पकड़ा गया Savarkar को हीरो बनाने को लेकर रचा गया झूठ

28 मई को विनायक दामोदर सावरकर की 140वीं जयंती के मौके पर फिल्म स्वातंत्र्य वीर सावरकर का टीजर रिलीज हुआ। लेकिन इसमें जो कुछ भी कहा गया, उसको लेकर जबरदस्त विवाद शुरू हो गया है। फिल्म के टीजर में कहा गया है कि सुभाष चंद्र बोस, भगत सिंह और खुदीराम बोस ने सावरकर से प्रेरणा ली थी। इसी बात को लेकर रणदीप हुड़्डा की जमकर आलोचना हो रही है। जिन लोगों ने भी इन तीनों महानायकों को पढ़ा है वह फिल्म मेकर्स की इस बात से खासे हैरान हैं।
यहां तक की सुभाष चंद्र बोस के परिवार ने भी इसका मजबूती से विरोध किया है। नेताजी के पड़पोते चंद्र कुमार बोस ने फिल्म मेकर्स और रणदीप हुड्डा के दावे को खारिज करते हुए कहा कि, सुभाष चंद्र बोस ने पूरी जिंदगी हर जगह अपने भाषणों और लेखों में जिन दो नायकों से प्रभावित होने की बात कही, उनमें एक स्वामी विवेकानंद थे और दूसरे उनके राजनीतिक गुरु देशबंधु चितरंजन दास। यही नहीं रणदीप हुड्डा और अन्य फिल्म मेकर्स जिस सुभाष चंद्र बोस को सावरकर से प्रभावित बता रहे हैं, उन्होंने खुद अपनी एक किताब में सावरकर की पोल खोली है। नेताजी ने द इंडियन स्ट्रगल 1920-42 में लिखा है कि ‘दूसरे विश्व युद्ध से पहले मैंने जिन्ना व सावरकर से आजादी के लिए संघर्ष की बात की। जिन्ना अंग्रेजों की मदद से पाकिस्तान बनाना चाहते थे। सावरकर सोच रहे थे कि सेना में घुसकर हिन्दू कैसे सैनिक ट्रेनिंग लें। मैं नाउम्मीद हो गया।’

तो वहीं दूसरी ओर भगत सिंह को पढ़ने से साफ जाहिर होता है कि उन्होंने हमेशा सांप्रदायिक शक्तियों की निंदा की। उन्होंने हमेशा से धर्म के नाम पर राजनीति करने वालों को अपने लेखों में आड़े हाथों लिया। इसी मुद्दे पर एक्ट्रेस स्वास्तिका मुखर्जी ने भी सवाल उठाया। स्वास्तिका ने खुदीराम बोस का जिक्र करते हुए ट्विटर पर सवाल उठाया कि जिस खुदीराम बोस का 18 साल की उम्र में निधन हो गया था, क्या इस उम्र के पहले भी उन्हें किसी ने स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया था?

उन्होंने सवाल उठाया कि ये प्रेरक कहानियां कहां से आ रही हैं? मैं फिल्मों की इस बिकाऊ पिच से सहमत नहीं हूं। चुने हुए लोगों को ऊंचे आसन पर बिठाना आवश्यक है। साफ है कि एक एजेंडे के तहत कुछ खास नायकों को लोगों के दिमाग में स्थापित किया जा रहा है। ऐसा कर खासकर उन युवाओं को टारगेट किया जा रहा है जिनकी उम्र 30 साल के नीचे है और जो फिलहाल किताबें पढ़ने की बजाय सोशल मीडिया और फिल्में देखकर अपनी राय कायम कर रहे हैं।

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