रहे कई साथी बहनजी की तरह बनना चाहते हैं, जबकि साहेब की तरह बनने की कोशिश कम ही लोग करते हैं। यह आंदोलन के सामने सबसे बड़ी चुनौती है। बिना साहेब की तरह बने, बहनजी बनना असंभव है। यहां तक कि खुद बहनजी भी किसी को राजनीति के शिखर तक नहीं पहुंचा सकतीं क्योंकि वह खुद साहेब नहीं हैं।

इसलिए, यह जरूरी है कि हम साहेब बनने के रास्ते को पहले समझें, क्योंकि वहीं से नेतृत्व की वास्तविक शुरुआत होती है। मिशन और राजनीति की इस सच्चाई को जितनी जल्दी स्वीकार कर लिया जाएगा, उतना ही बहुजन आंदोलन के लिए बेहतर होगा।

हरियाणा में कड़े मुकाबले में हारी कांग्रेस, बसपा-इनेलो गठबंधन भी फेल

हरियाणा चुनाव में बाजी भारतीय जनता पार्टी के पक्ष में जाती दिख रही है। कड़े मुकाबले में भाजपा लगातार तीसरी बार हरियाणा में सरकार बनाने जा रही है। चुनाव आयोग की वेबसाइट के मुताबिक शाम साढ़े पांच बजे तक भाजपा 49 सीटों पर जीत की ओर है। जबकि कांग्रेस पार्टी 36 सीटों जीतती दिख रही है। जिस बसपा और इनेलो गठबंधन से उम्मीद जताई जा रही थी कि वो प्रदेश में चुनाव को त्रिकोणीय बना देगा, वह कोई कारनामा नहीं कर पाई है। इनेलो को सिर्फ 2 सीटें मिलती दिख रही है, जबकि बसपा का कोई प्रत्याशी नहीं जीत पाया है। चुनाव में तीन स्वतंत्र उम्मीदवार जीत की ओर हैं।

हरियाणा के चुनावी नतीजों में सबसे ज्यादा चौंकाने वाली बात वोट प्रतिशत का है। दोनों दलों के बीच एक प्रतिशत से भी कम वोटिंग का अंतर है। भाजपा को जहां 39.90 प्रतिशत वोट मिले हैं वहीं कांग्रेस पार्टी को 39.09 प्रतिशत वोट मिले हैं। इससे साफ है कि कांग्रेस पार्टी एक प्रतिशत से भी कम वोटों के अंतर से पिछड़ गई है।

अन्य दलों की बात करें तो इनेलो तीसरे नंबर पर रही। उसको 4.15 प्रतिशत वोट मिले और उसके दो उम्मीदवार जीत की ओर हैं। जबकि इनेलो की सहयोगी रही बहुजन समाज पार्टी को 1.82 प्रतिशत वोट मिला है और वह कोई भी सीट नहीं जीत सकी है। इसके अलावा आम आदमी पार्टी को 1.79 प्रतिशत और जजपा को एक प्रतिशत से भी कम वोट मिला है। प्रदेश में तीन निर्दलीय उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है।

साफ है कि जिस भाजपा को खुद हरियाणा में अपने जीत की उम्मीद नहीं थी और माना जा रहा था कि कांग्रेस पार्टी आराम से चुनाव जीत जाएगी, वहां चुनाव परिणाम ने सबको चौंका दिया है। कांग्रेस के इस हार की सबसे बड़ी वजह उसकी अंदरूनी कलह मानी जा रही है। कांग्रेस ने जिस तरह चुनाव जीतने वाले उम्मीदवारों को दरकिनार कर बड़े नेताओं के चहेतों को टिकट दिया, उससे कांग्रेस पिछड़ गई है। दूसरी ओर हरियाणा की दिग्गज नेता और दलित समाज से आने वाली कुमारी सैलजा की जिस तरह टिकट बंटवारे में अनदेखी की गई और विरोध में वह दिल्ली आकर बैठ गईं, उसने भी कांग्रेस पार्टी को बड़ा झटका दिया है।

 

