बिहार में दलितों के खिलाफ लगातार बढ़ रहे अत्याचार के मामले बेहद चिंताजनक हैं। लेकिन उससे बड़ी चिंता की बात यह है कि ऐसे मामलों में एससी-एसटी एक्ट होने के बावजूद उनको न्याय नहीं मिल पा रहा है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने बीते 23 दिसंबर को एससी-एसटी अधिनियम मामलों की समीक्षा बैठक की थी। इस बैठक में एससी-एसटी के ऊपर अत्याचार के मामलों और न्याय मिलने को लेकर जो आंकड़े सामने आए हैं, वो चौंकाने वाले हैं।
इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के मुताबिक, इस समीक्षा बैठक से पता चला है कि वर्तमान में राज्य में एससी-एसटी अधिनियम से जुड़े कुल मामलों की संख्या 1,06,893 है। इनमें से तकरीबन आधे 44,986 मामलों में न्याय नहीं मिला है। बीते 10 सालों यानी जनवरी 2011 से नवंबर 2021 के बीच दर्ज 44,150 मामलों में से सिर्फ 872 मामलों में ही फैसला सुनाया गया है।
बिहार पुलिस के आंकड़ों के मुताबिक एससी-एसटी अधिनियम के तहत सबसे अधिक 7,574 मामले 2020 में दर्ज किए गए। इससे पहले 2018 में यह संख्या 7,125 और 2017 में 6,826 थी।
नहीं मिल पा रहा है न्याय
रिपोर्ट के मुताबिक उत्पीड़न की घटनाओं में न्याय नहीं मिल पाने की वजह मामलों की संख्या ज्यादा होने का हवाला दिया जा रहा है। इसकी एक वजह यह भी है कि मामलों का निपटारा होने पर पीड़ितों को मुआवजा देना पड़ेगा, जिसकी वजह से भी न्याय मिलना दुभर होता जा रहा है। दरअसल हत्या के मामले में पीड़ित परिवारों को 8.5 लाख रुपये का मुआवजा मिलने का प्रावधान है।
ऐसे मुआवजे के मामले में 8,108 मामलों में अब तक सिर्फ 2,876 मामलों का ही निपटारा किया गया है और 5,232 मामले लंबित हैं। इसका कारण फंड का नहीं होना बताया जा रहा है।
क्या कहते हैं नियम
इन आंकड़ों के सामने आने के बाद बिहार में दलितों और आदिवासियों की दयनीय स्थिति की तस्वीर सामने आ जाती है। तो बिहार की सत्ता पर लंबे समय से बैठे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का भी दलितों को न्याय दिलाने के बारे में रवैया सवालों के घेरे में है। क्योंकि नियम के अनुसार एससी-एसटी की स्थिति पर हर छह महीने में समीक्षा बैठक होनी चाहिए जो आमतौर पर नहीं हुई। 4 सितंबर 2020 को समीक्षा बैठक के बाद मुख्यमंत्री की भी नजर इसपर पंद्रह महीने बाद गई और 23 दिसंबर 2021 को एससी-एसटी अधिनियम मामलों की समीक्षा बैठक हुई। इससे साफ है कि बिहार की सरकार, प्रशासन और आय़ोग दलितों और आदिवासियों के खिलाफ अत्याचार रोकने और उनको न्याय दिलाने के लिए गंभीर नहीं है।

अशोक दास (अशोक कुमार) दलित-आदिवासी समाज को केंद्र में रखकर पत्रकारिता करने वाले देश के चर्चित पत्रकार हैं। वह ‘दलित दस्तक मीडिया संस्थान’ के संस्थापक और संपादक हैं। उनकी पत्रकारिता को भारत सहित अमेरिका, कनाडा, स्वीडन और दुबई जैसे देशों में सराहा जा चुका है। वह इन देशों की यात्रा भी कर चुके हैं। अशोक दास की पत्रकारिता के बारे में देश-विदेश के तमाम पत्र-पत्रिकाओं ने, जिनमें DW (जर्मनी), The Asahi Shimbun (जापान), The Mainichi Newspaper (जापान), द वीक मैगजीन (भारत) और हिन्दुस्तान टाईम्स (भारत) आदि मीडिया संस्थानों में फीचर प्रकाशित हो चुके हैं। अशोक, दुनिया भर में प्रतिष्ठित अमेरिका के हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में फरवरी, 2020 में व्याख्यान दे चुके हैं। उन्हें खोजी पत्रकारिता के दुनिया के सबसे बड़े संगठन Global Investigation Journalism Network की ओर से 2023 में स्वीडन, गोथनबर्ग मे आयोजिक कांफ्रेंस के लिए फेलोशिप मिल चुकी है।