लखनऊ, 2 मार्च 2025। प्रख्यात साहित्यकार और बिहार के पहले दलित IAS अधिकारी डॉ. शंभूनाथ का निधन हो गया। वे लखनऊ स्थित उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान में एक कार्यक्रम के दौरान बोलते-बोलते गिर पड़े और वहीं उनकी मृत्यु हो गई। इस अचानक घटना से पूरा साहित्य और प्रशासनिक जगत शोक में है। वो ऐसे विरले शख्सियत रहे, जिन्होंने प्रशासनिक सेवा और साहित्य दोनों में अमिट छाप छोड़ी।
डॉ. शंभूनाथ का जन्म 2 मार्च 1947 को बिहार के छपरा ज़िले में हुआ था। वे दुसाध जाति से थे और सिविल सेवा परीक्षा पास कर बिहार से पहले दलित IAS अधिकारी बने। यह उपलब्धि उस समय दलित समाज के लिए ऐतिहासिक थी। उनका प्रशासनिक करियर शानदार रहा। वे उत्तर प्रदेश के राज्यपाल प्रो. विष्णुकांत शास्त्री के मुख्य सचिव रहे और मायावती सरकार में प्रमुख सचिव का दायित्व संभाला।
सेवानिवृत्ति के बाद उन्होंने रांची लौटने के बजाय लखनऊ में रहना चुना। साहित्य से गहरे जुड़ाव के कारण वे हिंदी संस्थान, लखनऊ के अध्यक्ष बने। यह पद उनके लिए इसलिए भी उपयुक्त था क्योंकि वे केवल प्रशासक ही नहीं, बल्कि गंभीर साहित्यकार और शोधकर्ता भी थे। विशेष रूप से हजारीप्रसाद द्विवेदी पर उनका शोध उल्लेखनीय है और साहित्य जगत में उनकी अलग पहचान बनाता है। डॉ. शंभूनाथ का व्यक्तित्व बहुआयामी था। प्रशासनिक दक्षता, ईमानदारी और सामाजिक सरोकारों के साथ-साथ वे हिंदी साहित्य में भी लगातार सक्रिय रहे। अख़बारों और पत्रिकाओं में उनके लेख प्रकाशित होते रहे और साहित्यिक गतिविधियों से उनका नाम जुड़ा रहा।
उन्हें याद करते हुए एच.एल. दुसाध लिखते है-
2 मार्च, 1947 को बिहार के छपरा जिले को अपने जन्म से धन्य करने वाले पिता जागेश्वर राम की संतान शंभूनाथ सर असाधारण प्रतिभा के स्वामी रहे। मूलतः बिहार के रहने वाले डॉ शंभूनाथ सर का परिवार परवर्तीकाल में रांची चला गया, लेकिन वह लखनऊ में आ गए। बहुतों को पता नहीं कि दुसाध जाति में जन्मे डॉ. शंभूनाथ बिहार के पहले दलित थे जो आई ए एस बने। उनसे मेरा परिचय राज्यपाल प्रो शास्त्री के सचिव रहने के दौरान हुआ था। पिछले प्रायः डेढ़ दशक से उनके सीधे संपर्क में नहीं रहा, किंतु अखबारों के जरिए उनकी साहित्यिक गतिविधियों से लागतार अवगत होते रहा। उनके निधन से निश्चित ही साहित्य जगत को बड़ा आघात लगा है। उनके निधन से न केवल साहित्य जगत, बल्कि पूरा बहुजन समाज शोकाकुल है। उनका जीवन इस बात का उदाहरण है कि संघर्ष और प्रतिभा के बल पर समाज के वंचित वर्ग से आने वाला व्यक्ति भी प्रशासनिक और बौद्धिक शिखर पर पहुँच सकता है।

वीरेन्द्र कुमार साल 2000 से पत्रकारिता में हैं। दलित दस्तक में उप संपादक हैं। उनकी रुचि शिक्षा, राजनीति और खेल जैसे विषय हैं। कैमरे में भी वीरेन्द्र की समान रुचि है और कई बार वीडियो जर्नलिस्ट के तौर पर भी सक्रिय रहते हैं।