दलित समाज की इतिहासकार शैलजा पाइक को 7 करोड़ की ‘जीनियस ग्रांट’ फेलोशिप

शैलजा पाइक को 7 करोड़ रुपये के 'मैकआर्थर फ़ैलो प्रोग्राम' की 'जीनियस ग्रांट' फ़ैलोशिप के लिए चुना गया हैपुणे के येरवडा की मूलनिवासी दलित समाज की शैलजा पाइक को 7 करोड़ रुपये के ‘मैकआर्थर फ़ैलो प्रोग्राम’ की ‘जीनियस ग्रांट’ फ़ैलोशिप के लिए चुना गया है। यह पहली बार है जब दलित समाज के किसी व्यक्ति को इतनी बड़ी धनराशि की फैलोशिप मिली है। शैलजा एक आधुनिक इतिहासकार हैं जो जाति, लिंग और सेक्सुअलिटी के नजरिये से दलित महिलाओं के जीवन का अध्ययन करने के लिए जानी जाती हैं। उन्होंने अपने लेखन के ज़रिए बताया है कि लिंग और सेक्सुअलिटी ने दलित महिलाओं के आत्मसम्मान और उनके व्यक्तित्व के शोषण को कैसे प्रभावित किया है।

शैलजा की कहानी गरीबी से निकलकर अमेरिका में प्रोफेसर बनने तक के शानदार सफर की कहानी है। उनका जीवन पुणे के येरवडा की झुग्गी-झोपड़ी में बहुत अभाव और चुनौतियों के बीच बीता। लेकिन आगे बढ़ने और सफल होने की जिद्द और सपने ने उनके पैर न तो रुकने दिये और न ही थकने दिये। उन्होंने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि वो शाम को 7:30 बजे सो जाती थी और आधी रात को 2-3 बजे उठकर सुबह के छह सात बजे तक पढ़ती थीं, फिर स्कूल जाती थी।”

पढ़ाई के इस संघर्ष में उन्हें माता-पिता का भी बखूबी साथ मिला, जिन्होंने तमाम अभाव के बावजूद उन्हें अंग्रेजी मीडियम स्कूल में पढ़ाया। शैलजा ने एमए की पढ़ाई 1994-96 के दौरान सावित्रीबाई फुले पुणे विश्वविद्यालय के इतिहास विभाग से पूरी की। एम.फिल के लिए वह साल 2000 में इंग्लैंड चली गईं। एम.फिल के लिए शैलजा को भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएसएसआर) से फ़ैलोशिप मिली थी।

शैलजा पाइक का सफर यहीं नहीं रूका, उन्होंने 2007 में इंग्लैंड के वारविक विश्वविद्यालय से पीएचडी की डिग्री हासिल की। उन्होंने यूनियन कॉलेज में इतिहास के विज़िटिंग सहायक प्रोफेसर और येल विश्वविद्यालय में दक्षिण एशियाई इतिहास के पोस्ट डॉक्टरल एसोसिएट और सहायक प्रोफेसर के रूप में भी काम किया है। शैलजा साल 2010 से ‘सिनसिनाटी विश्वविद्यालय’ से जुड़ गई। यहां वह ‘महिला, लिंग और सेक्सुअलिटी अध्ययन और एशियाई अध्ययन’ की शोध प्रोफेसर हैं। दरअसल शैलजा पाइक ने अपने शोध अध्ययन के माध्यम से दलित महिलाओं के जीवन को गहराई से प्रस्तुत किया है, जिसके लिए आज उन्हें दुनिया के तमाम हिस्सों में जाना जाता है।

उनका यही काम मैकआर्थर फाउंडेशन की ओर से उन्हें मैकआर्थर फेलोशिप मिलने का आधार बना। जॉन डी. और कैथरीन टी. मैकआर्थर फाउंडेशन की ओर से ‘मैकआर्थर फ़ैलो प्रोग्राम’ की ‘जीनियस ग्रांट’ फ़ैलोशिप अमेरिका में अलग-अलग क्षेत्रों के 20 से 30 शोधकर्ताओं और विद्वानों को हर साल दी जाती है। इस साल यह फैलोशिप 22 लोगों को मिली है। इसमें लेखक, कलाकार, समाजशास्त्री, शिक्षक, मीडियाकर्मी, आईटी, उद्योग, अनुसंधान जैसे विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिष्ठित लोग शामिल हैं। चयनित उम्मीदवारों को पांच साल के लिए कई चरणों में 8 लाख डॉलर यानी तकरीबन 7 करोड़ रुपये की राशि मिलती है।

