हर साल गणतंत्र दिवस के मौके पर 26 जनवरी को राजपथ पर झांकी निकालने की परंपरा रही है। इस बार भी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों की 12 और संवैधानिक संस्थानों की नौ झांकियां यानी कुल 21 झाकियां 26 जनवरी को राजपथ पर दिखेंगी। इस बार की थीम आजादी का अमृत महोत्सव है। लेकिन इस बार केरल, तामिलनाडु और पश्चिम बंगाल की झांकियों को जगह नहीं मिलने से हंगामा मचा है। खासकर केरल की झांकी को जगह नहीं मिलने से विवाद बढ़ गया है। केरल की झांकी महान समाज सुधारक नारायण गुरु पर आधारित थी। लेकिन रक्षा मंत्रालय ने मंजूरी नहीं दी है। इस खबर में बात केरल की झांकी की, नारायणा गुरू की।
केरल सरकार ने समाज सुधारक श्री नारायण गुरु और जटायु पार्क स्मारक की झांकी के लिए प्रस्ताव दिया था, लेकिन रक्षा मंत्रालय इसे आदि शंकराचार्य में बदलने पर जोर दे रही थी। केरल सरकार द्वारा ऐसा नहीं करने पर केरल की झांकी को गणतंत्र दिवस की परेड से खारिज कर दिया गया।
सवाल है कि आखिर रक्षा मंत्रालय को नारायण गुरू की झांकी से क्या दिक्कत थी? दरअसल सरकार नारायण गुरू से डर गई। क्योंकि नारायण गुरु ने अपने जीवन में जो बातें की और उससे केरल में जो क्रांति हुई, उस क्रांति के कारण केरल में आज तक हिन्दुत्व वादी ताकतें अपनी जड़ नहीं जमा सकी है।
नारायणा गुरू का जन्म केरल के तिरुअनतपुर के एक गांव में 22 अगस्त 1856 को हुआ था। बचपन से ही वह जातिवाद का विरोध करते थे। तब दलितों-शोषितों के मंदिर में जाने का अधिकार नहीं था। इसके विरोध में उन्होंने दक्षिण केरल में नैयर नदी के किनारे मंदिर बनाया जिसे अरुविप्पुरम के नाम से जाना जाता है। इसका काफी विरोध हुआ और ब्राह्मणों ने इसे महापाप करार दिया था। तब नारायण गुरु ने कहा था कि ईश्वर सबमें है। शिक्षा के क्षेत्र में भी उन्होंने काफी सुधार किया। पहले इन वर्गों के बच्चों पर सामान्य स्कूलों में पढ़ने पर प्रतिबंध था। नारायण गुरु के प्रयासों से आजादी से पहले ही यह प्रतिबंध हट गया।
कुल मिलाकर नारायणा गुरु ने केरल में या फिर पेरियार ने तामिलनाडु में जो क्रांति की, उसी का प्रभाव है कि आज भी दक्षिण भारत का दलित-शोषित वर्ग तमाम कर्मकांडों से दूर है।

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।