लखनऊ। बाबासाहेब भीमराव अम्बेडकर विश्वविद्यालय (बीबीएयू) में एक दलित छात्र को टॉप करने के बावजूद भी प्र पहले पहले प्रवेश लेने से रोका गया. हाईकोर्ट के फैसले बाद विश्वविद्यालय ने दाखिला तो दे दिया लेकिन छात्रावास नहीं दे रहा है. छात्र का आरोप है कि विश्वविद्यालय प्रशासन उनसे भेदभाव कर रहा है.
इस सिलसिले में बसंत कुमार कन्नौजिया ने बीबीएयू प्रशासन को लिखित शिकायत दी है. उन्होंने लिखा कि मैं 100 में 94 अंक ले आकर आया हूं. छात्र का कहना है कि टॉपर अनुसूचितजाति का छात्र है जिसे विश्वविद्यालय प्रशासन पचा नहीं पा रहा है.
छात्र ने आरोप लगाया कि बीबीएयू ने इसी कारण पहले प्रवेश से रोक लिया था. उसके बाद मैंने प्रवेश के लिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया. हाईकोर्ट ने बीबीएयू को फटकार लगाते हुए तत्काल रूप से प्रवेश लेने के लिए 19 सितम्बर को आदेश दिया. उसके बाद 22 सितम्बर को दाखिला हुआ लेकिन दलित होने की वजह से विश्वविद्यालय प्रशासन ने मुझे शारीरिक और मानसिक रूप से एक महीने तक परेशान किया.
बसंत का कहना है कि छात्रावास के लिए सोशल वर्क विभाग के प्रो. बीएस भदौरिया और डॉ. वीरेंद्र नाथ दूबे मुझे परेशान कर रहे हैं. जब मैं मिलने जाता हूं तब कहते हैं कि हॉस्टल मिल जायेगा. लेकिन बसंत को अभी तक हॉस्टल नहीं मिला. जबकि छात्रों को हॉस्टल प्रवेश परीक्षा की मेरिट के आधार पर दिया जाता है.
टॉपर अनुसूचितजाति का छात्र छात्रावास के लिए 20 दिन से विश्वविद्यालय प्रशासन के चक्कर लगा रहा है लेकिन कोई सुनने वाला नहीं है. एमफिल कोर्स सेल्फ फाइनेंस होने की वजह से उसे कोई फेलोशिप भी नहीं मिलती है. प्रार्थी के परिवार की आर्थिक स्थिति दयनीय होने की वजह से बाहर कमरा लेकर अध्ययन कार्य करने में असमर्थ है.

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