शैलजा पाइक के लेखन की बात करें तो उनके संपूर्ण लेखन के केंद्र में दलित और दलित महिलाएं हैं। उन्होंने भारतीय भाषाओं के साहित्य के अलावा समकालीन दलित महिलाओं के इंटरव्यू के दौरान मिले अनुभवों को जोड़कर वर्तमान संदर्भ में एक नया दृष्टिकोण तैयार किया है। ‘आधुनिक भारत में दलित महिला शिक्षा: दोहरा भेदभाव’ (2014) और ‘जाति की अश्लीलता: दलित, सेक्सुअलिटी और आधुनिक भारत में मानवता’ नाम से उनकी दो पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं।

शैलजा पाइक को इससे पहले फोर्ड फाउंडेशन की फेलोशिप भी मिल चुकी है। ‘रचनात्मकता’ मैकआर्थर फ़ैलोशिप का एक मूलभूत मानदंड है। इस फ़ैलोशिप का उद्देश्य नवीन विचारों वाले उभरते इनोवेटर्स के काम में निवेश करना, उसे प्रोत्साहित करना और उसका समर्थन करना है। खास बात यह है कि इस फ़ैलोशिप के लिए कोई आवेदन या साक्षात्कार प्रक्रिया नहीं है, बल्कि फ़ैलोशिप के लिए विभिन्न क्षेत्रों के प्रतिष्ठित व्यक्तियों द्वारा नामित विद्वान उम्मीदवारों की स्क्रूटनी के बाद नामों को फाइनल किया जाता है। शैलजा पाइक को मिली यह उपलब्धि पूरे भारत के लिए गर्व की बात है। साथ ही अंबेडकरवादी समाज को आत्मविश्वास से भरने वाला है।

स्मृति शेषः जातीय भेदभाव के खिलाफ लड़ाई के नायक थे एडवोकेट केशरीलाल

बहुजन समाज के नायकों की फेहरिस्त लम्बी रही है। उन नायकों से प्रेरणा लेकर बाद की पीढ़ी ने भी सम्मान के लिए संघर्ष का रास्ता चुना। केशरीलाल जी, उसी श्रृंखला के नायक का नाम है। बीते 19 सितंबर 2024 को 85 साल की उम्र में उनका परिनिर्वाण हो गया।

केशरी लाल जी का जन्म 1 जनवरी 1939 को राजस्थान केे धौलपुर जिले के पिपरोन गांव में दलित (चमार) परिवार में हुआ था। गांव में जातिवाद चरम सीमा पर था। दलित परिवार का कोई भी व्यक्ति स्कूल जाने की हिम्मत नहीं करता था। किसी ने स्कूल जाने की हिम्मत भी की तो उसका अंजाम पूरे दलित समुदाय को भुगतना होता था। ऐसे समय में केशरीलाल जी ने स्कूल जाने का साहस किया।

सरकारी स्कूल गांव से करीबन 6 किलोमीटर दूर था, जहां वे पैदल ही जाया करते थे। स्कूल में पढ़ने वाले उच्च जाति के छात्र अक्सर उनकी पिटाई भी कर देते थे, पिटाई करने का कोई कारण नहीं होता था। बस वे चमार थे और उच्च जाति के लोगों के साथ उन्होंने पढ़ने की हिम्मत जुटाई थी। स्कूल में उच्च जाति के छात्र मटके से पानी लेकर अलग से उनको पानी पिलाते थे।

पढ़ाई के साथ साथ खेती-बाड़ी का काम संभालना। भैंसों के लिए चारा लाना और खेतों पर पढ़ाई करना ही केशरी लाल जी की दिनचर्या थी। जब वे 10 वीं में थे, तब ही 6 दिसम्बर 1956 को संविधान निर्माता बाबा साहब डॉ. भीमराव अम्बेडकर जी का निधन हुआ था, उस दिन उन्होंने स्कूल में पढ़ाने वाले मास्टरों और उच्च जाति के विद्यार्थियों को यह कहते हुए सुना कि आज हमारा दुश्मन मारा गया। उच्च जाति के विद्यार्थियों ने इस बात की मिठाइयां बांटी थीं।

उस समय केशरी लाल जी ने प्रण लिया कि मुझे खूब पढ़ाई करनी है और बाबा साहब के रास्ते पर चलना है। समाज के लिए काम करना है। अपने जीवन को समाज के अधिकार सम्मान और न्याय दिलाने के लिए लगाना है। 10वीं पास करते ही केशरी लाल जी की नौकरी लग गई थी। उनके 10वीं पास करने पर गांव में हल्ला मच गया था।

एक चमार ने 10वीं पास कर ली थी। 10वीं पास करना उस समय बहुत बड़ी बात थी। नौकरी में रहते हुए ही केशरीलाल जी ने अपनी 11वीं और 12वीं कक्षा की पढ़ाई पूरी की। दिल्ली आकर देशबंधु कॉलेज से बीए और एएलबी की शिक्षा पूरी की। तब से लोग उन्हें वकील साहब के नाम से जानने पहचानने लगे

1960 में केशरी लाल जी जब दिल्ली आए तो सबसे पहले दिल्ली के अंबेडकर भवन पहुंचे थे। यहीं से वे समाज, सामाजिक संगठनों के साथ जुड़ते चले गए। उस समय केवल आरपीआई और समता सैनिक दल था। तो वे उनके साथ जुड़े। बाकी संगठन और राजनैतिक पार्टी तो बाद में आए। वे गांव से अकेले ही आए थे पर लोग उनके साथ जुड़ते गए और कारवां बढ़ता गया।

दिल्ली आकर एडवोकेट केशरी लाल जी ने बौद्धिज्म को समझा और बौद्ध धर्म की दीक्षा ली। अपने आफिस में स्वयं को बौद्धिस्ट डिक्लेयर कर दिया। बुद्धिस्ट बनने को लेकर गजट ऑफ इंडिया नामक न्यूज पेपर में इश्तिहार दिया। अपने नाम के साथ बौद्ध लगाना शुरू कर दिया। हालांकि इससे उनका प्रमोशन रोक दिया गया। बौद्ध बनने के बाद एडवोकेट केशरी लाल बौद्ध जी ने अपने सभी बच्चों की पढाई सामान्य वर्ग के अनुसार स्कूल की पूरी फीस देकर करवाई।

प्रधानमंत्री वीपी सिंह की सरकार आने के बाद उनको नौकरी में प्रमोशन मिला। जब प्रमोशन मिला और वे गजटेड ऑफिसर बने तो एक साल ही इस पोस्ट का फायदा उठा सके। इसके बाद 31 दिसंबर 1996 को रिटायर हो गए। रिटायर होने के बाद नोटरी के लिए अप्लाई किया और वे नोटरी ऑफिसर बन गए। नोटरी रहते हुए अपने आखिरी समय तक जरूरतमंदों की सहायता करते रहे। समाज की सेवा करते-करते 86 की उम्र में 19 सितंबर 2024 को दिल्ली के एक अस्पताल में उन्होंने अंतिम सांस ली।

86 उम्र के लंबे सफर में उन्होंने जातिवाद, गरीबी, आर्थिक परेशानियों को बहुत पास से देखा, लेकिन हार नहीं मानी। जब वे सरकारी नौकरी में थे तो पत्नी, छह बच्चे और अपने चारों भाइयों के परिवार का पालन-पोषण किया। उनकी नौकरी जब लगी थी, तब वे क्लर्क थे। करीबन 100 रुपए महीने से उनकी नौकरी लगी थी। इस छोटी सी नौकरी से उनके घर परिवार व उनके भाइयों के परिवार का खर्चा पूरे नहीं हो पाता था, तो उनकी पत्नी लौंगश्री जी ने भी जिम्मेदारी अपने कन्धों पर ली। उन्होंने दूसरों के खेतों में जाकर मजदूरी करना शुरू किया।

जब एडवोवेट केशरीलाल बौद्ध जी अपनी पत्नी लौंगश्री जी को दिल्ली लेकर आए तब दिल्ली में भी लौंगश्री जी ने बच्चों के पालन-पोषण की जिम्मेदारी अपने कन्धों पर उठाई। दिल्ली में दूसरों के घरों में जाकर उपले बनाए, मजदूरी की। जब केशरी लाल नोटरी अफसर बने तब से लौंगश्री और उनके बच्चों की जिन्दगी में सुधार आया।

केशरीलाल बौद्ध जी गांव की उस लकीर को मिटाकर दुनिया से विदा हुए, जहां दलितों की बारात नहीं चढ़ सकती थी। उच्च जाति वाले के दरवाजों के सामने से दलित दूल्हा घोड़ी पर नहीं चढ़ सकता था। जय भीम का नाम कोई नहीं ले सकता था। यही नहीं उच्च जाति के यहां से दलित की अर्थी तक नहीं जा सकती थी। ऐसे गांव में केशरी लाल बौद्ध जी सभी जातियों को एकजुट कर जातिवादी नफरत की दीवार मिटाकर उनमें प्यार मोहब्बत के फूल खिलाकर गए। दलितों और उच्च जातियों के बीच भाईचारा बनाकर गए।

इसलिए एडवोकेट केशरी लाल बौद्ध जी को गांव के लोगों ने गुलाब के फूल, जय भीम, वकील साहब अमर रहे के नारों के साथ अंतिम विदाई दी। उनकी अंतिम यात्रा में दलित और क्या उच्च जाति सभी समाज के लोग शामिल थे।

SC-ST आरक्षण सब-कोटे पर सुप्रीम कोर्ट में दायर पुनर्विचार याचिका खारिज

नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति एवं जनजाति को मिलने वाले आरक्षण में उप-वर्गीकरण के अपने फैसले के खिलाफ दायर याचिकाओं को खारिज कर दिया है। शीर्ष अदालत ने 1 अगस्त को ही इस संबंध में फैसला दिया था और कहा था कि यदि राज्य सरकारों को जरूरी लगता है कि एससी और एसटी कोटे के भीतर ही कुछ जातियों के लिए सब-कोटा तय किया जा सकता है। इसका एक वर्ग ने विरोध किया था और आंदोलन भी हुआ था। इसके अलावा याचिकाएं दाखिल की गई थीं। इन पर ही शुक्रवार को सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने विचार करने से इनकार कर दिया।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली 7 जजों की बेंच ने कहा कि उस फैसले में ऐसी कोई त्रुटि नहीं थी, जिस पर पुनर्विचार किया जाए। अदालत ने कहा, ‘हमने पुनर्विचार याचिकाओं को देखा है। ऐसा लगता है कि पुराने फैसले में ऐसी कोई खामी नहीं है, जिस पर फिर से विचार किया जाए।

इसलिए पुनर्विचार याचिकाओं को खारिज किया जाता है।’ जस्टिस बीआर गवई, विक्रम नाथ, बेला एम. त्रिवेदी, पंकज मिथल, मनोज मिश्रा और सतीश चंद्र शर्मा इस बेंच में शामिल थे। अदालत ने कहा कि याचिकाओं में कोई ठोस आधार नहीं दिया गया कि आखिर क्यों 1 अगस्त के फैसले पर कोर्ट को पुनर्विचार करना चाहिए।

इन याचिकाओं पर अदालत ने 24 सितंबर को ही सुनवाई की थी, लेकिन फैसला आज के लिए सुरक्षित रख लिया था। इन याचिकाओं को संविधान बचाओ ट्रस्ट, आंबेडकर ग्लोबल मिशन, ऑल इंडिया एससी-एसटी रेलवे एम्प्लॉयी एसोसिएशन समेत कई संस्थाओं की ओर से दायर किया गया था।

सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक बेंच ने 1 अगस्त को ही 6-1 के बहुमत से फैसला दिया था। इसमें राज्य सरकारों को एससी और एसटी कोटे के सब-क्लासिफिकेशन की मंजूरी दी गई थी। इसके तहत कहा गया था कि यदि इन वर्गों में किसी खास जाति को अलग से आरक्षण दिए जाने की जरूरत पड़ती है तो इस कोटे के तहत ही उसके लिए प्रावधान किया जाता है।

अदालत के इस फैसले को दलितों और आदिवासियों के एक वर्ग ने आरक्षण विरोधी करार दिया था। वहीं एक वर्ग इसके समर्थन में भी आया था। अदालत ने अपने फैसले में कहा था कि दलितों में भी कई जातियां और इस वर्ग को समरूप नहीं माना जा सकता। इसलिए आरक्षण के लिए यदि किसी जाति को खास प्रावधान देने की जरूरत पड़ती है तो वह भी करना चाहिए।

अमेठी हत्याकांड: आरोपी को मारी गोली, मृतक के परिजनों से सीएम योगी ने की मुलाकात

अमेठी। पुलिस ने शनिवार तड़के अमेठी हत्याकांड आरोपी चंदन वर्मा के पैर में गोली मार दी। पुलिस चंदन को हत्या में इस्तेमाल पिस्टल को बरामद करने के लिए घटनास्थल पर ले गई थी। इसी दौरान उसने दरोगा मदन वर्मा से पिस्टल छीन ली। फायरिंग करते हुए भागने लगा। जवाबी फायरिंग में पुलिस ने उसे गोली मार दी।

उसे जिला अस्पताल में भर्ती करवाया गया है। शुक्रवार रात 11 बजे अमेठी के एसपी अनूप सिंह ने प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी। उन्होंने आरोपी चंदन वर्मा को मीडिया के सामने पेश किया। कहा- चंदन को गौतमबुद्धनगर जिले में जेवर टोल प्लाजा से STF ने गिरफ्तार किया। आरोपी ने गुरुवार शाम टीचर सुनील, उसकी पत्नी और दो बेटियों की गोली मारकर हत्या कर दी थी।

इधर, अमेठी हत्याकांड में टीचर सुनील के परिवार से सीएम योगी ने शनिवार को लखनऊ में मुलाकात की। ऊंचाहार विधायक मनोज पांडेय सुनील के पिता, मां को लेकर योगी के पास पहुंचे। वहां सीएम ने पूरे घटनाक्रम को लेकर बात की। उन्होंने आश्वासन दिया कि प्रशासन परिवार की पूरी मदद करेगा। टीचर सुनील के माता-पिता ने योगी को पूरी घटना बताई। सीएम ने परिवार के एक सदस्य को सरकारी नौकरी, 5 बीघा जमीन और घर देने का ऐलान किया।

टीचर के घर में ही की थी वारदात

वारदात को टीचर के घर में ही अंजाम दिया गया। इसके बाद आरोपी ने सुसाइड करने की कोशिश की थी। खुद पर गोली चलाई, लेकिन मिस हो गई। वह डर गया और दोबारा गोली नहीं चला सका। तब वह फरार हो गया था। उसका टीचर की पत्नी से डेढ़ से साल से संबंध था। गुरुवार को वह टीचर के घर आया था। उसने टीचर को 3, पत्नी को 2 और बच्चियों को एक-एक गोली मारी। वारदात से पहले चंदन वर्मा ने वॉट्सऐप के बायो में लिखा था- 5 लोग मरने वाले हैं।

पत्नी ने चंदन के खिलाफ दर्ज कराई थी शिकायत

पुलिस के मुताबिक, टीचर को पत्नी और चंदन के अफेयर का पता चल गया था। 18 अगस्त को यानी 47 दिन पहले टीचर की पत्नी पूनम भारती ने रायबरेली जिले की नगर कोतवाली में रिपोर्ट कराई थी। इसमें चंदन से जान को खतरा बताया था। पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज कर चंदन से पूछताछ भी की थी। इसके बाद 12 सितंबर को चंदन ने अपना वॉट्सऐप बायो चेंज किया था। इसके बाद उसने वारदात को अंजाम दिया।

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डॉ. राहुल गजभिये सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिकों की सूची में शामिल

नई दिल्ली। अमेरिका की स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी ने हाल में दुनिया भर के सर्वश्रेष्ठ स्त्री-रोग विशेषज्ञ व संबंधित वैज्ञानिकों की सूची प्रकाशित की हैै। इसमें इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च के तहत नेशनल इंस्टिट्यूट ऑफ रिसर्च फॉर रिप्रोडक्टिव हेल्थ में कार्यरत प्रसिद्ध स्त्री-रोग वैज्ञानिक डॉ. राहुल गजभिये को सम्मिलित एवं सन्मानित किया गया है।

एल्सिवेर डाटा रिपॉजिटरी संस्था के सहयोग से भारत के नामचीन स्वास्थ्य व चिकित्सा संस्थानों में कार्यरत 13 स्त्री-रोग विशेषज्ञों को दुनिया के सर्वश्रेष्ठ 2 प्रतिशत वैज्ञानिकों में चयनित किया गया है। इसमें डॉ. राहुल गजभिये भी शामिल हैं। डॉ. गजभिय महाराष्ट्र के ग्रामीण स्वास्थ्य अनुसन्धान यूनिट के नोडल अधिकारी है। उन्हें नेशनल साइंस अकेडमी, इंडो-ऑस्ट्रेलियन फेलोशिप प्राप्त है। डॉ. राहुल अंबेडकरवादी चिंतक एवं विचारक भी हैं।

डॉ. गजभिये ने अंबेडकरी आंदोलन की दो दर्जन से ज्यादा पुस्तकों का मराठी और अन्य भाषाओं से हिन्दी में अनुवाद किया है। उनकी तमाम अनुदित किताबों को सम्यक प्रकाशन ने प्रकाशित किया है।